दूरस्थ शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य व विशेषताएँ बताइए।
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दूरस्थ शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य
दूरस्थ शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्य दूर- शिक्षा शिक्षण संस्थाओं के बन्धन से मुक्त है। वह उनके लिए जो औपचारिक शिक्षा से लाभान्वित नहीं हो पाये। शिक्षाविदों ने निम्नलिखित सुमुदायों को इस प्रणाली से लाभ और सहायता प्राप्ति के उपयुक्त पाया है—
1. वे व्यक्ति जो पारिवारिक आवश्यकताओं के कारण अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं परन्तु उनके हृदय में पढ़ाई की ललक या तड़प बनी हुई है।
2. घर में काम करने वाली महिलाएँ।
3. वे प्रौढ़ व्यक्ति जो व्यवसायरत हैं, उन्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं। वे स्वान्तः सुखाय या ज्ञान-वृद्धि के लिए ज्ञान अर्जित करना चाहते हैं ।
4. वे श्रमिक या किसान जो अनपढ़ हैं।
5. ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक या सामाजिक कारणों से अपनी शिक्षा आगे जारी नहीं रख सकते।
6. वे व्यक्ति जो पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं, वनवासी हैं अथवा दूर-दूर के ग्रामों में रहते हैं, जहाँ पाठशालाएँ हैं ही नहीं अथवा जहाँ पाठशालाओं का अभाव है।
7. विकलांग अथवा नेत्रहीन व्यक्ति जो परम्परागत औपचारिक शिक्षण संस्थाओं से कोई लाभ उठा पाने में असमर्थ हैं।
दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएँ
दूरस्थ शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन निम्न है-
1. दूर शिक्षा परम्परागत शिक्षा से भिन्न है। इसमें अध्यापक शिक्षार्थी तक पहुँचता है।
2. यह बहु माध्यम उपागम (Multimedia Approach) है। इसमें शैक्षिक तकनीकी के बह-माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।
3. दूर शिक्षा में सम्प्रेषण माध्यमों के प्रयोग को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है।
4. मुद्रित सामग्रियाँ, श्रव्य-दृश्य साधन, संगणूक आदि-इसमें गुरु और शिष्य को जोड़ते हैं और पाठ्य-वस्तु का वहन करते हैं।
5. दूर-शिक्षा के द्वारा उन्मुक्त अधिगम’ (Open Learning) के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा की जा सकती हैं।
6. इस विधि में विद्यार्थियों को सामूहिक रूप से नहीं पढ़ाया जाता। वे जो कुछ भी पढ़ते या सीखते हैं वह व्यक्तिगत अध्ययन पर ही आधारित होता है।
7. यह प्रणाली लाभार्थी अथवा शिक्षार्थी को अध्ययन में पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करती है।
8. दूर शिक्षा में तकनीकी विशिष्टता की प्रबलता रहती है ।
9. इस विधि में विद्यार्थी को स्थायी रूप से मेल-मिलाप का अंवसर नहीं मिलता। केवल सम्पर्क सत्रों में ही वे परस्पर मिल सकते हैं। तभी शैक्षिक और सामाजिक प्रक्रिया का अवसर मिलता है।
10. यह सीखने-सिखाने की ऐसी विधि है जो निश्चित और स्थिर पाठ्य-वस्तु शिक्षण-विधियों समय और आमने-सामने बैठकर पढ़ने-पढ़ाने के बन्धन से उन्मुक्त रहती है ।
11. इसके प्रयोग से शिक्षण में गुणात्मक विकास किया जा सकता है।
12. यह प्रणाली कुछ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति करती है। यह विधि सीखने वालों के कुछ निश्चित समूहों के लिए है।
13. दूर-शिक्षा निजी अध्ययन पर आधारित हैं। इसलिए विद्यार्थीगण संस्था के रूप में अध्ययन नहीं करते।
14. यह विधि सीखने की एक सुव्यवस्थित प्रणाली है। इसे हम आकस्मिक अथवा अनौपचारिक शिक्षा नहीं कह सकते और न ही यह घर पर स्वयं अध्ययन करने की विधि है।
15. अध्ययन सामग्रियों की योजना और तैयारी तथा छात्र सहायक सेवाएँ, इन दोनों शैक्षिक संगठनों का प्रभाव रहता है।
16. शिक्षा की यह प्रणाली सीखने वालों की आवश्यकताओं, उनके शैक्षिक स्तर और प्रतिदिन के जीवन सम्बन्धी कार्यों से सम्बन्धित रहती है।
17. इस प्रणाली में ऐसी व्यवस्था रहती है कि आवश्यकता पड़ने पर विद्यार्थी शिक्षकों
18. से वार्तालाप कर सकें तथा अपनी कठिनाइयों और संशयों का निवारण कर सकें। दूर-शिक्षा में कुछ भी बाहर से या ऊपर से थोपा नहीं जाता। छात्र जो भी है स्वयं ही सीखता है। उसे स्वयं ही ज्ञानार्जन करना होता है।
19. इस विधि में छात्र अपनी योग्यता के अनुसार और अपनी इच्छा के अनुसार समय लगाकर प्रगति करता है।
20. दूर शिक्षा को हम एक नवाचार कहते हैं जो नमनीय है और जिस पर विद्यार्थी को कम खर्च आता है।
21. यह प्रणाली खुले विश्वविद्यालय, पत्राचार-पाठ्यक्रम, सतत् या अनवरत शिक्षा एवं खुले-अधिगम का मार्ग प्रशस्त करती है।
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