न्याय के अर्थ को आप कैसे स्पष्ट करेंगे?
भारत के प्राचीन राजनीतिक चिन्तन में न्याय की धारणा को बहुत ही प्रतिष्ठा प्राप्त है। मानव समाज जितना पुराना है। उतना ही न्याय की अवधारणा भी है। न्यायिकी में ही न्याय की अवधारणा की विवेचना की है। प्लेटो के अनुसार न्याय का सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा से है और उनके राज्य जो कि व्यक्ति का ही बहुरूप है। अतः व्यक्ति की आत्मा राज्य में न्याय की स्थिति सार रूप में एक सी है। अरस्तू ने भी न्याय को प्लेटो की भांति न्याय को दो भागों में वर्णन किया है जैसे-
- वितरणात्मक या राजनीतिक न्याय
- सुधारक न्याय है।
भारत में तो न्याय को ही राज्य का आधार माना गया है। मनु, कौटिल्य, व बृहस्पति, शुक्र, भारद्वाज एवं सोमदेव आदि ऐसे अनेक विचारकों ने राज्य की व्यवस्था के लिए न्याय को प्रमुख आधार बताया है। मनु ने न्याय की व्यवस्था में सत्यता और स्पष्टता पर बल दिया है। कोटिल्य ने भी न्याय को राज्य का प्राण माना है । आधुनिक युग में भी भारत में न्याय की धारणा में काफी हद तक परिवर्तन हुआ है। अब तो न्याय वह है जो विधि अर्थात् कानून द्वारा निहित हो।
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