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पन्त की काव्य-चेतना के क्रमिक विकास

पन्त की काव्य-चेतना के क्रमिक विकास
पन्त की काव्य-चेतना के क्रमिक विकास
पन्त की काव्य-चेतना के क्रमिक विकास का वर्णन कीजिए।

कविवर पन्त ने सन् 1916 ई. में ‘तम्बाकू का धुआँ’ नामक प्रथम कविता लिखी। तब से लगभग 65 वर्षों तक वे साधना पथ पर अग्रसर रहे और लगभग दो दर्जन ग्रन्थों का सृजन भी किया। साथ ही गद्य-पद्य दोनों क्षेत्रों में उन्होंने कार्य किया। ‘लोकायतन’ और ‘सत्यकाम’ जैसे महाकाव्यों की रचना की। ‘पल्लव’ छायावाद का घोषण-पत्र माना जाता है। इसके अतिरिक्त ग्रन्थि वीणा, गुंजन, युगांत, युगपथ, स्वर्ण-धूलि-किरण आदि उनके प्रमुख काव्य संकलन हैं। इस अवधि में पन्त की काव्य-चेतना ने कई रूप बदले इसी को उनकी काव्य-चेतना का क्रमिक विकास माना जाता है। उनकी काव्य-चेतना को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

( 1 ) प्राकृतिक सौन्दर्यवादी युग- इस युग में उनके प्रमुख चार काव्य संकलन में – महत्वपूर्ण हैं- वीणा, ग्रन्यि, पल्लव और गुंजन। साथ ही ज्योत्सना नामक गीत-नाट्य की भी रचना (1933) इसी युग में हुई। इन रचनाओं में हिन्दी काव्य को नूतन-दिशा की ओर अग्रसर करने का सफल प्रयास, नूतन स्वच्छन्दतावादी भाव और शिल्प का प्रयोग करते हुए लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मक से कला को संवारा गया है। इन रचनाओं में प्रकृति प्रेम सर्वोपरि है। कवि प्रकृति पर इतना मुग्ध है कि उसमें उसे सचेतन सौन्दर्य के दर्शन होते हैं। यह दर्शन कवि की तन्मयता, मोहकता एवं संवेदनशीलता को प्रगाढ़ बनाते चले जाते हैं।

( 2 ) यथार्थवादी युग- प्रकृति का रूप जब कवि को भाया, तब मानव का जीवन और रूप भी फीका लगा पर अवस्था विकास के साथ जीवन जगत की यथार्थता का भी कवि को बोध हुआ और कवि नवीन आदर्शों, नवीन विचारों एवं नवीन भावनाओं के सौन्दर्य बोध की ओर अग्रसर होकर यथार्थवाद की विचारधारा से प्रभावित होने लगा। परिवर्तन, युगान्त, युगवाणी, ग्राम्या, इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैं।

( 3 ) अन्तश्चेतनावादी युग- ऐसा लगता है कि कवि नव-जागरण के लिए जिस प्रकार की भाव चेतनायुक्त व्र गन्ति लाना चाहता था उसके लिए न तो मार्क्सवादी विचार, न ही गाँधी दर्शन प्रभावी सिद्ध होते दिखायी दिये। अतः कवि अरविन्द दर्शन की ओर मुड़ गया। इस काल की प्रमुख रचनाएँ हैं- स्वर्ण-किरण धूलि ।

( 4 ) नव मानवतावादी युग- उत्तरा का गीत-विहग नव मानवता का सन्देश लेकर आया-

“मैं नव मानवता का सन्देश सुनाता,

स्वाधीन लोक की गौरव गाथा गाता।

मैं मनः क्षितिज के पार मौन शाश्वत की,

प्रज्वलित भूमि का ज्योति वाह बन जाता।

इस काल की प्रमुख कृतियाँ हैं- कला और बूढ़ा चाँद, अतिमा, लोकायतन और वाणी। इन कविताओं में कवि ने मानवता को प्रतिष्ठित करने और मानव में सृजन शक्ति विकसित करने की प्रेरणा दी क्योंकि यह नहीं चाहता कि मानव की अपार शक्ति जातिगत विद्वेष, संकीर्ण वर्गवाद में विभाजित होकर राजनीति और अर्थतन्त्र से शोषित होती रहे।

इस युग की रचनाओं में मानव को जगाने का ही प्रयास है उसको प्रतिष्ठित करने की ही कामना है। यहाँ कवि का ध्यान विचार की ओर अधिक रहा कला की ओर कम।

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Anjali Yadav

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