हिन्दी साहित्य

पन्त जी के काव्य की भावपक्षीय विशेषतायें बताइये।

पन्त जी के काव्य की भावपक्षीय विशेषतायें बताइये।
पन्त जी के काव्य की भावपक्षीय विशेषतायें बताइये।
पन्त जी के काव्य की भावपक्षीय विशेषतायें बताइये। 

सुमित्रानन्दन पन्त छायावाद के प्रमुख कवि है। पंत जी के व्यक्तित्व में कवि और विचारक का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। मार्क्सवाद, भौतिकवाद, आध्यात्मवाद व गाँधीवादी तथा अरविन्द दर्शन का पन्त जी पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसके अतिरिक्त स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द तथा स्वामी रामतीर्थ के चिन्तन को पन्त जी ने आत्मसात् किया है। पन्त जी के काव्य की विशेषतायें निम्नांकित हैं-

भावपक्ष की विशेषतायें

( 1 ) सौन्दर्यानुराग- पंत जी की सौन्दर्यनुराग मूलतः प्रकृति सौन्दर्य से युक्त प्राकृतिक सौन्दर्य के सम्मोहन को वे अपनी कविता की मूल प्रेरणा मानते हैं। गिरि प्रान्त में पल पल पर परिवर्तित होने वाली प्राकृतिक रमणीयता ने पंज जी को इतना प्रभावित किया कि द्रुमों की मृदु छाया छोड़कर बाला के बाज-जाल में अपने नेत्र उलझाने को तैयार नहीं हुए किन्तु प्राकृतिक सुषमा पन्त जी को दीर्घ काल तक संतुष्ट नहीं रख सकी। यौवन के बढ़ने कदम उन्हें मानव-सौन्दर्य के निकट ले आये और पंत जी को नारी के रोम-रोम में सौन्दर्य दृष्टिगत हुआ। पल्लविनी में उन्होंने कहा हैं

“घने लहराते रेशम बाल, धरा है सिर में मैंने देवि।
तुम्हारा यह स्वर्गिक श्रृंगार, स्वर्ग का सुरक्षित भार॥”

पन्त जी का नारी सौन्दर्य की भावना को एक विद्वान ने इस प्रकार व्यक्त किया है “नारी स्वर के प्रति पन्त जी का यह आकर्षण धीरे-धीरे नारी के रुप के प्रति बढ़ता गया। प्रायः हम उस वस्तु के सदृश बन जाना चाहते हैं कि जिस वस्तु के प्रति हमें अनुराग हो। सम्भव है, इस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के अनुरूप नवयुवक पन्त ने भी नारीत्व के प्रति अपना मनोगत आकर्षण प्रकट किया।”

प्राकृतिक सौन्दर्य तथा नारी सौन्दर्य के रूप में कवि ने हिमालय, समुद्र, वन श्री, ऊषा, इन्द्र धनुष, नारी आदि का सौन्दर्य चित्रण किया है। साथ ही पृथ्वी के प्रत्येक पदार्थ में भी सौन्दर्य के दर्शन किये हैं। ‘चिदम्बरा’ का उदाहरण प्रस्तुत है

“इस धरती के रोम-रोम में भरी सहज सुन्दरता,
इसकी रज को छू प्रकाश, वन मधुर विनम्र निखरता।
पीले पत्ते, टूटी टहनी छिलके, कंकर पत्थर,
कूड़ा-करकट, सब कुछ भू पर, लगता सार्थक सुन्दर ।। “

( 2 ) प्रेम व सौन्दर्य भावना- पंत में सौन्दर्य व प्रेम दोनों ही भावनाओं का विकास हुआ है। प्रकृति से पंत जी का अनन्य प्रेम है। वे प्रेम की उदात रुप की चर्चा अपने काव्य में करते है। प्रकृति के प्रति इस प्रकार का प्रेम दर्शाया गया है कि मानवों के सौन्दर्य को भी तुच्छ दिखा दिया-

छोड़ दुमों की मृदु छाया
तोड़ प्रकृति से भी आया
बाले। तेरे बाल जाल में
कैसे उलझा हूँ लोचन।

( 3 ) वेदना व निराशा- छायावाद में यह प्रवृत्ति मुख्य रुप से पायी जाती है। पंत जी भी इसके प्रति आकर्षित है। दुःखवाद इनमें प्रमुख तत्व है, कोरा चीत्कार मात्र नहीं है। कहीं यह वेदना व निराशा हृदय के भावों की अभिव्यक्ति की अपूर्णता के कारण है और कहीं अभिलाषाओं की असफलता के कारण, कहीं सौन्दर्य की नश्वता के कारण

वियोगी होगा पहला कवि आह। उपजा होगा गान
निकल कर आंखों से चुपचाप वही होगी कविता अनजान ।

वियोग को काव्य का प्रमुख तत्व माना है। काव्य की उत्पत्ति पंत जी ने वियोग द्वारा मानी है।

( 4 ) नारी चित्रण की प्रमुखता- मानवतावादी दृष्टिकोण होने के कारण नारी के उपेक्षित रुप के प्रति श्रद्धा का चित्रण इनकी एक अपनी विशेषता है। पंत जी के काव्य में नारी के प्रति श्रद्धा भाव अत्यधिक सुन्दर रुप में प्रस्तुत किया गया है। इन्होंने भी उपेक्षित नारी के रूप का एवं नारी के प्रति इनके बदलते हुए दृष्टिकोण को इस प्रकार अपने काव्य में चित्रित किया हैं।

तुम्हारे रोम-रोम से नारि, मुझे है, स्नेह अपार।
तुम्हारी सेवा में अनजान, हृदय माँ, सहचारि प्राण।”

(5) मानवतावाद- छायावादी कवियों द्वारा मानवतावादी भावना को प्रधानता दी गई है। पंत जी के काव्य में भी मानवतावादी दृष्टिकोण भावना और कवियों की भाँति ही है। विवेकानन्द, अरविन्द, गाँधी, टैगोर आदि के विचारों से और अधिक व्यापक रूप में हमें इनका मानवतावादी दृष्टिकोण देखने के लिए मिलता है।

सुन्दर है विहग सुमन सुन्दर
मानव तुम सबसे सुन्दरतम् ।

पंत जी को भी मानव के प्रति अधिक आस्था है एवं वे मानव को विशेष महत्व प्रदान करते हैं।

( 6 ) राष्ट्रीयवाद- पन्त जी में राष्ट्रवादी विचार सन् 1912 में कालेज छोड़ने समय आये। सन् 1921 में गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया और उसके लिए शिक्षकों तथा . विद्यार्थियों से अंग्रेजी शिक्षा-संस्थायें त्याग देने की माँग की। गाँधी जी के आदेश को मानने वालों में मुंशी प्रेमचन्द्र तथा पंत जी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। पंत जी के हृदय में राष्ट्रवाद के प्रति कोई संकुचित धारणा नहीं थी। वे दूसरे देश का दमन कर अपने देश का उत्थान कभी नहीं चाहते थे। अपने देश के प्रगति और विकास को विश्व प्रगति का सहयोगी बनाना चाहते हैं अपने देश की स्वतंत्रता को जन स्वतंत्रता का प्रतिनिधि मानते हैं उनकी ‘चिदम्बरा’ की पंक्तियाँ दर्शनीय हैं-

“जन स्वतंत्रता के उस रण ने किया विश्व चेतना आकर्षित।
नव स्वतंत्रता भारत ही जगति ज्योति जागरण
नव भारत में स्वर्ण स्नान हो भू का प्रांगन।”

( 7 ) गाँधीवादी युग- पुरुष महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन से केवल नेता ही नहीं अपितु कवि तथा साहित्यकार भी प्रभावित हुए हैं। पन्त जी पर गाँधीवाद का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। कवि गांधीवाद से इतना प्रभावित है कि सत्य और अहिंसा को वह अन्तर्राष्ट्रीय जागरण मानता है एक उदाहरण देखिये-

झुका त्वरित अणु के अश्वों को, कर आरोहण
नव मानवता करती गांधी का जय घोषण

(8) मार्क्सवादी दृष्टिकोण- मार्क्सवाद का सिद्धांत था- समाज का यथार्थ में चित्रण करना। समाज में व्याप्त आर्थिक विषमता, वर्ग संघर्ष, भेदभाव, शोषण की प्रवृत्ति को दूर करना ही मार्क्स का लक्ष्य था। पन्त जी की रचनायें मार्क्सवाद से प्रभावित हैं। पन्त जी का विश्वास है कि यदि मध्यम वर्ग के श्रमिकों का हित चिन्तन बन जाय तो श्रमिक वर्ग भी कुछ ऊंचे उठ सकता है। सामाजिक असमानता को देखकर उनके हृदय में क्रोध उत्पन्ना होता है। श्रमिक समुदाय अपनी दयनीय दशा बदलने में असमर्थ है। यह श्रमिक वर्ग पूँजीपतियों की दृष्टि में पशु से भी अधिक घृणित है। पन्त जी की दृष्टि में श्रमिक क्रांति का अग्रदूत हैं ‘चिदम्बरा’ में उन्होंने इस भाव को स्पष्ट किया है-

“भूख प्यास में पीड़ित उसकी भद्दी आकृति,
स्पष्ट कथा कहती कैसी इस युग की संस्कृति ।
वह पशु से भी घृणित मानव-मानव की है कृति,
जिसके श्रम से सिंची समृद्धों की पृथु सम्मति ॥”

(9) रहस्यात्मकता- पन्त जी अपनी सम्पूर्ण कृतियों में जीवन दर्शन के अधिक निकट दिखाई देते हैं। यह रहस्यात्मक अनुभूति उन्हें प्रकृति से प्राप्त हुई है। प्रकृति में उन्होंने अज्ञात सत्ता को दृष्टिपात किया है। ‘नौका विहार’ में कवि गंगा की धारा में जीवन की गतिमयता के दर्शन करता है। जैसे धारा में नाव कभी इस पार तो कभी उस पार पहुँचती है। उन्हीं के शब्दों में –

“इस धारा से ही जग का क्रम, शाश्वत इस जीवन का उद्गम,
शाश्वत है, गति शाश्वत संगय।
हे जग जीवन के कर्णधार, चिर जन्म मरण आर-पार,
शाश्वत जीवन नौका विहार।”

(10) समन्वयवाद- पन्त जी किसी एक विचारधारा को लोक-कल्याण के लिए पूर्ण नहीं मानते हैं। परिस्थिति जन्य नई विचारधारा जन्म ही लेती है। पन्त जी की दृष्टि में लोक कल्याण हेतु समन्वय की आवश्यकता है। पन्त जी ने मुख्य चार प्रारूपों में समन्वय किया है-

(अ) सुख-दुःख का समन्वय ।

(ब) व्यष्टि और समष्टि का समन्वय ।

(स) आध्यात्मिकता तथा भौतिकवाद का समन्वय ।

(द) गाँधीवाद तथा मार्क्सवाद का समन्वय ।

(11) रस एवम अलंकार- रसात्मकता की दृष्टि से पन्त जी ने श्रृंगार और करुण रस को प्रधानता दी है। संयोग श्रृंगार का उदाहरण प्रस्तुत है-

“तुमको अधरो पर धरे अधर, मैने कोमल वपु धरागोद,
था आत्म-समर्पण मधुर मिल गये सहज भर सता गोद।”

अलंकार की दृष्टि से पन्त जी में जिन प्रमुख अलंकारों का प्रयोग किया है वे हैं मानवीकरण और विशेषण विपर्यय। विशेषण विपर्याय का प्रयोग निम्न पंक्ति में प्रस्तुत है

धूप की ढ़ेरी में अनजान
छिपे है मेरे मधुमय गान।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment