परीक्षा और मूल्यांकन में क्या अन्तर है ?
मूल्यांकन :- कोठारी आयोग (1964-66) के अनुसार “मूल्यांकन एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। यह समस्त शिक्षाक्रम का महत्वपूर्ण अंग है और इस प्रकार इसका शैक्षिक प्राप्य उद्धेश्यों से घनिष्ठ सम्बन्ध है”।
राइटस्टोन के अनुसार “मूल्यांकन वह नवीन प्रविधिक पद है, जो मापन के व्यापक प्रत्यय को प्रस्तुत करता है”।
परीक्षा :- वेस्ले के अनुसार- “परीक्षा मूल्यांकन का वह भाग है, जो प्रतिशत, + मात्रा, अंकों, मध्यमान तथा औसत आदि द्वारा किया जाता है”।
एस.एच. स्टीवेन्स के अनुसार “परीक्षा किन्हीं निश्चत मान्य नियमों के अनुसार वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है”।
क्र.सं. | परीक्षा | मूल्यांकन |
1. | परीक्षा का क्षेत्र मूल्यांकन की अपेक्षा संकुचित होता है। | मूल्यांकन का क्षेत्र अधिक व्यापक एवं विस्तृत होता है। |
2. | परीक्षा वर्ष में निश्चित समय के पश्चात् आयोजित की जाती है। | मूल्यांकन एक सतत् प्रक्रिया है, जो कि निरन्तर चलती रहती है। |
3. | परीक्षा द्वारा बालक की केवल शैक्षिक योग्यताओं एवं कुशलताओं के मान निर्धारित किए जाते है। | इसके द्वारा बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व तथा व्यवहार का निर्धारण किया जाता है। |
4. | मूल्यांकन की अपेक्षा परीक्षा कम विश्वसनीय तथा वैद्य होती है। | मूल्यांकन अधिक विश्वसनीय तथा वैद्य होता है। |
5. | परीक्षा द्वारा प्राप्त निष्कर्ष परिमाणात्मक मूल्यांकन होते है। | मूल्यांकन द्वारा प्राप्त निष्कर्ष परिमाणात्मक होने के साथ-साथ गुणात्मक भी होते है। |
6. | परीक्षा का उपयोग वर्गीकरण तथा क्रमोन्नति के लिए ही किया जाता है। | इसका उपयोग वर्गीकरण के साथ साथ शैक्षिक निदान, छात्रों का मार्गदर्शन तथा पूर्व कथन करने के लिए किया जाता है |
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