शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव | Influence of Heredity on Child in Hindi

बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव | Influence of Heredity on Child in Hindi
बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव | Influence of Heredity on Child in Hindi

बालक पर वंशानुक्रम का क्या प्रभाव पड़ता है ? वर्णन कीजिए। 

बालक पर वंशानुक्रम का प्रभाव (Influence of Heredity on Child)

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने वंशानुक्रम के महत्व के सम्बन्ध में अनेक अध्ययन और परीक्षण किए हैं। इनके आधार पर उन्होंने सिद्ध किया है कि बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू पर वंशानुक्रम का प्रभाव पड़ता है। हम यहाँ कुछ मुख्य मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं—

1. शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव-कार्ल पीयरसन (Karl Pearson) का मत है कि यदि माता-पिता की लम्बाई कम या अधिक होती है, तो उनके बच्चों की भी लम्बाई कम या अधिक होती है।

2. व्यावसायिक योग्यता पर प्रभाव-कैटल (Cattell) का मत है कि व्यावसायिक योग्यता का मुख्य कारण वंशानुक्रम है। वह इस निष्कर्ष पर अमेरिका के 885 वैज्ञानिकों के परिवारों का अध्ययन करने के परिणामस्वरूप पहुँचा। उसने बताया कि इन परिवारों में से 2/5 व्यवसायी-वर्ग के, 1/2 उत्पादक-वर्ग के और केवल 1/4 कृषि-वर्ग के थे।

3. चरित्र पर प्रभाव – डगडेल (Dugdale) का मत है कि चरित्रहीन माता-पिता की सन्तान चरित्रहीन होती है। उसने यह बात सन् 1877 ई० में ज्यूक (Jukes) के वंशजों का अध्ययन करके सिद्ध की 1720 में न्यूयार्क में जन्म लेने वाला ज्यूकस एक चरित्रहीन मनुष्य था और उसकी पत्नी भी उसके समान चरित्रहीन थी। इन दोनों के वंशजों के सम्बन्ध में नन (Nunn) ने लिखा है— “पाँच पीढ़ियों में लगभग 1,000 व्यक्तियों में से 300 बाल्यावस्था में मर गए 310 ने 2,300 वर्ष . दरिद्रगृहों में व्यतीत किए 440 रोग के कारण मर गए 130 (जिनमें 7 हत्या करने वाले थे) दण्ड प्राप्त अपराधी थे और केवल 20 ने कोई व्यवसाय करना सीखा।”

4. वृद्धि पर प्रभाव- गोडार्ड (Goddard) का मत है कि मन्द-बुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्द-बुद्धि और तीव्र बुद्धि माता-पिता की सन्तान तीव्र बुद्धि वाली होती है। उसने यह बात कालीकाक (Kallikak) नामक एक सैनिक के वंशजों का अध्ययन करके सिद्ध की। कालीकाक ने पहले एक मन्द-बुद्धि स्त्री से और कुछ समय के बाद एक तीव्र बुद्धि की स्त्री से विवाह किया। पहली स्त्री के 480 वंशजों में से 143 मन्द बुद्धि, 46 सामान्य, 36 अवैध सन्तान, 32 वेश्याएँ, 24 शराबी, 8 वेश्यालय-स्वामी, 3 मृगी-रोग वाले और 3 अपराधी थे। दूसरी स्त्री के 496 वंशजों में से केवल 3 मन्द-बुद्धि और चरित्रहीन थे। शेष ने व्यवसायियों, डॉक्टरों, शिक्षकों, वकीलों आदि के रूप में समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त किए।

5. मूल-शक्तियों पर प्रभाव – थार्नडाइक ( Thorndike) का मत है कि बालक की मूल शक्तियों का प्रधान कारण उसका वंशानुक्रम है।

6. प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव – क्लिनबर्ग (Klinberg) का मत है कि बुद्धि की श्रेष्ठता का कारण प्रजाति है। यही कारण है कि अमेरिका की श्वेत प्रजाति, नीग्रो प्रजाति से श्रेष्ठ है।

7. सामाजिक स्थिति पर प्रभाव – विनशिप (Winship) का मत है कि गुणवान और प्रतिष्ठित माता-पिता की सन्तान प्रतिष्ठा प्राप्त करती है। वह इस निष्कर्ष पर रिचर्ड एडवर्ड (Richard Edward) के परिवार का अध्ययन करने के बाद पहुँचा। रिचर्ड स्वयं गुणवान और प्रतिष्ठित मनुष्य था, एवं उसने एलिजाबेथ (Elizabeth) नामक जिस स्त्री से विवाह किया था, वह भी के समान थी। इन दोनों के वंशजों ने विधान-सभा के सदस्यों, महाविद्यालयों के अध्यक्षों आदि के प्रतिष्ठित पद प्राप्त किए। उनका एक वंशज अमेरिका का उपराष्ट्रपति बना।

8. महानता पर प्रभाव – गाल्टन (Galton) का मत है कि व्यक्ति की महानता का कारण उसका वंशानुक्रम है। यह वंशानुक्रम का ही परिणाम है कि व्यक्तियों के शारीरिक और मानसिक लक्षणों में विभिन्नता दिखाई देती है। व्यक्ति का कद, वर्ण, वजन, स्वास्थ्यं, बुद्धि, मानसिक शक्ति आदि उसके वंशानुक्रम पर आधारित रहते हैं। गाल्टन ने लिखा है- “महान् न्यायाधीशों, राजनीतिज्ञों, सैनिक पदाधिकारियों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों और खिलाड़ियों के जीवन-चरित्रों का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि इनके परिवारों में इन्हीं क्षेत्रों में प्रशंसा प्राप्त अन्य व्यक्ति भी हुए हैं।”

वंशानुक्रम के समन्वित प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए, कोलेसनिक (Kolesnik) ने लिखा है-“जिस सीमा तक व्यक्ति की शारीरिक रचना को उसके पित्र्यैक निश्चित करते हैं, उस सीमा तक उसके मस्तिष्क एवं स्नायु-संस्थान की रचना, उसके अन्य शारीरिक लक्षण, उसकी खेल-कूद सम्बन्धी कुशलता तथा उसकी गणित-सम्बन्धी योग्यता-ये सभी बातें उसके वंशानुक्रम पर निर्भर होती हैं, पर वे बातें उसके वातावरण पर कहीं अधिक निर्भर होती हैं। “

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया है कि व्यक्ति के शारीरिक तथा मानसिक विकास पर वंशक्रम का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव पित्र्यैक (Genes) के कारण व्यक्ति के शारीरिक लक्षणों पर प्रकट होता है। आन्तरिक प्रेरक तत्व उसके स्वभाव को निर्धारित करते हैं। डगडेल के अध्ययन ने सिद्ध कर दिया है कि चरित्रहीन माता-पिता की सन्तान चरित्रहीन होती है। स्वस्थ बौद्धिक तथा मानसिक स्थिति भी वंशक्रम की देन है।

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Anjali Yadav

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