भीष्म साहनी की कहानी ‘चीफ़ की दावत’ की समीक्षा कीजिए।
चीफ़ की दावत
‘चीफ़ की दावत’ भीष्म साहनी की एक प्रसिद्ध कहानी है। नये कहानीकारों में भीष्म साहनी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। भीष्म साहनी का जन्म 1915 में रावलपिंडी (पाकिस्तान) में हुआ था। भीष्म साहनी ने वैचारिक दृष्टि को कहानी का माध्यम बनाया। वे मध्यवर्गीय परिवारों का अंतरंग चित्र बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते हैं। प्रस्तुत कहानी ‘चीफ़ की दावत’ ऐसी ही मध्यम वर्ग की कहानी है जो अपनी तरक्की के लिए अपने चीफ़ की नजरों में अपने जीवन की कृत्रिमता को प्रस्तुत करना चाहता है। ऐसी स्थिति में उसे अपनी बूढ़ी माँ भी अपनी तरक्की में रुकावट नजर आने लगती है। कहानी कला के तत्वों के आधार पर ‘चीफ़ की दावत’ कहानी की समीक्षा प्रस्तुत है—
(1) कथावस्तु- शामनाथ नौकरीपेशा व्यक्ति है। इनकी पदोन्नति की संभावनायें सम्बन्धित चीफ साहब पर निर्भर करती है। चीफ साहब हैं कि बड़े फैशनेबुल और सम्पन्न व्यक्ति। वह अमेरिकन हैं। शामनाथ अपनी हैसियत और परिस्थिति को ध्यान में रखकर जीना कबूल नहीं करते। वे चीफ साहब को दावत देते हैं कि खुशामद करने से हमारी पदोन्नति में उनका सहयोग मिलेगा। अपनी आय के हिसाब से न रहकर दिखावे की जिन्दगी जीना शामनाथ को बेहतर लगने लगता है। परिणामतः हर प्रकार की भौतिक सुख-सुविधायें जुटाने में आर्थिक टूटन आ जाती है। किन्तु शामनाथ अपनी उन्नति के लिये सब कुछ करने को तैयार है। इसी कारण वे चीफ साहब को अपने घर दावत पर आमंत्रित करते हैं। शामनाथ ने घर को खूब सजाया-संवारा है। कमरे की सफाई घर के समान की यथास्थान व्यवस्था, भोजन सामग्री की समय पर तैयारी आदि सब कुछ कर ली है। अब समस्या यह है कि मकान में सब कुछ नया आधुनिकता से ओत प्रोत होते हुए भी माँ पुरानी है। इस पुरानेपन से छुटकारा पाने का शामनाथ को कोई उपाय नहीं सूझता। कभी वे सोचते हैं कि पड़ोसी के घर भेज दिया जाय और कभी कमरे में बन्द कर दिया जाये वर्ना कहीं चीफ साहब के सामने न पड़ जायें और इनकी शान में धब्बा लग जाये। अन्त में उन्होंने यह निर्णय किया कि माँ को अच्छे ढंग से पहना-ओढ़ाकर रखा जाय कि संयोगवश चीफ साहब की नजर पड़ भी जाये तो उनकी स्थिति बिगड़ने न पाये। माँ को बताया गया कि उनके आने पर वह कैसे रहेंगी और कैसे बोलेंगी? माँ असमंजस में एक नये घेरे में स्वयं को बंधा अनुभव करने लगी। किन्तु इस स्थिति में भी वह अपने पुत्र की पदोन्नति के लिये सब कुछ कहने को तैयार है।
चीफ साहब के आने पर माँ को छिपा कर रखा गया किन्तु पार्टी का पहला दौर समाप्त होता है और लोग भोजन पर जाने लगते हैं तो चीफ साहब की दृष्टि शामनाथ की माँ पर जाती है। चीफ बड़े प्रेम से मिलकर माँ का आदर करते हैं और उन्हें भारतीय संस्कृति का प्रतीक ह्वप मानते हैं। उन्होंने माँ से लोक कला के विषय में जानने की इच्छा व्यक्त की और फिर एक गीत सुनाने का प्रस्ताव रखा। वह माँ से लोक कला का प्रतीक फुलकारी बनाने को कहते हैं और उससे लोकगीत सुनकर बहुत प्रसन्न होते हैं। जबकि पुत्र के सन्तुष्ट होने पर आज माँ उसके लिये हरिद्वार जाने की इच्छा प्रकट करती है। पुत्र की पदोन्नति होने पर भी आज माँ उसके लिये सर्वस्व न्यौछावर करने को तैयार है।
( 2 ) पात्र तथा चरित्र-चित्रण- शामनाथ इस कहानी का केन्द्र बिन्दु है जो अपनी पदोन्नति और भौतिक जीवन के सुख-क्षणों की प्राप्ति के स्वप्नों हेतु आर्थिक लाभ देखता है। उसने यह नहीं जाना की माँ के निःस्वार्थ प्रेम और भारतीय आदर्श को खोकर हम पश्चिमी सभ्यता के जाल में फँसने जा रहे हैं। शामनाथ के प्रतिनिधि आज के भारतीय परिवारों में बहुसंख्यक है। यह द्विधात्मक स्थिति मनुष्य के चरित्र का खण्डन करती जा रही है। शामनाथ की पत्नी-पति के स्वार्थ से गाँठ बांधे हुए हैं। उनकी मान्यता भी ऐसी ही है जैसे शामनाथ की। माँ है कि बुढ़ापे में एक युग बिताकर नये युग की धरती का मोह-जाल पाले बैठी है। पुत्र की पदोन्नति का मोह उन्हें यहाँ तक खींच लाया कि घूँघट में रहने वाली भारतीय महिला अमेरिकन चीफ के समक्ष लोकगीत सुनाने को बाध्य हो जाती है। चीफ है कि भारतीय जीवन दर्शन की पहचान करने में तत्पर है।
( 3 ) संवाद अथवा कथोपकथन- ‘चीफ़ की दावत’ के संवाद चुटीले और व्यंग्यात्मक है। कहानीकार ने नयी कहानी की संवाद शैली को मानव मनोविश्लेषण के समायोजन में प्रयुक्त किया है। मन की गहरी चाल मनुष्य की छवि को धूमिल भी कर देती है। पात्रों की स्वाभाविक विकासोन्मुख भावना आधुनिकता की चीख से टकराकर चोट खा जाती है। संवादों के द्वारा कथानक को खींचेन का प्रयास कहीं तो सार्थक है और कहीं महंगा साबित होने लगता है। छोटे-छोटे वाक्यों द्वारा कथानक का बौनापन सिद्ध होता है। शब्दों और वाक्य विन्यास की ध्वनियों में अर्थ की व्यंजना होती है। उदाहरण स्वह्वप निम्न संवाद प्रस्तुत हैं-
शामनाथ- तो इन्हें कह देंगे कि अन्दर से दरवाजा बन्द कर लें। मैं बाहर से ताला लगा लूंगा।
पत्नी – और जो सो गई तो ? डिनर का क्या मालूम कब तक चले। ग्यारह-ग्यारह बजे तक तो तुम लोग ड्रिंक ही करते हो।
शामनाथ – अच्छी भली यह भाई के पास जा रही थी। तुमने यूँ ही कुछ अच्छा बनने के लिये बीच टाँग अड़ा दी।
पत्नी- वाह तुम माँ और बेटे की बात में मैं क्यों बुरी बनूँ? तुम जानो और वह जानें।
(4) देशकाल और वातावरण- एक निश्चित समय और सीमायें आधुनिक फैशन परस्त परिवार का वातावरण साहनी जी ने तैयार किया है जो अपनी संस्कृति और प्रकृति के प्रतिकूल अपना झण्डा ऊँचा करता है। यह मध्यम वर्गीय परिवार का वातावरण अपने आइने के बाहर नये ह्वप को झाँकने के प्रयास में चूर-चूर होने लगता है। एक तरफ पुरानी पीढ़ी अपनी पुरातन मान्यताओं को लेकर बैठी है। और दूसरी ओर नयी पीढ़ी अपने नयेपन के बोध को लेकर समाज में बदलाव चाहती है।
(5) भाषा-शैली:- ‘चीफ की दावत’ कहानी में भीष्म साहनी ने व्यवहारिक हिन्दी भाषा का पर्याप्त प्रयोग किया गया है। जिसमें उर्दू, अंग्रेजी, पंजाबी व स्थानीय भाषा के शब्दों का पर्याप्त प्रयोग किया गया है। भाषा शैली पर विशेष ध्यान दिया गया है। का भाषा पूर्वाग्रह युक्त और लोक परक हैं।
( 6 ) उद्देश्य:- आधुनिक समय में मध्यम वर्ग की समस्या है-आर्थिक घुटन कुष्ठाग्रस्त जीवन शैली, भोग-विलास की तृष्णा और अन्तर्विरोधों से उत्पन्न तनाव और भारतीय संस्कृति और आर्दशों को तोड़कर पाश्चात्य मान्यताओं की ललक। उपरोक्त परिस्थितियाँ मनुष्य को मानसिक पीड़ा पहुँचाती है। ऐसी स्थिति से लोगों को जागरूक करना ही लेखक का उद्देश्य है। जिसमें कहानीकार पूर्णतय सफल कहा जा सकता है।
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