राजनीति के क्षेत्र या विस्तार का वर्णन कीजिये।
वर्तमान समय में ‘राजनीति’ के विषय में स्थिति यह है कि “प्रत्येक व्यक्ति देश या विदेश में घटने वाली किसी भी अच्छी या बुरी घटना पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहता हैं और उससे किसी-न-किसी रूप में जुड़ा रहना चाहता है।” इस सम्बन्ध में ‘राजनीति’ के सुप्रसिद्ध विद्वान कैटलिन का मत है कि “विशुद्ध भौतिकशास्त्र का मावनता के लिए जितना अधिक महत्व है, राजनीति का महत्व भी उससे किसी भी दशा में कम नहीं है।”
राजनीति के विद्वानों का मानना है कि उत्तरदायित्व की भावना रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति राजनीति से सम्बद्ध है। आज जीवन का कोई भी क्षेत्र राजनीति से अछूता नहीं है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राजनीति के प्रभाव को देखा जा सकता है। मानव द्वारा गठित विभिन्न प्रकार के क्लबों, श्रमिक संगठनों, विभिन्न दबाव समूहों, जाति और जातीय संगठनों, धार्मिक और व्यावसायिक संगठनों में सभी ओर राजनीतिक गतिविधियों को देखा जा सकता है। संक्षेप में कहा में जा सकता है कि आज मनुष्य के सामाजिक जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसे राजनीति ने स्पर्श न किया हो ।
आज राजनीति का क्षेत्र इतना अधिक विस्तृत हो गया है कि राजनीति में विविध पक्षों का उदय हो गया है। इन पक्षों का विवेचन हम निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत करेंगे-
( 1 ) सैद्धान्तिक राजनीति – सैद्धान्तिक राजनीति के अन्तर्गत राज्य तथा शासन के सिद्धान्त, विधायन के सिद्धान्त, एक कृत्रिम व्यक्ति के रूप में राज्य के सिद्धान्त आदि बातें शामिल होती हैं।
(2) व्यावहारिक राजनीति- इसके अन्तर्गत राज्य शासन व्यवस्था के रूप का निर्धारण, सरकार के कार्य-कलापों का संचालन, विधि निर्माण तथा उसका कार्यान्वयन, एक व्यक्तित्व के रूप में राज्य के अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों, संधियों आदि का निर्धारण तथा संचालन शामिल हैं।
राजनीति के अन्तर्गत हम सम्पूर्ण राजनीतिक व्यवस्था का विश्लेषण करते हैं ( Politics is an analysis of whole political system) — द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ज्ञान के विविध क्षेत्रों से सम्बन्धित विषय-वस्तु के सम्बन्ध में नई-नई प्रवृत्तियों तथा दृष्टिकोणों का विकास होने लगा है। राजनीति विज्ञान भी इस प्रभाव से अछूता नहीं रहा है। राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं के अन्तर्गत इसे राज्य तथा शासन का अध्ययन तथा ज्ञान कहा गया था। यह दृष्टिकोण राजनीति का संस्थागत अध्ययन मात्र दर्शाता है। नये दृष्टिकोण के अनुसार इन परिभाषाओं को अपूर्ण, अस्पष्ट तथा भ्रामक कहा गया है। विविध राजनीतिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं तथा गतिविधियों के संचालन और कार्यान्वयन में जो तत्व प्रमुख भूमिका निभाते हैं, उनका अध्ययन ‘राजनीति विज्ञान’ की परिभाषा के अन्तर्गत स्वीकार न करने से यह शास्त्र निर्जीव माना जाने लगा है। इस श्रेणी में एक अमेरिकी तथा पाश्चात्य विद्वानों की धारणाएँ उल्लेखनीय हैं। जार्ज कैटलिन, आमण्ड लासवेल, डेविड ईस्टन, राबर्ट हडल, वी. ओ. की, हरमन हेलर आदि अनेक आधुनिक राजनीतिशास्त्री इस नये दृष्टिकोण के प्रतिपादकों की श्रेणी में आते हैं। राजनीति विज्ञान की पारिभाषिक व्याख्या के सम्बन्ध में इन विद्वानों के नये दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नांकित है—
(1) राजनीति विज्ञान का अध्ययन अन्तर्शास्त्रीय पद्धति से करना ( The Study of Politics with Interdisciplinary Method) – इन विद्वानों की मान्यता है कि राजनीतिशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है। अतः इसके अध्ययन में अन्य सामाजिक विज्ञानों (सामाजशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र आदि) की विषय-वस्तु का अवलम्बन किया जाना नितान्त आवश्यक है। राजनीतिक कार्य-कलापों के संचालन कार्यान्वयन, निर्धारण आदि में इन अन्य समाज विज्ञानों के अन्तर्गत विवेच्य सिद्धान्त तथा अवधारणाएँ निरन्तर प्रभावी रहती
( 2 ) मानवों के राजनीतिक व्यवहारों का अध्ययन (Study of Political Behaviour of Man )-राजनीति का संस्थागत अध्ययन उसे अवैज्ञानिक बना देता है। राजनीतिक संस्थाओं के गठन, कार्य प्रणाली तथा उद्देश्यों का नियमन-नियन्त्रण उनसे सम्बन्धित व्यक्तियों के व्यवहार से प्रभावित होता है। इस प्रकार राजनीतिक दल, दबाव गुट, जनमत के साधन, निर्वाचन प्रक्रिया, प्रशासनिक कार्य-कलाप आदि में विविध परिस्थितियों तथा सन्दर्भों में व्यक्तियों तथा व्यक्ति-समूहों के वास्तविक व्यवहार का अध्ययन राजनीतिक वास्तविकताओं को स्पष्ट करने में पर्याप्त प्रभावी रहता है। राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन तथा विश्लेशण करके राजनीतिक सिद्धान्तों का सामान्यीकरण किया जाना राजनीति को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करता है।
(3) राजनीतिक विज्ञान को केवल संस्थाओं का अध्ययन न मानकर शक्ति, प्रभाव, नियन्त्रण, मूल्यों तथा निर्णय आदि का अध्ययन मानना (Political science is not study of institutions but study of power, influence, control, values and decisions ) – आधुनिक राजनीतिशास्त्रीय राजनीति विज्ञान को केवल राज्य या सरकार का अध्ययन नहीं मानते बल्कि राजनीतिक क्रिया-कलापों को निदेशित तथा नियमित करने वाले तत्वों – शक्ति, प्रभाव, सत्ता, मूल्यों आदि का अध्ययन मानते हैं। राजनीतिक संस्थाओं के संचालन तथा कार्य प्रणाली में इन तत्वों का सर्वाधिक प्रभाव रहता है।
(4) राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन की अपेक्षा राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन (Study of Political Systems) – आधुनिक दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि राजनीति परम्परागत राजनीतिक संस्थाओं या अवधारणाओं का ज्ञान नहीं है बल्कि वह विविध राजनीतिक प्रणालियों का अध्ययन है। इस प्रकार किसी राज्य शासन, सरकार या संविधान का अध्ययन करने के स्थान पर नये दृष्टिकोण के अन्तर्गत इसे उस राज्य की राजनीतिक प्रणाली का अध्ययन कहा जाता है। यह नया दृष्टिकोण ‘व्यवस्था उपागम’ पर बल देता है।
इन नये दृष्टिकोणों के अन्तर्गत राजनीति विज्ञान की परिभाषा में भी बदलाव आया है। कैटलिन के मतानुसार, “राजनीति इच्छाओं के सम्बन्धों के नियन्त्रण का अध्ययन है अथवा अधिक स्पष्ट दृष्टि से यह समाज का अध्ययन है, जहाँ तक कि वह मनुष्यों के साथ सम्बन्धों को प्रदर्शित करता है।”
लासवेल तथा केपलान के शब्दों में, “एक अनुभवाश्रित खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निरूपण तथा सहभागिता का अध्ययन है।”
जार्ज कैटलिन ने भी राजनीति विज्ञान को ‘शक्ति का विज्ञान’ कहा है। इसी प्रकार राब्सन ने भी इसे समाज में शक्ति का अध्ययन’ कहा है।
लासवेल ने अन्यत्र कहा है कि, “राजनीति का अध्ययन प्रभाव तथा प्रभावी का अध्ययन है।”
राबर्ट ए. डहल के मतानुसार, “राजनीति उन सभी क्रिया-कलापों को समाविष्ट करती है जिसमें संघर्ष की स्थिति आने पर शक्ति तथा सत्ता के सम्बन्धों में परस्पर संयुक्त मानव प्राणी सम्मिलित होते हैं।”
डेविड ईस्टन ने राजनीति को ‘मूल्यों के आधिकारिक आवण्टन का विज्ञान’ कहा है।
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