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राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण

राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण
राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण

राजनीति विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण को संक्षेप में बताइये।

राजनीति विज्ञान : आधुनिक दृष्टिकोण

आधुनिक काल में परम्परागत राजनीति विज्ञान की अध्ययन सामग्री एवं राज्य संबंधी धारणओं की कटु आलोचना हुई है। आलोचकों के अनुसार राज्य व राजनीतिक संस्थाओं की परिधि से परे भी कुछ प्रक्रियाऐ एवम् एक परिवेश देखने को मिलता है जिसके अध्ययन की उपेक्षा राजनीति विज्ञान की गरिमा व उपयोगिता के लिये अनर्थकारी है। इस मत के प्रतिवादक यह मानते है कि सभी समाज विज्ञानों की प्रेरणा स्रोत व अध्ययन का केन्द्र बिन्दु मानव-व्यवहार है और राजनीति विज्ञान सामान्यतः मानव व्यवहार के राजनीतिक पहलू का अध्ययन है।

द्वितीय महायुद्ध से पूर्ण कतिपय राजनीतिक विचारक राजनीति विज्ञान के अध्ययन में मनुष्य की राजनीतिक प्रक्रियाओं एवम् गतिविधियों को प्रमुख स्थान दिये जाने के प्रति आग्रहशील रहे। बाल्टर वैजहॉट, वुडरो विल्सन, लार्ड ब्राइस आदि ने राजनीति के यथार्थवादी अध्ययन पर बल दिया। ग्राहम वालास, आर्थर बैन्टले, कैटलिन और लासवैल ने मानव एवं उसके व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया। चार्ल्स मैरियम ने 1925 की अमरीकी राजनीति विज्ञान एशोसियेशन के सम्मेलन में राजनीति विज्ञान के अध्ययन के लिये वैज्ञानिक तकनीकों एवम् प्रविधियों के विकास एवम् प्रयोग पर बल दिया।

1930 में लासवैल ने अपनी पुस्तक ‘साइको-पैथौलॉजी एण्ड पॉलिटिक्स’ में राजनीतिक घटनाओं एवम् क्रियाओं की व्याख्या के लिये फ्राइड के मनोविज्ञान को आधार बनाया। द्वितीय महायुद्ध के पूर्व अमेरिका का शिकागो विश्वविद्यालय व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान का कार्यक्षेत्र बन चुका था। परम्परागत राजनीति विज्ञान से आधुनिक राजनीति विज्ञान तक की विकास प्रक्रिया में द्वितीय महायुद्ध की घटना का विषेश महत्व है जिसके बाद की दुनिया पूर्व की दुनिया से राजनीतिक संरचना, औद्योगिक विकास, वैज्ञानिक व तकनीकी उपलब्धियों तथा सैन्य क्षमता की दृष्टि से अत्यधिक भिन्न थी। विश्वस्तर पर हुये इस गंभीर परिवर्तन ने मानव समाज व संस्कृति की परम्परागत अवधारणाओं के स्थान पर नई अवधारणाओं को जन्म दिया। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् इस वातावरण में चार्ल्स मैरियम अपनी रचना ‘न्यू आस्पेक्ट ऑफ पॉलिटिक्स’ में राजनीति विज्ञान के अध्ययन हेतु नवीन एवम् वैज्ञानिक तकनीकों के प्रयोग का पूर्ण समर्थन किया।

इस संबंध में यह स्मरणीय है कि द्वितीय महायुद्ध ही राजनीति विज्ञान में आई व्यवहारवादी क्रांति का एक मात्र कारण नहीं है। विश्वयुद्ध ने वस्तुतः राजनीति विज्ञान की पहले की कमियों को उजागर किया। इन कमियों को पूरा करने की दिशा अन्य स्रोतों से भी प्राप्त हुई, और इन स्रोतों में सहयोगी समाज विज्ञानों में यह हुआ परिवर्तन मुख्य है कि प्राकृतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्रों को भी अधिकाधिक व्यवस्थित व वैज्ञानिक रूप प्रदान किया जायें।

उपरोक्त पृष्ठभूमि मे दशक में अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्रियों ने राजनीति विज्ञान को दार्शनिक पद्धति से मुक्त करने एवम् उसके अध्ययन को अधिक से अधिक वैज्ञानिक बनाने का प्रयत्न किया। राजनीति विज्ञान को सामाजिक विज्ञान मानते हुये इसके अध्ययन को पूर्ण बनाने हेतु समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, मानवशास्त्र जैसे समाज विज्ञानों की वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाना उचित समझा। इन वैज्ञानिकों में डेविड ईस्टन, कैटलिन, लासवैल आदि प्रमुख है।

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Anjali Yadav

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