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राजनीति विज्ञान में अमुद्रित साधन से आप क्या समझतें है? अमुद्रित साधनों का वर्णन कीजिये।
अमुद्रित साधन – अमुद्रित साधन वें है, जिन्हें किसी मुद्रणालय में मुद्रित नहीं कराया जाता वरन् हाथ से तैयार किया जाता है, जैसे- चार्ट, मानचित्र, ग्लोब, भ्रमण, सर्वेक्षण आदि ।
1. श्यामपट्ट – श्यामपट्ट को हम परम्परागत सहायक सामग्री के अन्तर्गत इसलिए सम्मिलित करते है क्योंकि यह परम्परागत समय शिक्षा के क्षेत्र में प्रयुक्त होता आ रहा है। इसको परम्परागत इसलिए कहते है क्योंकि यह परम्परागत विद्यालयों में प्रचलित है। इसको तो हम सभी प्रगतिशील विद्यालयों की सभी कक्षाओं में काले गहरे, हरे तथा नीले रंग में पाते है।
2. चित्र- शिक्षण में चित्र अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखते है। चित्र छात्रों के सम्मुख विषय वस्तु को वास्तविक रूप में प्रस्तुत करने की चेष्टा करते हैं, इस प्रकार चित्र विषय वस्तु को यथार्थ बनाने की चेष्टा करते हैं। शिक्षक उपयोगी चित्रों को समाचार पत्र, पत्रिकाओं, साप्ताहिक पत्रों आदि से प्राप्त कर सकता है। इसका उपयोग करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए –
- विषय वस्तु से सम्बन्धित चित्र होना चाहिए।
- चित्र आकर्षक हो।
- चित्र सादा होना चाहिए।
- चित्र यथार्थ पर आधारित हो।
- चित्र अपने उद्देश्य से सम्बन्धित हो।
रेखाचित्र तथा रेखाकृति- शिक्षण तथा रेखाकृतियों को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। शिक्षक इनकी सहायता से शिक्षण से सम्बन्धित विविध विषय वस्तु जैसे- प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, सिंचाई के साधन कृषि आदि को अत्यन्त सफलता से पढ़ा सकता है। रेखाचित्र का सबसे बड़ा गुण है कि आवश्यकता पड़ने पर कक्षा में ही श्यामपट्ट पर निर्माण कर सकता है।
3. चार्ट एवं ग्राफ- चार्ट एवं ग्राफ का प्रयोग उच्च कक्षाओं में किया जाता है। छोटी कक्षाओं में इनका उपयोग उपयुक्त नहीं है। चार्ट एवं ग्राफ के द्वारा संख्यात्मक तथ्यों को बड़ी सरलता से संक्षिप्त रूप से स्पष्ट किया जा सकता है।
4. प्रारूप तथा नमूने- वास्तविक शत्-प्रतिशत वास्तविक होती है। जहां तक सम्भव हो कक्षा में वास्तविक वस्तुओं द्वारा ज्ञान प्रदान किया जाए, किन्तु किन्हीं कारणों से वास्तविक वस्तुएँ प्रस्तुत नहीं की जा सकती है या उनको प्रस्तुत करना उचित नहीं रहता है। उदाहरण के लिए लौह उद्योग पढ़ाते समय दुर्गापुर, राउरकेला या भिलाई के कारखानों को वास्तविक रूप से कक्षा में नहीं लाया जा सकता है। इन अवस्थाओं का ज्ञान चित्र या प्रारूप के द्वारा सफलतापूर्वक दिया जा सकता है।
मानचित्र तथा ग्लोब- शिक्षण में मानचित्र तथा ग्लोब दोनों का ही बड़ा महत्व है। मानचित्र तथा ग्लोब का प्रयोग विभिन्न स्थलों की स्थिति का ज्ञान प्रदान करने हेतु किया जा सकता है। शिक्षण में ग्लोब को भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ग्लोब की सहायता से पृथ्वी की रूपरेखा, उसकी स्थिति, उसकी गति, आदि बातों को बड़े सरल ढंग से बताया जा सकता है।
विद्युत संसाधन
श्रृव्य सामग्री वे सहायक सामग्रियाँ है, जिनको सुनकर छात्र कुछ सीखते है। इनका सुनना महत्वपूर्ण होता है उदाहरण के आधार पर-
1. विडियो, ग्रामोफोन तथा टेपरिकॉर्डर- इसके प्रयोग से अग्रलिखित लाभ है-
- पाठ्य पुस्तकों की कमियों को दूर कर सकते है।
- छात्र तथा शिक्षक दोनों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाते है।
- एक ही समय में बड़े समुदाय का शिक्षण किया जा सकता है।
- टेगरिकॉर्डर की सहायता से रिकॉर्ड करके भविष्य के लिए संचित किया जा सकता है।
- रेड़ियों कार्यक्रम रोचक तथा प्रभावोत्पादक होते है।
2. चलचित्र – श्रृव्य दृश्य सामग्री वह सामग्री है, जिसका देखना तथ सुनना दोनों ही महत्वपूर्ण है इस प्रकार की सहायक सामग्री में हम टेलीविजन तथा चलचित्रों के द्वारा अपने छात्रों को अनेक ऐसी वस्तुओं का ज्ञान स्थूल रूप से प्रदान कर सकते है, जिनका ज्ञान अन्य साधनों से कभी भी नहीं दिया जा सकता है। चलचित्र का प्रयोग करते समय निम्न बातों को ध्यान रखनी चाहिए-
- चलचित्र सुखान्त हो ।
- छात्रों को बैठने की समुचित व्यवस्था हो ।
- विषय वस्तु से सम्बन्धित हो ।
- चलचित्र उत्सुकता पैदा करने वाला हो।
- अन्धकार, प्रकाश, ध्वनि की समुचित व्यवस्था हो ।
दूरदर्शन पर शिक्षण
आधुनिक युग में दूरदर्शन का शिक्षण के क्षेत्र में व्यापक प्रयोग हो रहा है। शिक्षण के क्षेत्र में दूरदर्शन का प्रयोग दो रूपों में पाया जाता है। प्रथम रूप में इसका प्रयोग आर्थिक रूप से सम्पन्न विद्यालयों में देखने को मिलता है। जहाँ एक ही विषय की कई कक्षाएँ एक साथ पृथक-पृथक कमरों में चलती है। दूसरे रूप में देश में दूरदर्शन केन्द्र, विद्वान एवं कुशल अध्यापकों से पाठ तैयार कराकर उनके वास्तविक शिक्षण को ही एक निश्चित समय पर दूरदर्शन पर प्रसारित करना।
लाभ
- छात्रों को प्रेरणा प्राप्त होती है।
- शिक्षण में सरसता, प्रभावकता तथा मनोरंजन आता है।
- दूरदर्शन कार्यक्रम उच्चकोटी के विद्वानों द्वारा तैयार करवाया जाता है।
- ज्ञान सम्बन्धी विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
- बड़ी संख्या में छात्रों को शिक्षण प्रदान किया जाता है तथा समय, श्रम व साधनों की बचत होती है।
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