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लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ

लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ
लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ

लेखांकन सिद्धान्तों को परिभाषित कीजिए। लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।

लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा

‘सिद्धान्त’ शब्द का प्रयोग किसी क्रिया को अपनाने के लिए बनाए गये सामान्य नियम अथवा कानून के लिए किया जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि ‘वे नियम एवं प्रथाएँ जो लेखांकन में मार्ग दर्शक का कार्य करती हैं, लेखांकन सिद्धान्त कहलाती हैं।”

ए. डब्ल्यू. जॉन्सन के अनुसार, “व्यापक बोलचाल की भाषा में लेखांकन के नियम तथा मान्यताएँ, लेखांकन की कार्यविधियाँ और तरीके तथा लेखांकन के वास्तविक व्यवहार में इन नियमों, कार्यविधियों तथा तरीकों का प्रयोग ही लेखांकन के सिद्धान्त हैं।”

राबर्ट एन. एन्थोनी के अनुसार, “लेखा विधियों के नियमों एवं प्रथाओं को सामान्यतः लेखांकन सिद्धान्त माना है।”

फिन्ने एवं मिलर के अनुसार, “लेखांकन के सिद्धान्तों के अवधारणाओं, परम्पराओं, प्रमापों आदि शब्दों से सम्बोधित करना अधिक उचित माना है।”

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि “लेखाकार द्वारा वित्तीय विवरण एवं खाते तैयार करते समय प्रयुक्त नियम लेखांकन सिद्धान्त कहलाते हैं।” दूसरे शब्दों में, “लेखांकन सिद्धान्तों का आशय लेखांकन में मार्गदर्शन के लिए तथा व्यवहार के आधार के रूप में सर्वस्वीकृत सामान्य नियमों से है जो समय में हुए बदलाव के साथ बदल जाते हैं।”

लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर लेखांकन सिद्धान्तों की अग्रलिखित विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं-

(1) लेखांकन सिद्धान्त भौतिक, रसायन अथवा अन्य प्राकृतिक विज्ञान के सिद्धान्तों की भाँति अपरिवर्तित एवं सार्वभौमिक सत्य पर आधारित नहीं है। इन पर देश, काल तथा सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है।

(2) लेखांकन सिद्धान्त तीव्र गति से विकासशील है।

(3) लेखांकन सिद्धान्त आधारभूत अवधारणाओं, स्वयं-सिद्धियों, परम्पराओं एवं मान्यताओं के आधार पर विकसित हुए है।

(4) लेखांकन के सिद्धान्त मनुष्य द्वारा निर्मित एवं विकसित किये गये हैं।

(5) लेखांकन सिद्धान्त, किसी लिखित कानून द्वारा प्रतिपादित नहीं होते। ये लेखाकारों के अनुभवों, अंकेक्षक, प्रबन्धक, सरकारी एजेन्सियों, पेशेवर संस्थानों द्वारा किये गये विधिवत विश्लेषण के आधार पर प्रतिपादित होते हैं।

(6) सरकार लेखांकन सिद्धान्त बनाने का कार्य नहीं करती, किन्तु अधिनियम, अथवा नियम बनाते समय इस पर अवश्य ध्यान रखती है।

(7) लेखांकन सिद्धान्तों पर व्यापक स्वीकृत प्राप्त होती है।

(8) लेखांकन सिद्धान्त लेखों की उपयोगिता, बढ़ाने में सहायक होते हैं।

(9) लेखांकन सिद्धान्त सरलतापूर्वक व्यवहार में लाये जा सकते हैं, तथा इसके प्रयोग में लाने में कोई कठिनाई नहीं होती।

(10) लेखांकन सिद्धान्त वास्तविक तथ्यों पर आधारित होते हैं।

(11) लेखांकन सिद्धान्तों को व्यवसाय का संगठनात्मक स्वरूप, व्यवसाय की आवश्यकता, कानूनी व्यवस्थाएँ, विनियोजक, लेनदार आदि के विचार भी प्रभावित करते हैं।

(12) लेखांकन सिद्धान्त प्रायः सभी देशों द्वारा अपनाये जाते हैं, किन्तु इसमें समानता हो यह आवश्यक नहीं है। यद्यपि उद्देश्य में समानता बनी रहती है।

(13) पेशेवर संस्थाएँ लेखांकन सिद्धान्तों को बढ़ावा प्रदान करती हैं।

(14) लेखांकन सिद्धान्तों की आम सहमति प्रायः कर्म-विषयता (Objectivity), अनुरूपता (Relevance) एवं साध्यता (Feasibility) के मापदण्ड को पूरा करने की सीमा से आँकी जाती है।

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Anjali Yadav

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