Commerce Notes

लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त

लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन सिद्धान्त के विभिन्न प्रकारों की व्याख्या कीजिए। 

लेखांकन सिद्धान्त क्या है? – लेखांकन सिद्धान्त से आशय उन नियमों व सिद्धान्तों से है, जो लेखाकर या लेखापाल द्वारा वित्तीय विवरण एवं लेखे तैयार करते समय प्रयोग किए जाते हैं। लेखांकन को उचित लेखे करते समय इन नियमों व सिद्धान्तों का पालन करना पड़ता है। अन्य शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि लेखांकन सिद्धान्त वित्तीय विवरणों को तैयार करने में व लेखों को बनाने में प्रयोग की जानी वाली विधि का वर्णन की जाने वाली योजनायें है। इनकी परिभाषायें निम्न प्रकार दी जाती हैं-

( 1 ) पैटन तथा लिटलटन- “सिद्धान्त के समय पर प्रमाप का प्रयोग करना अधिक उचित है। सिद्धान्त शब्द की तुलना में ‘प्रमाप’ शब्द अधिक व्यावहारिक है, क्योंकि लेखांकन के सिद्धान्त मनुष्य द्वारा प्रतिपादित होते हैं। इनका निर्माण और विकास विभिन्न व्यावसायिक संस्थाओं तथा सरकार द्वारा प्रभावित होता है और लेखांकन के सिद्धान्तों को अन्य विज्ञानों की तरह निरीक्षण तथा परीक्षण द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता है।’

(2) पाल ग्रेजी- “व्यावहारिक विषय में होने के कारण अभ्यास एवं व्यवहार से लेखांकन सिद्धान्त के विकास में सहायता मिली है लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि लेखांकन अपना कार्य सर्वमान्य सिद्धान्तों के अभाव में ठीक प्रकार से कर रहा है।”

( 3 ) अमेरिका के पब्लिक लेखपालों की संस्था- “सिद्धान्त एक सामान्य नियम अथवा कार्य के दिशा निर्देश हेतु बनाए गए कथित नियम हैं। यह आचरण या व्यवहार का आधार है। लेखांकन सिद्धान्त वे नियम हैं, जो रीति-रिवाज, प्रचलित तरीकों या परम्पराओं पर आधारित होते हैं और सभी लेखांकन व्यवहार उन पर आधारित होते हैं। ये सिद्धान्त अचल नहीं होते बल्कि समय के परिवर्तन के साथ परिवर्तित होते रहते हैं।”

लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त

लेखांकन की तकनीकों के विकास को परिचालित करने की दृष्टि से लेखांकन के निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्त हैं-

( 1 ) आय प्राप्ति का सिद्धान्त- व्यापार की आय को मापने का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। व्यावसायिक क्रियाओं के फलस्वरूप स्वामी की पूंजी में हुई वृद्धि को आय कहते हैं। लेखांकन के दृष्टिकोण से आगम माल के विक्रय से प्राप्त राशि या प्राप्त होने वाली राशि है। इसका विशिष्ट लेखांकन अवधि से निश्चित रूप से सम्बन्ध होता है। यह सिद्धान्त यह स्पष्ट करता है कि व्यापार के दृष्टिकोण से आगम को किस स्तर पर अर्जित माना जाए।

( 2 ) व्यय का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार किसी वित्तीय वर्ष के अन्तर्गत व्यापार की आय कमाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं की प्रत्यक्ष लागत को व्यय माना जाता है। जैसे कच्चे माल की लागत, भाड़ा, किराया, आदि। आय के निर्माण की लागत व्यय है। इस आधार पर वे व्यय/लागतें जो आय कमाती हैं पर इनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध किसी विशिष्ट आय से नहीं होता है वह भी इसमें शामिल हैं। ऐसे व्ययों का विभिन्न वर्षों में आय की प्राप्ति के साथ क्रमबद्ध तथा तर्कसंगत बंटवारा किया जाता है – जैसे, स्थायी सम्पत्तियों पर ह्रास, विज्ञापन की लागत आदि। किसी वित्तीय वर्ष से सम्बन्धित वे लागतें जिनका स्पष्ट सम्बन्ध वर्तमान या भविष्य में आय कमाने से नहीं होता है, वे भी वित्तीय वर्ष के व्यय माने जाते हैं, जैसे-विक्रय तथा प्रशासन सम्बन्धी व्यय/आय नहीं कमाने वाली समाप्त लागतें या हानियां भी व्यय हैं, जैसे माल की चोरी, आग से हानि आदि।

( 3 ) आय एवं व्यय में मिलान का सिद्धान्त- व्यापारिक घटनाओं के परिणामस्वरूप व्यापार की पूंजी की वृद्धि को आय के उपार्जन में वस्तुओं और सेवाओं की लागत को व्यय तथा समाप्त लागतों को हानि माना जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार व्यापारिक प्रगति को जानने के लिए आय तथा व्यय (हानि सहित) का मिलान किया जाता है। मिलान करने पर व्यय से आय अधिक होने पर अन्तर शुद्ध लाभ या आय से व्यय अधिक होने पर अन्तर शुद्ध हानि होती है।

(4) पूर्ण प्रकटीकरण का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार लेखांकन का कार्य पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता, नियमानुकूल तथा सम्बन्धित वित्तीय अधिनियम के अनुसार किया जाता है। इसी आधार पर व्यापारिक खाता, लाभ-हानि खाता तथा आर्थिक चिट्ठा का निर्माण होता है। इसी कारण लेखांकन के सारगर्भित तथ्यों (जैसे, ह्रास के विधि में परिवर्तन, स्टॉक के मूल्यांकन में परिवर्तन, निवेशों के मूल्यांकन की रीति, सम्भाव्य दायित्व आदि) को आर्थिक चिट्ठा के नीचे टिप्पणी के रूप में दिखाया जाता है। इस सिद्धान्त का उद्देश्य व्यवसाय के स्वामियों, अंशधारियों ऋणदाताओं, लेनदारों और निवेशकों को व्यापार की वास्तविक आर्थिक स्थिति की जानकारी देना और उनसे सम्बन्धित पर्याप्त सूचनाएं देना है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि पूर्ण प्रकटीकरण के अन्तर्गत व्यापार की गुप्त बातों को प्रकट नहीं किया जाता है। इसी आधार पर अमहत्वपूर्ण मदों को छोड़ दिया जाता है और कुछ को समान मदों में समाहित करा दिया जाता है।

(5) जांच योग्य लिखित प्रमाण का सिद्धान्त- यह लेखांकन का सबसे अनिवार्य सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार, “प्रत्येक व्यापारिक लेखा प्रलेखीय साक्ष्यों पर आधारित और प्रमाणित होना अनिवार्य है।” इन व्यापारिक प्रलेखों के अन्तर्गत रसीद, बिल, बीजक, कैश मीमो, क्रेडिट मीमो अनुबन्ध, मजदूरी और वेतन विपत्र, व्यापारिक पत्र, प्रमाणक, प्राप्य विपत्र, देय विपत्र आदि आते हैं। इन्हीं व्यापारिक प्रलेखों के आधार पर लेखांकन की प्रविष्टियां की जाती हैं। अंकेक्षक इन्हीं प्रलेखों के आधार पर लेखों की जांच करता है। ये प्रलेख जितने स्पष्ट, विश्वसनीय और जांच करने योग्य होते हैं, उतनी ही अधिक सरलता से अंकेक्षण का कार्य होता है और लेखे शुद्ध माने जाते हैं।

(6) ऐतिहासिक लागत सिद्धान्त इस सिद्धान्त- के अनुसार लेखा पुस्तकों में सम्पत्तियों को उन्हें अर्जन करने हेतु चुकाए गए मूल्य (लागत मूल्य) पर दिखाया जाता है, चाहे बाद में चलकर उसके बाजार मूल्य में कमी या वृद्धि ही क्यों न हो जाये। प्रत्येक सम्पत्ति की आयु निश्चित होती है। इसी कारण सम्पत्तियों पर व्यापार की नीति और सम्पत्ति की प्रकृति के अनुसार ह्रास लगाया जाता है। लेखांकन के दृष्टिकोण से सम्पत्ति की समाप्त लागत व्यय और असमाप्त लागत सम्पत्ति हैं। लेखांकन प्रमाप 2 के अनुसार रहतिया का मूल्यांकन लागत और बाजार मूल्य में से, जो दोनों में कम हो, पर किया जाता है। निवेशों के मूल्यांकन हेतु भी यही दृष्टिकोण अपनाया जाता है। यह सिद्धान्त चालू व्यवसाय की सकंल्पना पर आधारित है।

(7) द्विपक्षीय सिद्धान्त इस सिद्धान्त- के अनुसार व्यापार की कुल सम्पत्तियां हमेशा उसके कुल दायित्वों के बराबर होती है। प्रत्येक लेन-देन के दो पक्ष नाम तथा जमा होते हैं। इसी कारण प्रत्येक नाम के समतुल्य जमा होता है। प्रत्येक लेन-देन का सम्पत्ति और दायित्व पर समान से साथ-साथ प्रभाव पड़ने के कारण हमेशा कुल सम्पत्तियां कुल दायित्वों के बराबर रहती है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment