व्यवहारवाद (Positivism) सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
व्यवहारवाद की सीमाएँ या आलोचना- व्यवहारिक रूप में व्यवहारवाद के प्रयोग की कुछ कठिनाइयाँ या सीमाएँ हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
1. मूल्य निरपेक्षता सदा सम्भव नहीं- व्यवहार में व्यवहारवाद में मूल्य निरपेक्षता नहीं रह सकती, क्योंकि इसमें शोधकर्त्ता के विचार, उसके ज्ञान की सीमाएँ, साधन, राग-द्वेष, लगाव व झुकाव आदि उसके अध्ययन को प्रभावित करते हैं।
2. विषय का अध्ययन अपूर्ण- व्यवहारवादी अध्ययन का क्षेत्र सीमित होता है। वह केवल वर्तमान मानव व्यवहार ‘क्या’ और क्यों है, का अध्ययन करता है। भूतकाल में वह कैसा और क्यों था, भविष्य में वह कैसा और क्यों होना चाहिए, का अन्तर नहीं बतलाता है।
3. मानव व्यवहार के परिवर्तनशील रूप के अध्ययन के लिए अनुपयुक्त – राजनीति विज्ञान में अध्ययन का मुख्य केन्द्र व्यक्ति होता है, परन्तु व्यक्ति का व्यवहार इतना अधिक अस्थिर होता है कि उसका वैज्ञानिक अध्ययन असम्भव है।
4. पूर्णतः शुद्ध भविष्यवाणी असम्भव- व्यवहारवादी पद्धति से पूर्ण निश्चयात्मकता के साथ यह कभी नहीं कहा जा सकता कि अमूक परिस्थितियों में अमुक घटना अवश्य घटित में होगी, क्योंकि किसी भी विषय-वस्तु को इसकी समग्रता में देखा जाना सम्भव नहीं है।
5. आदर्श निरूपण अथवा नीति निर्धारण में सहायक नहीं- व्यवहारवादी, मानव के यथार्थ व्यवहार का ही अध्ययन करते हैं, आदर्श का नहीं। इसीलिए वे आदर्श निरूपण अथवा नीति निर्धारण में सहायक नहीं होते। नीति निर्धारण में जीवन मूल्यों के विभिन्न विकल्पों में से एक को ही चुना जाता है, जो व्यवहारवादी अध्ययन पद्धति के विरुद्ध है।
6. राजनीति विज्ञान में प्राकृतिक विज्ञानों जैसे तथ्यों का अभाव- प्राकृतिक विज्ञान व राजनीति विज्ञान के तथ्यों में बड़ा अन्तर होता है। प्राकृतिक विज्ञानों के तथ्यों की तुलना में राजनीति विज्ञान के तथ्य बहुत अधिक जटिल, अत्यधिक परिवर्तनशील, न्यून मात्रा में प्रत्यक्षतः परिवेक्षणीय तथा कम समरूप होते हैं।
7. आडम्बरवाद – व्यवहारवाद आन्दोलन में शोर बहुत और वजन कम है। व्यवहारवाद ने शब्दों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। यह एक निरर्थक आन्दोलन है।
8. खर्चीला- व्यवहारवाद बहुत ही खर्चीला है। अमेरिका में करोड़ों डॉलर अध्ययन के नाम पर खर्च किये गये।
व्यवहारवाद की उत्तर-व्यवहारवादियों द्वारा आलोचना
उत्तर-व्यवहारवादियों ने व्यवहारवाद की निम्नलिखित कमियाँ परिलक्षित कीं।
- व्यवहारवादी मुख्यतः मानव व्यवहार के सामान्य गुण-धर्मों में ही रुचि ले रहे थे।
- राजनीतिक घटनाओं के भावात्मक वर्णनों की उपयोगिता और सत्यता को तिरस्कार की दृष्टि से देख रहे थे।
- यथार्थताओं को प्रतिमानों के कठोर शिकंजे में जकड़ने का निरर्थक प्रयास कर रहे थे।
- व्यवहारवादी एक ऐसी कृत्रिम भाषा का आविष्कार कर रहे थे, जो संचारण के मार्ग में रुकावट डाल रही थी।
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