शिक्षक एवं सामाजिक परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिए।
शिक्षक एवं सामाजिक परिवर्तन
शिक्षक एवं सामाजिक परिवर्तन शिक्षा जिस प्रकार सामाजिक परिवर्तन लाती है, ठीक उसी प्रकार शिक्षक भी सामाजिक परिवर्तन को संभव बनाने हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका अपना सकता है। शिक्षक एक प्रकार से वर्तमान तथा भावी समाज का नेता होता है, फलतः वह अपने आचार विचार तथा क्रिया-कलापों से सामाजिक परिवर्तनों की गति को तीव्रता तथा दिशा प्रदान करता है। शिक्षक की सामाजिक परिवर्तन लाने से सम्बन्धित कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, यह प्राचीन समय के गुरुओं के प्रभाव से स्पष्ट हो जाता है। भारत के प्राचीनकालीनं आश्रम के गुरु नालन्दा, तक्षशिला जैसे विख्यात विश्वविद्यालयों के आचार्य तथा पश्चिमी देशों के अरस्तू, प्लेटों जैसे महान् दार्शनिकों ने सामाजिक परिवर्तन लाने में महान् भूमिका निभाई। आज भी सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षक की भूमिका कम नहीं हुई है और आज भी शिक्षक को समाज निर्माता तथा समाज का मार्गदर्शक माना जाता है।
आज के सभी शिक्षाशास्त्री स्वीकार करते हैं कि बालक के व्यक्तित्व पर शिक्षक के व्यक्तित्व की अमिट छाप होती है। जैसा शिक्षक होता है, उसकी सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक विचारधाराएँ बालक या तो अपना लेता है अथवा उनसे उल्लेखनीय रूप से प्रभावित होता है। हम छोटे-छोटे बालकों को नित्य ही अपने अध्यापक का अनुकरण करते देखते हैं। बड़ा होकर वही बालक अध्यापक की बड़ी-बड़ी बातों का अनुकरण करने लगता है। शिक्षक बालकों को अपने विचारों से प्रभावित कर सामाजिक परिवर्तन के मार्ग को दिशा व गति प्रदान करता है, वह समाज को नेतृत्व देता है तथा समाज की वर्तमान स्थिति की समीक्षा करके सामाजिक परिवर्तन को सम्भव करता है।
सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में शिक्षक की भूमिका को कोई नकार नहीं सकता है। वह चाहे तो सामाजिक परिवर्तनों को ला सकता है, किन्तु इस कार्य हेतु शिक्षक को कुछ विशिष्ट कार्य करने होंगे तथा अपने में कुछ विशिष्ट गुणों का विकास करना होगा। इन कार्यों तथा विशेषताओं में से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं-
1. शिक्षक को अपनी जीवन-शैली जनतांत्रिक सिद्धान्तों पर आधारित करनी चाहिए। जिससे अन्य भी उसका अनुकरण करके अपने जीवन को जनतांत्रिक बना सकें।
2. शिक्षक को समाज की संस्कृति के शाश्वत मूल्यों तथा नैतिक मान्यताओं का ज्ञान होना चाहिए जिससे वह उनका हस्तान्तरण आगे आने वाली पीढ़ी को कर सकें, उनका परिमार्जन तथा समीक्षा कर सकें तथा उनमें से अच्छी बातों का चयन कर सकें।
3. शिक्षक को चाहिए कि वह अपने चारों ओर के समाज को सृजनशील नेतृत्व प्रदान करें और समाज को परिवर्तन के मार्ग पर अग्रसर करे।
4. शिक्षक को तत्काल अन्य संस्कृतियों की मूल बातों का भी ज्ञान होना चाहिए, जिससे वह अन्य संस्कृतियों के सन्दर्भ में अपनी संस्कृति को समृद्ध कर सकें।
5. शिक्षक को नवीनतम वैज्ञानिक आविष्कारों तथा उनके उपयोग का ज्ञान आवश्यक है, जिससे वह तथ्यों को वैज्ञानिक रूप में जनसाधारण तक पहुँचा सकें।
6. वह छात्रों को साहित्यिक, शैक्षिक तथा पाठ्येत्तर क्रियाओं में कुशल नेतृत्व प्रदान कर सकें।
7. वह ऐसा शिक्षक करे जिससे बालकों में तर्क, चिन्तन, मनन तथा विश्लेषण शक्ति का विकास हो सकें।
8. अध्यापक अपने को विद्यालय की चारदीवारी तक ही सीमित न रखे, अपितु उसे अधिक से अधिक सामाजिक सम्बन्ध स्थापित करने चाहिए जिससे समाज उसको सम्मान दें तथा उसके विचार सुनें।
9. शिक्षक को चाहिए कि वह अपने विद्यालय के कुछ प्रतिभावान छात्रों के सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रशिक्षण प्रदान करे।
10. शिक्षक को छात्रों के अभिभावकों से सम्पर्क स्थापित कर उनके दृष्टिकोण में वांछनीय परिवर्तन लाने के प्रयास करने चाहिए।
11. विद्यालय में शिक्षक द्वारा समय-समय पर सामाजिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए।
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