सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
सूफी काव्य परम्परा में जायसी के प्रसिद्ध काव्य पद्मावत का विशिष्ट स्थान है। प्रेम गाथाओं का पुराना इतिहास रहा है। बंगाल के शासक हुसैनशाह के अनुरोध से जिसमें ‘सत्यपीर’ की कथा लिखी गई। कुतुबन एक ऐसी कहानी लेकर जनता के सामने आए, जिनके द्वारा उन्होंने मुसलमान होते हुए भी अपने होने का परिचय दिया। कुतुवन चिश्ती वंश के शेख बुहरन के शिष्य थे। उन्होंने ‘मृगावती’ नामक एक प्रेमाख्यान काव्य 909 हिजरी में लिखा।
अनिरुद्ध की प्रमुख कथाओं को छोड़ देने से जायसी के पूर्व जो प्रेमाख्यान लिखे हुए पाये जाते हैं उनमें कुतुबन की ‘मृगावती’, मंझन की मधुमालती’, ‘मुग्धावती’ और ‘प्रेमावती’ है। ‘मुग्धावती’ और ‘प्रेमावती’ का पता अभी तक नहीं लगा है। ‘मृगवती’ की एक प्रति का पता ‘नागरी प्रचारिणी सभा काशी’ को लग चुका है। ‘मधुमालती’ भी प्राप्त चुकी है।
कुतुबन कृत मृगावती– ‘मृगावती’ में चन्द्रगिरि के राम गनपति देव के पुत्र और कंचन नगर के राजा रूपमुरारि की कन्या मृगावती के प्रेम का वर्णन है। राजकुमार अनेक अनेक कष्टों को सहन करता हुआ मृगावती के पास पहुँचता है। मृगावती उड़ने की विद्या जानती थी, वह एक दिन उड़ जाती है। राजकुमार उसकी खोज में योगी बनकर निकल पड़ता है। वह समुद्र से घिरी हुई एक पहाड़ी पर पहुँचता है और वहाँ रुकमनी नाम की सुन्दरी का उद्धार करता है। मृगावती के पिता की मृत्यु हो जाती है और वह स्वयं राज्य करने लगती है। राजकुमार रुकमनी को उसके पिता के पास छोड़कर मृगावती के पास आता है। वह मृगावती को लेकर घर चल देता है। मार्ग में रुकमनी को भी साथ ले लेता है। बहुत दिनों तक राज्य करने के पश्चात् एक दिन शिकार खेलते हुए हाथी से गिरकर उसकी मृत्यु हो जाती है। मृगावती और रुकमनी सती हो जाती है।
मंझन कृत मुधमालती- ‘मुधमालती’ में कनेसर नगर के राजा सूरजभान के पुत्र मनोहर और महारस नगर की राजकुमारी मधुमालती के प्रेम का वर्णन है। अप्सरायें सोते हुए मनोहर को उठाकर मुधमालती की चित्रसारी में ले जाती है। मनोहर के जगने पर दोनों में प्रेम हो जाता है। मधुमालती और मनोहर सो जाते हैं। अप्सरायें पुनः राजकुमार को उनके घर पहुँचा देती हैं मनोहर जागने पर प्रेम-योगी बनकर मधुमालती की खोज में निकल पड़ता है। समुद्र को पार करते ही वह तूफान में घिर जाता है और एक पटरे पर बहता हुए चित बिलासपुर के राजा के राज्य में पहुँच जाता है। उसकी पुत्री प्रेमा को एक राक्षस अपहरण कर लाया हैं। मनोहर प्रेमा का उद्धार करता है। प्रेमा मधुमालती की सखी थी। वह मनोहर को भाई कहती हैं और मनोहर को मधुमालती से मिला देती है। मिलन के कुछ दिनों बाद ही. दोनों का वियोग हो जाता है। अन्त में बड़ी कठिनाई से दोनों का मिलन हो जाता है। इस प्रेमाख्यान में ताराचन्द्र की भी कथा आती है। वह भी मधुमालती को बहिन कहता है।
जायसी कृत पद्मावत – प्रेमगाथा-काव्यों में जायसी का ‘पद्मावत’ वह केन्द्र बिन्दु है, जहाँ आकर प्रेम-गाथा-परम्परा अपने चरम विकास पर पहुँच गई। ‘पद्मावत’ प्रेमगाथा काव्यों की समस्त विशेषताओं और परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करता है। ‘पद्मावत’ पहले ‘मृगावती’, ‘मधुमालती’ आदि प्रेमाख्यान काव्यों की रचना हो चुकी है। ‘पद्मावत’ की कथा का विकास इन्हीं के आधार पर हुआ है। पद्मावत के पश्चात् लिखे गये समस्त प्रेमाख्यान काव्य ‘पद्मावत’ से पूर्णरूप से प्रभावित है। इसमें जायसी ने हिन्दू-मुस्लिम-संस्कृतियों को बड़ी सफलता से समन्वय किया है। प्रेम-तत्व की मामिक व्यंजना ‘पद्मावत’ के समान अन्यत्र नहीं मिलती है। इसमें फारसी शैली और हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति का विराट समन्वय है। नागमती के रूप में जायसी की विहरिणी आत्मा धधकती हुई दिखाई पड़ती है। ‘रामचरितमानस’ के पश्चात् ‘पद्मावत’ का ही हिन्दी-जगत में आदर और सम्मान के साथ नाम लिया जाता है। इस प्रकार प्रेम-गाथा काव्यों में ही नहीं अपितु समस्त काव्य जगत में जायसी तथा ‘पद्मावत’ का गौरवपूर्ण स्थान है जो आजतक स्थापित हैं।
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