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स्वमित्व के हस्तान्तरण से आपका क्या आशय है?

स्वमित्व के हस्तान्तरण से आपका क्या आशय है?
स्वमित्व के हस्तान्तरण से आपका क्या आशय है?

स्वमित्व के हस्तान्तरण से आपका क्या आशय है? इस नियम की व्याख्या कीजिए  “कोई भी विक्रेता अपने से अधिक अच्छा स्वत्व क्रेता को नहीं दे सकता।” इस सम्बन्ध में वस्तु विक्रय अधिनियम के अन्तर्गत अपवादों को बताइये।

स्वत्व के हस्तांतरण से आशय- सामान्यत: एक विक्रेता केवल ऐसा माल ही वेच सकता है जिसका वह स्वामी है, परन्तु कभी कोई व्यक्ति ऐसा माल भी बेच देता है जिसका वह स्वामी नहीं है तब प्रश्न यह उठता है कि क्रेता को क्या उपचार प्राप्त होगा जिसने पैसा देकर माल खरीदा है। यह नियम असली स्वामी की रक्षा करता है क्योंकि यदि असली स्वामी से माल नहीं खरीदा गया है तो क्रेता को बेचने वाले से अच्छा अधिकार प्राप्त नहीं होगा अर्थात क्रेता माल का असली स्वामी नहीं बनेगा। यदि क्रेता यह कहे कि उसने माल सद्भावना से खरीदा और इस प्रकार वह निर्दोष है तो उसका यह कहना व्यर्थ होगा और वह वास्तविक स्वामी के विरुद्ध कोई दावा नहीं कर सकता है। यह नियम लेटिन भाषा के कथन में व्यक्त किया गया है “Nemo dat quod non habet” अर्थात “No one can give what he does not possess” विक्रेता अपने से अधिक अच्छा अधिकार (स्वत्व) क्रेता को हस्तान्तरित नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि ‘अ’ कुछ बोरी का माल ‘ब’ को बेचता है, जो उससे सद्भावनावश खरीद लेता है। तो ‘ब’ को उस पर कोई अधिकार नहीं होगा तथा ‘क’ इसका मालिक नहीं माना जायेगा, बल्कि असली मालिक को यह अधिकार होगा कि वह अपना माल क्रेता से वापस ले सके।

उपरोक्त नियम के अपवाद-

निर्दोष क्रेताओं के हितों के बचाव के लिए इस नियम के अनेक अपवाद बताये गये है जो कि निम्नलिखित है-

(1) अदत्त विक्रेता द्वारा पुनः बिक्री- ये वे स्थितियाँ हैं जहाँ पर क्रेता कोई ऐसा विक्रेता, जिसे माल का भुगतान नहीं मिला है, माल को मार्ग में रोकने या पूर्वाधिकार के अपने अधिकार का प्रयोग कर लेता है तथा उस माल को नये क्रेता को बेच देता है तो नये क्रेता को अच्छा अधिकार मिल जाता है।

(2) व्यर्थनीय अनुबन्ध के आधीन माल पर अधिकार रखने वाले व्यक्ति द्वारा किसी विक्रेता ने व्यर्थनीय अनुबन्ध के अन्तर्गत वस्तु को प्राप्त किया है और वह विक्रय-यदि उस वस्तु को किसी अन्य व्यक्ति को बेंच देता है तो क्रेता को वस्तु पर अच्छा अधिकार मिल सकता है। बशर्ते-

  1. वह अनुबन्ध, जिसके अन्तर्गत विक्रेता को वस्तुएं प्राप्त थ, इस विक्रय अनुबन्ध के समय तक खंडित न किया हो।
  2. क्रेता ने सद्भावना से कार्य किया हो।
  3. क्रेता विक्रेता के अधिकार से सम्बन्धित दोषों के बारे में अनभिज्ञ हो ।

विवाद – फिलिप्स बनाम ब्रुक्स लिमिटेड (1919) के विवाद में एक व्यक्ति ने अपने को किसी प्रसिद्ध व्यक्ति तथा विक्रेता से सुपरिचित बताकर कुछ माल उधार खरीदा और माल को एक तीसरे पक्षकार क हाथ बेंच दिया। न्यायालय के निर्णय के अनुसार इस माल के ऊपर तीसरे पक्षकार का वैध अधिकार हो गया।

(3) माल का अधिकार रखने वाले क्रेता द्वारा विक्रय- जब कोई क्रेता विक्रय अनुबन्ध के अनुसार विक्रेता की आज्ञा लेकर वस्तु या वस्तु से सम्बन्धित प्रपत्र प्राप्त कर लेता है तथा यह उस माल को किसी तीसरे व्यक्ति को बेच लेता है, जिस व्यक्ति ने इस माल को सद्भावना के साथ क्रय किया है तो उसे (तीसरे व्यक्ति को) माल पर वैध अधिकार मिल जाता है।

(4) विक्रय के बाद माल पर अधिकार रखने वाले विक्रेता द्वारा विक्रय- यदि नाल को बेंच देने के बाद में भी माल या उसके अधिकार सम्बन्धी प्रपत्र विक्रेता के अधिकार में है और यह माल किसी तीसरे व्यक्ति को बेंच देता है, जो कि उसे सद्भावना से क्रय कर लेता है तो वह माल के ऊपर वैध अधिकार प्राप्त कर लेगा।

उदाहरण- X कुछ माल Y को बेंच देता है। Y माल को X के पास कुछ समय के लिए छोड़ देता है। बाद में X उसी माल को Z को बेंच देता है। Z. माल को सदभावना के साथ क्रय कर लेता है। ऐसी स्थिति में Z को माल पर वैधानिक अधिकार प्राप्त होगा। इस सम्बन्ध में यदि Y को कोई हानि होती है तो वह नि:संदेह X पर वाद नियोजित करके हानि की पूर्ति करा सकता है।

(5) व्यापारिक एजेन्टों द्वारा विक्रय- व्यापारिक एजेन्ट यदि क्रेता को कोई वस्तु बेंचता है तो क्रेता को विक्रेता से वस्तु के सम्बन्ध में अच्छा अधिकार प्राप्त हो जायेगा। इन परिस्थितियों में क्रेता को व्यापारिक एजेन्ट से अच्छा अधिकार प्राप्त हो सकता है-

  1. यदि विक्रेता व्यापारिक एजेन्ट है अर्थात् दलाल अथवा नीलामकर्ता है।
  2. उसके पास माल के स्वामी की सहमति से माल अथवा माल अधिकार पत्र है।
  3. उसने बिक्री व्यापार की साधारण प्रगति में की है।
  4. क्रेता ने सद्भावना से काम लिया है।
  5. उसे अनुबन्ध करते समय यह सूचना नहीं थी कि एजेन्ट को माल विक्रय करने का अधिकार नहीं है।

उदाहरण – X का व्यापारिक एजेन्ट Y क्रेता को 100 बोरी गेहूँ 150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेंचकर पैसा लेकर भाग जाता है। इन परिस्थितियों में क्रेता Z को 100 बोरी गेहूँ पर वैधानिक स्वामित्व प्राप्त होगा। माल का मूल स्वामी X क्रेता Z से माल वापस नहीं ले सकता है।

(6) प्रदर्शन (Estoppel) द्वारा विक्रय- वस्तु विक्रय अधिनियम, 1930 की धारा 27 के अनुसार यदि माल का स्वामी अपने व्यवहार से क्रेता को यह प्रदर्शित करता है कि विक्रेता को यह वस्तु बेचने का अधिकार है तब बिक्री होने के उपरान्त वास्तविक स्वामी यह नहीं कह सकता है कि विक्रेता को माल बेचने का कोई अधिकार नहीं था।

उदाहरण – X, Y को एक मकान बेचता है। मकान का वास्तविक स्वामी X न होकर Z है। Z, Y के सामने इस प्रकार का आचरण करता है कि Y को यह प्रतीत होता है कि X ही मकान का स्वामी है। Z प्रदर्शन के कारण इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता है कि X को मकान बेचने का अधिकार नहीं था।

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Anjali Yadav

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