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हिन्दी गद्य के ‘यात्रा साहित्य’ | ‘Travel Literature’ of Hindi Prose

हिन्दी गद्य के 'यात्रा साहित्य' | 'Travel Literature' of Hindi Prose
हिन्दी गद्य के ‘यात्रा साहित्य’ | ‘Travel Literature’ of Hindi Prose
हिन्दी गद्य के ‘यात्रा साहित्य’ पर एक निबंध लिखिए।

यात्रा साहित्य – यात्रा-साहित्य को ही ‘यात्रावृत’ या ‘यात्रा वृतान्त्’ भी कहा जाता है। यह साहित्य की एक रोचक विधा है, जिसमें लेखक विशेष स्थलों की यात्रा का सुन्दर वर्णन इस दृष्टि से करता है कि जो व्यक्ति या पाठक उन स्थलों की यात्रा करने में जब स्वयं समर्थ न हों, वे उन स्थलों के प्राकृतिक दृश्यों, वहाँ के निवासियों के आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान आदि से परिचित हो सकें। यात्रा करना मनुष्य की एक स्वाभाविक या नैसर्गिक क्रिया मानी जाती है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ यात्राएँ भी होती रही हैं और उनके विवरण भी लिखे जाते रहे हैं। इन विवरणों को ही यात्रा-वृतान्त कहा जाता है। परन्तु जिन यात्रावृत्तों को साहित्य की श्रेणी में रखा जाता है, उनमें साहित्यिकता का समावेश आवश्यक है। यात्रा कई प्रकार होती है लेकिन यात्रा घुमक्कड़पन या यायावरी को समेटे रहती है, साहित्य के क्षेत्र में उन्हीं का वर्णन किया जा सकता है। जिस वर्णन में प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण और वर्णन मुक्त एवं तटस्थ हो, वही यात्रावृत्त माना जा सकता है। इसमें लेखक अपनी यात्रा सम्बन्धी कठिनाइयों तथा उपलब्धियों का भी विवरण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।

यात्रावृत्त की परम्परा

यात्रावृत को परम्परा को दो भागों में बाँटा जाता है-

1. प्रारम्भिक युग एवं 2. वर्तमान युग।

प्रारम्भिक युग- प्रारम्भिक युग की यात्राओं में साहित्यिकता का अति क्षीण पुट ही झलकता है, फिर भी यात्रावृत्त विधा को विकसित करने में इनका महत्व स्वीकार किया जा सकता है। इनके माध्यम से इस विधा को विकास मिला है। यात्रावृत्त की दृष्टि से भारतेन्दु जी ने सरयू पार की यात्रा, लखनऊ की यात्रा, हरिद्वार की यात्रा का वर्णन करके इस विधा को आरम्भ किया। तत्पश्चात् बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र ने क्रमशः गया यात्रावृत तथा विलायत यात्रावृत्त लिखे। श्रीमती हरदेवी (लन्दन यात्रा), भगवानदास वर्मा (लन्दन का यात्री), दामोदर शास्त्री (मेरी पूर्व दिग्यात्रा – 1885), तोताराम वर्मा (मेरी दक्षिण यात्रा- 1886), कल्याणचन्द्र और विधूमिश्र द्वारा ब्रजविनोद, बदरी केदार यात्रा तथा व्रजयात्रा लिखी गई।

डॉ. सुरेन्द्र माथुर के मतानुसार इस कोटि की प्रमुख रचनाएँ- विट्ठलजी की वन-यात्रा, जमीनजी की माँ की वन-यात्रा, किसी अज्ञात व्यक्ति की सेठ पद्मसिंह की यात्रा तथा यात्रा – परिक्रमा, भारतेन्दु बाबू के पाँच यात्रा-विषयक निबन्ध, स्वामी सत्यदेव परिव्राजक की मेरी जर्मन यात्रा, यूरोप की सुखद स्मृतियाँ, ज्ञान के उद्यान में नई दुनिया के मेरे अद्भुत संस्मरण, अमरीकी प्रवास की मेरी अद्भूत कहानी, शिवप्रसाद गुप्त की पृथ्वी प्रदक्षिणा तथा गोपालराम गहमरी की यात्रा-विषयक रचनाएँ हैं।

वर्तमान युग- वर्तमान युग में वे रचनाएँ सामने आती हैं, जिन्हें सही मायने में ‘साहित्य’ के अर्न्तगत रखा जा सकता है। इस समय तक अधिकांश यात्रावृत्तों में किसी दृश्य, स्थान अथवा व्यक्ति के ‘आकर्षण’ (सौन्दर्य) को उभारने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। किसी-किसी लेखक ने यायावरी को भी उभारने का प्रयास किया है। प्रारम्भिक दौर में यात्रा साहित्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए परन्तु कालान्तर में कुछ पुस्तकाकार रूप भी प्रकाशित हुए। पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित यात्रावृत्तों में स्वामी मंगलानन्द द्वारा लिखित ‘मारीशस यात्रा’, श्रीधर पाठक लिखित ‘देहरादून-शिमला यात्रा’, अरुण नेहरू द्वारा लिखित ‘युद्ध क्षेत्र की सैर’ तथा लोचन कृत ‘ “हमारी यात्रा’ प्रमुख हैं। इसी प्रकार पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित यात्रा – साहित्यों में प्रमुख हैं- देवीप्रसाद खत्री कृत ‘बद्रिकाश्रम यात्रा’, गोपालराम गहमरी कृत ‘हमारी एडवर्ड तिलक यात्रा जिसमें एडवर्ड के तिलकोत्सव के वर्णन के साथ-साथ इंग्लैण्ड के दर्शनीय स्थल तथा समुद्री यात्रा का विवरण है।

वर्तमान युग के प्रमुख यात्रावृत्त लेखकों में रामनारायण मिश्र (यूरोप यात्रा के छह मास), कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर (हमारी जापान यात्रा), प्रो. मनोरंजन (उत्तराखण्ड के पथ पर), जवाहरलाल नेहरू (आँखों देखा रूस), सेठ गोविन्ददास (सुदूर दक्षिण-पूर्व, पृथ्वी परिक्रमा), सूर्यनारायण व्यास (चाँद-सूरज के वीरन), धर्मवीर भारती (ठेले पर हिमालय), भुवनेश्वर प्रसाद ‘भुवन’ (आँखों देखा यूरोप), विष्णु प्रभाकर (हँसते निर्झर दहकती माटी), बृजकिशोर नारायण (नन्दन से लन्दन), अक्षय कुमार जैन (दूसरी दुनिया) आदि हैं।

राहुल सांकृत्यायन का इस क्षेत्र में विशेष महत्व है। उन्होंने कई यात्रावृत लिखे जिनमें ‘मेरी लद्दाख यात्रा’, ‘किन्नर देश में’, ‘राहुल यात्रावली’, ‘यात्रा के पन्ने’, ‘रूस में पच्चीस मास’, ‘एशिया के दुर्गम भूखण्डों में’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

इसी क्रम में भगवतशरण उपाध्याय (सागर की लहरों पर), अमृतराय (सुबह के रंग), यशपाल (लोहे की दीवार के दोनों ओर), रामवृक्ष बेनीपुरी (पैरों में पंख बाँधकर तथा पेरिस नहीं भूलती), देवेशदास (यूरोप तथा रजवाड़े), सत्यनारायण (आवारे की यूरोप यात्रा एवं शुद्ध यात्रा), मोहन राकेश (आखिरी चट्टान), रांगेय राघव (तूफानों के बीच), अज्ञेय (अरे यायावर रहेगा याद तथा एक बूँद सहसा उछली), विट्ठलदास मोदी (काश्मीर में 15 दिन), डॉ. जगदीश शरण वर्मा (ज्ञान की खोज में), स्वामी सत्यदेव परिव्राजक (मेरी पाँचर्वी जर्मन यात्रा), शिव प्रसाद (पृथ्वी प्रदक्षिणा), स्वामी सत्य भक्त (सागर प्रवास) भी प्रसिद्ध हैं।

उपरोक्त के अतिरिक्त डॉ. रामविलास शर्मा, अमृतलाल नागर, राजेन्द्र यादव ने दक्षिण भारत की यात्राओं का विवरण दिया है।

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Anjali Yadav

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