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अन्वेषण या ह्यूरिस्टिक विधि (Heuristic Method)
वैज्ञानिक विषयों को पढ़ाने के लिये 19वीं शताब्दी में आर्मस्ट्राँग ने इस विधि की खोज की। ‘Heuristic’ (हारिस्टिक) शब्द ह्यूनानी भाषा के शब्द ‘Heurisco’ (हारिस्को) से बना है, जिसका तात्पर्य है-“मैं स्वयं खोज करता हूँ।” इस प्रकार स्पष्ट है कि हारिस्टिक विधि स्वयं खोज करके या अपने आप सीखने की विधि है। वास्तव में, इसे एक अलग से विधि न कहकर शिक्षण की एक प्रवृत्ति (Attitude of Teaching) कहना अधिक उचित होगा। इस विधि में अध्यापक विषय-वस्तु की व्याख्यान विधि की भाँति ही सीधे-सादे ढंग से बतलाता नहीं है, बल्कि प्रश्नों द्वारा छात्रों को स्वयं खोजने के हेतु बाध्य करता है। इस विधि में छात्र निष्क्रिय श्रोता मात्र न रहकर स्वयं अन्वेषक या आविष्कारक बन जाते हैं। प्रयोगशाला विधि से भिन्न इस विधि में छात्रों को स्वयं सोचने का अवसर प्रदान किया जाता है। छात्र गणित के विभिन्न प्रश्नों के उत्तर बिना किसी की सहायता के स्वयं प्राप्त करते हैं। बर्नार्ड ने इस विधि को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “जहाँ तक सम्भव होता है, वहाँ तक यह प्रणाली छात्र को खोजने वाले की स्थिति में रखती है। उसे अपने आधार सामग्री स्वयं खोजनी पड़ती है। और अपने प्रश्नों को स्वयं पूछना पड़ता है। फिर आगमन की वैज्ञानिक विधि का प्रयोग करके उसे अपने सिद्धान्तों का परीक्षण और अपने निष्कर्षों का निर्माण करना पड़ता है।”
गणित शिक्षण में ह्यरिस्टिक विधि विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध हो सकती है, परन्तु आवश्यकता इस बात की हो सकती है कि इसके हेतु वांछित पर्यावरण, उपयुक्त सामग्री, योग्य शिक्षक और विशिष्ट विद्यालय संगठन की व्यवस्था की जाये तथा छात्रों को आवश्यकतानुसार खोज कार्य में सहायता प्रदान की जाय। छात्रों से विचारोत्तेजक प्रश्न किये जायें, जिससे कि उनको सोचने का अवसर प्राप्त हो। छात्रों से ‘हाँ’ या ‘नहीं’ वाले प्रश्न न पूछे जाएं, उनसे उत्तरसूचक प्रश्न भी न पूँछे जाएं। यहाँ हम कुछ उदाहरणों द्वारा अंशुद्ध और शुद्ध ह्यरिस्टिक विधियों को संक्षेप में स्पष्ट करेंगे।
ह्यूरिस्टिक विधि के गुण-
गणित शिक्षण में ह्यूरिस्टिक विधि विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होती है। यहाँ गणित में इस विधि के अपनाने के गुणों का उल्लेख संक्षेप में किया जा रहा है-
1. गणित शिक्षण के हेतु यह विधि इस कारण उपयोगी है कि यह छात्रों में मनोवैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण करती है।
2. यह विधि तर्क, निर्णय, कल्पना, चिन्तन आदि का उपयुक्त अवसर प्रदान करके बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया को तीव्र बनाती है।
3. यह विधि बालक को ज्ञान की खोज करने की स्थिति में रखती है।
4. गणित शिक्षण में यह विधि इसलिये भी उपयोगी है कि यह बालक को पहले से निश्चित रूप से तथ्यों को न बताकर उसे उसकी ओर अग्रसर करती है।
5. यह विधि छात्रों को स्वयं गणित कार्य करने के हेतु प्रेरित करती है और उसमें स्वतन्त्र अध्ययन और स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।
6. रायबर्न का विचार है कि यह विधि बालक को ज्ञानोपार्जन की विधियों की क्रियाओं में संलग्न करके उसे क्रियाशील बनाती है।
7. यह विधि आगमन विधि का अनुसरण करने के फलस्वरूप यह स्वीकार करती है कि बालक को शिक्षण कार्य में पूर्ण सहयोग देना चाहिये।
8. गणित शिक्षण में यह विधि इसलिये भी लाभदायक है कि यह ‘करके सीखने’ पर बल देती है।
ह्यूरिस्टिक विधि के दोष-
गणित में ह्यूरिस्टिक विधि के अनेक लाभ हैं, परन्तु उसके कतिपय दोष भी हैं जिनका उल्लेख कर देना आवश्यक है-
1. यह विधि केवल असाधारण बुद्धि वाले छात्रों को गणित शिक्षण के लिये उपयोगी है, क्योंकि वे ही गणित के क्षेत्र में अन्वेषण करने में समर्थ होते हैं, साधारण बुद्धि वाले बालक स्वयं अन्वेषण नहीं कर पाते।
2. निम्न कक्षाओं में गणित शिक्षण में इस विधि का उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि निम्न कक्षाओं के छात्र स्वयं अन्वेषण करने में समर्थ नहीं होते।
3. गणित शिक्षण की यह विधि छात्रों को गलत नियम, निष्कर्ष अथवा सिद्धान्तों पर पहुंचा सकती है, क्योंकि उनका मस्तिष्क इतना परिपक्व और विकसित नहीं होता कि वे अपनी गलती को समझ सकें।
4. गणित शिक्षण में इस विधि का एक दोष यह भी दिखाई देता है कि इसमें कार्य करने की गति अत्यन्त मन्द होती है। जिन तथ्यों को शिक्षक थोड़े समय में बतला सकता है, उन्हें खोजने में बालक घण्टों का समय लगाते हैं। यदि इस विधि के समस्त पाठों का शिक्षण प्रदान किया जाए तो पाठ्यक्रम कभी भी पूरा नहीं हो सकता।
5. इस विधि का एक दोष यह भी है कि इसमें आगमन और वस्तुपरक शिक्षण के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के शिक्षण का प्रयोग नहीं किया जा सकता। परिणाम यह होता है कि इसमें शिक्षण के समस्त पहलुओं का समावेश नहीं होता है।
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- गणित शिक्षण की निगमन विधि
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