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अभिक्रमित अनुदेशन क्या है ? इसके आधारभूत सिद्धान्त, उद्देश्य एवं महत्त्व

अभिक्रमित अनुदेशन क्या है ? इसके आधारभूत सिद्धान्त, उद्देश्य एवं महत्त्व
अभिक्रमित अनुदेशन क्या है ? इसके आधारभूत सिद्धान्त, उद्देश्य एवं महत्त्व

अभिक्रमित अनुदेशन क्या है ? इसके आधारभूत सिद्धान्तों, उद्देश्यों एवं महत्त्व की विवेचना कीजिए।

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अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Programmed Instruction)

विभिन्न शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने अभिक्रमित अध्ययन को विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। प्रमुख शिक्षा मनोवैज्ञानिकों की प्रमुख परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं-

जेम्स, ई0 एस्पिच तथा बिर्ल विलियम्स ने अपनी पुस्तक ‘डेवलपिंग प्रोग्राम्ड इन्स्ट्रक्शनल मेटीरियल’ में अभिक्रमित अध्ययन को इस प्रकार परिभाषित किया है-

अभिक्रमिक अनुदेशन “अनुभवों का वह नियोजित क्रम है जो उद्दीपक अनुक्रिया सम्बन्ध के रूप में कुशलता की ओर ले जाता है।”

एक अमेरिकी शिक्षा मनोवैज्ञानिक ने अभिक्रमिक अध्ययन को इस प्रकार परिभाषित किया है-

“अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण सामग्री को छोटे-छोटे पदों में व्यवस्थित करने की एक ऐसी प्रक्रिया है जिनका निर्माण छात्र को स्वयं अध्ययन के माध्यम से ज्ञात से अज्ञात, नवीन एवं अधिक जटिल ज्ञान तथा सिद्धान्तों की ओर ले जाता है।”

डॉ0 सूसन एम0 मार्कले के अनुसार—“अभिक्रमिक अधिगम शिक्षण प्रक्रियाओं को पुनः-पुनः प्रस्तुत करने के लिए तारतम्य युक्त संरचना बनाने की एक विधि है, जिसकी सहायता से प्रत्येक छात्र में मानवीय व्यावहारिक परिवर्तन किया जा सके।”

कुक डी0 एल0 के अनुसार- “अभिक्रमित, अधिगम, स्वशिक्षण विधियों के व्यापक सम्प्रत्यय को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त एक प्रत्यय है।”

स्टोफल के अनुसार– “ज्ञान के छोटे अंशों को एक तार्किक क्रम में व्यवस्थित करने को ‘अभिक्रम’ तथा इसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया को अभिक्रमित अध्ययन कहा जाता है।”

उपर्युक्त सभी परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अभिक्रमित अध्ययन सीखने की वह अध्ययन विधि है जिससे शिक्षण-सामग्री को क्रमबद्ध ढंग से छोटे-छोटे भागों में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि छात्र जब तक प्रत्येक दिये जाने वाले उत्तेजक के प्रति सही प्रतिक्रिया नहीं कर लेता, वह आगे नहीं जा सकता। इसमें शिक्षण सामग्री का नियोजन इस प्रकार किया जाता है कि छात्र छोटे-छोटे पदों द्वारा वांछित उद्देश्य पर कम-से-कम त्रुटियाँ करके पहुँच जाता है।

अभिक्रमित अनुदेशन के आधारभूत सिद्धान्त (Fundamental Theories of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन के वर्तमान जन्मदाता प्रो० बी० एफ० स्किनर ने अभिक्रमित अध्ययन या अनुदेशन के निम्नांकित पाँच आधारभूत सिद्धान्तों का उल्लेख किया है-

(1) लघु पद सिद्धान्त – इस सिद्धान्त के अनुसार शिक्षण सामग्री का विश्लेषण कर उसे छोटे-छोटे अर्थपूर्ण पदों या अंशों में विभक्त कर दिया जाता है तथा छात्र के सम्मुख एक के समय में एक छोटा पद या अंश ही प्रस्तुत किया जाता है जिससे कि वह उसे सुगमता से समझ सके। शिक्षण सामग्री के इस छोटे अंश या पद को ‘फ्रेम’ कहते हैं।

(2) तुरन्त जाँच या पृष्ठपोषण का सिद्धान्त – अभिक्रमित अध्ययन का द्वितीय आधारभूत सिद्धान्त परिणाम या उत्तर की तुरन्त जाँच है। जब छात्र द्वारा किसी अभिक्रमित अध्ययन सामग्री में दिये गये किसी प्रश्न का उत्तर सही या गलत है, इसकी जानकारी उत्तर लिखने के तुरन्त पश्चात् उसे दी जाती है। उत्तर सही होने की स्थिति में वह अगले पद की ओर अग्रसरित हो जाता है। यदि उसके द्वारा दिया गया उत्तर गलत है तो कम-से-कम वह सही उत्तर को पढ़ता है जो कि अगली बार सही उत्तर देने की सम्भावना को बढ़ा देता है। यह एक सत्य है कि सीखने के दौरान यदि छात्र को सफलता या सन्तुष्टि प्राप्त हो जाये तो वह सीखी हुई शिक्षण सामग्री अधिक स्थायित्व प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार तुरन्त पृष्ठपोषण कर लेने पर छात्र को पुनर्बलन मिलता रहता है और वह सही उत्तरों के आधार पर क्रमानुसार पदों के माध्यम से आगे अग्रसरित होता हुआ शिक्षण सामग्री में सम्पूर्णता प्राप्त कर लेता है।

(3) सक्रिय अनुक्रिया सिद्धान्त- अभिक्रमित अध्ययन का तीसरा आधारभूत सिद्धान्त यह बताता है कि सीखने के लिए छात्र को सक्रिय अनुक्रिया करना आवश्यक है। अभिक्रमित अध्ययन छात्र को शिक्षण के दौरान सतत् एवं सक्रिय रहने हेतु विवश रहता है।

(4) स्वगति सिद्धान्त- अभिक्रमित अध्ययन छात्र को इस बात पर पूर्ण अवसर प्रदान करता है कि वह स्वयं अपनी बातों के अनुसार शिक्षण सामग्री पर कार्य कर सके। उसे कक्षा के अन्य छात्रों के साथ चलने पर मजबूर नहीं किया जाता है। इस प्रकार यह छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं का ध्यान रखता है।

(5) विद्यार्थी परीक्षण सिद्धान्त- अभिक्रमित अध्ययन इस बात पर बल देता है कि छात्रों की कमजोरियों एवं त्रुटियों की निरन्तर एवं सही समय पर जाँच होती रहे। इसमें छात्र अपने अधिगम का मूल्यांकन परीक्षण स्वयं कर सकता है।

अभिक्रमित अनुदेशन के उद्देश्य (Objectives of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  1. छात्रों को अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुरूप सीखने का अवसर प्रदान करना।
  2. विद्यार्थियों के स्वाध्याय हेतु अभिप्रेरित होने का अवसर प्रदान करना।
  3. नियमित अध्ययन के अवसर से वंचित छात्रों को सहज, सुगम व अवबोधनीय पाठ्यवस्तु उपलब्ध करना।
  4. शिक्षक के अभाव में भी अधिगम की सुगम पद्धति द्वारा अध्ययन का अवसर प्राप्त करना।

अभिक्रमित अनुदेशन का महत्त्व (Importance of Programmed Instruction)

अभिक्रमित अनुदेशन के महत्त्व को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों को अपनी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप सीखने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाता है। इसके विपरीत अभिक्रमित अध्ययन मूलतः वैयक्तिक भिन्नता के सिद्धान्त पर ही आधारित है।

(2) शिक्षण प्रक्रिया के अनन्तर छात्रों को निरन्तर क्रियाशील बनाये रख पाना कठिन होता है। अभिक्रमित अध्ययन में छात्र, अन्त तक क्रियाशील रहने का अवसर प्राप्त करते हैं।

(3) इस विधि के द्वारा छात्रों का निरन्तर स्व-प्रेरणा का अवसर प्राप्त होता है और वे पुनर्बलन प्राप्त करते हुए निरन्तर सीखने का अवसर प्राप्त करते हैं।

(4) अभिक्रमित अनुदेशन में छात्रों को अपनी कमजोरियों का भी निरन्तर ज्ञान होता रहता है। शिक्षण व्यवस्था में छात्रों को अपनी कमजोरियों का भी ज्ञान होता है। शिक्षण व्यवस्था में छात्रों का मूल्यांकन यथा समय नहीं पाता है तथा प्रायः शिक्षक द्वारा उत्तरों की जाँच किये जाने के कारण वे अपनी उपलब्धि के सम्बन्ध में भी संशक्ति रहते हैं।

(5) शिक्षण व्याख्या के विपरीत अभिक्रमित अनुदेशन विधि के द्वारा छात्रों को तत्काल जाँच का अवसर प्राप्त होता है।

अभिक्रम के प्रकार ( Styles of Programming )

अभिक्रमित अध्ययन प्रणाली आज सभी देशों में प्रचलित है तथा अब नये-नये अभिक्रमों का विकास हो रहा है। प्रमुख प्रकार के अभिक्रम निम्नलिखित हैं-

  1. रेखीय अथवा बाह्य अभिक्रमित अध्ययन,
  2. शाखीय अथवा आन्तरिक अभिक्रमित अध्ययन,
  3. मैथेटिक्स या अवरोही शृंखला।
1. रेखीय अथवा बाह्य अभिक्रमित अध्ययन (Linear or Extrinisic Programmed Learning)

इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को विकसित करने का श्रेय प्रो० बी० एफ० स्किनर को जाता है। रेखीय अभिक्रमित अध्ययन को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

“एक ऐसा अभिक्रमित सामग्री क्रम जिसमें कि प्रत्येक छात्र एक रेखीय क्रम में एक निश्चित पदों को पार करता हुआ आगे बढ़ता है।”

इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन में अधिगम के तारतम्य और अनुक्रिया सभी के लिए एक समान होती है। इसमें सभी को समान मार्ग से गुजरना होता है। इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को स्किनरीयन अभिक्रमित प्रकार के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह सर्वप्रथम स्किनर के द्वारा ही प्रयुक्त किया गया था। इस प्रकार की योजना का आधार स्किनर की ‘क्रिया-प्रसूत अनुबन्धन सिद्धान्त’ (Theory of Operant Conditioning) है। स्किनर ने चूहों तथा कबूतरों पर अनेक प्रयोगों के माध्यम से यह स्थापित कर दिया है कि जानवरों या मानवों को हम वांछित उद्देश्यों की ओर अग्रसर कर सकते हैं यदि हम शिक्षण सामग्री को छोटे-छोटे पदों के रूप में एक निश्चित क्रम में प्रस्तुत कर दें तथा प्रत्येक पद को सन्तुष्टि या अनुकूल अनुभवों के माध्यम से धनात्मक पुनर्बलन मिलता रहे।

अभिक्रमित अध्ययन के दौरान छात्रों को अनुक्रिया की रचना करनी होती है। यह अनुक्रिया बाह्य अथवा आन्तरिक व्यवहारों दोनों ही रूप में हो सकती है, क्योंकि रेखीय अभिक्रमित अध्ययन में बाह्य अनुक्रियाओं का बाहुल्य होता है। अतः इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को बाह्य अभिक्रमित अध्ययन के नाम से भी जाना जाता है।

रेखीय अभिक्रमित अध्ययन में छात्र के सामने शिक्षण सामग्री का एक छोटा-सा अंश या पद प्रस्तुत किया जाता है। उसके बाद छात्र को उस अंश या पद से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर देने को कहा जाता है। उत्तर आ जाने के पश्चात् छात्र को सही उत्तर का ज्ञान कराया जाता है। यदि उसका उत्तर सही उत्तर से मिल जाता है तो उसे पुनर्बलन मिलता है और वह अगले पद की ओर अग्रसर हो जाता है। इस प्रकार एक पद के पश्चात् प्रश्न, प्रश्न के पश्चात् उत्तर को पुनर्बलन और पुनर्बलन के पश्चात् दूसरे पद, फिर प्रश्न अथवा पुनर्बलन यह क्रम चलता रहता है। जब तक कि छात्र पूर्व व्यवहार से अन्तिम व्यवहार तक नहीं पहुँच जाता है। इसमें उद्दीपन-अनुक्रिया की एक श्रृंखला या रेखा-सी बन जाती है।

यहाँ पर एक 5 फ्रेम वाले रेखीय अभिक्रम का रेखाचित्र अंकित है। इस रेखाचित्र द्वारा रेखीय अभिक्रम को एक दृष्टि में देखा-समझा जा सकता है-

प्रविष्ट व्यवहार → 1 2 3 4 5 → अन्तिम व्यवहार

रेखीय अभिक्रम का रेखाचित्र

रेखीय अभिक्रमित अध्ययन की विशेषताएँ (Features of Linear Programmed Learning)

रेखीय अभिक्रमित अध्ययन को प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) रेखीय प्रकार में छात्र विभिन्न छोटे-छोटे पदों के माध्यम से एक रेखीय मार्ग पर गति करते हुए. अन्तिम व्यवहार तक पहुँचता है।

(2) इसमें छात्र के उत्तर की सही उत्तर में जाँच पृष्ठपोषण (Feedback) द्वारा कराने का प्रावधान होता है।

(3) सभी छात्र एक प्रकार के मार्ग पर ही चलते हुए अन्तिम लक्ष्य पर पहुँचते हैं।

(4) अभिक्रमित अध्ययन के प्रारम्भ में सीखने को सरल बनाने के लिए उद्बोध (Prompts) या संकेतों का प्रयोग किया जाता है जिन्हें कि धीरे-धीरे निकाल लिया जाता है।

(5) अनुक्रिया तथा उसके क्रम पर नियन्त्रण रखा जाता है। छात्र को अपने प्रकार से अनुक्रिया करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

(6) इस प्रकार के अध्ययन में छात्र स्वयं उत्तरों का निर्माण करता है।

(7) इसमें शिक्षण सामग्री का निर्माण तथा प्रस्तुतीकरण इस प्रकार किया जाता है कि छात्र की त्रुटि की सम्भावना लगभग शून्य हो जाती है।

2. शाखीय या आंतरिक प्रकार अभिक्रमित अध्ययन (Branching or Intrinsic Programmed Learning)

शाखीय प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को विकसित करने का मुख्य श्रेय नार्मल ए० क्राउडर को है। शाखीय प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन को निम्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है-

“यह वह अभिक्रमित अध्ययन विधि है जो कम्प्यूटर जैसे बाह्य माध्यम के बिना भी छात्रों की आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करती है।”

इस प्रकार की अभिक्रमित अध्ययन विधि को क्राउडर अभिक्रमित अध्ययन विधि के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम क्राउडर ने ही इस विधि का विकास किया था। इस अभिक्रमित अध्ययन का आधार कोई सीखने का सिद्धान्त न होकर, केवल विषम सामग्री को प्रस्तुत करने की तकनीकी है। इसमें प्रभावशाली शिक्षण के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रयोग करके शिक्षण को प्रभावशाली बनाया जाता है।

चूँकि शाखीय अभिक्रमित अध्ययन में अनुक्रियाएँ छात्र द्वारा नियंत्रित होती हैं। छात्र अपनी सूझबूझ एवं आवश्यकता के अनुसार अनुक्रिया या उत्तर देता है। अतः इसे आन्तरिक अभिक्रमित अध्ययन (Intrinsic Learning) के नाम से जाना जाता है।

शाखीय अभिक्रमित अध्ययन में छात्रों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते पद दिये जाते हैं। इन पदों का आकार रेखीय अभिक्रमित अध्ययन के पदों की हुए विभिन्न तुलना में कुछ बड़ा होता है। एक पर्दे (फ्रेम) पढ़ लेने के पश्चात् छात्र को बहुविकल्पीय प्रश्न दिया जाता है जिसमें कि एक उत्तर होता है। यदि छात्र का उत्तर सही उत्तर से मिल जाता है तो उसे आगे पद ( फ्रेम) पर चढ़ने को कहा जाता है। यदि छात्र का उत्तर सही उत्तर से नहीं मिलता है तो उसे उपचारात्मक निर्देश दिये जाते हैं तथा फिर पूर्व पद पर आने तथा उत्तर देने को कहा जाता है। यह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि वह सही उत्तर नहीं दे देता। केवल सही उत्तर देने पर ही अगले पद पर बढ़ने को कहा जाता है। इस प्रकार इसमें प्रतिभाशाली व कमजोर छात्र के लिए अलग पदों के माध्यम से अन्तिम लक्ष्य व्यवहार तक पहुँचने को कहा जाता है। एक प्रतिभाशाली छात्र कमजोर की तुलना में कम पदों को पढ़कर शीघ्र अंतिम व्यवहार (लक्ष्य) तक पहुँच जाता है।”

शाखीय अभिक्रमित अध्ययन की विशेषताएँ (Features of Branching Programmed Learning)

शाखीय अभिक्रमित अध्ययन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् है-

(1) शाखीय प्रकार में रेखीय प्रकार की तुलना में प्रत्येक पाठ या फ्रेम में शिक्षण सामग्री की मात्रा अधिक होती है।

(2) प्रत्येक छात्र को अपनी आवश्यकतानुसार विभिन्न पदों पर होकर अंतिम व्यवहार तक पहुँचने की छूट है।

(3) अनुक्रिया तथा उसके क्रम पर छात्र का नियंत्रण होता है। छात्र को अपने प्रकार से अनुक्रिया करने का अधिकार है।

(4) इनमें पृष्ठपोषण तुरन्त दिया जाता है। छात्र अपनी अनुक्रिया या उत्तर का मिलान तुरन्त करता है।

(5) छात्र द्वारा अनुक्रिया ग़लत होने पर उसे भूल सुधार बताई जाती है गलती दूर कराने का प्रयास किया जाता है। अगले मुख्य पद पर वह तब तक नहीं पहुँचता जब तक कि वह अपने मुख्य पद (फ्रेम) का उत्तर सही नहीं दे देता है।

3. मेथेटिक्स अथवा अवरोही अभिक्रमित अध्ययन (Mathetics Programmed Learning)

रेखीय एवं शाखीय प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन के प्रकार के साथ-साथ आजकल अवरोही अभिक्रमित अध्ययन भी काफी प्रसिद्ध है। इसको विकसित करने का मुख्य श्रेय थामस एफ० गिलबर्ट को है। मैथेटिक्स शब्द यूनानी भाषा के ‘मैथीन’ शब्द से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है-सीखना।

गिलबर्ट के शब्दों में- “अवरोही अभिक्रमित अध्ययन जटिल व्यवस्था समूह विश्लेषण एवं पुनर्निर्माण के लिए पुनर्बलन के सिद्धान्तों का व्यवस्थित प्रयोग है। जो शिक्षण सामग्री के पूर्ण अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है।”

इस प्रकार के अभिक्रमित अध्ययन में छात्रों की जटिल व्यवहारों के विकास में सहायता मिलती है और वह शिक्षण सामग्री पर पूर्ण स्वामित्व प्राप्त कर लेता है। यह अभिक्रमित अध्ययन विधि विशेष रूप से उन शिक्षण-कौशलों में अधिक ग्राह्य है, जबकि एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में शिक्षण-कौशलों का स्थानान्तरण शिक्षण का मुख्य उद्देश्य हो ।

“अवरोही अभिक्रमित अध्ययन विधि, प्रेरण के सिद्धान्त का शिक्षण में मुख्य रूप से प्रयोग करती है। इसे अवरोही अभिक्रमित अध्ययन के नाम से इस कारण जाना जाता है, क्योंकि इसमें शिक्षण सामग्री को एक विशिष्ट शृंखला के रूप में व्यवस्थित किया जाता है जिसमें छात्र को विशिष्ट अनुक्रियायें करनी होती हैं किन्तु ये अनुक्रियायें अवरोही क्रम में होती हैं।

अवरोही अभिक्रमित अध्ययन की विशेषताएँ (Features of Mathetics Programmed Learning) –

इस विधि की मुख्य रूप में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

  1. यह प्रारम्भिक व्यवहार के आधार पर विषय वस्तु पर पूर्ण अधिकार प्रदान करता है।
  2. इसमें शिक्षण सामग्री को छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत करते हैं।
  3. यह विभिन्न कौशलों के स्थानान्तरण के लिए अधिक उपयोगी है।
  4. इसमें प्रदर्शन, अनुबोधन एवं अनुक्रिया के आधार पर शिक्षण सामग्री पर स्वामित्व प्राप्त किया जाता है।
  5. इसमें कार्य की पूर्णता ही पुनर्बलन का साधन होता है।

रेखीय तथा शाखीय अभिक्रमित अधिगम में अन्तर (Difference between Linear and Branching Programmed Instruction)

रेखीय तथा शाखीय अभिक्रमित अधिगम में निम्नलिखित अन्तर हैं-

 रेखीय अभिक्रमित अधिगम शाखीय अभिक्रमित अधिगम
1. इसमें प्रत्येक पद की सन्तुष्टि “पुनर्बलन” दिया जाता है। 1. इसमें उपचारात्मक निर्देश दिया जाता है।
2. इसमें बार-बार गलतियाँ करने के पश्चात् सीखने वाले लक्ष्य तक पहुँचता है। 2. गलतियों का मौका ही नहीं आता वरन् सम्भावित त्रुटियों के आधार पर ही (फ्रेम) ढाँचे का निर्माण किया जाता है।
3. बच्चों में अधिक रुचिकर नहीं होता।

3. बच्चों में अधिक रुचिकर होता है।

4. बी० एफ० स्किनर-प्रतिपादक।

4. नॉरमन क्राउडर- प्रतिपादक।
5. विषय-वस्तु पर बच्चे का नियन्त्रण नहीं होता। 5. विषय-वस्तु बच्चे की योग्यता तथा क्षमता द्वारा नियन्त्रित रहती है।
6. इसमें छोटे-छोटे अंशों में बच्चे को सीखने को प्रेरित किया जाता है और यह क्रमानुसार आगे बढ़कर एक “केन्द्रित अनुक्रिया” तक पहुँचता है। विकल्प की कोई स्थिति नहीं होती। 6. इसमें छात्र को एक के बाद दूसरे पद तक पहुँचने के लिए कुछ वैकल्पिक प्रश्न दिये जाते हैं जिसका उसे सही उत्तर देना होता है।
7. स्किनर की “क्रिया प्रसूत अनुबन्ध सिद्धान्त।” 7. थार्नडाइक के सूझ सिद्धान्त पर आधारित है।
8. इसमें सभी मानसिक आयु के बच्चों को एक ही प्रकार की प्रक्रिया द्वारा सिखाया जाता है। 8. व्यक्तिगत भिन्नताओं के आधार ढाँचे (फ्रेम) का निर्माण किया जाता

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Anjali Yadav

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