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अभिप्रेरणा के प्रमुख स्त्रोतों का वर्णन कीजिए।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार अभिप्रेरणा के चार प्रमुख स्रोत होते हैं-
- आवश्यकताएँ
- चालक या अन्तर्नोद
- प्रोत्साहन या उद्दीपन
1. आवश्यकताएँ–
सभी प्राणियों की कुछ मूलभूत आवश्यकताएँ होती हैं तथा उनका प्रत्येक व्यवहार का कार्य इन्हीं आवश्यकताओं से अभिप्रेरित होता है। अभिप्रेरणा आवश्यकताओं की अनुभूति से उत्पन्न होती है। मनुष्य का व्यवहार भी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं से संचालित होता है। अतः आवश्यकता व्यक्ति में निहित वह शक्ति है जो व्यक्ति को किसी विशेष प्रकार का व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित करती है। उदाहरणार्थ आन्तरिक आवश्यकताओं के कारण व्यक्ति भोजन, विश्राम, आत्मसम्मान, प्रशंसा एवं सामाजिक मान्यता आदि की प्राप्ति हेतु कुछ विशिष्ट कार्य एवं व्यवहार करने की ओर अग्रसर होता है। व्यक्ति की आवश्यकताएँ मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रकार की होती हैं।
(i) शारीरिक आवश्यकताएँ जैसे-भोजन, पानी, विश्राम, नींद, काम आदि सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
(ii) मनोवैज्ञानिक आवश्यकताएँ जैसे-प्रेम, प्रशंसा, आत्मसम्मान, सुरक्षा, स्वतन्त्रता, उपलब्धि आदि सम्बन्धी आवश्यकताएँ।
(iii) सामाजिक आवश्यकताएँ जैसे-सामाजिक, मान्यता, आत्मसम्मान, प्रति, सुरक्षा, सफलता, सामाजिक मूल्यों से सम्बन्धित आवश्यकताएँ।
व्यक्ति को जब कोई आवश्यकता होती है तब उसके शरीर में तनाव एवं असंतुलन उत्पन्न हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह क्रियाशील होता है। उदाहरणार्थ-भूख लगने पर व्यक्ति को भोजन की आवश्यकता होती है। अतः वह भोजन प्राप्त करने हेतु क्रियाशील होता है। जब उसे भोजन मिल जाता है तब उसकी क्रियाशीलता एवं उसके साथ ही शारीरिक तनाव भी समाप्त हो जाता है।
2. चालक या अन्तर्नोद-
प्राणी या व्यक्ति की आवश्यकताएँ उनसे सम्बन्धित चालकों को जन्म देती हैं। उदाहरणार्थ भोजन की आवश्यकता से ‘भूख-चालक’ तथा पानी की आवश्यकता से ‘प्यास-चालक’ उत्पन्न होता है। चालक या अन्तर्नोद प्राणी को एक विशेष प्रकार का कार्य अथवा व्यवहार करने को प्रेरित करता है जिससे उसकी आवश्यकता की पूर्ति होती हो। इस प्रकार “चालक शक्ति’ वह आंतरिक उत्तेजक है जो प्राणी को कार्य करने हेतु जागृत करती है।
डेशील महोदय के शब्दों में, “चालक, शक्ति का एक आदि स्रोत है जो मनुष्य के अंगों को कार्य करने के लिए बाध्य करता है।”
बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वेल्ड के शब्दों में, “चालक शरीर की एक आंतरिक क्रिया या दशा है जो एक विशेष प्रकार के व्यवहार के लिए अभिप्रेरणा प्रदान करती है।’
3. प्रोत्साहन या उद्दीपन-
आवश्यकता की पूर्ति हेतु जो विषय, पदार्थ, परिस्थितियाँ और क्रियाएँ आदि साधनों का कार्य करते हैं उन्हें प्रोत्साहन या उद्दीपन कहा जाता है।
उदाहरणार्थ- भोजन से भूख आवश्यकता की पूर्ति होती है। अतः भूख चालक के लिए भोजन ‘उद्दीपन’ है।
बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वेल्ड ने भी उद्दीपन को किसी प्रकार परिभाषित किया है “उद्दीपन की परिभाषा उस वस्तु, स्थिति अथवा क्रिया के रूप में की जा सकती है जो व्यवहार को उद्दीप्त उत्साहित और निर्देशित करते हैं।”
आवश्यकता, चालक एवं उद्दीपन के उपर्युक्त अर्थों से यह भी स्पष्ट है कि इन तीनों में आपस में सम्बन्ध हैं। हिलगार्ड ने इनके सम्बन्धों के बारे में इस प्रकार विचार व्यक्त किया है “आवश्यकता, चालक को जन्म देती है। चालक बढ़े हुए तनाव की एक दशा है जो प्राणी को क्रिया एवं प्रारम्भिक व्यवहार की ओर अग्रसर करता है। उद्दीपन बाह्य वातावरण की कोई वस्तु होती है जो आवश्यकता को सन्तुष्ट करती है और इस प्रकार उपयुक्त क्रिया के द्वारा चालक (की शक्ति) को कम कर देती है। “
4. अभिप्रेरक –
‘अभिप्रेरक’ में आवश्यकता और चालक के साथ-साथ लक्ष्य के भाव का भी समावेश होता है। अतः “अभिप्रेरक’ एक व्यापक शब्द है जिसके अन्तर्गत उद्दीपन, चालक, तनाव, आवश्यकता एवं लक्ष्य आदि सभी आ जाते हैं। इसीलिए, अभिप्रेरकों को उनके विभिन्न स्वरूपों के अनुसार, विभिन्न नामों से भी जाना जाता है जैसे आवश्यकताएं, इच्छाएँ, तनाव, स्वाभाविक स्थितियाँ, निर्धारित प्रवृत्तिया, अभिवृत्तियाँ, रूचियाँ, स्थायी-उद्दीपक आदि-आदि। अभिप्रेरकों के विभिन्न स्वरूपों एवं नामों के कारण इनकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिकों में मत भिन्नता भी हैं। कुछ इन्हें जन्मजात अथवा अर्जित शक्तियाँ मानते हैं, कुछ इन्हें व्यक्ति की शारीरिक अथवा मनोवैज्ञानिक दशायें मानते हैं जबकि कुछ इन्हें निश्चित दिशाओं में कार्य करने वाली प्रवृत्तियाँ समझते हैं। किन्तु इस बा से सभी सहमत हैं कि, “अभिप्रेरक व्यक्ति को किसी विशिष्ट व्यवहार या क्रिया करने के लिए उत्तेजित करते हैं तथा उन्हें उद्देश्यों की प्राप्ति की ओर ले जाते हैं।”
एलिस क्रो के अनुसार, “अभिप्रेरकों को ऐसी आन्तरिक दशायें या शक्तियाँ माना जा सकता है जो व्यक्ति को निश्चित लक्ष्यों की ओर प्रेरित करती है। “
ब्लेयर, जोन्स एवं सिम्पसन के शब्दों में, “अभिप्रेरक हमारी आधारभूत आवश्यकताओं से उत्पन्न होने वाली वे शक्तियाँ हैं जो व्यवहार को दिशा और उद्देश्य प्रदान करते हैं। “
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