Contents
आभास लगान का अर्थ एंव परिभाषा | आभास लगान की विशेषताएँ | लगान एवं आभास लगान में अन्तर | आभास लगान का आधुनिक मत
आभास लगान (Quasi Rent )
आभास लगान शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम प्रो० मार्शल ने किया था। मार्शल ने आभास लगान शब्द का प्रयोग मानव निर्मित पूँजीगत वस्तुओं, जिनकी पूर्ति अल्पकाल में स्थिर या बेलोचदार हो सकती है, परन्तु दीर्घकाल में ये साधन परिवर्तनशील या लोचदार होते हैं, से प्राप्त होने वाली अल्पकालीन आय के रूप में किया है। जैसा कि हम जानते हैं, भूमि का लगान एक प्रकार का आधिक्य है जो भूमि की पूर्णत: बेलोचदार पूर्ति के कारण उत्पन्न होता है। मार्शल का कहना है कि भूमि तथा पूँजीगत वस्तुओं (जैसे मशीन, उपकरण आदि) में अन्तर केवल इतना है कि भूमि की पूर्ति अल्पकाल तथा दीर्घकाल दोनों में बेलोचदार है जबकि पूँजीगत वस्तुओं की पूर्ति अल्पकाल में बेलोचदार होती है और दीर्घकाल में लोचदार होती है, अतः अल्पकाल मैं बेलोचदार पूर्ति वाली पूँजीगत वस्तुओं के द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग बढ़ जाने से पूँजीगत वस्तुओं को जो अतिरिक्त आय प्राप्त होती है उसे ही आभास लगान कहते हैं।
मार्शल के शब्दों में, “आभास लगान उस अतिरिक्त आय को कहते हैं जो उत्पादन के निर्मित साधनों की पूर्ति के अल्पकाल में सीमित होने के कारण होती है।”
प्रो० सिल्वरमैन के अनुसार, “उत्पत्ति के उन साधनों की अतिरिक्त आय जिनकी पूर्ति दीर्घकाल में तो बढ़ायी जा सकती है परन्तु अल्पकाल में स्थिर रहती है, को आभास लगान कहते हैं।”
उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण— आभास लगान की धारणा को हम द्वितीय विश्वयुद्ध में जहाज निर्माण उद्योग के उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं। युद्ध के परिणामस्वरूप समुद्री जहाजों की माँग में अकस्मात् वृद्धि हो गयी थी, लेकिन पूर्ति को अल्पकाल में बढ़ाना सम्भव नहीं था क्योंकि नये जहाजों को बनाने में काफी समय लग जाता था, अतः विश्वयुद्ध के प्रारम्भिक वर्षों में जहाजों की बड़ी कमी हो गयी थी. परिणामतः उनके भाड़े बढ़ गए थे । पुराने तथा परित्यक्त जहाजों को पुनः उपयोग में लाया गया था। उनसे भी आय होने लगी। जो जहाज 1 पहले से ही काम में लगे थे उनका और अधिक गहन उपयोग होने लगा। इन जहाजों से होने वाली आय और भी बढ़ गयी, अतः इस प्रकार के जहाजों को अपनी सामान्य आय के ऊपर आधिक्य प्राप्त होने लगा। इस आधिक्य को आभास लगान कहते हैं। जहाजों को यह अतिरिक्त आय इसलिए हुई थी क्योंकि उनकी पूर्ति भूमि की पूर्ति की भाँति स्थिर थी, यद्यपि जहाजों की पूर्ति की यह स्थिरता अल्पकालीन ही थी। दीर्घकाल में नये-नये जहाजों का निर्माण किया गया। जहाजों की पूर्ति बढ़ गई। परिणामतः दीर्घकाल में जहाजों के भाड़े कम हो गये अर्थात् दीर्घकाल में जहाजों की पूर्ति बढ़ने पर जहाज सामान्य आय के ऊपर आधिक्य नहीं कमा सकेंगे। अतः आभास लगान की धारणा अल्पकालीन धारणा है। मार्शल ने इसे लगान के स्थान पर आभास-लगान इसलिये कहा है क्योंकि यह एक अस्थायी अतिरेक है, जो कि पूँजीगत वस्तुओं को केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है और दीर्घकाल में उनकी पूर्ति बढ़ जाने पर समाप्त हो जाता है। यहाँ पर यह भी उल्लेखनीय है कि आभास लागत सदैव शून्य के बराबर अथवा उससे अधिक होगा, इसके ऋणात्मक होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
आभास लगान की विशेषताएँ (Characteristics of Quasi-Rent)
(1) आभास लगान भूमि के लगान की भाँति ही एक अतिरेक है जो मानव द्वारा निर्मित पूँजीगत वस्तुओं को केवल अल्पकाल में, उनकी बेलोचदार पूर्ति होने के कारण प्राप्त होती है।
(2) आभास लगान एक अस्थायी आधिक्य है क्योंकि यह केवल अल्पकाल में प्राप्त होता है और दीर्घकाल में समाप्त हो जाता है।
(3) आभास लगान शून्य हो सकता है, किन्तु कभी भी ऋणात्मक नहीं हो सकता ।
लगान एवं आभास लगान में अन्तर
लगान उन सभी साधनों को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति भूमि की भाँति, अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों में ही स्थिर होती है। इसके विपरीत, आभास लगान पूँजीगत वस्तुओं अथवा मनुष्यकृत यन्त्रों, श्रम एवं साहस को प्राप्त होता है जिनकी पूर्ति अल्पकाल में तो स्थिर रहती है, परन्तु दीर्घकाल में बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार लगान अल्पकाल एवं दीर्घकाल दोनों में विद्यमान रहता है, जबकि आभास लगान केवल अल्पकाल में ही प्राप्त होता है तथा दीर्घकाल में यह समाप्त हो जाती है। लगान स्थायी प्रकृति का होता है जबकि आभास लगान एक अस्थायी घटक है।
आभास लगान का आधुनिक मत (Modern View of Quasi-Rent)
अधिकांश आधुनिक अर्थशास्त्री मार्शल के आभास लगान के विचार से सहमत नहीं हैं और वे इसे एक निरर्थक धारणा मानते हैं। आधुनिक अर्थशास्त्रियों में से अधिकांश अर्थशास्त्री “एक उत्पादक को परिवर्तनशील लागतों के ऊपर अल्पकाल में जो आधिक्य प्राप्त होता है उसे आभास लगान कहते हैं।” सूत्रानुसार –
आभास लगान = कुल आगम- कुल परिवर्तनशील लागतें
अल्पकाल में यदि किसी उत्पादक को वस्तु बेचने से परिवर्तनशील लागत के बराबर भी कीमत प्राप्त हो जाती है, तो वह उत्पादन जारी रखेगा क्योंकि उत्पादन बन्द करने पर भी उसे निश्चित लागत (Fixed Cost) का भार सहना पड़ता है। इसीलिए उत्पादक को अल्पकाल में परिवर्तनशील लागतों के अतिरिक्त जो आय प्राप्त होती है उसे आभास लगान कहते हैं। “
दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में सभी लागतें परिवर्तनशील लागतें होती हैं तथा कुल आगम एवं कुल लागत बराबर होती हैं, अतः आभास लगान समाप्त हो जाता है।
IMPORTANT LINK
- कबीरदास की भक्ति भावना
- कबीर की भाषा की मूल समस्याएँ
- कबीर दास का रहस्यवाद ( कवि के रूप में )
- कबीर के धार्मिक और सामाजिक सुधार सम्बन्धी विचार
- संत कबीर की उलटबांसियां क्या हैं? इसकी विवेचना कैसे करें?
- कबीर की समन्वयवादी विचारधारा पर प्रकाश डालिए।
- कबीर एक समाज सुधारक | kabir ek samaj sudharak in hindi
- पन्त की प्रसिद्ध कविता ‘नौका-विहार’ की विशेषताएँ
- ‘परिवर्तन’ कविता का वैशिष्ट (विशेषताएँ) निरूपित कीजिए।