व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

लाभ का अनिश्चितता वहन करने का सिद्धान्त | Uncertainty-Bearing Theory of Profit in Hindi

लाभ का अनिश्चितता वहन करने का सिद्धान्त | Uncertainty-Bearing Theory of Profit in Hindi
लाभ का अनिश्चितता वहन करने का सिद्धान्त | Uncertainty-Bearing Theory of Profit in Hindi

लाभ का अनिश्चितता वहन करने का सिद्धान्त (Uncertainty-Bearing Theory of Profit)

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन अमेरिका के अर्थशास्त्री प्रो० नाइट (Knight) ने किया था। इस सिद्धान्त के सम्बन्ध में प्रो० नाइट ने लिखा है कि- “जिस प्रकार पूँजीपति का कार्य प्रतीक्षा करना होता है उसी प्रकार साहसी का मुख्य कार्य उत्पादन सम्बन्धी सभी अनिश्चितताओं को सहन करना होता है, न कि जोखिम उठाना। अतः लाभ अनिश्चितताओं को सहन करने का पुरस्कार होता है तथा उसकी (लाभ की मात्रा अनिश्चितता उठाने की मात्रा पर निर्भर होती है। “

प्रो० नाइट ने जोखिमों को दो भागों में बाँटा है-

  1. बीमायोग्य जोखिम ( Insurable Risks)
  2. गैर-बीमायोग्य जोखिम (Non- Insurable Risks)

व्यवसाय में कुछ जोखिम ऐसे होते हैं जिनके विषय में साहसी, पहले से अनुमान लगा लेता है। ऐसे जोखिमों को ‘दृष्टव्य जोखिम’ (Foreseeable Risks) भी कहते हैं। इन जोखिमों के लिए साहसी बीमा करा लेता है, उदाहरण के लिए, आग, चोरी दुर्घटना आदि। चूँकि साहसी इन जोखिमों के लिए बीमा करा लेता है, अतः वह वास्तव में कोई जोखिम नहीं उठाता है। वास्तव में, जोखिम बीमा कम्पनी उठाती है। इसके लिए बीमा कम्पनी प्रीमियम की राशि निर्धारित कर देती है और साहसी को वह प्रीमियम की राशि बीमा कम्पनी के पास जमा करना होता है। चूँकि प्रीमियम की यह राशि वस्तु की उत्पादन लागत में सम्मिलित रहती है, अतः लाभ ऐसे बीमा कराये गये जोखिमों का पुरस्कार नहीं होता है।

गैर-बीमा योग्य जोखिम के विषय में साहसी पहले से अनुमान नहीं लगा सकता है, अतः इनका वह बीमा नहीं करा पाता है। इसका कारण यह है कि इन अदृश्य जोखिम (Unforeseeable Risks) के विषय में बीमा कम्पनी कोई आकलन नहीं कर सकती है। अतः ऐसे गैर-बीमा योग्य जोखिम अनिश्चित होते हैं। इसलिए प्रो० नाइट ने लाभ को अनिश्चितता वहन करने का पुरस्कार कहा है।

गैर-नीमा जोखिम निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

(1) माँग में परिवर्तन— उपभोक्ताओं की आय, रुचि, फैशन एवं जनसंख्या के आकार में परिवर्तन होने के कारण वस्तु की माँग में परिवर्तन हो जाता है। वस्तु की माँग में होने वाले इन परिवर्तनों से यह सम्भव कि साहसी को हानि हो जाये। इस प्रकार की हानि के लिए बीमा नहीं होता है ।

(2) व्यापार-चक्र- पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में तेजी एवं मंदी की घटनाएँ आती रहती है। मंदी के समय वस्तुओं की बिक्री न होने के कारण साहसी को हानि हो जाती है। मंदी के कारण साहसी को जो हानि होती है, इसका भी बीमा नहीं होता है।

(3) तकनीकी परिवर्तन— तकनीकी ज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर सुधार हो रहा है, अतः साहसी को बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मक शक्ति को बनाये रखने के लिए नई तकनीकों एवं मशीनों का प्रयोग करना पड़ता है। यदि साहसी नई तकनीक एवं मशीनों का प्रयोग अपनी वस्तु के उत्पादन में नहीं कर पाता है तो उसे हानि होती है। इस हानि के लिए भी वह बीमा नहीं करा पाता है।

इसी प्रकार से उपभोक्ताओं की रुचि, आय, स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतों, जनसंख्या के आकार में ढाँचागत परिवर्तन होते रहते हैं। सरकार की आर्थिक, औद्योगिक, राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों में परिवर्तन होते रहते हैं। इन सभी परिवर्तनों का व्यवसाय पर प्रभाव पड़ता है। इन परिवर्तनों के कारण यह सम्भव है कि साहसी को वस्तु के उत्पादन में हानि हो जाये। इन अनिश्चितताओं के लिए बीमा नहीं हो पाता है।

प्रो० नाइट का विचार है कि साहसी का मुख्य कार्य इन्हीं अनिश्चितताओं के कारण होने वाली हानि को सहन करना है। अतः साहसी का लाभ अनिश्चितता वहन करने का पुरस्कार होता है।

आलोचनाएँ (Criticisms ) — इस सिद्धान्त की प्रमुख आलोचनाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) लाभ केवल अनिश्चितता वहन करने का पुरस्कार नहीं होता है। इसका कारण यह है कि साहसी वस्तु के उत्पादन में अन्य महत्वपूर्ण कार्य; जैसे—उत्पादन सम्बन्धी योजना बनाना, नव-प्रवर्तनों को लागू करना आदि कार्यों को भी करता है। अतः लाभ केवल अनिश्चितता वहन करने का ही पुरस्कार नहीं होता बल्कि इन सभी कार्यों का पुरस्कार होता है।

(2) अनिश्चितता वहन करना उत्पादन का अलग से साधन नहीं होता है। वास्तव में लाभ साहसी की योग्यता का पुस्कार होता है।

(3) यह सिद्धान्त साहसी के एकाधिकारी लाभ की व्याख्या नहीं करता है। एकाधिकारी लाभ प्राप्त होने पर साहसी कोई अनिश्चितता का भार वहन नहीं करता है।

(4) अनिश्चितता सम्बन्धी तत्वों को मात्रा के रूप में ठीक-ठीक माप सकना भी कठिन होता है।

उपरोक्त आलोचनाओं के कारण यह सिद्धान्त भी मान्य एवं पूर्ण सिद्धान्त नहीं है।

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Anjali Yadav

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