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आशा-सर्ग का निर्माण प्रकृति की गोद में हुआ है

आशा-सर्ग का निर्माण प्रकृति की गोद में हुआ है
आशा-सर्ग का निर्माण प्रकृति की गोद में हुआ है

‘आशा-सर्ग का निर्माण प्रकृति की गोद में हुआ है इस कथन के औचित्य पर प्रकाश डालिए। अथवा ‘आशा-सर्ग में प्रकृति चित्रण नामक शीर्षक पर एक सारगर्भित लेख लिखिए। ‘आशा सर्ग में प्रकृति के विविध रूपों का अंकन हुआ है’ सोदाहरण विवेचना कीजिए।

भूमिका– काव्य और प्रकृति का अनादिकालीन सम्बन्ध हैं। हाँ, इतना अवश्य है कि युगानुसार भावनाएँ और मान्यताएँ बदलती रही हैं। इसी कारण कवियों के प्रकृति विषयक दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आ गया है। फलतः आज प्रकृति जड़ न रहकर चेतन सत्ता के रूप में स्वीकार की गयी है। आज का कवि उसके साथ अपने मनोनुकूल विविध सम्बन्धों की स्थापना करता है। आशा सर्ग का निर्माण ही प्रकृति की गोद में छाया लगता है क्योंकि इसका प्रारम्भ हो प्रकृति चित्रण से हुआ है। प्रकृति ही आशा की पृष्ठभूमि है। प्रसाद जी ने आशा सर्ग में प्रकृति के जिन विविध रूपों का चित्रण किया है, वे इस प्रकार हैं-

1. शुद्ध रूप में प्रकृति चित्रण- प्रकृति का शुद्ध रूप में चित्रण का अर्थ है उसका यथावत वर्णन करना। यहाँ कवि की दृष्टि प्रकृति के उस अंग पर होती है जिसका उसे वर्णन करना होता है। इस दृष्टि से ‘जलधिलहरियों का वर्णन दर्शनीय हैं-

नेत्र निमीलन करती मानों
प्रकृति प्रबुद्ध लगी होने।
जलधि लहरियों की अंगड़ाई
बार बार जाती सोने ॥

2. प्रकृति का चित्रण कोमल रूप में – प्रसाद ने प्रकृति के कोमल रूप का चित्रण किया है। आशा सर्ग में उसका मनोहर रूप ही देखने को मिलता है। प्रातः उदित हुए सूर्य की ‘पीताभा’ का वर्णन देखिए-

“नव कोमल आलोक बिखरता
हिम संसृति पर भर अनुराग
सित सरोज पर क्रीड़ा करता
जैसे मधुमय पिंग पराग ।।”

3. मानवीकरण के रूप में प्रकृति चित्रण- इस प्रकार के चित्रण में प्रकृति में मानवीय चेतना का आरोप किया जाता है। वह भी मानव की तरह चलती-फिरती, हँसती-खेलती प्रतीत होती है। उसमें मानवीय क्रिया-कलापों का दिग्दर्शन होता है। देखिए-

“सिंधु सेज पर धरावधू अब
तनिक संकुचित बैठी-सी।
प्रलय निशा की हलचल स्मृति में
मान किये-सी ऐंठी-सी।।”

इसमें जलप्लावन के उपरान्त जल से भिन्न पृथ्वी की समानता नववधू के साथ की गयी है।

4. संवेदनात्मक रूप में प्रकृति चित्रण – जब प्रकृति मानव के सुख-दुःखात्मक अनुभवों के अनुरूप दृष्टिगोचर होती है। तब उसका संवेदनात्मक चित्रण होता है। मनुष्य अपने दुःख में प्रकृति को भी दुःखी देखता है और हर्ष में आनन्दित । मनु अपने जीवन के विषय में सोचकर अत्यन्त विकल हो उठे थे, इस कारण दूर तक विस्तृत सागर भी उन्हें ‘अधीर’ दिखाई पड़ रहा था। देखिए-

नीचे दूर-दूर विस्तृत था
उर्मिल सागर व्यथित अधीर।
अन्तरिक्ष में व्यस्त उसी सा
रहा चन्द्रिका निधि गम्भीर।।

5. उद्दीपन के रूप में प्रकृति चित्रण- जहाँ पर भावों को उदीप्त करने के लिए प्रकृति का चित्रण किया जाता हो वहाँ वह चित्रण उद्दीपन के रूप में माना जाता है। आशा सर्ग में शीतल’ मन्द समीर मिलनोत्सुक मनु के मन को और अधीर कर देता है-

“धीर समीर परस से पुलकित
विकल हो चला श्रान्त शरीर।
आशा की उलझी अलकों से
उठी लहर मधु गन्ध अधीर।”

अभी तक मनु किसी जीवन साथी के मिलने की कल्पना में निभग्न थे, इतने में गन्धभीनी वायु ने उनके मन को और मदमस्त कर दिया। आशा सर्ग में प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण यही एक बार हुआ है।

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Anjali Yadav

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