व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण की तुलना | Comparison is on Between Monopoly Price and Perfect Competition in Hindi

एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण की तुलना | Comparison is on Between Monopoly Price and Perfect Competition in Hindi
एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण की तुलना | Comparison is on Between Monopoly Price and Perfect Competition in Hindi

एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य निर्धारण की तुलना (Comparison is on Between Monopoly Price and Perfect Competition)

एकाधिकारी सन्तुलन तथा स्पर्धात्मक सन्तुलन में जहाँ कुछ समानताएँ हैं, वहाँ उनमें अनेक असमानताएँ भी पायी जाती हैं। जहाँ तक समानताओं का प्रश्न है, एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता दोनों में फर्म का मुख्य उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना है और दोनों में ही फर्म उत्पादन के उस स्तर पर सन्तुलन में होती है जहाँ सीमान्त लागत, सीमान्त आगम के बराबर होती है (अर्थात् MC = MR)। इन समानताओं के बावजूद इन दोनों में निम्नलिखित अन्तर पाया जाता है-

(1) कीमत पर नियन्त्रण- पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत (i) क्रेताओं तथा विक्रेताओं की अधिक संख्या, (ii) एकरूप वस्तु का उत्पादन, (iii) बाजार का पूर्ण ज्ञान, (iv) उत्पत्ति के साधनों की पूर्ण गतिशीलता तथा (v) फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश या बहिर्गमन आदि विशेषताओं के कारण सारे बाजार में वस्तु की एक ही कीमत प्रचलित होती है और किसी भी फर्म का कीमत पर कोई नियन्त्रण नहीं होता बल्कि प्रत्येक फर्म ‘कीमत ग्रहण करने वाली’ होती है।

इसके विपरीत, एकाधिकार के अन्तर्गत (i) वस्तु का एक ही उत्पादक या विक्रेता होना, (ii) वस्तु का निकट स्थानापन्न न होना तथा (iii) उद्योग में नयी फर्मों का प्रवेश सम्भव न हो पाने के कारण एकाधिकारी फर्म का वस्तु की कीमत पर पूरा नियन्त्रण होता है और वह एक “कीमत निर्धारित करने वाली” फर्म होती है।

(2) माँग वक्र या औसत आगम वक्र – पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का माँग वक्र या औसत आगम (AR) वक्र पूर्णतया लोचदार होता है।

इसके विपरीत, एकाधिकारी फर्म का औसत आगम वक्र नीचे की ओर झुका हुआ होता है और सीमान्त आगम वक्र उसके भी नीचे स्थित होता है।

(3) साम्य की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता एवं एकाधिकार दोनों ही बाजार स्थितियों में फर्म का साम्य दस बिन्दु पर होता है जहाँ MC = MR होती है।

लेकिन पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत साम्य की स्थिति में, कीमत सीमान्त लागत (MC) के बराबर होती है जबकि एकाधिकारी में कीमत, सीमान्त लागत (MC) से अधिक होती है।

(4) सन्तुलन की दूसरी शर्त सम्बन्धी अन्तर- इन दोनों में एक अन्य महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि पूर्ण प्रतियोगिता में सन्तुलन तभी सम्भव है जबकि सन्तुलन मात्रा पर सीमान्त लागत (MC) बढ़ रही हो। परन्तु इसके विपरीत एकाधिकारी का सन्तुलन तीनों दशाओं में सम्भव है अर्थात् जब MC बढ़ रही हो अथवा स्थिर हो अथवा घट रही हो।

(5) फर्म का आकार – पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म का दीर्घकालीन सन्तुलन औसत लागत (AC)) वक्र के निम्नतम बिन्दु पर होता है जिसका अर्थ यह है कि दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता वाली फर्म अनुकूलतम आकार की होती है और वे अपना उत्पादन पूर्ण क्षमता के साथ करती है।

इसके विपरीत, एकाधिकारी फर्म का दीर्घकालीन सन्तुलन सामान्यतः उत्पादन के उस स्तर पर होता है जहाँ कि अभी औसत लागत (AC) रेखा घट रही होती है और अपने निम्नतम स्तर पर अभी पहुँची नहीं होती; जिसका अर्थ यह है कि एकाधिकारी फर्म ‘अनुकूलतम आकार से कम आकार की होती है ।

(6) लाभ की मात्रा – यद्यपि अल्पकाल में एकाधिकारी फर्म तथा प्रतियोगी फर्म दोनों ही असामान्य लाभ प्राप्त कर सकती हैं; परन्तु दीर्घकाल में प्रतियोगी फर्म को केवल सामान्य लाभ प्राप्त होता है; असामान्य नहीं, क्योंकि नयी फर्मे उद्योग में प्रवेश करके असामान्य लाभ को समाप्त कर देती हैं।

लेकिन इसके विपरीत एकाधिकारी फर्म दीर्घकाल में भी असामान्य लाभ प्राप्त करती हैं क्योंकि एकाधिकारी उद्योग में अनेक कारणों से नयी फर्मों का प्रवेश कर पाना सम्भव नहीं होता ।

(7) कीमत तथा उत्पादन की मात्रा – इन दोनों में एक अन्य महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि एकाधिकार में पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कीमत ऊँची होती है और उत्पादन मात्रा उसकी तुलना में कम होती है, बशर्ते कि दोनों बाजार स्थितियों में लागतें समान हों। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में AR = MC होती है जबकि एकाधिकार के अन्तर्गत AR>MC होती है।

(8) कीमत विभेद की सम्भावना – एकाधिकारी और पूर्ण प्रतियोगिता में एक अन्तर यह है कि पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता कीमत-विभेद नहीं कर सकता अर्थात् अलग-अलग उपभोक्ताओं से अलग-अलग कीमतें वसूल नहीं कर सकता क्योंकि उसकी वस्तु की माँग वक्र पूर्णतया लोचदार होती है।

इसके विपरीत एक एकाधिकारी फर्म कीमत-विभेद की नीति अपना सकती है अर्थात् एक ही वस्तु के लिये ग्राहकों से भिन्न-भिन्न कीमत वसूल कर सकती है क्योंकि (i) एक तो उसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं होता, (ii) उसका वस्तु की पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण होता है, (iii) वस्तु का कोई निकट स्थानापन्न नहीं होता, फलतः उसका माँग वक्र बहुत कम मूल्य-सापेक्ष होता है और (iv) उसकी वस्तु की माँग की लोच विभिन्न बाजारों में ‘भिन्न-भिन्न होती है, जिसका लाभ वह कीमत-विभेद के रूप में उठाता है।

(9) उपभोक्ता की बचत की मात्रा — इन दोनों में अन्तिम अन्तर यह है कि पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना मैं एकाधिकार के अन्तर्गत कीमत प्रायः ऊँची होती है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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