एक सफल अध्यापक के गुण लिखिये ।
एक सफल अध्यापक के गुण- अध्यापक की सफलता के क्या कार्य हो सकते है। इस बात पर अधिक शोध कार्य किया गया है और भारत में भी कुछ प्रयास किये गये है। कई शिक्षक अपने कार्य में पूरी तरह संलग्न हैं, और यही महत्वपूर्ण कारण है कि भविष्य की पीढ़ियां प्रगति कर रही हैं यद्यपि शिक्षक के कार्य को अब तक बहुत अधिक महत्व नहीं दिया गया है। ये शिक्षक अपने अपेक्षित कार्य में पूरी तरह जुटे हुए है। परन्तु कई बार वे यह नहीं समझ पाते है कि उनसे क्या अपेक्षित है? वे लोगों की अर्थहीन वे आलोचना के प्रति बहुत ही भावुक है और अपने शिष्यों के व्यवहार से चकित है। यह बहुत आवश्यक है कि शिक्षक को प्रशिक्षण काल में तथा उसके बाद इस बात का स्पष्ट बोध कराया जाय कि उनकी भूमिका क्या है? एंव क्या उनका समूह इस समाज के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है?
छात्र उन शिक्षकों को पसन्द करते है जिन्हें अपने विषय पर स्वामित्व के साथ विषयों की भी समझ हो, विचार स्पष्ट हो, अपने कार्य में कुशल हो तथा छात्रों को सही तरह से दिशा निर्देश दे सके, तथा जो छात्रों में रूचि लें उनकी व्यक्तिगत समस्याओं का समाधान निकालने में उनका सहयोग दे तथा मैत्रीपूर्ण स्वभाव होने के साथ-साथ कुछ सीमा तक कठोर भी हों तथा अपने कार्य को पूरे व्यवसायिक रूप से करे।
मेनन, अदावल, शेरी, तथा शर्मा ने भी इस क्षेत्र में अपने-अपने ढंग से काम किया, फिर भी वह समान निष्कर्ष पर पहुंचे।
एम.एस. बार एक सफल शिक्षक के लक्षण, सामान्य ज्ञान, कौशल तथा स्वभाव का अध्ययन करते हुए निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचे।
- अच्छी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
- अपने विषय का पूर्ण ज्ञान हो
- व्यावसायिक अभ्यास और तकनीकी का अच्छा ज्ञान हो
- मानव विकास तथा अधिगम का अच्छा ज्ञान हो
- स्पष्ट भाषा बोलने तथा लिखने में निपुण हो
- मानव सम्बन्धों को बनाये रखने में कुशल हो
- शोध तथा शिक्षा की समस्याओं का समाधान निकालने में कुशल हो
- प्रभावी कार्य करने का स्वाभाव हो
- छात्रों में रूचि लेता हो
- विषय में रूचि लेता हो
- शिक्षण में रूचि लेता हो
- विद्यालय तथा समुदाय में रूचि हो ।
- व्यावसायिक कार्यों में रूचि लेता हो
- व्यावसायिक उत्थान में रूचि हो
कोठारी आयोग ने कहा कि योग्यता ‘गुण’ प्रशिक्षण कार्यक्रम की जान है और इसकी कमी से अध्यापक शिक्षा न केवल एक वित्तीय बर्बादी होगी, वरन् यह शैक्षिक स्तर में गिरावट का बहुत ही महत्वपूर्ण कारण बन जायेगा। इस दृष्टि कोण को ध्यान में रखते हुये आयोग ने अध्यापक शिक्षण कार्यक्रम के गुणात्मक उत्थान के लिये कुछ आवश्यक निर्देश दिये हैं। वे इस प्रकार है-
1. विषय का पूर्ण नियोजित समायोजन या विश्वविद्यालयों का स्नातकोत्तर महाविद्यालयों के सहयोग से शिक्षण के मूल तत्वों के बारे में गहन अध्ययन करना।
2. विश्वविद्यालयों में सामान्य तथा व्यावसायिक शिक्षा को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप की जाये।
3. शिक्षा में अनुसंधान के विकास द्वारा व्यावसायिक शिक्षा को भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप की जाये।
4. शिक्षा की तकनीक में ऐसा सुधार किया जाये जिससे कि स्वअध्ययन तथा वाद-विवाद को पूरा स्थान मिल सके, और मूल्यांकन के तरीकों में सुधार किया जाये, जिससे कि आन्तरिक प्रयोगात्मक कार्य का सही तरीके से मूल्यांकन किया जा सके।
5. शिक्षण अभ्यास में सुधार किया जाये और इसे व्यापक कार्यक्रम बनाया जाये।
6. विशेष पाठ्यक्रमों तथा कार्यक्रम का विकास किया जाये।
7. विकासशील शिक्षा पद्धति में शिक्षक के बहुमुखी जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए हर शिक्षा पाठ्यक्रम में सुधार किया जाए।
आयोग के इस विचार के प्रति जो सबसे आलोचनात्मक बात है, वह यह है कि इसकी अधिकतर बातें या तो दोहरायी गयी हैं या फिर उनमें विरोधाभास है, और यह कोई ऐसा निर्देश नहीं देता जो कि भारत में अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम के लिये कोई ठोस आधार बन सके।
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