Contents
धूमिल का काव्य आद्योपान्त जनचेतना से व्याप्त है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
‘धूमिल जनचेतना के कवि हैं।’ उनकी रचनाओं के आधार पर इसकी समीक्षा कीजिए।
धूमिल: जनचेतना के कवि
धूमिल के काव्य संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ और उसके बाद ‘कल सुनना तक’ उनकी चेतना विकास के दौर से गुजरती हुई दिखायी पड़ती है। पहले वे श्रम प्रेम के भावुक कवि के रूप में दिखायी पड़ते हैं फिर आर्थिक विसंगति को काव्य के योग्य बनानेवाले प्रगतिशील कवि दिखायी पड़ते हैं और फिर भारतीय गाँवों में फैले हुए ग्रामीण के विविध रूपों को जनवादी दृष्टि से निरखने-परखनेवाले आम आदमी के कवि दिखायी पड़ते हैं। धूमिल की आरम्भिक कविताओं में रोमांस और कृषि कर्म को बहुत महत्त्व दिया गया है। रोमांस धीरे-धीरे काव्य के विषय से छूटकर शिल्प को नयी-नयी दिशा देने लगा किन्तु कृषि के प्रति धूमिल का लगाव अन्तिम कविताओं में वैज्ञानिक दृष्टि में परिवर्तित हो गया। अपनी इसी चेतना के कारण वे कविता में आम आदमी की स्थापना एक दशक पूर्व करने में समर्थ हो सके। उनका आम आदमी आज की नयी कहानी से इस अर्थ में भिन्न है कि उसका परिवेश और उसकी मानसिकता दोनों हिन्दी भाषा-भाषी प्रदेश के गाँवों की मानसिकता है।
‘मकान’ कविता में वह आम आदमी की चेतना को जाग्रत करता हुआ कहता है कि मकान आज के आदमी की आम समस्या है। किसी बड़े कस्बे या शहर में मकान बनवा लेना आसान नहीं है। आर्थिक तंगी के कारण हर आदमी परेशान है। यहाँ कवि जनवादी जरूरतों से जलता हुआ दिखायी देता है। पूरी कविता में ऐसे आदमी का अहसास उभरता है जो आर्थिक तंगी से परेशान होकर मकान बनवाने की बात सोचकर ही सन्त्रस्त है। कविता के बीच में आये कुछ बिम्बों में आम आदमी की आर्थिक मजबूरी और तेज हो जाती है। वह कहता है कि “जिनके संडास घरों में खासी/किवाड़ों का काम करती है।” धूमिल ने शहरी आदमी की तनहाई, परेशानी, बेकारी, पेंचीदगी, हविस, झेंप और बेहयायी का खुलासा करके उनका खाका खींच दिया है। ‘शहर का व्याकरण’ कविता में कवि ने राजनीतिक लहजे में आम आदमी की विवशता का वर्णन किया है। साधारण जनता का इतना अवमूल्यन हुआ है कि जिन्दा रहने के लिए फालतू बनना आवश्यक हो गया है। वह मध्यम वर्ग के आदमी की चापलूसी, विवशता और विदेशियों के सामने भीख माँग कर जिन्दा रहने पर तीखा व्यंग्य करता है।
‘मोचीराम’ धूमिल के शहरी अहसास की एकदम अलग कविता है। इसमें शहर या कस्बे का ऐसा मेहनतकश आम आदमी उभरता है जिसके सामने उसी की तरह गरीबी झेलते हुए निचले तबके के लोग हैं और दूसरी तरफ आत्मघाती दर्प के शिकार पूँजीवादी व्यवस्था की पेंदी में चिपके हुए लोग भी हैं। यहाँ धूमिल की जनवादी चेतना बिल्कुल साफ है। सवर्णता का बोध या जातीय मिथ्या अहंकार से मुक्त होकर कवि साधारण जन और टुटपुँजिये व्यवसायियों के बीच अर्थ के साथ-साथ मानसिक विभाजन की भी लकीर खींच देता है। वह कहता है-
“मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न बड़ा है
मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने मरम्मत के लिए खड़ा है। “
यहाँ यह स्पष्ट है कि ‘मोचीराम’ को हर आदमी जूते की नाप से बाहर नहीं दिखायी पड़ता। ऐसा इसलिए कि उसके पास चकत्तियोंवाले ऐसे जूते मरम्मत के लिए आते हैं जिनके पहननेवाले उसी के समान आर्थिक तंगी के शिकार हैं। दूसरे प्रकार के जूतों को पहननेवाले वे लोग हैं जो न तो अक्लमन्द हैं और न वक्त के पाबन्द। वे घण्टे भर जूते गठवा कर रोब मारते हुए कुछ सिक्के फेंक कर चले जाते हैं। मोचीराम के सामने उन बड़े लोगों के जूते आते ही नहीं जो जूते की नाप से बाहर हैं। कवि की दृष्टि में आम आदमी जिन्दा रहने के लिए पेशा कर रहा है। कोई राम नाम बेंचकर कमा रहा है तो कोई रण्डियों का पेशा करके। पेशे के स्तर पर हर आदमी भीड़ का एक हिस्सा है। यहाँ धूमिल जनवादी रुझान के कारण ही हर पेशे के .आदमी को एक ही जमीन पर लाकर खड़ा कर देते हैं। हर पेशा रुपये के लिए होता है, लेकिन पेशे की मानसिकता में जो फर्क होता है उसे धूमिल नजरअन्दाज कर जाते हैं मोचीराम सही मायने में एक आम आदमी है। उसके अन्दर एक बेचैनी है।
धूमिल ने व्यवस्था की विसंगतियों और विडम्बना को बड़ी गहराई तक पहुँचाया है। उसके यथार्थ को, उसके खोखलेपन को और नेताओं की लफ्फाजी को कविता का कथ्य बनाया है। व्यवस्था की खोड में बूढ़े और रक्तलोलुप मशालचियों को देखकर कवि भयभीत होकर कहता है-
“इतिहास की ताजगी
बनाये रखने के लिए
नौजवानों और सफल
मौतों की टोह में
उन्हें हमारी तलाश है।”
धूमिल ने नारी जागरण के लिए, उनमें नयी चेतना लाने के लिए सशक्त व्यंग्यों का प्रयोग किया है। यह सब कहते हुए उनकी खीझ बढ़ जाती है। ऐसे सन्दर्भों में वे गर्भपात, बलात्कार, योनि, सहवास, सम्भोग आदि शब्दों का प्रयोग करते हैं। इसी प्रकार मध्यवर्गीय व्यक्ति के प्रति भी उनके मन की खीझ व्यंग्यों में उभर कर सामने आती है। वे कहते हैं-
“मगर मैं जानता हूँ कि देश का समाजवाद
मालगोदाम में लटकती हुई
उन बाल्टियों की तरह है
जिस पर आग लिखा है
और उनमें बालू और पानी भरा है।”
जनवादी चेतना और विचारों का व्यवहार से सम्बन्ध न होने के कारण धूमिल कहीं उत्तेजक और कहीं निराशावादी हो जाते हैं। उन्होंने इसको बदलने की जरूरत महसूस की, लेकिन देखा कि तमाम लोग उसके विरुद्ध हैं तो कवि झल्लाकर कहने लगता है-
“मैंने एक एक को परख लिया है।
मैंने जिसकी पूँछ
उठाई है उसको मादा पाया है।”
धूमिल एक-एक को गिना भी देते हैं। उनमें तिजोरियों के दुभाषिये, वकील, वैज्ञानिक, अध्यापक, नेता, लेखक, कवि, कलाकार आदि सभी अपराधियों का संयुक्त परिवार है। कवि की दृष्टि में यह सभी जन-विरोधी हैं। इनके अन्दर सत्ता-विरोध और देश की जनता के प्रति प्रेम नहीं है। ये लोग समूचे वर्ग को जन-विरोधियों की गोद में ढकेलते हैं तथा साम्राज्यवादी सामन्ती पद्धति के पक्षधर हैं। इनसे असहमत होना ही उचित है। यह सत्य है कि निम्न पूँजीवादी मानसिकता मूलतः जन-विरोधी होती है लेकिन ऐतिहासिक विकास क्रम में इस वर्ग की बहुत बड़ी संख्या जनवादी चेतना के पक्ष में होती है।
IMPORTANT LINK
- पन्त की प्रसिद्ध कविता ‘नौका-विहार’ की विशेषताएँ
- पन्त जी के प्रकृति चित्रण की विशेषताएँ
- सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
- सुमित्रानन्दन पंत के काव्य के क्रमिक विकास
- सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?
- महाकवि निराला का जीवन परिचय एंव साहित्य व्यक्तित्व
- निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ- भावपक्षीय एंव कलापक्षीय
- निराला के छायावादी काव्य की विशेषताएँ
- महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
- महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन
Disclaimer