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अज्ञेय प्रयोगवादी कविता के प्रतिनिधि कवि हैं, सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
अथवा
“अज्ञेय प्रयोगवादी काव्य के प्रवर्तक हैं।” इस कथन को स्पष्ट करते हुए अज्ञेय की कविता का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
“अज्ञेय प्रयोगवाद के सशक्त हस्ताक्षर हैं।” उनकी रचनाओं के आधार पर सिद्ध कीजिए।
अथवा
प्रयोगवादी काव्यधारा में अज्ञेय जी का स्थान निर्धारित कीजिए।
अनुभूति एवं अभिव्यक्ति काव्य के दो प्रमुख पक्ष हैं। परम्परा से हटकर काव्य के इन दोनों क्षेत्रों में नवीन प्रयोगों द्वारा हिन्दी काव्य को नया मोड़ देनेवाले कवियों में सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय‘ का नाम प्रमुख है। अज्ञेय प्रयोगवाद के प्रवर्तक कवि हैं। 1943 ई० में ‘तारसप्तक’ के प्रकाशन के साथ हिन्दी प्रयोगवादी कविता का जन्म हुआ। छायावाद एवं क्रान्तिवाद के पुराने मापदण्डों के विरुद्ध ‘तारसप्तक’ के साथ नयी कविता का प्रादुर्भाव हुआ। इस क्रान्ति एवं नवप्रयोग के अग्रदूत अज्ञेय जी ही हैं।
अज्ञेय महान कवि के साथ-साथ कुशल उपन्यासकार, कहानीकार एवं अच्छे निबन्ध लेखक तथा उच्च कोटि के सम्पादक भी हैं। अपने सशक्त, नवीन, मौलिक एवं सक्षम लेखनी द्वारा इन्होंने अनेक काव्य कृतियों का प्रणयन किया है। उनके काव्य संग्रहों में ‘अग्निदूत’, ‘चिन्ता’, ‘इत्यलम्’, ‘हरी घास पर क्षण भर’, ‘बावरा अहेरी’, ‘इन्द्र धनुष रँदि हुए’, ‘कितनी नावों पर कितनी बार’ आदि प्रमुख हैं।
प्रयोगवादी काव्य की विशेषताएँ
यद्यपि समीक्षकों ने अज्ञेय की कविताओं को प्रेमवाद की संज्ञा दी किन्तु स्वयं अज्ञेय ने काव्य के क्षेत्र में अपने नव प्रयोगों को ‘किसी वाद’ की सीमा से परे माना है। उनके अनुसार, “प्रयोग का कोई वाद नहीं होता। प्रयोग अपने आप में कोई इष्ट नहीं है। वह साधन है और दोहरा साधन है क्योंकि एक ओर तो वह उस सत्य को जानने का साधन है जिसे कार्य प्रेषित करता है और दूसरे वह उस प्रेषण की क्रिया का साधन है। प्रयोग द्वारा कवि अपने सत्य को अच्छी तरह जान और व्यक्त कर सकता है।”
अज्ञेय की कविता में जीवन की नवीन सम्भावनाओं एवं नवीन मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए नव प्रयोगों की प्रधानता है। शिल्प के क्षेत्र में उन्होंने नये चित्रों, प्रतीकों एवं अलंकारों द्वारा अभिव्यक्ति को अपेक्षाकृत अधिक सम्प्रेषणशील बनाने का प्रयास किया है।
वर्ण्य-विषय की विविधता एवं व्यापकता- जीवन की समग्रता का सहज बोध तथा उसे अनुभूति की गहराई तक ले जाकर अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास अज्ञेय के कवि-कर्म की एक सर्व सराहनीय विशेषता है। छायावादी एवं प्रगतिवादी कवियों द्वारा अनछुए जीवन के अनेक पहलुओं को उन्होंने अपनी कविता का विषय बनाया। उनके वर्ण्य विषयों को हम तीन चरणों में देख सकते हैं-
“छायाएं मानवजन की
दिशाहीन
नव और पड़ी काल सूर्य के रथ को
पहियों के ज्यों और टूटकर
बिखर गये हों
दसों दिशाओं में।”
तीसरे चरण की कविताओं में आधुनिक बोध की गहराई बढ़ गयी है। भविष्य में अनिश्चितता ने बुद्धिजीवी व्यक्ति को नियतिवादी और मृत्योन्मुखी बना दिया है। फलतः यान्त्रिक जीवन के संघर्ष एवं अस्तित्त्व पर संकट बोध से उत्पन्न नियतिविहीनता तीसरे चरण की कविताओं का लक्षण है।
कल्पनाशीलता के स्थान पर अति यथार्थ का आग्रह- छायावाद की कल्पनाशीलता अथवा प्रगतिवाद के सामाजिक या वास्तविक यथार्थवाद के स्थान पर प्रयोगवादी कविताओं की अति यथार्थवादी या नग्न यथार्थवादी प्रवृत्ति अज्ञेय की विशेषता है।
प्रकृति की छुद्रता का उद्घाटन- प्रकृति के सुकुमार, मृदुल, मनोरम सौन्दर्य-चित्रण के स्थान पर अज्ञेय ने उसकी छुद्रता का उद्घाटन किया है। अज्ञेय ने छायावादी शीतल चाँदनी का उपहार एवं बौद्धिकता का नग्न यथार्थ रूप ‘शिशिर की एकनिशा’ में दर्शाया है-
“बेचता है चांदनी सित,
मठ यह आकाश निर्वाद गहन विस्तार,
शिशिर के एक निशा की शान्ति है निस्सार।”
लघुता के प्रति दृष्टिपात- प्रयोगवादी कवियों ने अपनी असामाजिक एवं अहंवादी प्रवृत्ति के अनुरूप मानव जगत् के लघु एवं क्षुद्र प्राणियों पर दृष्टिपात किया और प्रकृति की कुरूप एवं उपेक्षित लघु वस्तुओं को अपने काव्य का विषय बनाया।
अहंवादिता- अस्तित्ववादी दर्शन में विश्वास के कारण अज्ञेय के काव्य में अहंवादिता व व्यक्तिनिष्ठता के भी दर्शन होते हैं। यह अहंवाद निष्क्रियवादिता एवं अस्तित्व संकट की शंकालुता के रूप में चित्रित हुआ है-
“तू अन्तहीनकाल के लिए फलक पर टाँक दे
क्योंकि यह मांग मेरी मेरी है कि प्राणों के
एक जिस बुलबुले की ओर मैं हुआ हूँ उदय, यह
अन्तहीन काल तक मुझे खींचता रहे…।”
अज्ञेय का व्यक्तिवाद कहीं-कहीं समष्टिगत चेतना से भी युक्त है-
‘नदी के द्वीप’ से उसी रेत में होकर फिर छनेंगे हम,
जायेंगे हम कहीं फिर पैर टेकेंगे।
व्यंग्यात्मकता- प्रयोगवादी कविता की प्रमुख विशेषता व्यंग्यात्मकता अज्ञेय की कविताओं में भी मुखर है। ‘साँप’ कविता इसका उदाहरण है।
रागात्मक तटस्थता- रागात्मक तटस्थता प्रयोगवाद की अन्य विशेषता है। अज्ञेय भी आवेश, आवेग, भावुकता एवं काल्पनिकता से हटकर लिखते हैं—
“मैं देख रहा हूँ
झरी, फूल से पंखुरी,
मैं देख रहा हूँ अपने को ही झरत,
मैं चुप हूँ, वह मेरे भीतर बसन्त गाता है। “
जीवन के प्रति आस्था- प्रयोगवादी अज्ञेय मानव अस्तित्व एवं जीवन की इच्छा में आस्था रखते हैं-
“जो जहाँ भी पिसता है
पर हँसता नहीं, न मरता है-
पीमुति श्रमरत मानव अविजित दुर्जेय मानव…।”
बौद्धिकता एवं शुष्कता- अज्ञेय के काव्य में अनुभूति कम एवं बौद्धिक तत्त्व शुष्कता अधिक है। प्रेमाभिव्यक्ति में भी विवेक साथ नहीं छोड़ता-
“क्योंकि तपस्या/ चमक नहीं है वह है गलना/गलकर मिट जाना-मिल जाना”
वासना की नग्न अभिव्यक्ति- यथार्थ के प्रति अत्यधिक आग्रह के कारण वासना की अभिव्यक्ति में भी अज्ञेय तथा अन्य प्रयोगवादी कवियों में तनिक भी झिझक नहीं है-
“आह मेरा श्वास है उत्तम,
धमनियों में उमड़ आयी है लहू की धारा
प्यार है अभिशप्त-तुम कहाँ हो नारी?”
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