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निजीकरण क्या है ? शिक्षा में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव

निजीकरण क्या है ? शिक्षा में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव
निजीकरण क्या है ? शिक्षा में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव

निजीकरण क्या है ? शिक्षा में इसके सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों की विवेचना कीजिए। 

निजीकरण (Privatization)

पीटर एफ० ड्रेकर के द्वारा सन् 1960 में अपनी पुस्तक ‘दॉ ऐज ऑफ डिस्कण्टीन्यूटी’ में निजीकरण शब्द के प्रथम बार प्रयोग करने का सन्दर्भ मिलता है। इसके उपरान्त उद्योग व्यापार तथा शिक्षा के क्षेत्रों में इस विचार को व्यावहारिक रूप प्रदान किया जाने लगा। आज शिक्षा के क्षेत्र में निजी निवेश अत्यन्त तीव्र गति से बढ़ रहा है तथा इसने एक उद्योग का स्वरूप ले लिया है। निजीकरण से तात्पर्य उन क्रियाओं अथवा उद्यमों, जिन्हें पूर्व में सरकार द्वारा संचालित या प्रबन्धित किया जाता था, को किसी निजी उद्यमी अथवा संस्था को संचालन व प्रबन्धन हेतु हस्तान्तरित करने की प्रक्रिया से है। व्यावहारिक रूप में निजीकरण से तात्पर्य स्वामित्व में एक शिक्षक परिवर्तन अर्थात् सरकारी स्वामित्व के स्थान पर निजी स्वामित्व को स्वीकार करना । निजीकरण सरकारी व्यवस्था में व्याप्त अकर्मण्यता की स्थिति में सुधार लाने की सफलता की परिणति कही जा सकती है।

निजीकरण का शिक्षा में सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव एवं निजीकरण की प्रासंगिकता (Positive and Negative Effect of Privatization in Education and Relevancy of Privatization)

उदारवाद ने ही सत्ता के केन्द्रीकरण का प्रतिनिधित्व करने वाली किसी व्यवस्था का विरोध करने वाली शक्तियों को घनीभूत करके स्वतन्त्रता के विरुद्ध कार्य करने वाली व्यवस्था का खण्डन करने का साहस किया है। सामाजिक क्षेत्र में इसने धर्मनिरपेक्षता को पोषित करने व जाति व्यवस्था का खंडन किया है, आर्थिक क्षेत्र में यह मुक्त व्यापार को बढ़ावा देता है तथा राजनैतिक क्षेत्र में यह संसदीय लोकतन्त्र को पुष्ट करता है। सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी में पहले चर्च तथा फिर राज्य के प्राधिकारवाद के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण का उदय हुआ जो उन्नीसवीं एवं बीसवीं शताब्दियों में अन्य क्षेत्रों में फैल गया। शिक्षा का क्षेत्र भी इस परिवर्तन से अछूता नहीं रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में उदारवाद की प्रविष्टि के फलस्वरूप शिक्षा के अर्थ व स्वरूप के साथ-साथ शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम व विधियों को एक सकारात्मक परिवर्तन के दौर से गुजरना पड़ा है।

भारत में निजीकरण की प्रक्रिया सभी क्षेत्रों में प्रवेश कर चुकी है। आज केन्द्र व राज्यों की सरकारों के द्वारा बन्धनकारी नियमों को काफी हद तक निरस्त अथवा शिथिल कर दिया गया है। शिक्षा के क्षेत्र में यह प्रवृत्ति सभी स्तरों पर अत्यन्त तेजी से विकसित हो रही है। पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक तथा माध्यमिक स्तरों पर खुली अनेक निजी शिक्षा संस्थाओं के साथ-साथ अनेक निजी महाविद्यालय व निजी विश्वविद्यालय खोलने के प्रकरण दृष्टान्त बन चुके हैं। सरकार के द्वारा स्ववित्त पोषित मान्यता देने की अवधारणा ने निजीकरण को तेजी से पंख पसारने के अवसर दिये हैं। प्रौद्योगिकी, प्रबन्धन तथा अध्यापक शिक्षा के क्षेत्रों में तो निजी शिक्षा संस्थाओं की बाढ़ सी आ गई है।

शिक्षा के निजीकरण के लाभ तथा हानि दोनों ही दृष्टिगोचर हो रहे हैं। एक ओर जहाँ कुछ उच्चस्तरीय निजी संस्थाएँ प्रतिस्पर्धा के इस युग में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्रदान करने की दिशा में सक्रिय हैं वहीं दूसरी ओर अनेक निजी शिक्षा संस्थाएँ अपनी छद्म व स्तरहीन योजनाओं के माध्यम से छात्रों व अभिभावकों का आर्थिक शोषण कर रही हैं।

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Anjali Yadav

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