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शिक्षा के अभिकरण या साधनों का अर्थ, वर्गीकरण और उनके महत्त्व

शिक्षा के अभिकरण या साधनों का अर्थ, वर्गीकरण और उनके महत्त्व
शिक्षा के अभिकरण या साधनों का अर्थ, वर्गीकरण और उनके महत्त्व

शिक्षा के अभिकरण अथवा साधन से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के साधनों का वर्गीकरण कीजिए और उनके महत्त्व पर प्रकाश डालिए। 

शिक्षा के अभिकरण या साधनों का अर्थ (Meaning of the Agency of Education)

शिक्षा के साधन या अभिकरण शब्द को “एजेन्सीज” (Agencies) “शिक्षा देने वाली संस्था” या व्यवस्था विधायक निमित्त के अर्थ में प्रयोग किया जाता है। डॉ. सुबोध अदावल ने इसे स्पष्ट करते हुए लिखा है- “शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति के प्रयत्न में अनेक छोटे-छोटे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है, इन्हें शिक्षा के साधन कहते हैं।” सीताराम चतुर्वेदी का विचार है, “जिन व्यक्तियों, संस्थाओं, शक्तियों, साधनों तथा व्यवस्था केन्द्रों द्वारा या उनकी ओर से शिक्षा दी जाती है, उन्हें शिक्षा केन्द्र या अभिकरण कहते हैं। शिक्षा के साधन के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बी. डी. भाटिया ने लिखा है- “समाज ने शिक्षा के कार्यों को सम्पादित करने के लिए अनेक विशिष्ट संस्थाओं का विकास किया है। इन्हीं संस्थाओं को शिक्षा के साधन के रूप में जाना जाता है।”

शिक्षा के साधनों का वर्गीकरण (Classifications of the Agencies of Education)

शिक्षा प्राप्ति के समस्त अभिकरणों को शिक्षाशास्त्रियों ने निम्न वर्गों में विभाजित-

  1. शिक्षा के औपचारिक या सविधिक अभिकरण ।
  2. शिक्षा के अनौपचारिक या अविधिक अभिकरण ।
  3. शिक्षा के निरौपचारिक या औपचारिकेत्तर अभिकरण ।
(1) शिक्षा के औपचारिक अभिकरण (Formal Agencies of Education)

औपचारिक अभिकरण उन संस्थाओं अथवा संगठनों को कहते हैं जो नियमानुसार संगठित होते हैं। अन्य शब्दों में प्रत्यक्ष रूप से व्यवहार में परिवर्तन का दायित्व ग्रहण करने वाले अभिकरण औपचारिक अभिकरण का एक सर्वप्रमुख उदाहरण हैं। जहाँ राज्य अथवा राज्य के शिक्षा विभाग अथवा किसी विद्वत परिषद् द्वारा निर्धारित योजना अथवा नियम के अनुसार किसी के विशेष क्रम से शिक्षा दी जाती है। विद्यालय के अतिरिक्त औपचारिक अभिकरण क्षेत्र में विचार गोष्ठियाँ, विद्वत् गोष्ठी, समितियाँ, सभाएँ, विशेष प्रशिक्षण केन्द्र, सम्मेलन और संघ आते हैं। इससे भी अधिक प्रभावशाली औपचारिक अभिकरण चित्रशाला और मेले हैं, जहाँ प्रत्यक्ष दर्शन और सम्प्रेषण से अत्यन्त ठोस और व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त होता है। सार्वजनिक रूप से औपचारिक अभिकरणों में धार्मिक संस्थाएँ, मंठ, विहार, मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर आदि आते हैं, जहाँ प्रत्यक्ष अनुभव और अनुकरण से लोग धार्मिक पूजा तथा अनुष्ठान के कर्मकाण्ड का पूरा व्यवहार सीख जाते हैं।

औपचारिक अभिकरण में समाज के उत्तरदायी लोग नई पीढ़ी को वांछित दिशा में ले जाने के लिए शिक्षा के लक्ष्य निर्धारित करते हैं। इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए योजना बनायी जाती है। निश्चित योजना हेतु अध्यापक नियुक्त किए जाते हैं। अध्यापकों तथा छात्रों के कार्यों का सुनिश्चित विभाजन होता है। उनकी निश्चित भूमिका होती है जिसके अनुरूप उनके बीच परस्पर क्रिया चलती है।

औपचारिक अभिकरणों का महत्त्व- शिक्षा की दृष्टि से औपचारिक अभिकरणों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। व्यक्ति को सभी प्रकार का व्यवस्थित ज्ञान इन्हीं की सहायता से प्राप्त होता है। एक तरह से सभी के शैक्षिक उद्देश्यों और शैक्षिक कार्यक्रमों की पूर्ति के साधन औपचारिक अभिकरण ही हैं। विविध प्रकार का ज्ञान व्यक्ति को इन साधनों से प्राप्त होता है। इसके लिए समाज और शासन के विभिन्न प्रकार के शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की है। प्राथमिक विद्यालय से लेकर सभी प्रकार के शिक्षा केन्द्रों में छात्रों को शिक्षा दी जाती है। विभिन्न प्रकार के प्राविधिक और व्यावसायिक शिक्षा केन्द्रों में छात्र अपनी रुचि और क्षमता के आधार पर शिक्षा प्राप्त करके अपने स्वावलम्बी जीवन की शुरुआत करते हैं। औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था छात्रों की आयु और योग्यता के आधार पर क्रमिक रूप में की जाती है जिससे व्यक्ति का विकास एक निश्चित रीति से होता है। अनौपचारिक साधनों के समान कहीं का रोड़ा और कहीं का ईंट जोड़कर व्यक्तित्व का निर्माण नहीं किया जाता है। योजनाबद्ध रीति से विकसित व्यक्तित्व समाज और देश के लिए उपयोगी सिद्ध होता है। इस दृष्टि से ये अभिकरण महत्त्वपूर्ण है। औपचारिक अभिकरणों द्वारा प्रदत्त शिक्षा से ही समाज और देश का निर्माण सम्भव होता है। लोक प्रशासन का प्रशिक्षण व्यक्तियों को औपचारिक अभिकरणों से प्राप्त होता है। राष्ट्र की नियोजित प्रगति औपचारिक अभिकरणों से ही यह सम्भव है।

(2) शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण (Informal Agencies of Education)

अनौपचारिक अभिकरण उन अभिकरण को कहते हैं जो प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन करते हैं। मनुष्य ने इन अभिकरणों को विशेष रूप से शिक्षा कार्य की दृष्टि से निर्मित नहीं किया, वरन् इनसे अप्रत्यक्ष रूप में शिक्षा कार्य में सहायता मिलती है। परिवार, समुदाय, समाज, चलचित्र, राज्य, आकाशवाणी, दूरदर्शन, नाटक, खेल-कूद, समाचार पत्र, स्काउटिंग, राष्ट्रीय सेवा योजना, नेशनल कैडेट कोर, क्लब आदि अनौपचारिक अभिकरणों के उदाहरण हैं। अनौपचारिक अभिकरण का निश्चित स्थान तथा समय नहीं होता। विद्यार्थियों की आयु तथा योग्यता के अनुसार पाठ्य सामग्री सुनिश्चित नहीं होती। अनौपचारिक अभिकरणों में न निश्चित शिक्षक होते हैं और न ही निश्चित शिक्षार्थी अनौपचारिक अभिकरणों के उद्देश्य लिपिबद्ध नहीं होते। उनके लक्ष्यों एवं कार्यक्रमों में भी परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं, परन्तु सुनिश्चित नहीं होते।

अनौपचारिक अभिकरणों का महत्त्व- अनौपचारिक अभिकरणों से प्राप्त होने वाली शिक्षा के लिए व्यक्ति को प्रयास करना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आयु तथा योग्यता के अनुसार चाहे जहाँ कहीं अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त कर सकता है। अनौपचारिक शिक्षा के विद्यालय और शिक्षक हर जगह हैं। यह अवश्य है कि इस प्रकार के विद्यालय और शिक्षक दिखाई नहीं देते। अनौपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को अलग से धन की व्यवस्था नहीं करनी होती। वह बाजार में सामान खरीदते समय, मेले में घूमते समय, पानी में भीगते समय, सड़क पर चलते समय, सिनेमा देखते समय विभिन्न प्रकार का अनुभव प्राप्त करता है जिससे उसके व्यवहार में वांछित परिवर्तन होता है। व्यक्ति को सेवाभाव और नैतिक आदर्शों की प्रेरणा अधिकतर अनौपचारिक साधनों से ही प्राप्त होती है। अनौपचारिक अभिकरणों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने का क्रम मृत्यु तक चलता रहता है।

(3) शिक्षा के निरौपचारिक अभिकरण (Non-formal Agencies of Education )

इसे गैर-अनौपचारिक तथा औपचारिकेत्तर आदि नामों से भी जाना जाता है। शिक्षा में इस अभिकरण का प्रयोग औपचारिक शिक्षा के विरोध में किया जा रहा है। औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था और विधि-विधान के कारण व्यक्तित्व को जिस प्रकार मुक्त्यात्मक ढंग मिलनी चाहिए, नहीं मिल पाती। अनौपचारिक अभिकरणों के द्वारा व्यक्तित्व का विकास होता है, ज्ञान की अपूर्व वृद्धि होती है और समाज हित सम्बन्धी कार्यों को करने की प्रेरणा मिलती है। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र पत्राचार, शिक्षा संस्थान, रोजगार देने वाले संस्थान, समाज कल्याण केन्द्र, रेडियो, दूरदर्शन आदि इस प्रकार के अभिकरण के उदाहरण हैं।

औपचारिकेत्तर अभिकरण दो प्रकार के हैं- सक्रिय अन्योन्य क्रिया के अभिकरण और निष्क्रिय अन्योन्य क्रिया के अभिकरण । सक्रिय अन्योन्य क्रिया में द्विमार्गी संचार होता है जबकि निष्क्रिय अन्योन्य क्रिया में एकमार्गी संचार होता है, केवल एक पक्ष सक्रिय होता है। प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र, पत्राचार शिक्षा संस्थान रोजगार देने वाले संस्थान समाज कल्याण केन्द्र, अवकाशकालीन कार्य-कलाप आदि सक्रिय अन्योन्य क्रिया के अभिकरण हैं क्योंकि इनके द्वारा लोगों के बीच पारस्परिक अन्तर्क्रिया होती है। पत्र-पत्रिकाएँ, चलचित्र, रेडियो, दूरदर्शन आदि के माध्यम से जो शिक्षा प्राप्त होती है, उसमें एक सक्रिय होता है और दूसरा निष्क्रिय एकमार्गी संचार के कारण ये निष्क्रिय अन्योन्य क्रिया के उदाहरण कहलाते हैं।

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Anjali Yadav

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