शिक्षाशास्त्र / Education

निबन्धात्मक एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ | निबन्धात्मक परीक्षण के प्रकार | वस्तुनिष्ठ परीक्षण के गुण-दोष

निबन्धात्मक एवं वस्तुनिष्ठ परीक्षण से आप क्या समझते हैं? दोनों परीक्षणों के गुण-दोष बताइए ।

निबन्धात्मक (व्यक्तिनिष्ठ) परीक्षण- विद्यालय परीक्षा में सदियों से निबन्धात्मक परीक्षणों का उपयोग होता आ रहा हैं कतिपय दोष होते हुए भी निबन्धात्मक परीक्षण अपने गुणों की प्रचुरता के कारण वर्तमान परीक्षा प्रणाली में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। इन परीक्षणों से छात्रों की विषय वस्तु के ज्ञान के संगठन, प्रस्तुतीकरण, तार्किक चिन्तन, निर्णायन, सृजन आदि क्षमताओं का मूल्यांकन होता है। सिम्स ने लिखा है, “निबन्धात्मक परीक्षण एक समस्या मूलक स्थिति का सापेक्षिक रूप से स्वतंत्र एवं विस्तृत प्रत्युत्तर है जो छात्र के मानसिक अनुभवों की संरचना, गतियों एवं प्रणाली के सम्बन्ध में सूचना प्रदान करता है। “

निबन्धात्मक परीक्षाओं (परीक्षणों) का अर्थ:- निबन्धात्मक परीक्षा का तात्पर्य उस परीक्षा से है जिसमें प्रश्नों की बनावट इस प्रकार की होती है जिससे उनके उत्तर, निबन्ध का रूप ग्रहण कर लेते हैं। इसीलिए यह परीक्षा निबन्धात्मक परीक्षा के नाम से जानी जाती है। इसमें बालकों के सुलेख, अभिव्यक्ति, लेखन शैली, भाषा आदि का अत्यधिक प्रभाव है। क्योंकि लिखित परीक्षाओं में निबन्धात्मक परीक्षायें सबसे प्राचीन हैं तथा इनका प्रचलन भी बहुत पहले से चला आ रहा है। अतः इन्हें प्राचीन शिक्षा पद्धति अथवा परम्परागत परीक्षाओं के नाम से पुकारा जाता है। इन परीक्षाओं में प्रश्नों के अंकन में परीक्षक के दृष्टिकोण, स्वभाव तथा रुचि का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। अतः इन्हें व्यक्तिनिष्ठ परीक्षाओं के नाम से पुकारा जाता है क्योंकि इन परीक्षाओं के प्रश्नों के उत्तर बड़े-बड़े व निबन्धों के रूप में होते हैं, अतः इन्हें कभी-कभी दीर्घ उत्तरीय परीक्षायें भी कहा जाता है। इनके कुछ उदाहरण हैं-

  1. शिक्षा से क्या आशय हैं? शिक्षा की परिभाषा लिखिए।
  2. मापन और मूल्यांकन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा में मूल्यांकन के उद्देश्य और कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  3. माध्यमिक शिक्षा की प्रमुख समस्याओं की विवेचना कीजिए ।

निबन्धात्मक परीक्षण के प्रकार

 (i) दीर्घ उत्तरात्मक परीक्षण (ii) लघु उत्तरात्मक परीक्षण

(i) दीर्घ उत्तरात्मक परीक्षण- दीर्घ उत्तरात्मक परीक्षण जैसा कि नाम से स्पष्ट है, में प्रश्नों के उत्तर विस्तृत होते हैं। बहुणा प्रश्नों के उत्तर कई-कई पृष्ठों के होते हैं इसमें परीक्षार्थी प्रश्नों के उत्तर देने के लिए स्वतन्त्र होता है। इस परीक्षण में प्रश्नों की संख्या मुख्यत: 9 या 10 होती है अथवा इससे भी अधिक प्रश्न हो सकते हैं इनमें से 65 या 6 प्रश्नों के उत्तर छात्रों को निर्धारित समय में लिखने पड़ते हैं।

गुण

  1. ये परीक्षण मितव्ययी हैं क्योंकि इसकी रचना में समय एवं धन की बचत होती है ।
  2. इन परीक्षणों में छात्रों को उत्तर देने एवं भावना प्रकाशन की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है।
  3. इनके द्वारा बालकों के तथ्यात्मक ज्ञान की परीक्षा होती है ।
  4. इसमें छात्रों की लेखन शक्ति की क्षमता बढ़ती है तथा भाषा एवं शैली का परिमार्जन होता है ।
  5. छात्रों में स्वतन्त्र लेखन की क्षमता विकसित होती है।
  6. ये परीक्षण छात्र एवं शिक्षक दोनों के लिए उपयोगी हैं।
  7. इनमे छात्रों की स्मरण शक्ति विकसित होती है।.

(ii) लघु उत्तर परीक्षण – ये परीक्षण निबन्धात्मक परीक्षण के संशोधित एवं लघु रूप हैं। इस परीक्षण में ऐसे प्रश्नों की रचना की जाती है। जिनके उत्तर छोटे होते हैं इसीलिए इन्हे लघुउत्तर परीक्षण कहा जाता है। इसके अतिरिक्त इस परीक्षण में प्रश्नों के उत्तर एक निर्धारित सीमा के अन्दर ही लिखने पड़ते हैं अतः ये नियन्त्रित उत्तर परीक्षण भी कहलाते हैं।

निबन्धात्मक परीक्षणों के गुण-

  1. इस परीक्षण में दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नों (निबन्धात्मक परीक्षण) की अपेक्षा अधिक प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
  2. ये पाठ्यक्रम के अधिकांश भाग को अधिग्रहीत करते हैं।
  3. इस परीक्षण में प्रश्नों के उत्तर भी सुनिश्चित होते हैं। इससे ये अधिक विश्वसनीय होते हैं।
  4. ये परीक्षण व्यक्तिगत मूल्यांकन के दोषों से भी मुक्त हैं।
  5. इनका अंकन अधिक वस्तुनिष्ठता से किया जा सकता है।
  6. ये छात्रों की उपलब्धि की अधिक व्यापकता से जाँच करने में संक्षम हैं।
निबन्धात्मक परीक्षणों के दोष अथवा हानियाँ

(1) शिक्षकों में अनैतिकता- छात्रों की भाँति शिक्षकों पर भी निबन्धात्मक परीक्षा का बुरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि उनकी सफलता परीक्षाओं में उनके छात्रों के परिणामों द्वारा मापी जाती है अतः वे भी उपयुक्त शिक्षा प्रक्रिया की उपेक्षा कर छात्रों को अनैतिक तरीकों से परीक्षा में उत्तीर्ण करने के लिए तल्लीन हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप न शिक्षक-शिक्षक रह जाता है और न शिक्षण व्यवसाय शिक्षक का व्यवसाय रह जाता है।

(2) अभिभावकों पर बुरा प्रभाव- अभिभावक केवल इस बात में रुचि लेते हैं कि उनके बालक कैसे भी हो परीक्षा में उत्तीर्ण हो जायें। वे अपने बालकों का सर्वांगीण विकास करने के लिए पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं एवं अन्य शैक्षिक कार्यक्रमों में कोई रुचि नहीं लेते।

(3) शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य की उपेक्षा- निबन्धात्मक परीक्षा का प्रमुख दोष यह है कि यह शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य, बालकों के व्यक्तित्व के सर्वागीण विकास की उपेक्षा करते हैं। छात्र केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए पढ़ते हैं और शिक्षक भी उन्हें केवल परीक्षा उत्तीर्ण कराने के लिए पढ़ाते हैं।

(4) बलपूर्वक आधिपत्य – निबन्धात्मक परीक्षाओं का एक प्रमुख दोष यह है कि इन परीक्षाओं ने आज के शिक्षा जगत पर आतंकपूर्ण आधिपत्य स्थापित कर रखा है। शिक्षक इसलिए पढ़ाता है कि छात्र परीक्षा में उत्तीर्ण हों। छात्रों का लक्ष्य उचित एवं अनुचित ढंग अपनाकर परीक्षा में सफलता प्राप्त करना है। माता-पिता भी बालकों को स्कूल इसलिए भेजते हैं कि वे परीक्षा में उत्तीर्ण हों।

(5) नैतिक पतन- आज का शिक्षक समझता है कि वह शिक्षा देने की नौकरी कर रहा है और छात्र समझता है कि वह खरीद रहा है। इससे गुरु-शिष्य के बीच मुदुल सम्बन्ध मिट गया है। आज के विद्यालय शिक्षा के केन्द्र न बनकर तूफान व अशान्ति के केन्द्र बन गये हैं। कोई ऐसा विद्यालय नहीं बचा जिसमें परीक्षाफल में पुलिस व पी. ए. सी. की आवश्यकता नहीं पड़ती।

(6) योग्यता का प्रयोग नहीं- निबन्धात्मक प्रश्न-पत्रों में जो प्रश्न आते हैं वे सम्पूर्ण पाठ्य सामग्री से सम्बन्धित नहीं होते जिन्हें महत्वपूर्ण प्रश्न के रूप में छात्र रट लेते हैं। दुर्भाग्यवश यदि ये प्रश्न परीक्षा में न आये तो छात्रों का पेपर खराब हो जाता है और पूरा साल चला जाता है। छात्र सस्ते नोट्स वगैरह से कुछ प्रश्न तैयार कर लेते हैं और यदि वे प्रश्न परीक्षा में आ जाते हैं तो दिन-रात परिश्रम के बिना ही छात्र उत्तीर्ण हो जाते हैं।

(7) अवैधता – वर्तमान परीक्षायें उस शक्ति या योग्यता का मापन नहीं करती हैं। जिसका परीक्षक मापन करना चाहता है। वस्तुत: ये परीक्षायें छात्रों की समझदारी, बुद्धि, रुचियों, कुशलताओं आदि का मापन नहीं करती बल्कि उनकी लेखन शक्ति, भाषा आदि को जाँचती हैं। जबकि परीक्षाओं का प्रमुख लक्ष्य समझदारी, बुद्धि, कुशलता आदि का मापन करना होना चाहिए।

(8) अविश्वसनीयता – यदि परीक्षा इसलिए अविश्वसनीय कही जाती है छात्रों द्वारा प्राप्त किये जाने वाले अंक प्रायः समान नहीं होते बल्कि इसमें अत्यधिक विचलन पाया जाता है ।

(9) योग्यता का अनिश्चित मापदण्ड- कोई परीक्षक उत्तर-पुस्तिकाओं में लिखे पृष्ठों की संख्या गिनकर अंक देते हैं तो कोई सुलेख के आधार पर। इसी प्रकार कोई परीक्षक अपनी मनोदशा के अनुकूल लिखी विषय-वस्तु को पढ़कर अंक देता है तो कोई रोचक भाषा के आधार पर। यदि परीक्षक वास्तविक तथ्यों के आधार पर अंक प्रदान नहीं करता है तो परीक्षा का महत्व व उपयोगिता ही समाप्त हो जाती है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण

वर्तमान समय में वस्तुनिष्ठ परीक्षणों के प्रयोग प्रत्येक विषय की नवीन परीक्षा प्रणानी के रूप में प्रचलित हैं। शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर इन परीक्षणों का प्रयोग अत्यधिक होने लगा है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणों का अर्थ- वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का तात्पर्य उन परीक्षाओं से होता है. जिनके प्रश्नों के उत्तरों के मूल्यांकन पर परीक्षकों के दृष्टिकोण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता चाहे जितने भी शिक्षक जितनी भी बार जाँचें। वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का तात्पर्य उन लिखित या कागज, पेंसिल परीक्षाओं व परीक्षणों से है जिनमें व्यक्तिनिष्ठता से प्रभावित हुए बिना सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से छोटे-छोटे अनेक प्रश्न पूछे जाते हैं और पूर्णत: सत्य या असत्य होते हैं तथा इन सब विशेषताओं के कारण परीक्षकों को उनका मूल्यांकन करने में किसी प्रकार की व्यक्तिगत छूट नहीं होती।

शिक्षा शब्दकोश में वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है- “वस्तुनिष्ठ परीक्षण इस तरह का निर्मित एक परीक्षण है, जिसमें विभिन्न अंक देने वाले (गणक) स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करके एक समान अथवा आवश्यक रूप से प्रदत्त निष्पादन के लिए समान अंक पर पहुँचेंगे, साधारणतया सत्य से असत्य उत्तर, बहुसंख्यक चुनाव, मिलान या पूरक प्रकार के प्रश्नों पर आधारित होता है, जिनका सही उत्तरों की तालिका से अंकन किया जाता है। यदि कोई उत्तर तालिका के विपरीत होता है। तो उसे गलत माना जाता है। इन्हें अति लघुउत्तरीय परीक्षण भी कहा जाता है। वर्तमान समय में वस्तुनिष्ठ परीक्षण अग्रलिखित तथ्यों की जाँच के लिए तैयार किये जाते हैं-

  1. पठित विषयवस्तु की जाँच,
  2. विषय से सम्बन्धित विभिन्न लेखकों एवं उनकी कृतियों का ज्ञान,
  3. विभिन्न तथ्यों एवं घटनाओं का ज्ञान ।

वस्तुनिष्ठ परीक्षणें के गुण अथवा लाभ (विशेषताएँ)

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के गुण व विशेषतायें निम्न हैं-

(1) विश्वसनीयता – एक अच्छे परीक्षण की प्रथम विशेषता उसका विश्वसनीय होना है। यदि बुद्धि मापन के लिए कोई परीक्षण निर्माण किया जाये तो वह बुद्धि का मापन करे न कि अर्जित योग्यता या शिक्षा का परीक्षण की इसी विशेषता के कारण किसी परीक्षक का फल प्रतिपक्व तथा एकरस होता है।

(2) वस्तुनिष्ठता- वस्तुनिष्ठता या विधायकता का तात्पर्य परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण परीक्षण के प्राप्तांकों का बालकों पर परीक्षक की रुचि इत्यादि का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाता है। इस विशेषता के अस्तित्व के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षण के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चित तथा स्पष्ट हो जिसके विषय में परीक्षकों में कोई मतभेद न हो ।

(3) प्रमाणीकरण – इसका अर्थ है कि परीक्षण के निर्देशन, प्रश्न-परीक्षण की विधि तथा जाँचने का तरीका इत्यादि पहले से ही निर्धारित कर दिया जाता है। ऐसा करने से विभिन्न व्यक्तियों के प्राप्तांकों की विभिन्न समय तथा स्थानों पर तुलना की जाती है ।

(4) प्रामाणिकता- अच्छे परीक्षक की प्रमुख विशेषता है उसमें प्रमाणिकता या वैध जाता का पाया जाना, परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके कारण कोई परीक्षण दोबारा या जितनी बार आवश्यकता पड़े; उसे व्यक्तियों पर प्रयोग किया जाये तो हर बार प्रथम बार की तरह फलांक प्राप्त हो । परीक्षण की इसी विशेषता के कारण ही किसी परीक्षण का फल प्रतिपक्व तथा एकरस होता है।

(5) व्यापकता – परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार जिस योग्यता के मापन के लिए परीक्षण का निर्माण किया गया है उसके समस्त पहलुओं से सम्बन्धित प्रश्न के परीक्षण पद निर्धारित किये जायें।

(6) विभेदकारी शक्ति- परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार कमजोर तथा अच्छे छात्रों में अन्तर मालूम किया जा सके।

वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं के दोष अथवा हानियाँ

इन परीक्षाओं के प्रमुख दोष व सीमायें निम्नांकित है-

(1) निर्माण में कठिनाई – इसके लिए योग्य व अनुभवी शिक्षकों की आवश्यकता है और आवश्यकता की पूर्ति तभी हो सकती है जब शिक्षकों को वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्नों के निर्माण हेतु प्रशिक्षण दिया जाये।

(2) व्यक्तिगत विभिन्नता की उपेक्षा – छात्रों को सोचने-समझने, तर्क-वितर्क, निर्णय तथा निष्कर्ष पर पहुँचने की कोई स्वतंत्रता नहीं रहती। इन परीक्षाओं में व्यक्तिगत विभिन्नताओं को भुलाकर छात्रों की मानसिक क्रिया को पूर्णतः यांत्रिक बना दिया जाता है।

(3) अधूरी सूचना – इनके द्वारा छात्रों के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो पाती। परीक्षक किसी भी हालत में छात्रों की आलोचनात्मक शक्ति तथा ज्ञान की नई परिस्थितियों में प्रयोग करने की शक्ति का मूल्यांकन नहीं कर पाते।

(4) भाषा ज्ञान की उपेक्षा- इन परीक्षाओं में भाषा का प्रयोग के बराबर होता है। अतः छात्र भाषा के सुन्दर लेखन, भाषा शैली और अभिव्यक्ति की योग्यता में वृद्धि को चिन्ता नहीं करते हैं।

(5) अनुमान या धोखा – इन परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तरों को देखकर यह ज्ञात नहीं हो पाता कि छात्रों ने अपनी वास्तविक बुद्धि के प्रयोग द्वारा उत्तर दिये हैं या अनुमान द्वारा। इसमें नकल करना भी सरल है।

(6) योग्यताओं के मापन में कठिनाई – इन परीक्षाओं द्वारा छात्रों की कल्पना, चिन्तन, तर्क, निर्णय, विचारों के संगठन एवं अभिव्यक्ति करने की शक्ति आदि उच्च मानसिक योग्यताओं का मूल्यांकन सम्भव नहीं होता। इनके द्वारा छात्रों में संगठित रूप से अध्ययन करने की आदत का निर्माण नहीं हो पाता और वे विषय के तथ्यों को समझने की बजाय रटकर उत्तर देते हैं।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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