निराला के काव्य शिल्प की विशेषता लिखिए।
निराला जी महान् क्रान्तिकारी एवं ओजस्वी कवि थे। हिन्दी की महान् विभूति थे उनका जीवन जितना संघर्षमय रहा उतना हिन्दी साहित्य साहित्यिक किसी अन्य कवि का नहीं रहा, परन्तु फिर भी वे डिगे नहीं, वरन् अपने आदर्शों पर बराबर डटे रहे। उन्होंने हिन्दी काव्य का नवीन श्रृंगार किया एवं छन्द भाषा, शैली आदि सबको नवीनता प्रदान की। मानवीय क्रियाकलापों, व्यापारों तथा प्रकृति के विविध चित्र उतारने में निराला जी पूर्ण दक्ष थे। उनकी आभव एवं कला पक्षीय विशेषताएँ निम्न हैं—
Contents
(अ) भावपक्षीय विशेषताएँ—
(1) देश भक्ति के स्वर- निराला ने अपने काव्य में देश के सांस्कृतिक पतन की ओर व्यापकता से संकेत किया है उनका मत है कि देश के भाग्याकाश को द्विवेदी शासन के राहु ने अपनी कालिमा से आच्छादित कर रखा है। वे चाहते हैं कि देश का भाग्योदय हो और भारतीय जनता आनन्द विभोर हो उठे भारती वन्दन, ‘जागो फिर एक बार’, ‘छत्रपति शिवाजी का पत्र आदि कविताएँ निराला जी देश भक्ति को उजागर करते हैं। उनके मन में भारत के प्रति असीम प्रेम था, भारती वन्दना कविता में उन्होंने यह भाव व्यक्त किया है-
भारती जय, विजय करें कनक शस्य कमल धरे
लंका पदतल शतदल गर्जितोर्मि सागर जल
धोता शुचि चरण युगल स्वत कर बहु अर्थ भरे।
(2) सामाजिक उत्थान – कवि समाज सुधार सम्बन्धी विचार भी अपनी कविता में व्यक्त करता हैं। समाज कल्याण के लिए कवि गरीब किसान के उद्धार हेतु क्रान्ति का आवाहन करता हैं। समाज में नयी चेतना, नया जीवन, नया उन्मेष भरने को कवि आतुर है जीर्ण बाहु किसान की आतुरता को कवि इस प्रकार व्यक्त करता है-
“जीर्ण, बाहु शीर्ण शरीर तुझें बुलाता कृषक अधी
र ऐ विप्लव के वीर
चूस लिया है उसका सारा
हाड़ मात्र है आधार
ऐस जीवन के परावार ॥
(3) विद्रोहक स्वर- निराला जी अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छन्दता प्रेमी थे। वह तो जीवन भर विद्रोह एवं संघर्ष ही करते रहे। ‘अपरा’ की कई कविताओं में यह प्रवृत्ति मुखरित हुई है।
(4) रहस्यभावना– निराला जी की कविताओं में रहस्यवादी भावना, जिज्ञासा और कौतुहल के रूप में प्रकट हुई है। ‘तुम और मैं’ निराला जी की प्रसिद्ध रचना है जिसमें कवि ने जीवन के रहस्यात्मक रूप में व्यक्त किया है।
(5) लोक-कल्याण – निराला जी चाहते थे समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी रहे ‘सरस्वती वन्दना कविता में उन्होंने यहीं भाव प्रकट किया हैं मानव समाज में जीवन शक्तियों का उदय हो और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करे।
(6) वैयक्तिकता – मानवतावाद छायावादी कवियों की प्रमुख विशेषतः हैं। उन्होंने समाज के चित्रों के साथ व्यक्तिगत अनुभूतियों-विचारों-दर्शनों तथा उत्कर्ष अपकर्ष की भी भावनाओं को उजागर किया है। लगभग सभी कवियों में आत्मा की पुकार सुनायी पड़ती है। प्रसाद का ‘आँसू’ पन्त की ‘ग्रन्थि’ महादेवी वर्मा की वेदना में मानवतावाद दृष्टिगत होती है। इसी प्रकार निराला के काव्य जैसे ‘राम की शक्ति पूजा’, ‘स्नेह निर्झर बह गया है’, ‘सरोज स्मृति’, ‘जूही की कली’ में कवि की वैयक्तिकता समाहित है।’
(7) नैराश्य एवं करुणा के स्वर- छायावादी काव्य में निराशा दुःख सन्ताप-करुणा, कष्ट कलेष की पर्याप्त विवृत्ति हुई हैं वेदना और कष्ट ही कवि के जीवन का सर्वस्व हैं महादेवी की ‘नीर ‘दुःख की बदली’, प्रसाद की ‘धनीभूत पीड़ा’ तथा पन्त का ‘वियोगी होगा पहला कवि’ रूप व्यक्त भरी हुआ है तो निराला क्यों न नैराश्य एवं करुणा व्यक्त करें, यह नैराश्य एवं करुणा उनकी अपनी निजी करूणा है तभी ‘सरोज स्मृति’ में निराला कहते हैं-
“दुःख ही जीवन की कथा रही, क्या कहूँ आज जो नहीं कहीं।”
(8) प्रकृति चित्रण- निराला जी की कविताओं के अन्तर्गत प्रकृति चित्रण का अपना विशिष्ट स्थान हैं उनके प्रकृति सम्बन्धी चित्र बड़े ही सजीव हैं। ‘सन्ध्या सुन्दरी’ का एक चित्र दृष्टव्य है-
“दिवसावसान का समय, मेघमय आसमान से उतर रहीं है।
वह सन्ध्या सुन्दरी परी-सी, धीरे-धीरे-धीरे।”
(9) रस योजना– निराला जी ने अपने काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि रसों का सफल प्रयोग किया है उनकी काव्य कृति ‘जूही की कली’ ने तो हिन्दी साहित्य को श्रृंगार की मधुर अनुभूति से झंकृत ही कर दिया है। उनकी कविता में सामान्यतया श्रृंगार और वीर रस का समन्वय भी हुआ है। ‘जागो फिर एक बार इसका ज्वलन्त उदाहरण है।
(ब) कलापक्षीय विशेषताएँ—
भावपक्ष की भाँति निराला जी का कलापक्ष भी बहुत पुष्ट है। उन्होंने हिन्दी कविता को नवीन बिम्ब और नवीन छन्द प्रदान किए हैं। निराला जी की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
(1) कोमलकान्त भाषा – निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ हैं कोमल कल्पना के प्रयोग के समय उनकी भाषा कोमलकान्त पदावली की हो जाती है किन्तु पौरुष और ओज प्रदर्शन में निराला की भाषा भी ओज गुण से युक्त होती है। निराला जी शुद्ध खड़ी बोली के कवि हैं, उनकी भाषा में नीरसता नहीं है अपितु भाषा में संगीत की मधुरिमा विद्यमान है। मुहावरों के प्रयोग ने निराला की भाषा में नई व्यंजना शक्ति भर दी गई। जहाँ दर्शन, चिन्तन व विचार तत्त्व प्रधान हो गया है वहाँ निराला की भाषा दुरूह भी हो गयी है।
(2) अलंकार विधान- निराला ने अपने काव्य में अलंकारों का प्रयोग आवश्यकतानुसार यथास्थान किया हैं निराला जी अलंकारों को काव्य का साधन मानते हैं। निराला ने अलंकारों का प्रयोग चमत्कार प्रदर्शन के लिए नहीं किया अनुप्रास, सांगरूपक, सन्देह, उपमा, उत्प्रेक्षा, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग निराला ने किया है।
(3) छन्द योजना- निराला जी ने अपनी भावनाओं के व्यक्त करने के लिए प्रायः मुक्त छन्द का प्रयोग करते हैं निराला जी ने बन्धनयुक्त छन्दों को कभी नहीं अपनाया और अपनी ओजस्वी वाणी से यह सिद्ध कर दिया कि छन्दों का बन्ध व्यर्थ हैं उनके मुक्त छन्द भी पर्याप्त संगीतात्मक है, उनके छन्दों में एक अजीव सा संगीत, लय व गति यदि का दर्शन होता है।
(4) शैली- जिस प्रकार निराला छन्द मुक्त कवि हैं उसी प्रकार उनकी काव्य शैली भी मुक्त है, उनकी काव्य शैली अपनी जीवन शैली है।
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