व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें

बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें
बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतें

बड़े पैमाने के उत्पादन की बचतों की व्याख्या कीजिए।

बड़े पैमाने की उत्पत्ति के लाभ : आन्तरिक एवं बाह्य बचतें (Advantages of Large Scale Production: Internal and External Economies)

बड़े पैमाने के उत्पादन की प्रारम्भिक दशा में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है, जिससे उत्पादक को प्रमुख रूप से तीन प्रकार की बचतें प्राप्त होती हैं :

  1. साधनों की अविभाज्यता सम्बन्धी बचते ।
  2. उत्पादन मितव्ययिताएँ ।
  3. प्रतियोगिता सम्बन्धी मितव्ययिताएँ ।

(1) साधनों की अविभाज्यता सम्बन्धी बचतें (Economy due to Indivisibility of a Factor)

साधनों की अविभाज्यता का अर्थ है साधन की ऐसी इकाइयाँ जिन्हें उत्पादन के विभिन्न पैमानों की उपयुक्तता के अनुसार विभाजित नहीं किया जा सकता। अविभाज्यता की यह विशेषता मशीन, अनुसन्धान, विपणन तथा विज्ञापन आदि के रूप में होती है। इन सब विशेषताओं के कारण एक बड़े पैमाने के उद्योग को छोटे पैमाने के उद्योग की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ, एक उद्योग में एक व्यवस्थापक की देख-रेख में 25 श्रमिक कार्य करते हैं। अब यदि इस उद्योग में 100 श्रमिकों को काम में लगाया जाता है, तो एक व्यवस्थापक इतने मजदूरों की देखभाल आसानी से कर सकता है, जबकि हमें 25 मजदूरों की देखभाल के लिए भी एक ही व्यवस्थापक लगाना था। अब वही व्यवस्थापक उतने ही पारिश्रमिक में 100 मजदूरों की देखभाल कर लेता है, तो दूसरी दशा में व्यवस्थापक की मजदूरी उद्योग के लिए काफी सस्ती हुई क्योंकि व्यवस्थापक एक अविभाज्य इकाई है। हम कम मजदूरों को लगाने पर व्यवस्थापक की कम इकाई का उपयोग नहीं करेंगे। यही बात एक मशीन के सम्बन्ध में भी लागू होती है। संक्षेप में, ज्यों-ज्यों बड़े पैमाने के उत्पादन का आकार बढ़ता है, त्यों-त्यों साधनों की अविभाज्यता भी बढ़ती है और बड़े पैमाने के उत्पादन को अधिक लाभ मिलता है।

(2) उत्पादन मितव्ययिताएँ (Production Economies)

उद्योग को प्राप्त होने वाली उत्पादन सम्बन्धी मितव्ययिताओं को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता (i) आन्तरिक मितव्ययिताएँ तथा (ii) बाह्य मितव्ययिताएँ ।

(i) आन्तरिक मितव्ययिताएँ (बचतें) (Internal Economies)

बड़े पैमाने के उत्पादन की आन्तरिक मितव्ययिताएं उद्योग के भीतर ही प्राप्त होती हैं। इन बचतों के बारे में मार्शल का कहना है कि “आन्तरिक मितव्ययिताएं वे हैं जो किसी एक फर्म को उसकी आन्तरिक कुशलता तथा व्यवस्था आदि की श्रेष्ठता के कारण प्राप्त होती हैं।” उद्योग की आन्तरिक बचतें निम्नलिखित हैं-

(अ) तकनीकी बचतें – एक उद्योग की तकनीकी बचतों को निम्न चार भागों में बाँटा जा सकता है:

(i) श्रेष्ठ तकनीकी बचतें (Technical Economies) – छोटे पैमाने के उत्पादन की अपेक्षा बड़े पैमाने के उत्पादन को श्रेष्ठ तकनीकी बचतें प्राप्त होती हैं, क्योंकि उद्योग में उच्चकोटि की मशीनों व उपकरणों का उपयोग किया जाता है। भले ही ऐसे उत्पादन में मशीनों की लागत ऊँची होती है, परन्तु इनके द्वारा जो उत्पादन किया जाता है, वह बहुत अधिक होता है। यहाँ महंगी मजदूरी सस्ती मजदूरी के कथन को चरितार्थ करता है। उदाहरणार्थ, बड़े उद्योग में लगाई जाने वाली स्वचालित मशीनों, इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटिंग मशीनों आदि से बड़े पैमाने का उद्योग ही लाभ कमा सकता है।

(ii) बड़े आयाम की बचतें (Economies of Increased Dimension) – उद्योग में कुछ ऐसी दशाएँ होती हैं जिसमें केवल बड़ी मशीनों का प्रयोग किया जाता है जिनके प्रयोग से उद्योग को बचतें प्राप्त होती हैं।

(iii) विशिष्टीकरण की बचतें (Economies of Specialization ) – एक छोटी फर्म की अपेक्षा बड़ी फर्म में श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण की अधिकाधिक सम्भावनाएँ होती हैं। जिस कारखाने का विस्तार जितना बड़ा होगा उसमें श्रम विभाजन की उतनी ही अधिक सम्भावनाएँ होंगी, परिणामस्वरूप उत्पादन लागत में कमी आएगी और उद्योग को लाभ होगा।

(iv) सह-क्रियाओं का प्रयोग (Use of Linked Processes) – बड़े पैमाने के उत्पादन में सह-क्रियाओं के लिए किसी दूसरी फर्म पर निर्भर रहना पड़ता है। उदाहरणार्थ, चीनी के उद्योग में अनेकानेक प्रकार की सह-क्रियाओं को स्वयं कर लिया जाता है; जैसे, मिलों के द्वारा गन्ने की फसल बोना तथा काटना, ताकि मिलों को पर्याप्त मात्रा में कच्चा माल उपलब्ध हो सके।

(ब) प्रबन्ध सम्बन्धी बचतें (Managerial Economics)— बड़े पैमाने के उद्योग में प्रबन्ध सम्बन्धी व्यवस्था को अनेक भागों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक विभाग को वह काम दिया जाता है जिसमें उसे दक्षता प्राप्त होती है। उदाहरण के लिए, लेखा-विभाग, विज्ञापन व प्रसारण विभाग, बिक्री और खरीद विभाग आदि । इसे कार्यात्मक विशिष्टीकरण भी कहा जाता है। इस विभाजन से प्रत्येक विभाग की कार्यकुशलता बढ़ती है। और उत्पादन भी बढ़ने लगता है।

(स) बाजार सम्बन्धी मितव्ययिताएँ (Marketing Economics) – बाजार सम्बन्धी मितव्ययिताएँ सामान की खरीद-फरोख्त से प्राप्त होती हैं। जब एक फर्म बड़े पैमाने पर कच्चे माल को क्रय करती है, तब वह उस माल को थोक में कुछ कम कीमत पर क्रय कर लेती है। इसके अतिरिक्त, वस्तु की बिक्री के लिए अनेक प्रकार के अनुसन्धान आदि किए जाते हैं, जिससे बिक्री काफी बढ़ जाती है।

(द) वित्तीय मितव्ययिताएँ (Financial Economies) – एक बड़े उद्योग को अनेक प्रकार से वित्तीय बचतें प्राप्त हो सकती हैं। बड़े पैमाने के उद्योग में बड़े पैमाने की पूँजी भी लगाई जाती है। बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थाओं से जब ये उद्योग ऋण प्राप्त करते हैं, तो इन्हें कम ब्याज पर ऋण प्राप्त हो जाता है। इसलिए इन उद्योगों में लगाई जाने वाली पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अधिक होती है, जिसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के उत्पादन को छोटे पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त होता है।

(य) जोखिम सम्बन्धी मितव्ययिताएँ (Risk-bearing Economics)— छोटे उद्योग की अपेक्षा बड़े उद्योगों में जोखिम झेलने की क्षमता अधिक होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि जोखिम का अनेकानेक भागों में बंटा रहना, इसके अतिरिक्त इन उद्योगों के द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुओं को विभिन्न प्रकार के बाजारों में बेचकर हानि को कम कर लिया जाता है।

(ii) बाह्य मितव्ययिताएँ (बचतें) (External Economies)

बाह्य मितव्ययिताएँ वे हैं जो प्रायः समान रूप से किसी उद्योग की सभी फर्मों को उपलब्ध होती हैं। इन बचतों के सम्बन्ध में प्रो० चैपमैन (Chapman) का कहना है कि “बाह्य बचतें वे होती हैं जिनमें उद्योग विशेष के सभी व्यवसायियों का भाग होता है।” इस सम्बन्ध में प्रो० केरनक्रास (Cairncrass) का कहना है कि “बाह्य मितव्ययिताएँ वे मितव्ययिताएँ हैं, जो अनेक फर्मों या उद्योग को प्राप्त होती हैं, जबकि एक उद्योग में या उद्योगों के समूह में उत्पादन का पैमाना बढ़ता है। “

जब कभी किसी क्षेत्र विशेष में बैंक, पोस्ट ऑफिस, तारघर, रेल लाइन तथा यातायात के साधनों को खोला जाता है, तो इससे सभी इकाइयों को बाह्य मितव्ययिताएँ प्राप्त हो जाती हैं। ये लाभ उस क्षेत्र-विशेष की लगभग सभी फर्मों को मिलते रहते हैं। इस सन्दर्भ में मार्शल का कहना है कि “बाह्य मितव्ययिताएँ उद्योगों के समान विकास पर निर्भर होती हैं। जैसे-जैसे किसी उद्योग-विशेष का विकास होता है, वैसे-वैसे वे मितव्ययिताएँ भी अधिक मात्रा में उपलब्ध होने लगती हैं।”

बाह्य मितव्यता के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं :

(अ) केन्द्रीकरण की बचतें (Economies of Centralization) – बड़े पैमाने के उत्पादन में उद्योग-धन्धों को केन्द्रीकरण के लाभ प्राप्त होते हैं। किसी स्थान विशेष पर जब अनेकानेक उद्योग-धन्धे केन्द्रित हो जाते हैं, तब वहाँ लगभग सभी उद्योगों को यातायात व परिवहन की सुविधाएँ, सस्ता श्रम, कच्चे माल की उपलब्धता, श्रमिकों को प्रशिक्षित करने सम्बन्धी सुविधाएँ आदि मिलने लगती हैं।

(ब) सूचना एवं सन्देश सम्बन्धी लाभ (Economies of Information) – बड़े पैमाने के उत्पादन में व्यापार सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगती हैं जिससे लोगों को बाजार की जानकारी, कच्चे माल की उपलब्धि तथा उत्पादन के क्षेत्र में होने वाले नए-नए प्रयोगों का ज्ञान होता है।

(स) कच्चे माल सम्बन्धी लाभ (Economies of Material) – यदि कोई उद्योग अन्य उद्योगों से अलग स्थापित होता है तब उसे कच्चे माल का भारी स्टॉक रखना होता है, क्योंकि उसे भय रहता है कि आवश्यकता के समय उसे कच्चा माल उपलब्ध नहीं हो सकता है। इसके विपरीत, जब एक साथ कई उद्योग-धन्धे केन्द्रित हो जाते हैं तब वहाँ कच्चे माल की उपलब्धता अधिक होती है। कच्चे माल की मांग बढ़ जाने से इन स्थानों में कच्चा माल कोने-कोने से आने लगता है। प्रायः इन उद्योगों को आसानी से सस्ते दामों पर कच्चा माल उपलब्ध होने लगता है।

(द) विशेषज्ञों की सेवा का लाभ (Economies of Specialization) – जब एक स्थान विशेष पर बहुत सारी फर्मों केन्द्रित होती हैं तब वहाँ उद्योग-धन्धों से सम्बन्धित विशिष्ट कार्य को किसी विशेष संस्था या व्यक्ति को सौप दिया जाता है। जैसे—मशीनों की मरम्मत का कार्य फर्म के द्वारा न करके किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना, जो इसका विशेषज्ञ हो और वह अपनी विशिष्टता के आधार पर केवल मशीनों को सुधारने का ही कार्य करेगा। अतः उद्योगों को आसानी से विशेषज्ञों का लाभ मिल जाता है।

(3) प्रतियोगिता सम्बन्धी मितव्ययिताएँ (Economies of Competition) 

बड़े पैमाने के उद्योगों को प्रतियोगिता सम्बन्धी लाभ भी प्राप्त होते हैं। प्रतियोगिता सम्बन्धी लाभ या मितव्ययिताएँ निम्नलिखित हैं :-

(i) बड़े पैमाने के उत्पादन की इकाई विज्ञापन में भारी रकम व्यय करके लोगों का ध्यान अपनी वस्तु की तरफ आकर्षित कर लेती है। इससे वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। वस्तुओं की मांग बढ़ जाने से इन उद्योगों का लाभ भी बढ़ जाता है।

(ii) कच्चे तथा पक्के माल के क्रय-विक्रय में भी बड़े पैमाने के उद्योगों को छोटे पैमाने के उद्योगों की अपेक्षा अधिक लाभ मिलता है, क्योंकि छोटे पैमाने के उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों के साथ प्रतियोगिता में नहीं टिक सकते हैं।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि बड़े पैमानों के उद्योगों को अनेकानेक प्रकार की बचतें प्राप्त होती हैं। इन्हीं बचतों से इन उद्योगों को अधिकाधिक लाभ भी मिल जाता है। परिणामस्वरूप, वर्तमान समय में बड़े पैमाने के उद्योगों का विकास तेजी से हो रहा है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment