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बड़े पैमाने के उत्पादन के गुण
बड़े पैमाने के उत्पादन की प्रारम्भिक दशा में उत्पत्ति वृद्धि नियम लागू होता है जिससे उत्पादक को प्रमुख रूप से तीन प्रकार की बचत प्राप्त होती हैं-
(1) साधनों की अविभाज्यता सम्बन्धी बचतें – ज्यों-ज्यों बड़े पैमाने के उत्पादन का आकार बढ़ता है, त्यों-त्यों साधनों की अविभाज्यता भी बढ़ती है और बड़े पैमाने के उत्पादन को अधिक लाभ मिलता है।
(2) उत्पादन की मितव्ययिताएँ— उद्योग को प्राप्त होने वाली उत्पादन सम्बन्धी मितव्ययिताओं को निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है।
(i) आन्तरिक मितव्ययिताएं, (ii) बाह्य मितव्ययिताएं
(3) प्रतियोगिता सम्बन्धी मितव्ययिताएँ – बड़े पैमाने के उद्योगों को अनेक प्रकार की बचतें प्राप्त होती हैं। इन्हीं बचतों से इन उद्योगों को अधिकाधिक लाभ भी मिल जाता है। परिणामस्वरूप, वर्तमान समय में बड़े पैमाने के उद्योगों का विकास तेजी से हो रहा है।
बड़े पैमाने के उत्पादन के दोष
बड़े पैमाने की प्रमुख हानियाँ या दोष निम्नलिखित हैं-
(1) बड़े पैमाने के उद्योगों में एकाधिकार की दशाएँ जन्म लेती हैं।
(2) बड़े पैमाने के उत्पादन में उद्योगपतियों का एकाधिकार प्राकृतिक साधनों में भी हो जाता है।
(3) बड़े पैमाने के उद्योग-धन्धों में कारखाना प्रणाली के दोष दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगते हैं।
(4) श्रम-विभाजन के बढ़ जाने से श्रम-विभाजन सम्बन्धी हानियाँ उत्पन्न होने लगती हैं।
(5) लघु एवं कुटीर उद्योगों का ह्रास होता है।
(6) प्रायः श्रमिकों एवं पूँजीपतियों में संघर्ष की स्थिति बनी रहती है।
(7) बड़े पैमाने के उत्पादक प्रायः अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष की आशंका से भयभीत रहते हैं।
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