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बाजार के विस्तार को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors affecting Expansion of Market)
बाजार के विस्तार का आशय इसके विस्तृत या संकीर्ण होने से होता है। यह निम्न दो तत्वों पर निर्भर करता है— (1) वस्तु गुण और (2) देश की आन्तरिक दशाएँ।
(1) वस्तु के गुण (Nature of Commodity)
(i) माँग की व्यापकता (Wide Demand ) – जिस वस्तु की माँग अधिक और व्यापक है उसका बाजार विस्तृत होता है तथा जिसकी माँग सीमित है उसका बाजार संकीर्ण होगा। उदाहरण के लिए अनाज, कपड़ा आदि की माँग विश्वव्यापी है, अतः इनका बाजार भी अन्तर्राष्ट्रीय होता है। दूसरी ओर साड़ी, चूड़ी, टोपी आदि का बाजार राष्ट्रीय है, क्योंकि ये वस्तुयें केवल हमारे देश में ही माँगी जाती हैं।
(ii) वहनीयता (Portability) – जो वस्तुएँ कम भार और अधिक मूल्य की होती हैं जैसे सोना-चाँदी आदि उनका बाजार अत्यन्त विस्तृत होता है तथा इसके विपरीत गुण वाली वस्तुओं जैसे ईंट, पत्थर आदि का बाजार संकीर्ण होता है।
(iii) टिकाऊपन (Durability ) — टिकाऊ वस्तुओं जैसे कपड़ा, मशीने आदि का बाजार विस्तृत होता है तथा शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं जैसे दूध, दही, सब्जी आदि का बाजार संकीर्ण होता है।
(iv) पूर्ति की पर्याप्तता (Adequacy of Supply) – जिस वस्तु की पूर्ति अधिक है और माँग के अनुसार बढ़ायी जा सकती है तो उसका बाजार विस्तृत होगा। इसके विपरीत गुण वाली वस्तु का बाजार संकीर्ण होगा।
(v) नमूने या ग्रेड बनाने की उपयुक्तता (Suitability for Samples or Grades) जिन वस्तुओं के नमूने निकाले जा सकते हैं (जैसे ऊनी कपड़ा) या जिन्हें निश्चित ग्रेड़ो में विभाजित किया जा सकता है (जैसे गेहूँ) उनका बाजार विस्तृत होगा। इसके विपरीत गुण वाली वस्तुओं, जैसे सब्जी, मछली आदि का बाजार संकीर्ण होगा।
(vi) स्थानापन्न वस्तुओं की संख्या (Number of Substitutes ) – जिस वस्तु के जितने अधिक स्थानापन्न होंगे उस वस्तु की माँग उतनी ही कम होगी जिसके फलस्वरूप उसका बाजार संकीर्ण होगा।
(2) देश की आन्तरिक दशाएँ (Internal Conditions of Country)
(i) शान्ति और सुरक्षा (Peace and Safety) – देश में शान्ति और सुरक्षा के वातावरण में बाजार का विस्तार होता है। इसके विपरीत युद्ध व दंगों के समय बाजार अति संकीर्ण हो जाता है।
(ii) परिवहन स संचार के साधनों का विकास (Development of Means of Transport and communication)— इन साधनों के विकसित होने पर वस्तुएँ कम लागत पर शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान को भेजी जा सकती हैं। अतः ऐसी स्थिति में वस्तुओं के बाजार विस्तृत होते हैं।
(iii) विपणन रीतियों में सुधार (Improvement in Marketing Methods) – यदि वस्तुओं के विक्रय के लिये वैज्ञानिक तथा आधुनिक रीतियों, विज्ञापन, प्रदर्शनी आदि का सहारा लिया जाता है तो उनके बाजार का विस्तार होगा।
(iv) मुद्रा तथा साख प्रणाली (Money and Credit System) – जिस देश की मुद्रा प्रणाली सुदृढ़ और सुव्यवस्थित है तथा बैंकिंग सुविधाएँ पर्याप्त हैं, उस देश में वस्तुओं का बाजार विस्तृत होगा।
(v) सरकार की कर और व्यापार नीति (Government Taxation and Trade Policy)– यदि सरकार स्वतन्त्र व्यापार नीति अपनाती है तो वस्तुओं के बाजार विस्तृत होंगे। इसके विपरीत यदि सरकार प्रतिबन्धात्मक नीति का अनुसरण करती है (जैसे आयात-निर्यात पर कर लगाना, एक राज्य से दूसरे राज्य को अथवा राज्य के एक जिले से दूसरे जिले को वस्तुओं के स्थानान्तरण पर भारी कर अथवा प्रतिबन्ध लगाना आदि) तो वस्तुओं के बाजार सीमित हो जाते हैं।
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