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बुद्धि का स्वरूप क्या है? बुद्धि के दो खण्ड सिद्धान्त एंव योग्यताएं

बुद्धि का स्वरूप क्या है? बुद्धि के दो खण्ड सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।

बुद्धि का स्वरूप :- प्राचीन काल से ही बुद्धि के स्वरूप को समझने के प्रयास दार्शनिकों तथा मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये जा रहे हैं लेकिन इसका कोई सर्वमान्य निष्कर्ष अभी तक नहीं निकल पाया है। बुद्धि के स्वभाव के बारे में प्राचीन काल से लेकर आज तक दार्शनिकों, मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये हो जिनमें बुद्धि के स्वरूप या स्वभाव को निश्चित करने का प्रयास किया गया है। बुद्धि केवल एक कारक है। अथवा इसमें अनेक कारक सम्मिलित हो, इस विषय में अभी तक मतभेद है। तो प्रश्न यह उठता है कि आखिर बुद्धि क्या है? यह किन तथ्यों से निर्मित है? इसके क्या कार्य हो ? इन सभी बातों को निश्चित करने के लिए विद्वानों तथा मनोवैज्ञानिकों द्वारा अनेक प्रयोग किये गये और इन्ह प्रयोगों के परिणामस्वरूप उन्होंने बुद्धि के स्वरूप से सम्बन्धित कुछ सिद्धान्तो का प्रतिपादन किया है जिनमें से कुछ सिद्धान्तों को हम यहाँ उल्लेख करेंगे, जिससे कि बुद्धि के स्वरूप को समझा जा सके-

1. एकसत्तात्मक सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार बुद्धि सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिमान शक्ति है जो सभी मानसिक गुणों पर शासन करती है। बुद्धि एक केन्द्रीय शक्ति है जो हमारी मानसिक क्रियाओं का संचालन करती है। इस सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक एवं प्रतिपादक टरमैन, स्टर्म और बिनेट थे। उन्होंने बुद्धि को एक अविभाज्य इकाई के रूप में स्वीकार किया है। उनका मानना था कि बुद्धि का विभाजन नही किया जा सकता। बिनेट ने बुद्धि को एक सम्यक निर्णय की योग्यता स्वीकार किया और टर्मन ने बुद्धि को एक पूर्ण खण्ड के रूप में माना। उनका मानना था कि सोचने की क्षमता को ही बुद्धि कहा जा सकता है। इन विद्वानों का मानना था कि विभिन्न स्वतन्त्र प्रभावों को एक पूर्ण इकाई के रूप में अभिव्यक्त करने की योग्यता एवं क्षमता को ही बुद्धि कहा जा सकता है। किन्तु आधुनिक विद्वानों ने इस सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया। उनका मानना है कि इस सिद्धान्त के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में निपुण है तो उसे अन्य क्षेत्रों में भी निपुण होना चाहिए। लेकिन सार्वजनिक जीवन में ऐसा नहीं होता। एक व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में तो निपुण होता है किन्तु अन्य क्षेत्रों में नहीं। तब यह कैसे मान लें कि अमुक व्यक्ति की बुद्धि अधिक तेज या मन्द है। लेकिन डॉ. जॉन्सन आलोचकों के इस मत से सहमत नहीं। उनका मानना है कि बुद्धि का प्रयोग जिस क्षेत्र में किया जायेगा उसी क्षेत्र में वह अधिक नुिपण हो जायेगा और यह उस व्यक्ति की रूचि पर भी निर्भर होता है कि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग किस क्षेत्र में करे। डॉ. जॉन्सन का कहना था कि महान वैज्ञानिक न्यूटन की रूचि यदि कविता लेखन में होती तो वह महान कवि बन सकते थे। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के इस स्वरूप को जाँचने के लिए अनेक परीक्षण किये और उन्होंने पाया कि योग्यता का मानव की बुद्धि से कोई सम्बन्ध नहीं है। अतः योग्यता को बुद्धि की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। आज के मनोवैज्ञानिक एकसत्तात्मक से सहमत नही।

2. द्विसत्तात्मक अथवा दो खण्ड सिद्धान्त- बुद्धि के द्विसत्तात्मक सिद्धान्त के प्रतिपादक स्पीयरमैन माने जाते । उन्होंने 1904 ई. में बुद्धि के इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उनका मानना था कि बुद्धि दो तत्वों से मिलकर बनी है। प्रथम सामान्य बौद्धिक तत्व और दूसरे विशिष्ट बौद्धिक तत्व। प्रथम को उन्होंने “जी’ कारक के नाम से पुकारा और द्वितीय को ‘एस’ कारक के नाम से। यह दोनों ही मिलकर बुद्धि को निर्धारित करते हो। स्पीयरमैन ने इन दोनों तत्वों की विस्तृत विवेचना प्रस्तुत की। हम उसका विवरण यहाँ संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हो।

सामान्य कारक ( योग्यताएं)-

स्पीयरमैन ने सामान्य योग्यताओं को विशेष महत्व दिया है। उनका मानना था कि सभी व्यक्तियों में सामान्य योग्यताएं पायी जाती है। हां इनकी मात्रा कम या अधिक हो सकती है। सामान्य योग्यता जीवन के सभी क्रिया-कलापों को करने में इस्तेमाल की जाती है। कठिन से कठिन विषयों जैसे- दर्शन, विज्ञान, गणित आदि में सामान्य योग्यताओं से ही काम लिया जाता है। सामान्य योग्यताओं की कुछ विशेषताएँ है-

  1. सामान्य योग्यताओं का वंशानुक्रमण से मिलना,
  2. सामान्य योग्यताओं का परिवर्तनशील होना,
  3. सामान्य योग्यताओं का व्यक्ति के सभी क्रियाकलापों में इस्तेमाल होना,
  4. सामान्य योग्यताओं का सभी व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होना,
  5. व्यक्ति की सफलता या असफलता का व्यक्तियों की सामान्य योग्यता की मात्रा पर निर्भर होना आदि।

विशिष्ट कारक ( योग्यताएं)- विशिष्ट कार्य को करने के लिए विशिष्ट प्रकार की योग्यताओं की आवश्यकता होती है। इन्ह विशिष्ट योग्यताओं को ‘एस फैक्टर’ के नाम से जाना जाता है। इन विशिष्ट योग्यताओं के प्रमुख लक्षण हैं-

  1.  विशिष्ट योग्यताएं अर्जित की जा सकती हैं, इनका सम्बन्ध पर्यावरण से होता है,
  2. भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में इनकी मात्रा भिन्न-भिन्न होती है,
  3. इन योग्यताओं की संख्या अनेक हो सकती है और यह एक दूसरे पर आश्रित नहीं होतीं,
  4. भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न प्रकार की योग्यताएं होती है,
  5. विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं का सम्बन्ध विभिन्न कुशलताओं से होता है,
  6. जिस व्यक्ति में जो विशिष्ट योग्यता होती है उसी विषय में वह अधिक कुशल होता है,
  7. विशिष्ट योग्यताओं वाले व्यक्ति विज्ञान एवं दर्शन में अधिक निपुण होते हो।

स्पीयरमैन का मानना था कि वह दोनों तत्व मिलकर ही बुद्धि का निर्माण करते हो। लेकिन इस सिद्धान्त के प्रमुख आलोचक थॉर्नडाइक का मानना है कि व्यक्ति में सामान्य योग्यता या विशिष्ट योग्यता जैसी कोई चीज नही, किसी भी मानसिक क्रिया में अनेक तत्व सम्मिलित रहते हो। अतः सामान्य योग्यताओं में भी अनेक तत्व सम्मिलित है और उन्हें भी विभाजित किया जा सकता है। अतः बुद्धि का यह सिद्धान्त ही त्रुटिपूर्ण है।

3. तीन तत्व सिद्धात- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक भी स्पीयरमैन ही थे। उन्होंने अपनी आलोचना को ध्यान में रखते हुए अपने द्विसत्तात्मक सिद्धान्त में एक तत्व और जोड़ दिया और इसे तीन सत्तात्मक सिद्धान्त या ग्रुप फैक्टर सिद्धान्त के नाम से पुकारा। इस सिद्धान्त में उसने कुछ ऐसे तत्वों का समावेश किया जो सामान्य तत्वों की अपेक्षा कम सामान्य व विस्तृत तथा सजातीय थे और विशिष्ट तत्वों की अपेक्षा अधिक सामान्य विस्तृत और सजातीय थे। इस प्रकार स्पीयरमैन ने माना कि इन तीनों तत्वों के द्वारा ही व्यक्ति की बुद्धि का निर्माण होता है। लेकिन मनोवैज्ञानिकों ने इस सिद्धान्त का भी खण्डन किया। क्रो व क्रो ने कहा कि “यह सिद्धान्त व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं पर पर्यावरण के प्रभावों को स्वीकार न करके बुद्धि को वंशानुक्रमण से ही प्राप्त किये जाने को स्वीकारता है। जो ठीक नहीं है। “

4. बहु तत्व सिद्धान्त- बुद्धि के बहुतत्व सिद्धान्त के प्रतिपादक कैली व थर्सटन माने जाते हो। कैली ने अपनी पुस्तक में बुद्धि के निर्माण में निम्न योग्यताओं का होना स्वीकार किया है-

1. सामाजिक योग्यता, 2. यान्त्रिक योग्यता, 3. वाचिक योग्यता, 4. सांख्यिक योग्यता, 5. स्थानिक सम्बन्धों के साथ समुचित व्यवहार करने की योग्यता, 6. रूचि, 7. शारीरिक क्षमता, 8 क्रियात्मक योग्यता, 9. संगीतात्मक योग्यता ।

थर्सटन ने भी बुद्धि की नौ मानसिक योग्यताओं को स्वीकार किया है। वे योग्यताएं हैं- 1. दृश्य योग्यता, 2. प्रतक्षयित योग्यता, 3. संख्यात्मक योग्यता, 4. तर्क योग्यता, 5. शब्दों का प्रयोग की धारावाही योग्यता, 6. स्मृति, 7. निगमन योग्यता, 8. आगमन योग्यता, 9. समस्या के हल पर नियन्त्रण की योग्यता।

क्रो व क्रो व अन्य विद्वानों ने इस सिद्धान्त को भी स्वीकार नहीं किया। उनका कहना है कि इन अनेक योग्यताओं को जटिल मानसिक प्रक्रिया की पृथक-पृथक इकाइयां स्वीकार नही किया जा सकता।

बुद्धि के स्वरूप के बारे में जो सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं उन सभी की विद्वानों ने किसी न किसी रूप में आलोचना की है। अतः बुद्धि के स्वरूप से सम्बन्धित किसी भी सिद्धान्त को स्वीकार नहीं किया जा सकता। विभिन्न व्यक्तियों में बुद्धि के विकसित एवं संचालित होने के भिन्न-भिन्न कारण या तत्व हो सकते हैं जिनके आधार पर मानव की बुद्धि का स्वरूप निर्धारित होता है।

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Anjali Yadav

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