बेसिक शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? बेसिक शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण पद्धति की विवेचना कीजिए।
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गांधीजी की वर्धा योजना (बेसिक शिक्षा योजना) (Gandhiji’s Wardha Scheme (Basic Education)
सन् 1937 ई० में महात्मा गांधी ने वर्धा योजना का सूत्रपात किया ‘वर्धा योजना’ को बुनियादी शिक्षा या नई तालीम के नाम से भी जाना जाता है, परन्तु इसका प्रचलित नाम बेसिक शिक्षा है। इस शिक्षा का केन्द्र बिन्दु कोई आधारभूत शिल्प होगा जिसका शिक्षण प्राप्त कर व्यक्ति अपने जीविकोपार्जन की समस्या सुलझा सकेगा।
बेसिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Basic Education )
(1) नागरिकता का आदर्श- वस्तुतः आज का बालक ही कल का भावी नागरिक है और लोकतंत्र शासन प्रणाली की नींव निपुण नागरिकों पर आधारित रहती है, क्योंकि नागरिक ही शासन के कर्णधारों का चुनाव करते हैं। अतः शिक्षा का उद्देश्य नागरिकता के गुणों का विकास ही होना चाहिए। बेसिक शिक्षा में इस ओर पूरा ध्यान दिया गया और जाकिर हुसैन समिति ने इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि आधुनिक भारत में नागरिकता का देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक जीवन में विस्तारपूर्वक लोकतांत्रिक स्वरूप होना चाहिए। नई पीढ़ी को कम-से-कम इस बात का अवसर मिले कि वह अपनी समस्याओं, अधिकारों और कर्त्तव्यों को समझ सके। इसीलिए बेसिक शिक्षा बालकों में नागरिकता की भावना के समुचित विकास को आवश्यक मानती है और वह यह भी ध्यान में रखती है कि बालक अपने आपको राष्ट्र का एक प्रमुख अंग समझकर राष्ट्र निर्माण व राष्ट्र कल्याण का पाठ पढ़े।
(2) सांस्कृतिक दृष्टिकोण- बेसिक शिक्षा में साक्षरता से अधिक महत्त्व शिक्षा के सांस्कृतिक पहलू पर दिया गया। स्वयं महात्मा गांधी ने भी यह माना कि यदि किसी स्थिति में एक पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयत्नों से बिल्कुल अचेत हो जाती है या अपनी संस्कृति पर लज्जा करने लगती है, तब वह नष्ट हो जाती है। इस प्रकार बेसिक शिक्षा को सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप बनाकर उसमें भारतीय संस्कृति के प्रति अनुराग रखने पर ध्यान दिया गया।
(3) सर्वाङ्गीण विकास- जहाँ कि प्रचलित शिक्षा प्रणाली में केवल बौद्धिक विकास पर ही बल देकर व्यक्ति के एकांगी विकास पर ही ध्यान दिया जाता था, वहाँ बेसिक शिक्षा का पाठ्यक्रम इस प्रकार बनाया गया कि उसमें व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक व आत्मिक विकास की ओर पूर्ण ध्यान दिया जा सके। साथ ही शिक्षा व्यक्ति की नैतिकता का समावेश करना भी अनिवार्य समझती है और नैतिक विकास की ओर पूर्ण ध्यान देते हुए बालकों को नम्र, कर्त्तव्यपरायण, सहिष्णु, आदर्श, चरित्रवान आदि बनाने पर ध्यान देती है।
(4) आर्थिक उद्देश्य- बेसिक शिक्षा के निम्नांकित दो आर्थिक उद्देश्य हैं- (क) बालकों द्वारा निर्मित वस्तुओं से विद्यालय के खर्च की आंशिक पूर्ति करना। (ख) शिक्षा पूर्ण होने पर बालकों का अपने भावी जीवन में किसी उद्योग द्वारा निजी आवश्यकताओं की पूर्ति करना।
(5) सर्वोदय समाज की स्थापना- बेसिक शिक्षा का उद्देश्य आधुनिक विकृत समाज के स्थान पर एक ऐसे सर्वोदय समाज की स्थापना करना है, जहाँ परमार्थ, त्याग, आत्मविश्वास, सेवा-भावना, समाज सेवा, सहयोग और स्नेह को प्रमुखता प्राप्त होगी तथा व्यक्ति सामूहिक व सहयोगी जीवन व्यतीत करेंगे।
बेसिक शिक्षा की रूपरेखा (Framework of Basic Education)
बेसिक शिक्षा योजना की रूपरेखा इस प्रकार है-
1. इस शिक्षा की अवधि सात वर्ष की है और सात से चौदह वर्ष के बालक-बालिकाओं को निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा दी जायेगी।
2. शिक्षा का माध्यम मातृ-भाषा हो और अंग्रेजी की शिक्षा न दी जाय।
3. मूलतः सम्पूर्ण शिक्षा किसी ऐसे आधारभूत शिल्प (बेसिक-क्राफ्ट) से सम्बन्धित हो जो कि योजना व स्थान की आवश्यकताओं के अनुरूप हो।
4. चुने हुए शिल्प की शिक्षा इस प्रकार दी जाय कि बालक उत्तम शिल्पी बन सके तथा निर्मित वस्तुओं का प्रयोग किया जा सके और उन वस्तुओं को बेचकर विद्यालय के खर्च की आंशिक पूर्ति हो ।
5. उक्त शिल्प की शिक्षा यांत्रिक विधि न देकर इस प्रकार दी जाय कि बालक उसमें सामाजिक व वैज्ञानिक महत्त्व से परिचित हो जायँ।
बेसिक शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Basic Education )
बेसिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में निम्नांकित विषयों का समावेश किया गया है-
- बुनियादी शिल्प- निम्नलिखित बुनियादी शिल्पों में से कोई भी एक चुना जा सकता है- (क) कृषि, (ख) कताई-बुनाई, (ग) लकड़ी का कार्य, (घ) मछली पालना, (ङ) चर्म कार्य, (च) मिट्टी का काम, (छ) फल और शाक, उद्यान कार्य, (ज) स्थानीय और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप कोई भी अन्य शिल्प।
- मातृभाषा
- गणित
- सामाजिक अध्ययन- इतिहास, भूगोल और नागरिकशास्त्र,
- सामान्य विज्ञान- इसमें निम्नांकित विषय सम्मिलित होंगे- (क) प्रकृति अध्ययन, (ख) वनस्पति शास्त्र, (ग) जीव-विज्ञान, (घ) रसायन शास्त्र, (ङ) शरीर विज्ञान, (च) स्वास्थ्य विज्ञान, (छ) नक्षत्र विज्ञान, (ज) महान वैज्ञानिकों एवं अन्वेषकों की कथाएँ।
- कला- संगीत व चित्रकला,
- हिन्दी
- गृह विज्ञान-(बालिकाओं के लिए)
- शारीरिक शिक्षा- व्यायाम और खेलकूद।
बेसिक शिक्षा में पाँचवीं कक्षा तक सहशिक्षा की व्यवस्था की गयी और बालक बालिकाओं के लिए समान पाठ्यक्रम रखा गया, परन्तु छठवें कक्षा से बालिकाओं को बुनियादी शिल्प के स्थान पर गृहविज्ञान के अध्ययन की सुविधा प्रदान की गयी। साथ ही शिक्षा का माध्यम मातृभाषा ही माना गया, पर हिन्दी का अध्ययन अनिवार्य बतलाया गया और जहाँ कि हिन्दी मातृ-भाषा नहीं है, वहाँ प्रादेशिक भाषा को प्रमुखता प्रदान की गयी।
बेसिक शिक्षा की शिक्षण पद्धति (Teaching System of Basic Education)
बेसिक शिक्षा में सामान्य शिक्षण विधि से सर्वथा भिन्न अध्यापन पद्धति प्रयुक्त होती है और शिक्षण कार्य क्रियाओं व अनुभवों के माध्यम से किया जाता है तथा छात्रों को थोड़े समय में ही विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान किया जाता है। प्रारम्भिक कक्षा में बालक को मातृभाषा का मौखिक ज्ञान करा कर क्रमशः पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है और जब वे लिखना सीखते हैं, तभी उन्हें किसी बुनियादी शिल्प की शिक्षा भी दी जाती है। बालक ज्यों-ज्यों आगे की कक्षाओं में पहुँचते हैं, त्यों-त्यों उन्हें विभिन्न विषयों का ज्ञान कराया जाता है, पर उन्हें इन विषयों की शिक्षा स्वतंत्र रूप से न देकर किसी बुनियादी शिल्प के माध्यम से दी जाती है। यदि कभी किसी विषय का कोई अंश बुनियादी शिल्प के माध्यम से बढ़ाना असम्भव होता है, तब उसे अन्य किसी विधि से पढ़ा दिया जाता है कि सभी पाठ्य-विषय परस्पर सम्बद्ध ज्ञान क्षेत्रों के रूप में छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किये जायें। इस प्रकार सात वर्ष की अवधि के उपरान्त बालक न केवल सभी विषयों का सम्यक् ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, अपितु उन्हें बुनियादी शिल्प का भी इतना अधिक ज्ञान हो जाता है कि वे अपने भावी जीवन में जीविकोपार्जन की समस्या सहज ही सुलझा लेते हैं।
बेसिक शिक्षा के गुण (Merits of Basic Education)
बेसिक शिक्षा में निम्नलिखित गुण दृष्टिगोचर होते हैं-
(1) इसमें सात वर्ष से लेकर चौदह वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की गयी। शिक्षा केवल माता-पिता की दृष्टि से ही निःशुल्क होगी अर्थात् संरक्षकों को अपनी बालकों की शिक्षा व्यवस्था का खर्च न देना होगा, लेकिन स्वयं विद्यार्थी को अपनी शिक्षा का व्यय उत्पादक कार्य के रूप में देना होगा।
(2) बेसिक शिक्षा में अपव्यय नहीं होता और विद्यार्थी उत्तम नागरिकता के गुणों से युक्त “हो जीविका की समस्या सुलझाने में समर्थ हो सकता है।
(3) बेसिक शिक्षा का जीवन के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध है और इसमें वास्तविक उत्तरदायित्व की भावना उत्पन्न होती है।
(4) वह शिक्षा किसी हस्तोद्योग या उत्पादक कार्य द्वारा दी जाती है तथा यह हस्तोद्योग ऐसा होता है जो साधन व साध्य दोनों का ही काम करता है तथा जिसके साथ अन्य विषय भी सम्बद्ध होते हैं।
(5) इस शिक्षा में अंग्रेजी भाषा के स्थान पर मातृ-भाषा को माध्यम माना गया और हिन्दी के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं के विकास को भी समुचित अवसर दिया गया।
(6) बेसिक शिक्षा का केन्द्र बालक है और उसमें क्रिया व आत्मचेष्टा द्वारा किसी विषय को सीखने पर जोर दिया जाता है तथा उसकी वैयक्तिक रुचि पर ध्यान रखा जाता है।
(7) इसमें राष्ट्रीयता, स्वदेश-प्रेम व असाम्प्रदायिकता की भावनाएँ भी हैं।
(8) यह शिक्षा देश की भौगोलिक, आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों के सर्वथा अनुकूल है।
(9) बेसिक शिक्षा गांधी जी द्वारा अनुमोदित सत्य व अहिंसा के आदर्श से प्रभावित है।
(10) यह शिक्षा बालक के वातावरण घर, ग्राम व हस्तोद्योग से सम्बन्धित रहती है और इसका आधारबिन्दु भी यही वातावरण है।
(11) इसमें प्रशिक्षित अध्यापकों की ही नियुक्ति होती है और अध्यापकों को अधिक स्वतंत्रता भी दी जाती है।
बेसिक शिक्षा के दोष (Demerits of Basic Education)
बेसिक शिक्षा में निम्नांकित दोष माने गये हैं-
(1) यह शिक्षा नगरों के लिए उपयोगी न होकर केवल ग्रामों के लिए उपयोगी हो सकती है।
(2) उत्पादित सिद्धान्त (Principle of Productivity) की अधिकता के कारण न केवल बेसिक विद्यालय कुटीर उद्योग में परिणित हो जायेंगे, अपितु अध्यापकों के नैतिक पतन की भी सम्भावना है, क्योंकि वे विद्यालयों को कारखाना व छात्रों को धनोपार्जन का साधन समझेंगे।
(3) बुनियादी शिल्प द्वारा समस्त विषयों का शिक्षण कार्य असम्भव है और न तो इसके द्वारा विद्यार्थियों का सर्वाङ्गीण विकास ही होगा तथा न वह सामान्य शिक्षा ही प्राप्त कर सकेंगे।
(4) यद्यपि इसमें भारतीय सांस्कृतिक परम्परा को सुरक्षित रखने की बात कही गयी है, परन्तु धर्म को शिक्षा में कुछ भी स्थान नहीं दिया गया, अतः धर्म-विहीन बेसिक शिक्षा उचित नहीं है।
(5) बेसिक शिक्षा की समय-सारिणी (Time Table) भी त्रुटिपूर्ण है और इसमें बुनियादी शिल्प के लिए तो 3 घंटे 22 मिनट का समय निर्धारित है, पर अन्य विषयों को बहुत ही कम समय दिया गया है।
(6) बेसिक विद्यालयों में प्रतिवर्ष 288 दिन शिक्षण की व्यवस्था रखी गयी है, लेकिन इतने अधिक कार्यदिवस रखने से बालकों को अत्यधिक श्रम करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
(7) इस शिक्षा में समय भी अधिक नष्ट होता है और शिक्षा सस्ती व सुलभ होने की अपेक्षा महँगी ही है।
(8) इसमें माध्यमिक व उच्च शिक्षा की उपेक्षा कर प्राथमिक शिक्षा पर आवश्यकता से अधिक जोर दिया गया।
(9) आधुनिक वैज्ञानिक युग में कताई-बुनाई से समान मध्यकालीन उद्योगों का प्रयोग करने से भारत की औद्योगिक प्रगति रुक जायेगी।
इतना ही नहीं, विचारकों का तो यह भी कहना है कि यह योजना काल्पनिक, अनावश्यक विश्वास, मनः सृष्टि और वास्तविक व्यवहार से सर्वथा परे है। इसमें एक व्यवस्थित शिक्षा दर्शन की अपेक्षा भावुकता की मात्रा अधिक है तथा इसे गांधी जी की महानता से प्रभावित व्यक्तियों ने ही भावुकता के अतिरेक में स्वीकार किया है।
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