शिक्षाशास्त्र / Education

भारतीय शिक्षा के विकास पर आयोग का प्रभाव | Impact of the Commission on the Development of Indian Education

भारतीय शिक्षा के विकास पर आयोग का प्रभाव

भारतीय शिक्षा आयोग की सिफारिशों का प्रभाव भारतीय शिक्षा के विकास पर अत्यधिक पड़ा। आयोग की सिफारिशों का शिक्षा पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ा-

(1) इन सिफारिशों में “स्थानीय स्व-शासन की योजना” विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जो लार्ड रिपन के द्वारा लागू की गयी। तब से प्राथमिक शिक्षा का इतिहास स्थानीय स्व-शासन के विकास के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। लार्ड रिपन ने इस विषय के सम्बन्ध में अपने प्रसिद्ध प्रस्ताव में कहा, “कि स्थानीय स्व-शासन को शासन के विकेन्द्रीकरण के साधन के रूप में न देखा जाय बल्कि उसे लोकप्रिय शिक्षा के अभिकरण के रूप में समझा जाय, जिसके द्वारा प्रगतिशील समाज सरकार की बढ़ती हुई समस्याओं का समाधान कर सकता है। इस नीति के अनुसार भारत के प्रत्येक प्रांत में स्थानीय बोर्ड, म्युनिसिपल बोर्ड तथा कौंसिल की स्थापना की गयी। इन स्थानीय बोर्डों का प्रमुख कर्त्तव्य प्राथमिक शिक्षा की देख-रेख करना था, यद्यपि माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा उनके कार्य क्षेत्रों से अलग नहीं की गयी। कुछ प्रान्तों में स्थानीय बोर्ड की कुल आय में से कुछ धन प्राथमिक शिक्षा पर खर्च किये जाने के लिए नियम भी बनाये गये। इन बोर्डों के प्राथमिक शिक्षा विषयक अधिकारों और कर्त्तव्यों को स्पष्ट करने के लिए कुछ नियम भी बनाये गये और सहायता अनुदान संहिता का भी निर्णय किया गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि आयोग की संस्तुतियों के अनुसार प्राथमिक शिक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों को सौंप दी गयी। उत्तर प्रदेश में सन् 1971 तक प्राथमिक शिक्षा पूर्ण रूप से जिला परिषद तथा नगरपालिका के हाथ में थी किन्तु धनाभाव तथा इनकी कार्य कुशलता में कमी आने के कारण सन् 1972 से राज्य सरकार ने इस उत्तरदायित्व को पुनः अपने हाथों में ले लिया।

2. प्राथमिक शिक्षा के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए आयोग ने अध्यापकों के प्रशिक्षण पर भी बल दिया है और इसी की सिफारिशों के अनुसार राजकीय तथा सहायता अनुदान प्राप्त नार्मल स्कूलों की स्थापना की गयी, जो आज भी शिक्षक प्रशिक्षण कार्य में रत हैं।

3. प्राथमिक विद्यालयों के निरीक्षण हेतु अधिकारियों की नियुक्ति की जाये। आयोग की ‘उस सिफारिश के अनुसार आज भी प्रति उपविद्यालय निरीक्षक इस दिशा में कार्य कर रहे हैं।

4. आयोग ने प्राथमिक शिक्षा के प्रसार हेतु शिक्षा-कर लगाने की संस्तुति दी थी, जो आज तक क्रियान्वित नहीं की जा सकी।

5. माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में आयोग ने व्यक्तिगत प्रयास को सम्यक् प्रोत्साहन प्रदान किया। फलस्वरूप माध्यमिक शिक्षा के प्रसार के लिए व्यक्तिगत शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की गयी जिनका प्रशासन व्यक्तिगत प्रबन्ध समितियों को सौंपा गया। सरकार केवल सहायता अनुदान द्वारा ही आर्थिक सहायता करती है। आजकल माध्यमिक शिक्षा का जो कुछ विस्तार हो सका है उसका सारा श्रेय व्यक्तिगत संस्थाओं को है, जिनकी स्थापना आयोग की सिफारिशों के कारण हुई है।

6. आयोग ने उन स्थानों पर राजकीय माध्यमिक विद्यालयों की स्थापना की सिफारिश की है, जहाँ के निवासी पिछड़े तथा निर्धन है और जो सहायता अनुदान के द्वारा भी स्कूलों का संचालन नहीं कर सकते। आयोग की सिफारिशों के अनुसार प्रत्येक जिले में आदर्श राजकीय माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की जाये और जिले में माध्यमिक शिक्षा का विस्तार व्यक्तिगत प्रयासों पर छोड़ दिया। आयोग की इस महत्त्वपूर्ण शिफारिश को भी स्वीकार कर लिया गया है और तद्नुसार प्रत्येक जिले में एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की गयी जो आज तक अपने क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

7. आयोग की सिफारिशों के अनुसार हाईस्कूल के पाठ्क्रम की एक मार्गीयता को दूर किया गया और हाईस्कूल में सैद्धान्तिक व्यावसायिक दोनों प्रकार के पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गयी।

8. आयोग की सिफारिशों के अनुसार उच्च शिक्षा में औद्योगिक विषयों को स्थान दिया गया। इस प्रकार से उच्च शिक्षा को व्यावसायिकता का पुट प्रदान किया गया।

9. आयोग के अनुसार स्त्री शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए। इसका प्रभाव आज भी दिखायी दे रहा है। उत्तर प्रदेश में माध्यमिक स्तर तक स्त्री शिक्षा निःशुल्क है।

10. आयोग ने अध्यापक प्रशिक्षण के विषय में यह सुझाव दिया था कि ट्रेनिंग कालेज के छात्रों की “अध्यापन सिद्धान्तों और अभ्यास” में परीक्षा ली जाये। इस सुझाव का अनुगमन आज भी ट्रेनिंग कालेजों में किया जा रहा है।

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Anjali Yadav

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