शिक्षा मनोविज्ञान / EDUCATIONAL PSYCHOLOGY

मन्द-बुद्धि बालक किसे कहते हैं ? मन्द-बुद्धि बालक का अर्थ, विशेषताएँ एंव इसकी शिक्षा

मन्द-बुद्धि बालक किसे कहते हैं ? मन्द-बुद्धि बालक का अर्थ, विशेषताएँ एंव इसकी शिक्षा
मन्द-बुद्धि बालक किसे कहते हैं ? मन्द-बुद्धि बालक का अर्थ, विशेषताएँ एंव इसकी शिक्षा

मन्द-बुद्धि बालक किसे कहते हैं ? ऐसे बालकों के लिए किस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए और क्यों ? मन्द-बुद्धि बालकों को शिक्षा देने के लिए अध्यापक में कौन-से विशेष गुण होने चाहिएँ ?

मानसिक रूप से मन्द बालक (Mentally Retarded Children)

“मानसिक मन्दता” का सामान्य अर्थ है- औसत से कम मानसिक योग्यता। मानसिक मन्दता वाले बालकों की बुद्धि-लब्धि, साधारण बालकों की बुद्धि-लब्धि से कम होती है। अतः उनमें विभिन्न मानसिक शक्तियों की न्यूनता होती है।

स्किनर (Skinner) के अनुसार- ‘मानसिक मन्दता’ वाले बालकों के लिए अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग किया जाता है; जैसे-मन्द-बुद्धि (Mentally Retarded), अल्प-बुद्धि (Mentally Deficient), विकल-बुद्धि (Mentally Handicapped), धीमी गति से सीखने वाले (Slow Learners), पिछड़े हुए (Backward) और मूढ़ (Dull)

एक परिभाषा के अनुसार- “मानसिक मन्दता औसत से निम्न मानसिक कार्यक्षमता का उल्लेख करती है। इसका आरम्भ बालक के विकास की अवधि में होता है और वह निम्नलिखित में से एक या अधिक से अनुकूल व्यवहार की कमी द्वारा सम्बन्धित रहती है-(1) परिपक्वता, (2) अधिगम और (3) सामाजिक समायोजन।”

“Mental retardation refers to subaverage general intellectual functioning which originates during the developmental period and is associated with impairment of adaptive behaviour in one or more of the following- (1) maturation, (2) learning and (3) social adjustment.”

मन्द-बुद्धि बालक का अर्थ (Meaning of Mental Retarded Child)

मन्द-बुद्धि बालक मूढ़ (Dull) होता है। इसलिए, उसमें सोचने, समझने और विचार करने की शक्ति कम होती है। इस सम्बन्ध में कुछ विद्वानों के विचार निम्नलिखित हैं—

1. स्किनर (Skinner) – प्रत्येक कक्षा के छात्रों को एक वर्ष में शिक्षा का एक निश्चित कार्यक्रम पूरा करना पड़ता है। जो छात्र उसे पूरा कर लेते हैं, उनको ‘सामान्य छात्र’ कहा जाता है। जो छात्र उसे पूरा नहीं कर पाते हैं, उनको मन्द-बुद्धि. छात्र की संज्ञा दी जाती है। विद्यालयों में यह धारणा बहुत लम्बे समय से चली आ रही है और अब भी है।

2. क्रो एवं क्रो- जिन बालकों की बुद्धि-लब्धि 70 से कम होती है, उनको मन्द-बुद्धि बालक कहते हैं।

3. आधुनिक समय में मन्द- बुद्धि बालकों से सम्बन्धित उपर्युक्त धारणा में अत्यधिक परिवर्तन हो गया है। इस पर प्रकाश डालते हुए पोलक व पोलक ने लिखा है- “मन्द-बुद्धि बालक को अब क्षीण-बुद्धि बालकों के समूह में नहीं रखा जाता है, जिनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है। अब हम यह स्वीकार करते हैं कि उनके व्यक्तित्व के उतने ही विभिन्न पहलू होते हैं, जितने सामान्य बालकों के व्यक्तित्व के होते हैं।”

“The mentally retarded children are no longer grouped together as feeble-minded and dismissed at that. We now recognize that they have as many different facets to their personalities as normal children.” – Pollock & Pollock

मन्द-बुद्धि बालक की विशेषताएँ (Characteristics of Mentally Retarded Child)

विभिन्न लेखकों ने मन्द-बुद्धि बालक की विभिन्न विशेषताओं का उल्लेख किया है। हम उनमें से मुख्य मुख्य का वर्णन कर रहे हैं; यथा-

क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार-

  1. दूसरों के द्वारा मित्र बनाये जाने की कम इच्छा।
  2. संवेगात्मक और सामाजिक असमायोजन।
  3. दूसरों को मित्र बनाने की अधिक इच्छा।
  4. विद्यालय में असफलताओं के कारण निराशा।

स्किनर (Skinner) के अनुसार-

  1. व्यक्तियों और घटनाओं के प्रति ठोस और विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ ।
  2. दूसरों की तनिक भी चिन्ता न करने के बजाय केवल अपनी चिन्ता ।
  3. कार्य और कारण के सम्बन्ध में ऊटपटाँग धारणाएँ। उदाहरणार्थ, अपनी बीमारी के लिए थर्मामीटर पर दोषारोपण।
  4. सीखी हुई बात को नई परिस्थिति में प्रयोग करने में कठिनाई ।
  5. मान्यताओं के सम्बन्ध में अटल विश्वास ।
  6. किसी बात का निर्णय करने में परिस्थितियों की अवहेलना। उदाहरणार्थ, धन की चोरी बुरी बात, पर भोजन और अन्य वस्तुओं की चोरी बिल्कुल ठीक बात।

फ्रैंडसन (Frandsen) के अनुसार-

  1. 50 से 70 या 75 तक बुद्धि-लब्धि ।
  2. “मन्द-बुद्धि बालक धीरे-धीरे सीखते हैं, अनेक गलतियाँ करते हैं, जटिल परिस्थितियों को ठीक तरह से नहीं समझते हैं, कार्य-कारण सम्बन्धों को समझने में साधारणतः असफल होते हैं और अनेक कार्यों के परिणामों पर उचित विचार किये बिना बहुधा भावावेशपूर्ण व्यवहार करते हैं।”
  3. आत्म-विश्वास का अभाव।
  4. विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार का व्यवहार; जैसे- प्रेम, भय, मौन, चिन्ता, विरोध, पृथकता या आक्रमण पर आधारित व्यवहार ।

मन्द-बुद्धि बालक की शिक्षा (Education of Mentally Retarded Child)

मन्द-बुद्धि बालक की शिक्षा का वही स्वरूप होना चाहिए, जो पिछड़े बालक की शिक्षा का है। अत: उसकी पुनरावृत्ति न करके, अमरीका में मन्द-बुद्धि बालकों के लिए कार्यान्वित किये गये कार्यक्रमों, पाठयक्रम निर्माण के सिद्धान्तों और कुछ अन्य उल्लेखनीय बातें निम्न प्रकार हैं-

कार्यक्रम ( Programme) – स्किनर (Skinner) के अनुसार- अमेरिका में मन्द-बुद्धि बालकों के लिये तीन विशेष कार्यक्रम प्रारम्भ किये गये हैं, जैसे-

1. सामाजिक प्रशिक्षण (Social Training) – मन्द-बुद्धि बालकों को सामाजिक प्रशिक्षण सहयोगी खेलों, सामूहिक कार्यों, पर्यटनों, अध्ययन की योजनाओं और विशिष्ट शिष्टाचार की शिक्षा द्वारा दिया जाता है।

2. अपनी देखभाल का प्रशिक्षण (Training in Self-development) – मन्द-बुद्धि बालकों को अपनी देखभाल का प्रशिक्षण–कपड़े पहनने और उतारने के अभ्यास, भोजन करते समय शिष्टाचार, सफाई की आदतों और अपनी वस्तुओं एवं वस्त्रों की रक्षा करने की शिक्षा द्वारा दिया जाता है।

3. आर्थिक प्रशिक्षण (Economic Training) – मन्द-बुद्धि बालकों को आर्थिक प्रशिक्षण- हस्तशिल्पों और छोटे-छोटे घरेलू कार्यों की शिक्षा द्वारा दिया जाता है।

पाठ्यक्रम (Curriculum) – स्किनर (Skinner) के अनुसार- अमेरिका के Illinois राज्य में मन्द-बुद्धि बालकों के लिए उनके जीवन की समस्याओं के आधार पर निम्नलिखित पाठ्यक्रम तैयार किया गया है-

  1. पौष्टिक भोजन, सफाई और आराम की आदतों के साथ-साथ वास्तविक आत्म-मूल्यांकन की शिक्षा।
  2. सुनने, निरीक्षण करने, बोलने और लिखने की शिक्षा।
  3. स्थानीय यात्राओं को कुशलता से करने की शिक्षा ।
  4. अन्तर- वैयक्तिक और सामूहिक समाजीकरण में कुशलता प्राप्त करने की शिक्षा।
  5. धन, समय और वस्तुओं का उचित प्रबन्ध करने की शिक्षा ।
  6. मान्यताओं और विवेकपूर्ण नियमों की शिक्षा।
  7. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की शिक्षा।
  8. सुरक्षा, प्राथमिक चिकित्सा और आचरण सम्बन्धी नियमों की शिक्षा।
  9. घर और परिवार के उत्तरदायित्वों एवं उनके सदस्यों के रूप में सभी कार्यों को करने की शिक्षा ।
  10. निष्क्रिय और सक्रिय मनोरंजनों की शिक्षा ।
  11. विभिन्न वस्तुओं का मूल्य आँकने की शिक्षा।
  12. कार्य, उत्तरदायित्व एवं साथियों और निरीक्षकों से मिलकर रहने की शिक्षा।

व्यक्तिगत शिक्षण तथा छात्र संख्या (Number of Students)- फ्रैंडसन (Frandsen) के अनुसार, मन्द-बुद्धि बालकों को व्यक्तिगत शिक्षण की आवश्यकता है। अत: कक्षा में छात्रों की संख्या 12 से 15 तक होनी चाहिए।

विशिष्ट कक्षाएँ (Special Classes) – फ्रैंडसन (Frandsen) के अनुसार, मन्द-बुद्धि बालक अपनी सीमित योजनाओं के कारण सामान्य कक्षाओं में ज्ञान का अर्जन नहीं कर पाते हैं। ये कक्षायें उनमें सामाजिक असमायोजन का दोष भी उत्पन्न कर देती हैं। अत: उनको विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा विशिष्ट कक्षाओं में शिक्षा दी जानी चाहिए।

शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)-  फ्रैंडसन (Frandsen) के अनुसार, मन्द-बुद्धि बालकों की शिक्षा के निम्नांकित उद्देश्य होने चाहिएँ-

  1. दैनिक जीवन में वैयक्तिक, सामाजिक और आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना ।
  2. स्वस्थ आदतों का निर्माण करना ।
  3. जन्मजात व्यक्तियों का विकास करना ।
  4. स्वतन्त्रता और आत्मविश्वास की भावनाओं का विकास करना।
  5. शारीरिक स्वास्थ्य की उन्नति करना।

मन्द-बुद्धि (पिछड़े) बालकों का शिक्षक (Teacher of Mentally Retarded (Backward) Children)

मन्द-बुद्धि या पिछड़े बालकों को शिक्षा देने वाले अध्यापक में निम्नलिखित गुण, विशेषतायें या योग्यतायें होनी चाहिएँ—

  1. शिक्षक को बालकों की सहायता, परामर्श और निर्देशन देने के लिए तैयार रहना चाहिए।
  2. शिक्षक को बालकों की आवश्यकताओं का अध्ययन करके, उनको पूर्ण करने का प्रयास करना चाहिए।
  3. शिक्षक को बालकों की कमियों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए, पर साथ ही उसे विश्वास होना चाहिए कि वे प्रगति कर सकते हैं।
  4. शिक्षक को बालकों को एक या दो हस्तशिल्पों की शिक्षा देने में कुशल होना चाहिए।
  5. शिक्षक को स्वयं शारीरिक श्रम को महत्व देना चाहिए और बालकों को उसे महत्व देने की शिक्षा देनी चाहिए।
  6. शिक्षक को धीमी गति से पढ़ाना चाहिए और पढ़ाये हुए पाठ को बार-बार दोहराना चाहिए।
  7. शिक्षक में धैर्य और संकल्प के गुण होने चाहिएँ ताकि वह बालकों की मन्द प्रगति से हतोत्साहित न हो जाय।
  8. शिक्षक को बालकों का सम्मान करना चाहिए।
  9. शिक्षक में बालकों के प्रति प्रेम, सहानुभूति और सहनशीलता का व्यवहार करने का गुण होना चाहिए।
  10. शिक्षक को बालकों में संवेगात्मक सन्तुलन और सामाजिक समायोजन के गुणों का विकास करना चाहिए।
  11. शिक्षक को बालकों के स्वास्थ्य समस्याओं और सामाजिक दशाओं के प्रति व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना चाहिए।
  12. शिक्षक को बालकों को दी जाने वाली शिक्षा का उनके वास्तविक जीवन से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए।
  13. शिक्षक को बालकों उनकी संस्कृति से परिचित कराने के लिए सांस्कृतिक विषयों की शिक्षा देनी चाहिए।
  14. शिक्षक को बालकों को शिक्षा देने के लिए सरल विधियों, मूर्त्त वस्तुओं और सामूहिक क्रियाओं का प्रयोग करना चाहिए।
  15. शिक्षक को अपने शिक्षण को रोचक बनाने के लिए सभी प्रकार के उपयुक्त उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए।

कुप्पूस्वामी (Kuppuswamy) के अनुसार- “मन्द-बुद्धि बालकों के शिक्षकों को, उनको शिक्षा देने के लिए विशिष्ट कुशलता और प्रशिक्षण से सुसज्जित होने के अलावा बहुत धैर्यवान, सहनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।”

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Anjali Yadav

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