व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

माँग के नियम के अपवाद, अथवा, क्या माँग वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ हो सकता है ? Exceptions to the Law of Demand Or, Can Demand Curve Slope Upwards?

माँग के नियम के अपवाद, अथवा, क्या माँग वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ हो सकता है ? Exceptions to the Law of Demand Or, Can Demand Curve Slope Upwards?
माँग के नियम के अपवाद, अथवा, क्या माँग वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ हो सकता है ? Exceptions to the Law of Demand Or, Can Demand Curve Slope Upwards?

माँग के नियम के अपवाद, अथवा, क्या माँग वक्र ऊपर की ओर उठता हुआ हो सकता है ? (Exceptions to the Law of Demand Or, Can Demand Curve Slope Upwards?)

माँग का नियम मूल्य और माँग के मध्य विपरीत सम्बन्ध को स्पष्ट करता है परन्तु प्रो० बेनहम ने इसके कुछ अपवाद बताये हैं जिनमें यह नियम लागू नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति में मूल्य बढ़ने पर माँग बढ़ती है। और मूल्य के गिरने पर माँग घटती है। ऐसी स्थिति में माँग वक्र नीचे झुकने के स्थान पर ऊपर की ओर उठता हुआ होगा। माँग के नियम के कुछ महत्त्वपूर्ण अपवाद निम्न प्रकार हैं-

(1) गिफिन का विरोधाभास (Giffen’s Paradox) – माँग के नियम का सबसे महत्त्वपूर्ण अपवाद गिफिन का विरोधाभास माना जाता है। गिफिन 19वीं शताब्दी के ब्रिटेन के महान् सांख्यिकीविद थे। उनके शब्दों में, “जब ब्रेड के मूल्य में वृद्धि हुई तो कम मजदूरी पाने वाले श्रमिकों ने अधिक ब्रेड खरीदी और इसके मूल्य में कमी होने पर कम ब्रेड खरीदी।”

गिफिन की वस्तुयें निम्न कोटि की वस्तुओं को कहा जाता है; जैसे- मक्खन एवं माँस की तुलना में ब्रेड, देशी घी की तुलना में वनस्पति घी, दाल की तुलना में मौसम की हरी सब्जियाँ आदि । गिफिन के मतानुसार इन वस्तुओं की माँग पर माँग का नियम लागू नहीं होता। यदि इनके मूल्य में कमी होती है तो इनकी माँग बढ़ने के स्थान पर कम हो जायेगी और यदि इनके मूल्य में वृद्धि होती है तो इनकी माँग घटने के स्थान पर बढ़ जायेगी। उदाहरण के लिये, यदि वनस्पति घी की कीमत कम हो जाये और देशी घी की कीमत पूर्ववत् बनी रहे तो उपभोक्ता की वास्तविक आय बढ़ जायेगी जिसे वह अब श्रेष्ठ वस्तु (देशी घी) खरीदने पर खर्च कर सकता है। परिणामस्वरूप वनस्पति घी के मूल्य में कमी होने के बाद भी इसकी माँग कम हो जायेगी।

गिफिन का विरोधाभास तभी लागू हो सकता है जबकि (i) वस्तु घटिया किस्म की हो, (ii) उसका प्रतिस्थापन प्रभाव निर्बल हो, तथा (iii) उपभोक्ता उस वस्तु के क्रय पर अपनी आय का एक महत्वपूर्ण भाग खर्च करता हो।

(2) जीवनरक्षक आवश्यकतायें (conspicuous Necessaries) – इस नियम का एक महत्त्वपूर्ण अपवाद यह है कि यह नियम ऐसी वस्तुओं पर लागू नहीं होता जो जीवन के लिये अत्यन्त आवश्यक होती हैं; जैसे— अनाज, नमक, दवाइयाँ, माचिस आदि। यदि ऐसी वस्तुओं के मूल्य में कोई परिवर्तन होता है तो उसका इनकी माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि उपभोक्ता इन वस्तुओं के उपभोग की मात्रा को न तो आसानी से घटो सकता है और न ही आसानी से बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिये, मान लीजिये कि बाजार में नमक का मूल्य 2 रुपये किलो है और एक परिवार में एक माह में एक किलो नमक प्रयोग में आता है। अब यदि नमक का मूल्य घटकर 1 रुपया प्रति किलो हो जाये तो भी उस परिवार में उतना ही नमक खाया जायेगा जितना कि पहले खाया जाता था। यदि नमक का मूल्य बढ़कर 4 रुपये प्रति किलो हो जाये तो भी इसकी मात्रा को घटाया नहीं जा सकता।

(3) प्रतिष्ठा की वस्तुयें (Commodities of Prestige ) – माँग का नियम प्रतिष्ठा की वस्तुओं पर लागू नहीं होता है। ऐसी वस्तुओं की माँग इनके मूल्यों में वृद्धि होने पर भी समान बनी रहती है क्योंकि इन वस्तुओं का उपभोग इतने धनी लोगों द्वारा किया जाता है जिनके लिये इनका मूल्य कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। उदाहरण के लिए, यद्यपि कार का मूल्य गत वर्षों में लगातार तेजी से बढ़ रहा है तथापि इसकी माँग कम होने के स्थान पर बढ़ती ही जा रही है।

(4) ऊँचे मूल्य की वस्तुयें (High Priced Commodities) – माँग का नियम ऊँचे मूल्य की वस्तुओं पर भी लागू नहीं होता क्योंकि ऐसी वस्तुओं की उपयोगिता का मूल्यांकन इनके मूल्य के आधार पर ही किया जाता है; जैसे—क्रीम, पाउडर, प्रसाधन के अन्य सामान तथा सजावट की वस्तुयें, आदि। अतः ऐसी वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होने पर भी इनकी माँग में वृद्धि ही होगी।

(5) भविष्य में मूल्यों में और अधिक परिवर्तन की आशा (Expectation of further changes in Price) – यदि यह आशा हो कि वस्तु का मूल्य भविष्य में बदलेगा तो भी माँग का नियम लागू नहीं होता। उदाहरण के लिये, यदि किसी वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो जाये और यह आशा की जा रही है कि भविष्य में इसके मूल्य में और अधिक वृद्धि होगी तो भी इसकी माँग घटने के स्थान पर बढ़ जायेगी। इसी प्रकार, यदि किसी वस्तु का मूल्य कम हो गया है परन्तु भविष्य में इसके और अधिक कम होने की आशा है तो इसकी माँग बढ़ने के स्थान पर घट जायेगी।

(6) उपभोक्ता की अज्ञानता (Ignorance of Consumers) – प्रो० बेन्हम के अनुसार, उपभोक्ता की अज्ञानता भी माँग के नियम के लागू होने के मार्ग में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। अनेक उपभोक्ता वस्तु के मूल्य को उसके गुणों का मूल्यांकन करने के लिये प्रयोग करते हैं और वे समझते हैं कि अधिक मूल्य वाली वस्तु कम मूल्य वाली वस्तु की अपेक्षा अधिक अच्छी होती है।

(7) संकटकालीन समय (Emergencies) – माँग का नियम असाधारण परिस्थितियों, जैसे—युद्ध, अकाल, बाढ़, कर्फ्यू आदि में भी लागू नहीं होता। यद्यपि ऐसी परिस्थितियों में लगभग सभी वस्तुओं के मूल्य बढ़ जाते हैं, तथापि उनकी माँग में कमी होने के स्थान पर वृद्धि ही होती है क्योंकि उपभोक्ता ऐसी स्थिति में अधिक से अधिक वस्तु का संचय कर लेना चाहता है।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि कुछ ऐसी स्थितियाँ हैं जिनमें माँग का नियम लागू नहीं होता; परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं होगा कि माँग का नियम एक अनुपयोगी विचार है। यह नियम अर्थशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण नियम है और लगभग सभी समयों एवं स्थानों पर लागू होता है। इसके अपवाद के रूप में जिन स्थितियों का वर्णन किया जाता है वे आर्थिक जगत की सामान्य स्थितियाँ नहीं हैं।

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Anjali Yadav

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