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यथार्थवाद दर्शन की मूल मान्यताएँ तथा इसके उद्देश्य, विषयवस्तु, शिक्षण विधि एवं मूल्यांकन प्रक्रिया

यथार्थवाद दर्शन की मूल मान्यताएँ तथा इसके उद्देश्य, विषयवस्तु, शिक्षण विधि एवं मूल्यांकन प्रक्रिया
यथार्थवाद दर्शन की मूल मान्यताएँ तथा इसके उद्देश्य, विषयवस्तु, शिक्षण विधि एवं मूल्यांकन प्रक्रिया

यथार्थवाद दर्शन की मूल मान्यताएँ बताइए तथा इसके उद्देश्य, विषयवस्तु, शिक्षण विधि एवं मूल्यांकन प्रक्रिया हेतु शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन कीजिए।

यथार्थवाद दर्शन की मूल मान्यताएँ (Basic assumption of the Philosophy of Realism)

यथार्थवादी दर्शन की मूल मान्यताएँ निम्नलिखित है-

यथार्थवाद और शिक्षा के उद्देश्य (Realism and Aims of Education)

यथार्थवादी शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं-

(1) शिक्षा में आज नवीन यथार्थवाद को ही महत्त्व दिया जा रहा है। इसके प्रवर्त्तक में ब्राउडी (Braudy) महोदय एक हैं। उन्होंने नवीन यथार्थवादी शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के सुस्पष्ट ज्ञान तथा सुनियोजित कला का प्रतिपादन करना बताया है। ऐसा करने से व्यक्ति जीवन की गूढ़तम परिस्थितियों का भी सामना कर सकता है। इसलिए शिक्षा का उद्देश्य अच्छा जीवन (Good life) बिताना है। इस अच्छे जीवन को प्राप्त करने के लिए ज्ञान तथा अच्छी-अच्छी कलाओं का सीखना परम आवश्यक है। शर्त यह है कि ये ज्ञान और कलायें वर्तमान जीवने की आवश्यकताओं के अनुसार जीवन व्यतीत करने का तरीका सिखा सकें।

(2) व्यक्ति जो कुछ करता है वही प्रदर्शनीय तथ्य है। अतएव शिक्षा का उद्देश्य प्रदर्शनीय तथ्यों पर निर्भर होना चाहिए। व्यक्ति का सम्बन्ध समाज तथा प्रकृति के साथ होता है। इसलिए प्रकृति और समाज के साथ समायोजन करने की योग्यता ले आना ही शिक्षा का उद्देश्य है।

(3) यथार्थवाद शिक्षा को सामाजिक शिक्षा के रूप में देखता है। कमेनियस ने कहा भी है, “विद्यालय मनुष्य के निर्माण का एक सच्चा स्थान है।” जॉन वाइल्ड महोदय ने लिखा है कि, “समस्त मूल अधिकारों में शिक्षा का अधिकार सबसे बहुमूल्य है तथा इसको प्राप्त करने की आवश्यकता सबसे अधिक है।” ब्राउडी ने विद्यालयों की आवश्यकता इसलिए समझी क्योंकि यह बालक को ज्ञान प्रदान करते हैं। रेडन तथा रेयन महोदयों ने इस बात में अपना विश्वास व्यक्त किया है कि विद्यालय का मुख्य उद्देश्य शिक्षण द्वारा अनुशासन स्थापित करना एवं बालकों को सक्रिय बनाना है उनके भौतिक, सामाजिक, मानसिक तथा नैतिक विकास को प्राप्त करना है।

(4) बालक को समाज का पूर्ण ज्ञान प्रदान करना शिक्षा का उद्देश्य है. क्योंकि बालक जब तक प्रकृति और समाज के विषय में भली प्रकार पूर्ण जानकारी न प्राप्त करेगा तब तक वह अपने को सामाजिक वातावरण के योग्य नहीं बना सकता है।

(5) यथार्थवाद विद्यालय में प्राप्त होने वाले कोरे ज्ञान में भी विश्वास नहीं करता है, क्योंकि बालक जब तक व्यावहारिक जीवन बिताने की कला से परिचित न होगा तब तक उसका केवल कोरा ज्ञान किसी काम का नहीं। अतः बालक को ऐसा ज्ञान प्रदान करना है जो उसको व्यावहारिक जीवन का सामना करने में समर्थ बनावे ।

(6) बालक वास्तविक पदार्थ का ज्ञान प्राप्त करे। उसमें शिक्षा के द्वारा ऐसी शक्तियों का विकास किया जाता है कि इन्द्रिय ज्ञान के द्वारा प्रदत्तों का विश्लेषण करके विवेक के द्वारा उनके विषय में वास्तविकता का परिचय प्राप्त करे।

(7) यथार्थवादी अपनी शिक्षा का उद्देश्य एक यह भी बताते हैं कि शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को इस योग्य बनाना है जिससे कि वह वास्तविक जगत् को पहचान सके तथा लौकिक और व्यावहारिक जीवन का पूर्ण रहस्य समझ सके।

यथार्थवाद और शिक्षा का पाठ्यक्रम (Realism and Curriculum of Education)

यथार्थवादी अपनी शिक्षा के लिये जिस पाठ्यक्रम की ओर संकेत करते हैं वह अत्यन्त ही विस्तृत है। इसीलिए यथार्थवादी शिक्षा के लक्ष्य इस पाठ्यक्रम के द्वारा पूरे हो जाते हैं। यथार्थवादी शिक्षा के पाठ्यक्रम के स्वरूप का उल्लेख विस्तार के साथ क्रम में नीचे स्पष्ट किया गया है –

(1) यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा का पाठ्यक्रम पर्याप्त विस्तृत होना चाहिए। इस पाठ्यक्रम में अनेक विषय रखे जायें तथा छात्रों को इस बात के लिए पूर्ण स्वतन्त्रता हो कि वे अपनी रुचि और शक्ति के अनुसार उनमें से विषयों का चयन कर सकें। विषयों को चुनने की उनको पूरी स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।

(2) अब समस्या यह है कि बालक कौन-कौन से विषय चुने? कौन विषय उनके लिए अधिक उपयोगी हैं और कौन से विषय उनके लिए अनुपयोगी, इसका निर्णय बालक स्वयं नहीं कर सकेंगे। इसके लिए उन्हें पथ-प्रदर्शक मिलना चाहिए जो यह बता सके कि अमुक विषय उत्तम है और शेष नहीं। बालक की मदद इस दिशा में शिक्षक और माता-पिता कर सकते हैं।

(3) विषय सामाजिक आवश्यकता और माँग के अनुसार होने चाहिए। ये विषय असम्बद्ध नहीं होने चाहिए क्योंकि असम्बद्ध विषयों को पढ़ाने से कोई लाभ नहीं होता। छात्र अनेक विषयों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए अनेक विषयों की शिक्षा प्राप्त करे।

(4) जिस विषय की उपयोगिता सिद्ध हो केवल वही विषय पढ़ाया जाना चाहिए। आधुनिक भाषाएँ पढ़ाई जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त अन्य विषयों की अवहेलना करते हैं।

(5) यथार्थवादियों ने भौतिकी, रसायनशास्त्र, जीवविज्ञान, नक्षत्र विद्या आदि विज्ञानों को अधिक महत्त्व दिया है।

यथार्थवाद और शिक्षण पद्धति (Realism and Methods of Teaching)

यथार्थवादियों ने जिन शिक्षण विधियों को मान्यता दिया है उनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यथार्थवादी शिक्षा में अध्यापक वस्तुनिष्ठ ढंग से तथ्यों तक पहुँचने में बालक की सहायता करता है। निजी ज्ञान को वस्तुनिष्ठ ज्ञान बनाने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए अध्यापक संकेत विधि का प्रयोग करे तो अच्छा है।

(2) प्रतीक तथा मूल वस्तु का सम्बन्ध स्थापित करके शिक्षा दी जानी चाहिए। जैसे अश्व तो प्रतीक है। इस प्रतीक से अश्व का अर्थ स्पष्ट नहीं हो सकता इसलिए से वस्तु सम्बन्ध स्थापित करके बच्चे को ज्ञान देने पर बल दिया जाना चाहिए।

(3) भाव, इच्छा और क्रिया के प्रयोग से काव्य आदि विषयों को पढ़ाया जाना चाहिए। अतः कभी-कभी प्रतीकों का भी बड़ा महत्त्व है लेकिन सभी के लिए एक प्रतीक का एक ही अर्थ होना चाहिए।

(4) कथन में भावना को स्थान न देना चाहिए।

(5) तथ्य वही सत्य हैं जो प्रमाणों को सिद्ध कर सकें। जिनके लिए अप्रत्यक्ष प्रमाण हैं उनके लिए परिकल्पना का प्रयोग किया जाता है।

(6) शिक्षण विधि ऐसी हो जिससे छात्रों को यथार्थ का ज्ञान हो सके। वे इस जगत् को वैसा ही समझें जैसा कि वह यथार्थ में है।

(7) पाठ्य विधि द्वारा तथ्यों का स्पष्टीकरण होना चाहिए।

(8) तथ्य केन्द्रित शिक्षण विधि (Fact Centred) अच्छी होती है।

(9) प्रत्ययों का उचित निर्माण करने वाली शिक्षण विधि।

(10) खण्डों से पूर्ण तक पहुँचने वाली शिक्षण-विधि अच्छी होती है।

(11) यथार्थवादियों के अनुसार शिक्षण विधि ऐसी होनी चाहिए कि छात्र तथ्यों को तर्कपूर्ण ढंग से वर्गीकृत करने के योग्य बन सकें।

(12) ब्राउडी ने सीखने की क्रिया के 6 स्तरों का वर्णन किया है। वे हैं-

  • (अ) प्रेरणा,
  • (ब) प्रत्यक्षीकरण
  • (स) जाँच प्रतिक्रिया,
  • (द) सूझ और आदर्श प्रतिक्रिया को प्राप्त करना,
  • (य) आदत का बनना अथवा आधिपत्य प्राप्त करना,
  • (र) परीक्षण।

यथार्थवाद और बालक (Realism and Educand)

चूँकि बालक एक वास्तविक इकाई है इसलिए यथार्थवाद में उसे महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। बालक में कुछ भावनायें तथा इच्छायें आदि हैं इसलिए उनका अस्तित्व है। बालक में जो ये शक्तियाँ होती हैं, यथार्थवादी उनका आदर करते हैं। शिक्षा की योजना बनाते समय उसकी इन सभी शक्तियों का आदर किया जाता है। प्रकृतिवादी की तरह प्रयोगवादी यह नहीं चाहता कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए उसे स्वतन्त्र छोड़ दिया जाय। यथार्थवादी तो यह चाहते हैं कि बालक ज्ञान के प्रकाश की ओर बढ़े और उसके प्रकाश में वह यथार्थ को देख सके। यथार्थ की जानकारी उसको प्राप्त हो सके।

यथार्थवादी मानते हैं कि बालक विवेक के द्वारा सीखता है। विवेक से सीखकर वह आगे बढ़ता है। उसे ज्ञान प्राप्त करने या नई बातों को सीखने में बुद्धि की बड़ी सहायता मिलती है। इसलिए सीखने में बुद्धि का बड़ा स्थान होता है। बुद्धि निराकार है, इसलिए बुद्धि एक शक्ति है। इस शक्ति को सदैव स्वतन्त्र रखना चाहिए जिससे कि वह यथार्थ का ज्ञान प्राप्त कर सके।

यथार्थवादी कहते हैं कि बालक में बुद्धि का विकास करना है। उसकी बुद्धि को अधिक से अधिक स्वतन्त्रता देनी है। बुद्धि का स्वरूप निश्चित नहीं होता। इसको अनिश्चित होना चाहिए। उसको इतनी छूट देनी है कि वह हर किसी तथ्य में आगे बढ़ता रहे। बच्चों में तथ्यों के प्रति अपार प्रेम पैदा होना चाहिए। वे तथ्यों के भक्त हो जायँ तो और अच्छा है। हाँ, उन्हें सिद्धान्तों से प्रेम नहीं करना है।

बालक को तभी सिखाया जा सकता है जब कि वह सीखने के नियमों पर चले। यथार्थवादी प्रकृति की समरूपता को मानता है। सीखने की दिशा में पवलव का प्रयोग उसी प्रकार से सत्य है जैसे की गुरुत्वाकर्षण की शक्ति का नियम ।

बच्चे को वास्तविक संसार का प्राणी समझना चाहिए। मनुष्य को बनाने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए बच्चे को मनुष्य बनने की शिक्षा दी जाय। इतना ही बहुत है कि शिक्षा उसे मनुष्य बना दे जिससे वह किसी परिस्थिति से न घबराये और उसमें ऐसी शक्ति का विकास हो कि वह पलायनवादी न बने।

यथार्थवाद और शिक्षक (Realism and Teacher)

यथार्थवादियों के अनुसार अध्यापक की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) यथार्थवादी अध्यापक विज्ञान से अनुराम रखता है तथा इस विषय में वह अपनी अटूट श्रद्धा रखता है। वह अपने छात्रों में भी वैज्ञानिक प्रवृत्ति का विकास करने की कोशिश करता है।

(2) वह किसी अच्छे क्षेत्र में स्वयं अन्वेषण करना चाहता है। वह अपने अन्वेषण को सफल बनाने के लिए हर प्रकार का प्रयास करता है।

(3) यथार्थवादी शिक्षक अधिक ज्ञान की हठवादिता या ढोंग से दूर रहता है। वह यह मान लेता है कि मैं सब कुछ नहीं जान सकता। इसलिए वह किसी एक क्षेत्र में ही अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करता है। वह सीखने के लिये भिन्नता की विधि को अपनाता है तथा किसी एक विचलन का ही प्रभाव जानने की कोशिश करता है।

(4) यथार्थवादी शिक्षण एक परिस्थिति में एक प्रयोग करके उसके परिणाम को जानने में का प्रयास करता है।

(5) यथार्थवादी अध्यापक यह देखता है कि विज्ञान के द्वारा खोजे गये कौन-कौन से ‘नियम हैं? वह इन नियमों से अपने सभी छात्रों को परिचित कराना चाहता है।

(6) यथार्थवादी अध्यापक, यथार्थवादी छात्र की जानकारी करवाने में समर्थ होता है। वह यह भली प्रकार जानता है कि किस छात्र की कौन-कौन सी इच्छाएँ यथार्थ हैं।

(7) वह अपने छात्रों को व्यवस्थित जानकारी देना चाहता है तथा छात्र को अपनी मान्यताओं से परिचित न कराकर सत्य क्या है, केवल इसी से परिचित कराना चाहता है।

(8) यथार्थवादी अध्यापक अपने छात्रों को अन्वेषण के लिये प्रेरित करता ही है, साथ ही-साथ वह भी छात्रों के साथ अन्वेषण करने में लगा रहे ।

यथार्थवाद और विद्यालय (Realism and School)

यथार्थवाद के अनुसार विद्यालय व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख नीचे किया गया है –

(1) यथार्थवादी विद्यालय का संगठन वास्तविक आवश्यकताओं पर आधारित होता है। उदाहरणस्वरूप समाज की माँग की ओर इसमें विशेष ध्यान दिया जाता है। यह देखा जाता है कि यदि समाज किसी विशेष स्थान पर किसी विशेष विद्यालय को खोलने की इच्छा व्यक्त करता है तो वहाँ ऐसा विद्यालय अवश्य खोला जाना चाहिए तथा जिन स्थलों पर निरर्थक रूप से विद्यालयों का निर्माण कर दिया गया है, उनको नष्ट कर देना चाहिए।

(2) यथार्थवादियों का कहना है कि प्रत्येक विद्यालय में केवल साहित्य के विषयों को ही महत्त्व दिया जाय यह इच्छा नहीं है। इसलिए चाहे किसी भी स्थान पर विद्यालय हो उसमें विज्ञान की कक्षाओं का चलाया जाना परम आवश्यक है। यदि विज्ञान की शिक्षा के लिए साहित्य की शिक्षा का खून करना पड़े तो कोई बात नहीं, ऐसा किया जा सकता है।

(3) यथार्थवादियों के अनुसार सह-शिक्षा ठीक है। काम-वासना प्राकृतिक चीजें हैं। इन पर अधिकार नहीं किया जा सकता है। बच्चों को स्त्रियों से अलग-अलग क्यों रखा जाय, जब इन्हें आगे अलग रहना नहीं तो इस बनावटी अलगाव की क्या आवश्यकता है? युवक और युवतियाँ एक साथ शिक्षा प्राप्त करें, एक साथ अनुभव करें तो, उन्हें आगे जीवन की तैयारी में सहायता मिलेगी।

(4) विद्यालय समाज का दर्पण होना चाहिए। यथार्थवादी यह कहते हैं कि विद्यालय का वातावरण जितना सरल होगा उतना ही अच्छा है तथा उसमें उन सभी क्रियाओं को करने के लिए प्रोत्साहन मिलना चाहिए जो हमारे समाज में हो रही हैं। इस प्रकार से विद्यालय समाज का वास्तविक रूप प्रस्तुत कर सकने में सफल हो सकता है।

(5) विद्यालय में अनुशासन का ध्यान रखा जाना आवश्यक है। डॉ० माथुर ने यथार्थवादी अनुशासन पर प्रकाश डालते हुए लिखा है कि, “यथार्थवादी अनुशासन से तात्पर्य बालक को यथार्थ जगत् से समायोजित करना समझते हैं। वह अनुशासन की शिक्षा पर बल देते हैं। वह चाहते हैं कि बालक अपने चारों ओर के वातावरण को समझे और उसके ही अनुकूल अपने को बनाये। जगत् की कुटिलताओं से न घबराने वाला छात्र ही उनके अनुसार अनुशासित है। छात्र स्वयं इस जगत् का एक अंश है। उसे इस तथ्य को स्वीकार करके जगत् के अनुकूल अपने को बनाना है।”

शैक्षिक निहितार्थ (Educational Implication)

(1) पुस्तकीय एवं अवास्तविक पाठ्यक्रम का विरोध- यथार्थवाद में शिक्षा के क्षेत्र में पुस्तकीय गूढ़ एवं अवास्तविक पाठ्यक्रम का विरोध किया गया है। यथार्थवादियों ने प्राचीन पाठ्य पुस्तकों, क्लासिक्स आदि के अध्ययन को कोई महत्त्व नहीं दिया।

(2) इन्द्रिय ज्ञान का सिद्धान्त- यथार्थवादी विचारधारा के अनुसार हमारी इन्द्रियाँ ही ज्ञान की मुख्य साधन हैं। इसी प्रकार यथार्थवादियों ने पुस्तकों के स्थान पर वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया है।

(3) विज्ञान की शिक्षा पर विशेष बल- यथार्थवादियों के अनुसार व्याकरण, साहित्य और अन्य निरर्थक विषयों के स्थान पर विज्ञान की शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए।

(4) शिक्षा का वर्तमान जीवन से सम्बन्ध- यथार्थवादियों ने शिक्षा के वर्तमान जीवन से सम्बन्ध स्थापित किया है। उन्होंने देश और समाज के अनुसार शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया।

(5) यथार्थवादियों ने सामान्य शिक्षा के साथ ही व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल दिया। इंग्लैण्ड की स्पेन्स रिपोर्ट में लिखा गया- “शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य किसी व्यवसाय के हेतु तैयार करना है। किसी विशेष व्यावसायिक प्रशिक्षण को ही विद्यालय-जीवन का लक्ष्य बनाया जाना चाहिए।” यथार्थवादियों ने मानवीय शिक्षा की व्यवस्था की बात भी कही है।

(6) शिक्षा द्वारा मानव जीवन की पूर्णता- यथार्थवादियों का यह विचार था कि मानव जीवन में पूर्णता शिक्षा के माध्यम से ही आती है। शिक्षा व्यक्ति की स्वाभाविक रुचियों के अनुसार ही दी जानी चाहिए। जब इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जायेगी तभी वह वास्तविक रूप में उपयोगी होगी। शिक्षा द्वारा जीवन की सार्थकता के चरम लक्ष्यों की प्राप्ति में योगदान दिया जाता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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