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योजना विधि के पद
योजना विधि से शिक्षण करते समय निम्नलिखित पदों का अनुसरण किया जाये-
(1) परिस्थिति उत्पन्न करना – शिक्षक बालकों से विचार विमर्श करके ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करता है कि उनकी किसी विशेष कार्य में रूचि जाग्रत हो जाती है और उससे संबंधित समस्या का समाधान करने के लिये तत्पर हो जाते हैं।
(2) योजना का चयन – समस्या के समाधान के लिए बालक विभिन्न प्रकार की योजना प्रस्तुत करते हैं। शिक्षक उन योजनाओं के गुण-दोषों का विवेचन करके उन्हें ऐसी योजना को चुनने में सहायता देते हैं जो सर्वोत्तम तथा समस्त बालकों को मान्य तथा सर्वाधिक महत्व की होती है।
( 3 ) उद्देश्य निरूपण – शिक्षक छात्रों की रूचि, आवश्यकता तथा उनकी योग्यताओं को ध्यान में रखकर लक्ष्यों का निर्धारण कर आवश्यक निर्देश एवं सुझाव प्रस्तुत करते हैं।
(4) योजना का कार्यक्रम बनाना – निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये विभिन्न साधनों पर विचार-विमर्श किया जाता है। साथ ही उनका तुलनात्मक अध्ययन करके उपयुक्त कार्यक्रम का चयन किया जाता है।
(5) योजना का कार्यन्वयन – कार्यक्रम को निश्चित करने के बाद उसे छात्रों – द्वारा पूर्ण किया जाता है। छात्र कार्यक्रम में निर्धारित विभिन्न क्रियाओं को वैयक्तिक एव सामूहिक रूप से पूर्ण करते हैं। शिक्षक उनकी क्रियाओं का निरीक्षण आवश्यकतानुसार मार्गदर्शन करते हैं।
(6) योजना का मूल्यांकन- इस पद से विचार-विमर्श करके यह ज्ञात किया जाता है कि लक्ष्यों की प्राप्ति हुई अथवा नहीं सब छात्र अपने कार्य के सम्बंध में अपने अपने विचार व्यक्त करते हैं। शिक्षक उनके कार्य की जांच करके सफलता का आंकलन करते हैं।
(7) योजना का लिखना- मूल्यांकन के उपरांत छात्र की योजना पुस्तिका में उसका विवरण लिखते हैं। शिक्षक उनके विवरण को पढ़कर उनके कार्य और प्रगति के सम्बंध में अपने विचार निश्चित करते हैं।
योजना विधि के गुण
- योजना वैयक्तिक और सामूहिक दोनों प्रकार की हो सकती है, इसमें बालक के आत्मविश्वास धैर्य और ज्ञान आदि गुणों का विकास होता है।
- सामाजिक गुणों का विकास होता है।
- विभिन्न विषयों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है।
- स्वाध्याय की आदत का विकास होता है।
- रचनात्मक प्रवृत्ति का विकास होता है।
- व्यावहारिक जीवन की शिक्षा स्वतः प्राप्त कर लेते हैं।
- क्रियात्मक विधि पर बल दिया जाता है।
- प्रत्येक छात्र अपनी क्षमतानुकूल कार्य करने में सक्षम होता है।
- छात्रों में सामाजिक आदर्शों, गुणों तथा अभिरूचियों का विकास होता है।
- श्रम के प्रति निष्ठा ।
- वैयक्तिक भेदों के अनुकूल सीखने के अनुभव प्रदान करता है।
योजना विधि के दोष
- इस विधि के द्वारा क्रम तथा तारतम्य के साथ ज्ञान प्रदान नहीं किया जा सकता।
- विधि बहुत व्यय पूर्ण है।
- समय अधिक लगता है।
- इसके प्रयोग से शालेय कार्य निष्क्रिय हो जाता है।
- पाठ्यपुस्तक योजनाओं के आधार पर नहीं लिखी गई है, अतः योजनाओं की पूर्ति के लिये सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाती।
- अर्जित ज्ञान की पुनरावृत्ति के लिए कोई स्थान नहीं है।
- इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान अत्यधिक अनिश्चित अत्यधिक अव्यवस्थित और अत्यधिक तात्कालिक होता है।
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