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राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में कौन से क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है?

राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में कौन से क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है?
राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में कौन से क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है?
राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में कौन से क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है?

राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम क्षेत्र

राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में निम्न क्षेत्रों को सम्मिलित किया जा सकता है-

जिस प्रकार राजनीति विज्ञान की परिभाषा विभिन्न विचारकों ने विभिन्न प्रकार से की है, उसी प्रकार उसके क्षेत्र को भिन्न-भिन्न लेखकों ने विभिन्न शब्दों में व्यक्त किया है। उदाहरणार्थ फ्रांसीसी विचारक ब्लुंशली के अनुसार “राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य के आधारों से है वह उसकी आवश्यक प्रकृति, उसके विविध रूपों, उसकी अभिव्यक्ति तथा उसके विकास का अध्ययन करता है।” डॉ. गार्नर के अनुसार “इसकी मौलिक समस्याओं में साधारणतः प्रथम राज्य की उत्पत्ति और उसकी प्रकृति का अनुसंधान, द्वितीय राजनीतिक संस्थाओं की प्रगति, उसके इतिहास तथा उनके स्वरूपों का अध्ययन, तथा तृतीय, जहां तक संभव हो, इसके आधार पर राजनैतिक और विकास के नियमों का निर्धारण करना सम्मिलित है। गैटेल ने राजनीति शास्त्र के क्षेत्र का विस्तृत वर्णन करते हुये लिखा है कि “ऐतिहासिक दृष्टि से राजनीति शास्त्र राज्य की उत्पत्ति, राजनीतिक संस्थाओं के विकास तथा अतीत् के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।… वर्तमान का अध्ययन करने में यह विद्यमान राजनीतिक संस्थाओं तथा विचारधाराओं का वर्णन, उनकी तुलना तथा वर्गीकरण करने का प्रयत्न करता है। परिवर्तनशील परिस्थितियों तथा नैतिक मापदण्डों के आधार पर राजनीतिक संस्थाओं तथा क्रियाकलापों को अधिक उन्नत बनाने के उद्धेश्य से राजनीति शास्त्र भविष्य की ओर भी देखता हुआ यह भी विचार करता है कि राज्य कैसा होना चाहिये।”

राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के विषय में उपरोक्त परिभाषाओं से तीन विचारधाराएँ सामने आती है प्रथम राज्य को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मानती है, द्वितीय विचारधारा सरकार पर ही ध्यान केन्द्रित करती है तृतीय विचारधारा राज्य व सरकार दोनों को राजनीति विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय मानती है। तृतीय विचारधारा सत्य के ज्यादा निकट है, यद्यपि हमें मानव तत्व की उपेक्षा नहीं करती चाहिये।

परम्परागत राजनीति विज्ञान का क्षेत्र निर्धारण करने हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ की यूनेस्को नामक संस्था के द्वारा सितम्बर 1948 में विश्व के प्रमुख राजनीति शास्त्रियों का सम्मेलन अयोजित किया गया जिसमें परम्परागत राजनीति विज्ञान के क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित अध्ययन विषय शामिल किये जाने का निर्णय किया गया-

  1. राजनीति के सिद्धान्त- अतीत और वर्तमान के राजनीतिक सिद्धान्तों एवम् विचारों का अध्ययन।
  2. राजनीतिक संस्थाएँ- संविधान, राष्ट्रीय सरकार, प्रादेशिक व स्थानीय शासन का सरल व तुलनात्मक अध्ययन।
  3. राजनीतिक दल, समूह एवं लोकमत- राजनीतिक दल एवं दबाब समूहों का राजनीतिक व्यवहार, लोकमत तथा शासन में नागरिकों के भाग लेने की प्रक्रिया का अध्ययन।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय विधि, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रशासन का अध्ययन।

परम्परागत राजनीति शास्त्रियों एवम् यूनेस्को के दृष्टिकोण के आधार पर परम्परागत राजनीति विज्ञान के पाठ्यक्रम में निम्न बिन्दुओं को सम्मिलित किया जा सकता है-

1. मानव के राजनीतिक जीवन का अध्ययन- जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि, प्रत्येक सामाजिक शास्त्र मानव के कार्यकलापों के किसी पहलू विशेष को लेकर विकसित हुआ है। राजनीति विज्ञान मनुष्य के कार्यकलापों के उस पहलू का अध्ययन है जिसका संबंध राज्य से है। राज्य नागरिकों से बनता है या यह कहें कि मनुष्य के हित के लिये ही राज्य अस्तित्व में आता हैं। राज्य व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है और इस प्रकार मानव जीवन को सार्थक बनाता है। प्रत्येक राज्य के नागरिक कुछ अधिकारों का उपभोग करते है और राज्य उन्हें संरक्षण प्रदान करता है तथा राज्य के प्रति नागरिक के कुछ कर्तव्य भी होते हैं जिनका पालन व्यक्ति को करना आवश्यक है। अतः राजनीति विज्ञान में मनुष्य के अधिकारों कर्तव्यों तथा राज्य व मनुष्य के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन होता है।

2. राज्य का अध्ययन- राजनीति विज्ञान में राज्य का सम्पूर्ण एवं सर्वकालीन अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत राज्य के अतीत, वर्तमान एवम् भविष्य तीनों का अध्ययन किया जाता है-

(i) राज्य के अतीत का अध्ययन- राजनीति विज्ञान इस तथ्य का अध्ययन करता है कि प्राचीन काल में राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, एवम् वर्तमान काल तक उसका विकास कैसे हुआ है। यह यूनान के ‘नगर-राज्य’ से आधुनिक राष्ट्र राज्य तक के विकास का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान इस तथ्य का भी अध्ययन करता है कि प्रारंभ में राज्य का कार्यक्षेत्र अत्यंत सीमित था और किस प्रकार वर्तमान काल तक उसके कार्यक्षेत्र में निरन्तर वृद्धि हुई है। राजनीति विज्ञान अतीत में राज्य के सन्दर्भ में उत्पन्न विभिन्न राजनीतिक विचारों व धारणाओं का भी अध्ययन करता है। मनुष्य के राजनीतिक विचारों के राज्य के स्वरूप पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन राजनीति विज्ञान करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान में हम सर्वप्रथम राज्य तथा राजनीतिक विचारधारा के विकास का ऐतिहासिक विवेचन करते है।

(ii) राज्य के वर्तमान का अध्ययन- आधुनिक राष्ट्र राज्य अतीत के राज्य से भिन्न है। राज्य के इस वर्तमान स्वरूप एवं विशेषताओं का अध्ययन राजनीति विज्ञान में किया जाता हैं। अरस्तू ने लिखा है- “राज्य की उत्पत्ति जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं के कारण हुई और अच्छे जीवन के लिये ही उसका अस्तित्व चलता आ रहा है। आधुनिक युग में राज्य सर्वोपरि एवं सर्वोत्कृष्ट मानव संगठन है। आधुनिक राष्ट्र राज्य मूलतः संविधानवादी राज्य है, वह लोककल्याण के दायित्व को स्वीकारता है। इस राज्य के आन्तरिक एवं बाह्य दो प्रकार के कार्यक्षेत्र है। आन्तरिक कार्यक्षेत्र के प्रमुख कार्य है-राष्ट्रीय संविधान के अनुसार शासन करना, शांति व व्यवस्था बनाये रखना, न्याय करना तथा जनता के कल्याण के लिए विभिन्न सामाजिक व आर्थिक कार्य करना। राष्ट्र के बाह्य कार्य क्षेत्र में विदेश नीति का संचालन, अन्य राज्यों से संबंध तथा अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों का पालन आते हैं। राजनीति विज्ञान आधुनिक राष्ट्र राज्य से संबन्धित विभिन्न विचारधाराओं का अध्ययन करता है।

(iii) राज्य के भविष्य का अध्ययन – परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इतिहास बताता है कि राज्य प्रारंभ से ही एक विकासशील संस्था है अतः राज्य के वर्तमान स्वरूप को भी अंतिम नहीं माना सकता। अतीत की भांति वर्तमान समय में भी ऐसे अनेक सिद्धांतों का विकास हो रहा है, जो राज्य के स्वरूप, उद्धेश्य एवम् कार्यक्षेत्र के संबंध में अनेक नवीन विचार हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। राजनीति विज्ञान राज्य के वर्तमान स्वरूप, संगठन एवं कार्यों में परिवर्तन चाहने वाली विचारधाराओं का भी अध्ययन करता है। इस दृष्टि से राजनीति विज्ञान नवीन उदारवाद, बहुलवाद, समाजवाद, साम्यवाद तथा अराजकतावाद आदि विचारधाराओं का अध्ययन करता है।

3. सरकार का अध्ययन- राज्य के संबंध में कोई अध्ययन तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक हम उसके उस यन्त्र का अध्ययन न करें जिसके द्वारा उसकी अभिव्यक्ति होती है और जिसे हम सरकार कहते हैं। राजनीति विज्ञान वर्तमान काल में विभिन्न देशों में विद्यमान शासन-प्रणालियों का सरल व तुलनात्मक अध्ययन करता हैं। यह किसी शासन के अन्तर्गत मौजूदा शासन के तीनों अंगों-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका का अध्ययन करता है और इन अंगों के आपसी संबंधों की व्याख्या करता हैं। इसके साथ ही वर्तमान काम की लोकतांत्रिक प्रणाली के अन्तर्गत चुनाव प्रणाली, प्रतिनिधित्व की समस्या व लोक प्रशासन का भी अध्ययन किया जाता है।

4. स्थानीय एवं राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन- राजनीति विज्ञान स्थानीय एवम् राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन करते हुये इन समस्याओं के समाधान भी सुलझाता है। इस सन्दर्भ में स्थानीय संस्थाओं के संगठन, कार्यप्रणाली तथा कार्यक्षेत्र का अध्ययन भी किया जाता है। उदाहरणार्थ भारत में स्थानीय स्वशासन एवं पंचायती राज्य व्यवस्था का अध्ययन राजनीति विज्ञान में होता है। राजनीति विज्ञान राष्ट्रीय एकता, अखण्डता तथा विकास के मार्ग में बाधक समस्याओं तथा इन समस्याओं के समाधान के लिये भावनात्मक एकता पंथ निरपेक्षता, सामाजिक न्याय, योजनाबद्ध विकास, भाषा नीति आदि साधनों का अध्ययन करता है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संबंधों का अध्ययन- राजनीति विज्ञान में वर्तमान की औद्योगिक एवं वैज्ञानिक विकास के परिणामस्वरूप विश्व समुदाय की सामूहिक गतिविधियों एवं उनके संबंधों का अध्ययन करता है। देशों के पारस्परिक संबंधों के अध्ययन के साथ ही अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रमण्डल, गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आसियान एवम् अन्य का अध्ययन करता हैं। अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं आधुनिक विश्व के समक्ष अनेक चुनौतियों-जैसे आतंकवाद, मादक द्रव्यों की तस्करी का भी राजनीति विज्ञान अध्ययन करता है।

6. राजनीतिक विचारधाराओं का अध्ययन – प्राचीन काल से वर्तमान काल तक अनेक विचारधाराएँ अस्तित्व में आई है। इन विचारधाराओं ने राजनीति के आदर्शवादी एवम् यथार्थवादी मूल्यों पर विचार किया है। इन विचारधाराओं के द्वारा राज्य की उत्पत्ति, प्रकृति, उद्देश्य साधन, व कार्यों के अतिरिक्त व्यक्ति-‘राज्य के पारस्परिक संबंधों पर भी विचार किया है। कानून स्वतंत्रता एवम् समानता की अवधारणा भी राजनीति विज्ञान के अध्ययन का विषय है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान प्रत्ययवाद, व्यक्तिवाद, अराजकतावाद, फासीवाद, समाजवाद, साम्यवाद व बहुलवाद आदि विचारधाराओं का सरल व तुलनात्मक अध्ययन करता है।

7. राजनीतिक दलों एवम् दबाब समूहों का अध्ययन- वर्तमान शासन व्यवस्थाओं के संचालन में राजनीतिक दलों एवम् दबाब समूहों की महत्वपूर्ण भूमिका है। राजनीतिक दल चुनाव में भाग लेकर सरकार का निर्माण एवं संचालन करते है। दबाब समूह अप्रत्यक्ष रूप से सरकार की नीतियों को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक दल एवम् दबाब समूह लोकमत निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं राजनीति विज्ञान इन दोनों की भूमिका एवं कार्यों का अध्ययन करता है। उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान का क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। सभ्यता के विकास के साथ-साथ इसका क्षेत्र भी विस्तृत होता जा रहा है आज राजनीति विज्ञान में ऐसे अराजनीतिक प्रकृति के संगठन व समुदायों का भी अध्ययन होने लगा है जो राज्य की नीतियों व निर्णयों को प्रभावित करते है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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