राजनीति विज्ञान में पाठ्यपुस्तक पद्धति का वर्णन कीजिये।
पाठ्यपुस्तक पद्धति – विभन्न शिक्षण पद्धतियों में भाषण-पद्धति एवं पाठ्य पुस्तक पद्धति शिक्षण की परम्परागत पद्धतियाँ कहलाती हैं। अध्ययन एवं अध्यापक की यह सरल पद्धति हैं। इसी कारण अधिकांश उच्चतर माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक विद्यालयों में यह पद्धति अपनायी जाती है। जहाँ तक पाठ्यपुस्तक पद्धति का सम्बन्ध है, हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि पाठ्यपुस्तक अध्ययन तथा पाठ्यपुस्तक पद्धति द्वारा अध्यापन में पर्याप्त अन्तर है। पाठ्यपुस्तक का अध्ययन विभिन्न शिक्षण पद्धतियों को सफल बनाने हेतु किया जाता है, जबकि पाठ्यपुस्तक पद्धति द्वारा अध्ययन एक पूर्व निर्धारित दिशा में किया जाता । इस सम्बन्ध में पाठ्यपुस्तक पद्धति का स्वरूप स्पष्ट करते हुए प्रो. वेस्ले ने लिखा है, “पाठ्यपुस्तक पद्धति ज्ञानार्जन की वह पद्धति है जिसका निकटतम उद्देश्य पाठ्य पुस्तक का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होता है।”
पाठ्यपुस्तक पद्धति का कमजोर तथा परिश्रमी दोनों ही प्रकार के छात्र भली प्रकार प्रयोग कर सकते हैं। पाठ्यपुस्तक का बड़े स्तर पर प्रयोग होता है, अतः यह आवश्यक है कि पाठ्य पुस्तक का प्रयोग बड़ी सावधानी से किया जाए, उद्देश्यों को सदैव ध्यान में रखा जाए और पाठ्य पुस्तक का अध्यापक के निर्देशन में ही उपयोग किया जाए। अध्यापक का उद्देश्य पाठ्य पुस्तक से अधिकतम लाभ उठाना चाहिए। इसके लिए हम पाठ्य-पुस्तक का चार प्रकार से उपयोग कर सकते हैं:
1. पाठ्य पुस्तक का सबसे पहला प्रयोग करने का ढंग है पाठ्य-पुस्तक को अक्षरशः छात्रों को रटवाना। छात्रों के अध्ययन हेतु एक पाठ्यपुस्तक निर्धारित कर दी जाती है और छात्र उसे अक्षरशः रटते हैं। जो छात्र पाठ्यपुस्तक के जितने अधिक पत्र रटने में सफल होता है वह उतना ही अधिक बुद्धिमान समझा जाता है। इस प्रणाली को ‘The Memoritor System’ के नाम से पुकारा जाता है। वर्तमान में इस प्रणाली का पूर्णरूपेण बहिष्कार किया जा चुका है।
2. दूसरी प्रणाली को हम ‘The Recitation Testing System’ कहते हैं। इस प्रणाली के अनुसार अध्यापक छात्रों को पाठ्य-पुस्तक के कुछ पत्र घर पर पढ़ने तथा उनके सार को याद करके आने को कहता है। दूसरे दिन अध्यापक पहले दिन दिए कार्य से सम्बन्धित प्रश्न पूछता है। वास्तव में यह प्रणाली प्रथम प्रणाली का ही सुधारा हुआ रूप है। यह प्रणाली प्रथम प्रणाली के अनेको दोषों को दूर करती है, फिर भी इसमें कुछ दोष पाए जाते है। यह सम्भव नहीं कि बड़ी कक्षाओं में सभी छात्रों से प्रश्न पूछे जा सकें। दूसरे, यह प्रणाली भी रटने पर अधिक बल देती है, विषय-वस्तु के समझने पर नहीं।
3. दूसरी प्रणाली का भी एक और सुधरा हुआ रूप है जिसे हम ‘The Pupil teacher Text-book Study System’ कहते है। इसमें अध्यापक तथा छात्र दोनों ही साथ-साथ पाठ्य-पुस्तक का अध्ययन करते है। पहले से ही इसके लिए कोई तैयारी नहीं की जाती है। पाठ्य पुस्तक खोलकर अध्यापक विषय-वस्तु छात्रों को समझाता है। छात्र भी पुस्तकों को मौन-वाचन करते है तथा अन्त में अध्यापक प्रश्न पूछता है। यह प्रणाली स्वतन्त्र अध्ययन की आदत का निर्माण नहीं करती है।
4. पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करने की अन्तिम प्रणाली है The Topical Recitation System’ इस प्रणली के अन्तर्गत पाठ को कई उपभागों में विभाजित कर दिया जाता है। छात्र प्रत्येक उपभाग का पूर्णतया अध्ययन करते है और छात्रों से यह आशा की जाती है। कि वे किसी भी उपभाग से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर दे सकेंगे। इस प्रणाली में पाठों को उपभागों में विभाजित करने तथा गृह कार्य देने में विशेष सावधानी रखने की आवश्यकता पड़ती है।
Contents
पाठ्य पुस्तक का प्रयोग
पाठ्य-पुस्तक के प्रयोग के सम्बन्ध में भी दो विचारधाराएँ प्रचलित है। एक विचारधारा के अनुसार कक्षा में एक ही पाठ्य पुस्तक होनी चाहिए जबकि दूसरी विचाराधारा के अनुसार कक्षा में कई पाठ्य पुस्तकें होनी चाहिए। नीचे हम दोनों विचाराधाराओं का पृथक-पृथक अध्ययन करेंगे :
(1) एक-पाठ्यपुस्तक पद्धति- इस पद्धति के अनुसार, जैसा इसके नाम से – ही स्पष्ट है, छात्रों के पढ़ने के लिए एक ही पाठ्य पुस्तक निर्धारित की जाती है। इस प्रणाली के अनुसार पाठ्य पुस्तक निर्धारित करते समय अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिए।
किस प्रकार की पाठ्यपुस्तक निर्धारित की जाए? अच्छी पाठ्य पुस्तक में किन किन गुणों का होना आवश्यक है? पाठ्य पुस्तक निर्धारित करते समय पाठ्य पुस्तक की किन-किन दृष्टिकोणों से जांच करनी चाहिए आदि प्रश्नों का उत्तर ‘सामाजिक ज्ञान की पाठ्य-पुस्तक’ नामक अध्याय में दिया गया है।
एक-पाठ्यपुस्तक पद्धति में कुछ गम्भीर दोष है। सर्वप्रथम, इस पद्धति के अन्तर्गत अध्यापन कराने से छात्रों की मुद्रित शब्दों में आस्था बढ़ जाती है। छात्रों का छपी हुई विषय-वस्तु पर अटूट विश्वास हो जाता है। द्वितीयतः एक पुस्तक पढ़ने से छात्र एक ही प्रकार का दृष्टिकोण अपना लेते है, तथा अन्य दृष्टिकोणों से वें पूर्णतया अनभिज्ञ बने रहते हैं। इस प्रकार, “एक-पाठ्यपुस्तक प्रणाली के अन्तर्गत योग्य शिक्षण सम्भव नहीं है। “
(2) बहु-पाठ्यपुस्तक पद्धति – जैसा इसके नाम से स्पष्ट है, इस पद्धति के अन्तर्गत छात्रों के अध्यापनार्थ एक से अधिक पाठ्य पुस्तक की जाती है। अध्यापन तथा अध्ययन दोनों ही दृष्टिकोणों से बिनिंग तथा बिनिंग ने बहु-पाठ्यपुस्तक-पद्धति को अच्छा बतलाया है। छोटी कक्षाओं से माध्यमिक स्तर तक एक-पाठ्यपुस्तक पद्धति ही अपनानी चाहिए, किन्तु उच्च माध्यमिक तथा विश्वविद्यालय स्तर पर तो हर हालत में बहु पाठ्यपुस्तक पद्धति को अपनाना चाहिए। इन स्तरों पर कदापि एक पाठ्य पुस्तक तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। बहु-पाठ्यपुस्तक पद्धति से इन स्तरों के छात्र अनेकों प्रकार से लाभन्वित होते हैं। इन लाभों में निम्नलिखित प्रमुख हैं:
- छात्र अनेकों दृष्टिकोणों से परिचित होते हैं।
- छात्रों में स्वतन्त्र स्वाध्याय की आदते पड़ती हैं।
- एक पुस्तक के दोष दूसरी अन्य पुस्तकों के गुणों से दूर हो जाते हैं।
- छात्र तार्किक प्रणाली से अध्ययन करना सीखतें हैं।
इस प्रकार हम निष्कर्ष निकालते हैं कि उच्च स्तर पर अनेकों पुस्तकों का निर्धारण होना चाहिए।
पाठ्यपुस्तक पद्धति के गुण
पाठ्यपुस्तक-पद्धति में निम्नांकित गुण है:
(1) पाठ्य-पुस्तक छात्रों के सम्मुख विषय-वस्तु को अत्यन्त नियोजित रूप में प्रस्तुत करती है।
(2) पाठ्य-पुस्तक छात्रों की विभिन्न आवश्यकताओं तथा सीमाओं को ध्यान में रख कर विषय-वस्तु को यथासम्भव बोधगम्य बनाने की चेष्टा करती है।
(3) यह पद्धति छात्रों के कंधों पर पूरा-पूरा दायित्व डालती है। छात्र इस दायित्त्व को पूरा करने हेतु यथासम्भव सभी साधनों का प्रयोग करते हैं।
(4) पाठ्यपुस्तक पद्धति छात्रों में स्वाध्याय की आदत डालती है। छात्र स्वयं विभिन्न पुस्तकों का अध्ययन कर विषय वस्तु का गहन अध्ययन करते हैं।
(5) पाठ्य-पुस्तक छात्रों को सक्रियता प्रदान करती है। छात्र पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करने में सक्रिय रहते हैं।
(6) पाठ्यपुस्तक पद्धति अध्यापक एवं दोनों के ही समय तथा श्रम की बचत करती है। अध्यापक को सभी विषय-वस्तु सुगम तथा जटिल का स्पष्टीकरण छात्रों के सम्मुख नहीं करना पड़ता। छात्र सुगम विषय-वस्तु को पुस्तकों से स्वयं ही समझ लेते हैं जबकि अध्ययन केवल जटिल विषय-वस्तु की ही व्याख्या द्वारा स्पष्ट करता है।
पाठ्यपुस्तक पद्धति के दोष
उपरोक्त गुणों के होते हुए भी पाठ्यपुस्तक-पद्धति में अग्रांकित दोष पाए जाते हैं:
1. वास्तविक रूप में पाठ्यपुस्तक पद्धति में प्रयोग की जाने वाली पाठ्यपुस्तकें उद्देश्य प्राप्त करने की साधन मात्र है, किन्तु व्यवहार में यह देखा जाता है कि अध्यापक तथा छात्र दोनों ही इस साधन को साध्य मान लेते हैं। अध्यापक का एकमात्र उद्देश्य पाठ्य पुस्तक समाप्त कराना हो जाता है। इससे शिक्षा के मूल उद्देश्य प्राप्त करने मे बाधा होती है।
2. पाठ्यपुस्तक पद्धति छात्रों में रटने की आदत आवश्यकता से अधिक विकास करती है। छात्र अपनी तर्क शक्ति से काम न लेकर पाठ्य पुस्तक में दी गयी विषय वस्तु को रटकर उत्तीर्ण होने को ही अपना उद्देश्य बना लेते हैं।
3. यह पद्धति छात्रों के पूर्वानुभवों को कोई महत्व प्रदान नहीं करती है।
4. पाठ्यपुस्तक पद्धति व्यक्तिगत विभिन्नताओं को भी ध्यान में नहीं रखती। सभी प्रकार के छात्रों को एक ही प्रकार की पाठ्य पुस्तक का अध्ययन करना पड़ता है।
5. पाठ्य पुस्तक विभिन्न छात्रों के भाषा-ज्ञान का भी ध्यान नहीं रखती हैं। पुस्तकों की भाषा-शैली, विषय-वस्तु आदि छात्रों के मानसिक स्तर के अनुसार नहीं भी हो सकती है।
6. यह पद्धति केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही प्रदान करती व्यावहारिक तथा प्रयोगात्मक ज्ञान प्रदान नहीं करती है।
7. कभी-कभी पाठ्य पुस्तकें अध्यापक के महत्व को कम कर देती हैं। छात्र यह समझने लगते हैं कि अब तो हम पाठ्य पुस्तकों से ही ज्ञान प्राप्त कर लेंगे, अध्यापकों की कोई आवश्यकता नहीं है।
8. पाठ्यपुस्तक पद्धति के अन्तर्गत छात्र स्वयं का कोई भी दृष्टिकोण अपनाने में असफल रहते हैं। वे विभिन्न पुस्तकों में दिए गए दृष्टिकोणों को ही अपना दृष्टिकोण बना लेते हैं।
9. पाठ्य पुस्तकें कभी-कभी बड़ी नीरसता पैदा कर देती हैं, क्योंकि पुस्तकों में मुद्रित अक्षर हमसे कुछ कह नहीं सकते हैं।
सुझाव
इस पद्धति की सफलता चुनी गयी पाठ्य पुस्तक पर काफी मात्रा मे आधारित है, अतः अध्यापक को पाठ्य पुस्तकों का चयन बड़ी सावधानी से करना चाहिए।
1. अध्यापक को चाहिए कि वह पाठ्यपुस्तक प्रणाली में व्याप्त नीरसता को दूर करे। इसके लिये सर्वोत्तम साधन है उपयुक्त सहायक सामग्री का प्रयोग करना। इसके अतिरिक्त अध्यापक अन्य उपायों, तथा उदाहरण, दृष्टान्त आदि के द्वारा भी सरलता ला सकता है।
2. पाठ्यपुस्तक पद्धति में अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की आवश्कता पड़ती है, क्योकि पुस्तक का चयन, छात्रों का उचित निर्देशन, अध्ययन की योजना निर्माण आदि अनेक ऐसे कार्य है जिनमें अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की आवश्यकता पड़ती है,. अतः अनुभवी तथा योग्य अध्यापकों की व्यवस्था करनी चाहिए।
3. छात्रों को उपयुक्त विधि से निर्देशित करने की आवश्यकता है। छात्रों को इस प्रकार से निर्देशित किया जाए कि वे रटने की आदत का विकास आवश्यकता से अधिक ने करें, वरन् समीक्षात्मक, तार्किक तथा विश्लेषणात्मक रूप से अध्ययन करना सीखें।
4. पद्धति को यथासम्भव व्यावहारिक एवं प्रयोगात्मक बनाने की चेष्टा करनी चाहिए।
5. अध्यापक को प्रश्न पूछते समय भी अत्यन्त सावधानी रखनी चाहिये। प्रश्नों के सम्बन्ध में प्रस्तुत पुस्तक में अन्य विस्तारपूर्वक लिखा गया हैं। संक्षिप्त में प्रश्नों की भाषा वे शैली अत्यन्त सरल, बोधगम्य तथा स्पष्ट होनी चाहिये।
6. अध्यापन में मौन-वाचन तथा सस्वर-वाचन दोनों ही प्रकार के अध्ययन की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे छात्र ध्यान केन्द्रित करना तथा सही उच्चाकरण करना होना ही सीख सकेंगे।
7. श्यामपट्ट कार्य की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए। श्यामपट्ट पर जो भी कार्य दिया जाये, वह सरल, क्रमबद्ध तथा व्यवस्थित होना चाहिए।
IMPORTANT LINK
- राजनीति विज्ञान के वर्तमान पाठ्यक्रम के गुण एंव दोष
- समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं इसके उद्देश्य | Concept and Objectives of Inclusive Education in Hindi
- अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक | factors affecting learning in Hindi
- सीखने में अभिप्रेरणा का क्या महत्व है? What is the importance of motivation in learning?
- अध्यापक शिक्षा योजना | teacher education scheme in Hindi
- विद्यालय में किस प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है और क्यों?
- शिक्षक एवं सामाजिक परिवर्तन | Teachers and Social Change in Hindi
- शिक्षण प्रक्रिया में अध्यापक के महत्त्व | अध्यापक प्रशिक्षण की आवश्यकता | अध्यापक की जवाबदेहिता का क्षेत्र
- स्कूल और प्रौढ़ शिक्षा में आई.सी.टी. पद्धतियों के संवर्द्धन
- शिक्षण व्यवसाय संबंधी आचार संहिता | Code of Conduct for Teaching Profession in Hindi
- अध्यापक आचार संहिता के लक्षण | Characteristics of teacher code of conduct in Hindi
- अध्यापक शिक्षा का उद्देश्य | Objective of teacher education in Hindi
- एक अच्छे अध्यापक के ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक गुण
- अध्यापक शिक्षा से सम्बन्धित समस्याएँ | problems related to teacher education in Hindi
- अध्यापक की व्यवसायिक अथवा वृतिक प्रतिबद्धता
- शिक्षकों की विभिन्न भूमिकाओं तथा तथा जिम्मेदारियों का वर्णन कीजिए।
- अध्यापक द्वारा जवाबदेही के स्वमूल्यांकन हेतु किन तथ्यों को जाँचा जाना चाहिए।
- विद्यालयी शिक्षा में जवाबदेही से क्या अभिप्राय है यह कितने प्रकार की होती है?
- व्यवसाय के आवश्यक लक्षण | Essential Characteristics of Business in Hindi
- अध्यापक के व्यवसायिक गुण | professional qualities of a teacher in Hindi
- शिक्षकों की जवाबदेही किन तत्त्वों के सन्दर्भ में की जानी चाहिए।
- राजनीति विज्ञान अध्यापक के व्यक्तित्व से सम्बन्धित गुण
- शिक्षा के क्षेत्र में स्वैच्छिक एजेन्सियों (NGOs) की भूमिका
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् के संगठनात्मक ढाँचे
- इंटरनेट तथा ई-मेल क्या है?
- राजनीति विज्ञान में पठन-पाठन सामग्री का विकास करते समय किन गुणों का ध्यान रखा जाना चाहिए?
- कम्प्यूटर पर टिप्पणी लिखियें।
- स्लाइड प्रोजेक्टर की संरचना में कितने भाग होते है?
- शिक्षा यात्रा से आप क्या समझते है?
Disclaimer