संस्कृति क्या है ? शिक्षा एवं संस्कृति के अन्तर्सम्बन्ध तथा प्रभाव को स्पष्ट कीजिए।
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संस्कृति का अर्थ (The Meaning of Culture)
संस्कृति शब्द का प्रयोग हम जिस अर्थ में कर रहे हैं वह अंग्रेजी शब्द कल्चर (Culture) का पर्याय है। यह शब्द लैटिन भाषा के कल्चुरा (Cultura) एवं कोलियर (Colere) शब्द से बना हुआ है। इस शब्द का अर्थ होता है ‘उत्पादन’ तथा परिष्कार एवं उत्पादन के फलस्वरूप परिष्कार होता है (Cultural cultivation refinement as the result of Cultivation) । संस्कृति कल्चर (Culture) शब्द का अर्थ कल्ट (Cult) और कल्टस (Cultus) से भी है। इन शब्दों का अर्थ है धार्मिक विश्वास अथवा पूजा की प्रणाली (System of religious belief or worship)। इस प्रकार संस्कृति (Culture) का सम्बन्ध पाश्चात्य विचारधारा में धर्म से भी है।
हिन्दी शब्द संस्कृति के दो शब्द ‘सम + कृति’ से मिलकर बना है। इसका सन्दर्भ संस्कार से भी है। यहाँ भी संस्कृति का अर्थ क्रियाओं के परिष्कार और उन्नयन से है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि संस्कृति का सम्बन्ध हमारी इच्छाओं और क्रियाओं का परिष्कार एवं संस्कार से है।
संस्कृति की परिभाषा (Definition of Culture )
अनेक विद्वानों ने संस्कृति की अनेक परिभाषाएँ दी हैं। वास्तव में इस शब्द के अर्थ भी अनेक हैं। नीचे कुछ परिभाषाएँ उद्धृत की जा रही हैं-
(1) मैथ्यू अरनाल्ड (Matthew Arnold) – “Culture is the pursuit of total perfection by means of getting to know of all matters that must concern us, the base thought and said in the world.”
(2) डॉ0 रामधारीसिंह दिनकर के शब्दों में, “संस्कृति ऐसी चीज है जिसे लक्षणों से तो हम जान सकते हैं किन्तु उसकी परिभाषा नहीं दे सकते…..संस्कृति वह गुण है जो हममें व्याप्त है।”
(3) डॉ0 ए0एन0 ह्वाइटहेड (Dr. A. N. Whitehead) ने ऐसी ही बात कही है “Thought and receptiveness to beauty and human feelings.”
(4) टायलर– “संस्कृति वह जटिल समग्र है जिसमें समाज के सदस्य के रूप में मानव द्वारा अर्जित ज्ञान, विश्वास, कला तथा नैतिकता, विधि, प्रथा, अन्य क्षमताएँ तथा आदतें सम्मिलित हैं।
(5) बीरस्टीड – “संस्कृति उन समस्त वस्तुओं का जटिल समग्र है, जो वह समाज़ के सदस्यों के रूप में सोचते हैं, करते हैं और रखते हैं।”
संस्कृति वास्तव में मनुष्य के अर्जित गुणों का भण्डार होती है। वास्तव में संस्कृति जीवन की एक प्रणाली है। यह प्रणाली सदियों से होकर उस समाज में छायी रहती है जिसमें हम जन्म लेते हैं… अपने जीवन में हम जो संस्कार जमा करते हैं वह भी हमारी संस्कृति के अंग बन जाते हैं और मरने के बाद हम अन्य वस्तुओं के साथ अपनी संस्कृति को भी विरासत के रूप में अपनी सन्तानों के लिए छोड़ जाते हैं। इसलिए संस्कृति वह वस्तु मानी जाती है जो हमारे सारे जीवन पर व्याप्त है तथा जिसकी रचना के विकास में अनेक सदियों के अनुभवों का हाथ है। यही नहीं, बल्कि संस्कृति हमारा पीछा जन्म-जन्मान्तर तक करती है। अपने यहाँ एक | साधारण कहावत है कि जिसका जैसा संस्कार है, उसका वैसा ही पुनर्जन्म भी होता है… संस्कार या संस्कृति असल में शरीर का नहीं आत्मा का गुण है।
संस्कृति के उपकरण (Means of Culture)
संस्कृति के उपकरण हैं-
- साहित्य और उसके अंग- नाटक,
- दर्शन और उसके उपकरण, कविता, कहानी इत्यादि,
- कला और उसके विधि रूप- चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला,
- शासन पद्धति और सामाजिक रीति-रिवाज तथा त्यौहार,
- पारिवारिक संव्यूहन का समाज पर प्रभाव एवं व्यक्तियों का पारस्परिक व्यवहार,
- देश की अन्तर्राष्ट्रीय जगत में स्थिति तथा अन्य देशों में व्यवहार और आचरण,
- राजनीतिक एवं आर्थिक, सामाजिक संस्थायें और उनकी रूपरेखा,
- ललित कलायें जैसे संगीत वादन,
- वाणिज्य और उद्योग-धन्धे और
- शिक्षा, मनोरंजन की संस्थायें जैसे पुस्तकालय, नाट्य-गृह, सिनेमा-गृह, संग्रहालय, क्लब, विद्यालय आदि।
शिक्षा और संस्कृति में अन्तर्सम्बन्ध (Inter-relationship between Education and Culture)
उपर्युक्त विवेचन से यह बात अत्यधिक स्पष्ट हो जाती है कि शिक्षा और संस्कृति का बड़ा ही घनिष्ठ सम्पर्क है। संस्कृति किसी राष्ट्र के लोगों की भौतिक सामग्री, उनके विश्वासों, उनकी मान्यताओं, परम्पराओं और क्रिया-कलापों का योग है।
संस्कृति के उपकरणों की चर्चा करते समय हमने देखा है कि संस्कृति का शिक्षा से घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाज की जैसी संस्कृति होती है उसी के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। दूसरे शब्दों में शिक्षा की रूपरेखा का निर्माण समाज की संस्कृति के अनुसार होता है और शिक्षा संस्थायें संस्कृति के ही अन्तर्गत आती हैं।
(1) संस्कृति के निर्माता तत्त्व और शिक्षा (The Framers of Culture and Education) – हम देखते हैं कि संस्कृति के निर्माण में व्यक्ति और जीवन से सम्बन्धित दो तत्त्व (1) जैविक (Biological), (2) वातावरण (Environment) बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण योग प्रदान करते हैं। इन्हीं दोनों तत्त्वों के फलस्वरूप संस्कृति का भौतिक स्वरूप निर्मित होता है। इन दोनों तत्त्वों का सफल प्रयोग शिक्षा में भी किया जाता है। मनुष्य अपनी बुद्धि के बल पर इन तत्त्वों के सहारे अपने व्यक्तित्व का निर्माण और निखार करता है। यहीं से संस्कृति का आरम्भ हो जाता है।
शिक्षा वास्तव में विकास की एक प्रक्रिया और विकास भी संस्कृति का एक अंग है। विद्यालयों में एक ओर तो संस्कृति की सुरक्षा का योग्य वातावरण तैयार किया जाता है और दूसरी ओर उस वातावरण के द्वारा संस्कृति का विकास भी किया जाता है। समाज के आदर्श और मान्यताएँ जो संस्कृति का एक अंग है शिक्षा द्वारा ही सुरक्षित रहती हैं और परिवर्तित होती हैं।
शिक्षा संस्थाओं और संस्कृति का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा संस्थाओं का आकार प्रकार बहुत कुछ समाज और संस्कृति के आदर्शों के आधार पर निहित होता है और बनता है। शिक्षा के अविधिक साधन जैसे परिवार, नाट्यगृह, सिनेमागृह, पुस्तकालय, विद्यालय, संग्रहालय बहुत कुछ इसी आधार पर निर्मित होते और बनते हैं।
(2) संस्कृति के कार्य और शिक्षा (The Works by Culture and Education) – संस्कृति का कार्य भी शिक्षा से उसका घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना है। संस्कृति का कार्य यह है कि वह मनुष्य को इस योग्य बना दे कि वह अपने भौतिक, सामाजिक, वातावरण का अनुकूलन कर सके और अपना समायोजन उससे कर सके। शिक्षा का भी बहुत कुछ यही कार्य है। संस्कृति के कार्य और शिक्षा के कार्य में बहुत कुछ समानता है। प्रसिद्ध विद्वान ओटावे (Ottaway) के अनुसार भी संस्कृति और शिक्षा का घनिष्ठ सम्बन्ध है।
संस्कृति के लक्षण (Features of Culture)
भारतीय संस्कृति के विशिष्ट लक्षण (Special Features of Indian Culture ) – संस्कृति के सर्वनाम लक्षण निम्नलिखित हैं-
(1) संस्कृति समाज से सीखा हुआ व्यवहार है- संस्कृति वह व्यवहार है जिसे मनुष्य समाज से सीखता है किन्तु इसे न तो आदतों का योग कहेंगे और न ही अभ्यासों का और न ही समस्याओं के हल करने का कोई परम्परागत तरीका होता है। संस्कृति की उत्पत्ति मानवीय व्यवहारों के बीच होती है और मनुष्य इसके निर्माण और ग्रहण करने की क्षमता को लेकर उत्पन्न होता है और समाज में इसे सीखकर अपनाता है।
(2) संस्कृति समाज का एक पक्ष है- इस लक्षण से संस्कृति की सामाजिक विशेषता का बोध होता है। मानव समाज में समूहों के माध्यम से संस्कृति निरन्तर चलती रहती है और इसमें समाज की अपेक्षा एकीकरण की अधिक प्रवृत्ति पायी जाती है। समाज के आधार और संस्कृति के स्वरूप में कोई कारण सम्बन्ध नहीं होता है।
(3) संस्कृति के हस्तान्तरण का गुण होता है- संस्कृति में हस्तान्तरण का गुण पाया के जाता है जिसके कारण यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती है और इसी कारण से संस्कृति में ऐतिहासिकता आती है।
(4) संस्कृति वस्तुतः एक आदर्श है- वस्तुतः संस्कृति एक आदर्श होती है जो मानव को मार्गदर्शन प्रदान करती है।
(5) संस्कृति तुष्टिदायिनी होती है- मानव की प्राणीशास्त्रीय प्रेरणाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन संस्कृति उपलब्ध कराती है जिससे भूख, प्यास और यौन इच्छा जैसी तीन महत्त्वपूर्ण शारीरिक, मानसिक और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की योजना प्रत्येक संस्कृति में पायी जाती है।
(6) संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है- संस्कृति पायी जाने वाली अनुकूलन की इस अपार क्षमता के कारण ही समाज में सन्तुलन और संगठन बना रहता है।
(7) संस्कृति में एकीकरण की प्रवृत्ति होती है- संस्कृति में एकीकरण की प्रवृत्ति पायी जाती है जिससे संस्कृति में एकात्मकता और ऐच्छिक विशिष्टता आती है।
(8) संस्कृति परिवर्तनशील है- संस्कृति में परिवर्तनशीलता का गुण निहित होता है। संस्कृति का उद्देश्य मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। मानव की विभिन्न आवश्यकताओं में परिवर्तन समय, काल, परिस्थिति और समाज के अनुसार होता रहता है। अतएव संस्कृति में भी परिवर्तन होता है, सांस्कृतिक पक्षों में भी परिवर्तन होता रहता है। इस प्रकार संस्कृति स्थिर और जड़ नहीं होती है बल्कि प्रगतिशील होती है।
(9) संस्कृति अधिवैयक्तिक एवं अधिसायवी होती है- संस्कृति किसी व्यक्ति विशेष की न होकर समूह व्यवहार की समग्रता होती है इस कारण यह अधिवैयक्तिक होती है और अघिसावयवी इस कारण है क्योंकि मानव जीन को निर्देशित, नियन्त्रित और परिभाषित करती है। यहाँ तक कि मानव किसी-न-किसी संस्कृति में जन्म लेता है और संस्कृति ही इसे एक जैविकीय प्राणी से सामाजिक प्राणाली बनाती है।
(10) संस्कृति भौतिक और अभौतिक होती है- संस्कृति में दो प्रकार के तत्त्व पायें जाते हैं- भौतिक और अभौतिक तत्त्व; जैसे- घड़ी फर्नीचर, मकान, मोटर, और भौतिक वस्तुएँ तथा अभौतिक तत्त्व, जैसे- प्रथाएँ, परम्पराएँ, रूढ़ियाँ, रीति-रिवाज, आचार-विचार, आदि।
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