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सतत् व्यवसायिक विकास (CPD) | सूचना-संप्रेषण तकनीकी

सतत् व्यवसायिक विकास (CPD) | सूचना-संप्रेषण तकनीकी
सतत् व्यवसायिक विकास (CPD) | सूचना-संप्रेषण तकनीकी
सतत् व्यवसायिक विकास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिये।

वर्तमान युग सूचना – क्रान्ति का युग है। हम ज्ञान आधारित समाज में रह रहे है और ज्ञान किसी राष्ट्र की शक्ति है एवं व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। ज्ञान प्राप्ति के लिए व्यक्ति अनेक साधनों का प्रयोग करता है। आज 21 वीं सदी में बढ़ते हुए ज्ञान तक तुरन्त पहुँचने और उपयोग करने के लिए नवीन तकनीकों की आवश्यकता एवं प्रयोग में वृद्धि हो रही है। इन नवीन तकनीकी में सूचना- संप्रेषण तकनीकी (आई.सी.टी.) एक उत्तम तकनीकी के रूप में सामने आया है।

इसके उपयोग से शिक्षा जगत से जुड़ें प्रत्येक व्यक्ति अपने ज्ञान का संचय, प्रसार और वृद्धि करता हुआ अपना सतत् व्यावसायिक विकास (सी.पी.डी.) कर सकता है। यहीं कारण है कि एन.सी.एफ.टी.ई., 2009-10 ने भी अध्यापक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम एवं कार्यक्रम में इसे स्थान दिया है और बी.एड. एवं एम.एड. का पाठ्यक्रम इस प्रकार का निर्मित करने का प्रयास किया है कि शिक्षक प्रशिक्षकों में अध्ययनशील एवं क्रियाशील रहकर निरंतर विकास को प्राप्त करने की इच्छा जाग्रत होती रहे। इतना ही नहीं, यू.जी.सी. ने भी अध्यापक के एकेडमिक परफॉरमेंस को प्राप्त करने के लिए सतत् अधिगम को आवश्यक माना है। अतः इसे देखते हुए आज आई.सी.टी. का उपयोग जैसे – टी.वी., रेडियो, इन्टरनेट, ईमले एजकूशेनल वबे साइटस्, ऑनलाईन वर्क शॉपस, ऑनलाईन सेमीनार, ऑनलाईन कांफ्रेंस, ई-जनरलस, ई-बुक, ई-लर्निंग, वर्चुअल लर्निंग, टेलीकांफ्रेंसिंग आदि के रूप में हो रहा है। जिससे व्यक्ति तेजी से अपना सतत् व्यावसायिक विकास अपनी रूचि, क्षमता व समयानुसार कर रहा है।

इतना होते हुए भी हमारे देश में कुछ समस्याएँ एवं चुनौतियाँ है, जिसकी वजह से आज अध्यापक इसके माध्यम से सतत् व्यावसायिक विकास (सी.पी.डी.) नहीं कर पा रहा है तथा इसके साथ-साथ हमारे देश में इस क्षेत्र में अनुसंधान कार्य भी कम हुए है जिसके कारण शिक्षा जगत् में इसके प्रति जागरूकता एवं रूचि कम है।

पृष्ठभूमि

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार “एक अध्यापक सच्चे अर्थों में तब तक अध्यापन ” कार्य नहीं कर सकता है, जब तक कि वह स्वयं अध्ययन नहीं करता हो। ऐसा अध्यापक जो अपने ज्ञान क्षेत्र के शीर्ष पर होता है, वह अपने मस्तिष्क में ज्ञान का समावेश तभी कर सकता है, जब तक कि वह अपने छात्रों के लिए अध्ययन करें।”

उपर्युक्त विचार से स्पष्ट होता है कि एक व्यक्ति की शिक्षा मात्र व्यवसाय प्राप्त करने पर ही समाप्त नहीं हो जाती, अपितु शिक्षा तो जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया का अर्थ व्यक्ति और समाज दोनों निरंतर विकास करते रहे। विकास की इस प्रक्रिया का प्रारम्भ शिक्षा जगत् से ही आरम्भ होना चाहिए और शिक्षा जगत् की मुख्य कड़ी है अध्यापक। इसलिए एक अध्यापक को अपने अध्यापन व्यवसाय को प्रभावी एवं उज्जवल बनाने के लिए आवश्यक है कि वह सतत् व्यावसायिक विकास करता रहें ।

इसके लिए आवश्यक है कि एक अध्यापक को सामाजिक परिवेश में होने वाले परिवर्तनों एवं आवश्यकताओं का ज्ञान हो। जिससे वह अपने आपको इन परिवर्तनों के अनुकूल कर सकें और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति अपने विद्यार्थियों को उचित प्रकार से शिक्षित एवं प्रशिक्षित करके कर सकें। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एन.सी.एफ. टी.ई.. 2009 में अनेक संसाधनों में जो वर्तमान समय में सबसे तीव्र संसाधन है, वह है- सूचना सम्प्रेषण तकनीकी (आई.सी.टी.) । आई.सी.टी. के उपयोग से एक अध्यापक अपना “सतत् व्यावसायिक विकास” कर सकता है। ये संसाधन अध्यापक को ज्ञान एवं कौशल की प्राप्ति के लिए सजग एवं जागरूक बनाकर अध्यापन व्यवसाय में श्रेष्ठ एवं विकासशील बनाता है। अतः सतत् व्यावसायिक विकास (CPD) में सूचना संप्रेषण तकनीकी (ICT) की अहम् भूमिका या योगदान है।

सतत् व्यावसायिक विकास (CPD)

सतत् व्यावसायिक विकास में तीन शब्दों का प्रयोग किया गया है-

(i) सतत्ता- इसका अर्थ है, “बिना रुके सीखना” अर्थात् जिस पर आयु या वरिष्ठता का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, अपितु व्यक्ति इनके प्रभाव से अछूत रहकर लगातार सीखता रहता है।

(ii) व्यावसायिक- “व्यावसायिक भूमिका व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा पर ध्यान केन्द्रित करना।” जिससे व्यक्ति में आत्मविश्वास एवं कार्यक्षमता का विकास होता है।

(iii) विकास- विकास के द्वारा व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ एवं योग्यताएँ प्रकट होती है। सी.पी.डी. में विकास का उद्देश्य व्यक्तिगत कार्यों में सुधार तथा कैरियर उन्नत्ति को बढाता है। यह वास्तव में औपचारिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम से ज्यादा विस्तृत है। क्योंकि औपचारिक पाठ्यक्रम में निरंतरता नहीं होती, जबकि विकास निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सी.पी.डी. के द्वारा अध्यापक अपने ज्ञान एवं कौशल का अध्ययन करता हुआ, व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा को बढाता है और अपनी वास्तविक क्षमता का विकास करता है। सी.पी. डी. एक संरचनात्मक या अनौपचारिक उपागम है, जिसमें अध्यापक अभ्यास, ज्ञानार्जन, कौशल और प्रायोगिक अनुभव की सहायता से अधिगम करते हुए अपनी योग्यता या सामर्थ्य को निर्धारित करता है। सी.पी.डी. में कोई भी अधिगम गतिविधि का प्रयोग किया जा सकता है। औपचारिक, अनौपचारिक एवं स्व- निर्देशित जैसी अधिगम क्रियाओं में भागीदारी करके एक अध्यापक सतत् व्यावसायिक विकास सी.पी.डी. कर सकता है।

सूचना-संप्रेषण तकनीकी

सूचना संप्रेषण तकनीकी में तीन शब्दों का प्रयोग किया गया है-

(i) संप्रेषण – यह एक द्विमार्गी प्रक्रिया है, जिसमें विचारों और सूचनाओं को दूसरों में बांटा जाता है। इसके अंतर्गत सूचना के स्रोत एवं ग्राहय के मध्य आदान-प्रदान होता है, जिससे ज्ञान की वृद्धि, समझ एवं इसके उपयोग में सहायता मिलती है।

(ii) सूचना – सूचनाएँ हमारे आस-पास के वातावरण के बारे में ज्ञान एवं समझ प्राप्त करने के आधार होते है।

(iii) तकनीकी- ऐसा प्रयोगात्मक कार्य जिसमें वैज्ञानिक ज्ञान या सिद्धांतों का प्रयोग किया जाए, तकनीकी कहलाता है। इस प्रकार, सूचनाओं को प्राप्त करना, संग्रह करना तथा आवश्यकता पड़ने पर इसके प्रयोग का ज्ञान होना, सूचना तकनीकी (IT) है। परन्तु सूचना- संप्रेषण तकनीक का अर्थ इससे विस्तृत है। सूचना- संप्रेषण तकनीक वह तकनीक है, जिसके द्वारा सूचनाओं को शुद्ध एवं प्रभावी रूप से प्राप्त करने, संग्रह करने, प्रयोग करने, निरूपित करने तथा स्थानान्तरण में सहायता होती है। इसका उद्देश्य प्रयोगकर्ता के ज्ञान, संप्रेषण कौशल, निर्णय क्षमता तथा प्राप्त करने की क्रिया में सूचना एवं संप्रेषण दोनों ही आवश्यक है।

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Anjali Yadav

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