सांस्कृतिक विविधता को उदाहरण सहित समझाइए।
सांस्कृतिक प्रतिमानों के सापेक्ष में विविधताएँ (Diversities in respect to Cultural Patterns)
- भारत में हजारों वर्षों से विभिन्न प्रजातियों के लोग एक साथ रहे हैं। यहाँ समय-समय पर विदेशी आक्रमणकारी भी आये जो कालान्तर में यहीं बस गये। यहाँ हिन्दुओं, मुसलमानों, ईसाइयों एवं जनजातीय लोगों में सांस्कृतिक विविधता भी देखने को मिलती है। विभिन्न संस्कृतियों ने कालान्तर में एक-दूसरे की जीवन-शैली को कुछ प्रभावित किया है। यहाँ प्रत्येक धार्मिक समूह के अलग-अलग प्रकार के जीवन संस्कार, मूल्य, विश्वास, मान्यतायें, खान-पान, पहनावा, साहित्य-संगीत, नृत्य, वैवाहिक प्रथायें, परम्परायें आदि पाये जाते हैं।
- भारतीय समाज एवं संस्कृतियों की तुलना में इस्लाम संस्कृति का अधिक प्रभाव पड़ा। इस्लाम ने भारतीय समाज को सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सभी दृष्टियों से प्रभावित किया और यह प्रभाव ब्रिटिश काल तक बना रहा। केवल हिन्दुओं ने ही इस्लाम से ग्रहण नहीं किया बल्कि मुसलमानों ने भी हिन्दू संस्कृति के अनेक तत्त्वों को ग्रहण किया। मुसलमानों में क्रूरता कम हुई; उनमें भक्ति, श्रद्धा, सहृदयता तथा दयालुता पैदा हुई। उन्होंने भी हिन्दुओं के खान-पान, जाति -प्रथा, उत्सवों एवं रीति-रिवाजों को ग्रहण किया। इन दोनों संस्कृतियों के सम्पर्क से नवीन सांस्कृतिक प्रतिमानों (New Cultural Patterns) का उदय हुआ।
- भारत में प्रथाओं, वेश-भूषा, खान-पान, रहन-सहन, कला आदि के दृष्टिकोण से भी पर्याप्त भिन्नतायें पाई जाती हैं। प्रत्येक क्षेत्र के लोगों की अपनी विशिष्ट प्रथायें हैं और यहाँ तक कि एक ही क्षेत्र के विभिन्न धार्मिक समूहों की प्रथाओं में भी बहुत अन्तर है। जहाँ तक वेश-भूषा का प्रश्न है, यह कहा जा सकता है कि उत्तर एवं दक्षिण के लोगों की, ग्रामीण व नगरीय लोगों की, हिन्दू और मुसलमानों की परम्परावादी एवं आधुनिक कहे जाने वालों की वेश-भूषा में काफी अन्तर है। खान-पान की दृष्टि से विचार करने पर भी हम देश के विभिन्न भागों में काफी विभिन्नतायें पायी जाती हैं। पंजाब में गेहूँ, राजस्थान में ज्वार, बाजरा व मक्का, बंगाल में चावल एवं मछली मुख्य भोजन है। पंजाब में सलवार एवं कुर्ता, राजस्थान में धोती, कुर्ता एवं साफा, बंगाल में धोती, कुर्ता, दक्षिण में लुंगी और कुर्ता का अधिक प्रचलन है। इसी प्रकार में से स्त्रियों के पहनावे में भी विभिन्नता पाई जाती है। यहाँ कुछ जातियाँ एवं धार्मिक समूह शाकाहारी हैं तो कुछ मांसाहारी, आजकल तो एक ही जाति एवं धर्म के लोगों में खान-पान सम्बन्धी काफी अन्तर पाये जाते हैं। अब तो बहुत से लोग खान-पान सम्बन्धी किसी निषेध में विश्वास नहीं करके भोजन के पौष्टिक तत्त्वों पर विशेष बल देते हैं। देश के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के उत्पन्न होने से भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में खान-पान के अलग-अलग तरीके भी पाये जाते हैं।
- विभिन्न क्षेत्रों में कला, संगीत व नृत्य की दृष्टि से भी भिन्नता दिखाई पड़ती है। कहीं कोई शैली प्रचलित है तो कहीं कोई अन्य शैली। यहाँ मन्दिरों, मस्जिदों, चर्चा व स्तूपों आदि में कला की भिन्नता का सरलता से पता लगाया जा सकता है। यही बात संगीत व नृत्य के सम्बन्ध में भी सही है। पंजाब में लोहड़ी एवं भांगड़ा, राजस्थान में घूमर, गुजरात गरबा एवं दक्षिण में भरतनाट्यम् नृत्यों की प्रधानता है। इसी प्रकार से विभिन्न प्रान्तों के त्योहारों और उत्सवों में भी भिन्नता पाई जाती है। स्थानीय देवताओं में भी भिन्नता देखने को मिलती है। विभिन्न भागों के लोगों के विश्वासों, नैतिकता सम्बन्धी धारणाओं तथा वैवाहिक एवं अन्य निषेधों में भी पर्यात भिन्नता पाई जाती है। यहाँ एक-विवाह, बहु-पति विवाह एवं बहु-पत्नी विवाह को मानने वाले लोग भी हैं। यहाँ जाति अन्तर्विवाह, गोत्र बहिर्विवाह तथा अनुलोम व प्रतिलोम विवाहों का भी प्रचलन देखने को मिलता। मुसलमानों में कुछ अति निकट के रिश्तेदारों को छोड़कर शेष में वैवाहिक सम्बन्ध मान्य हैं। कहीं हमें पितृसत्तात्मक तो सहीं मातृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था देखने को मिलती है। कहीं नाभिक परिवार है तो कहीं संयुक्त परिवार। इसके अतिरिक्त विभिन्न समूहों की पूजा-पद्धतियों, धार्मिक विश्वासों, व्यवहार प्रतिमानों एवं कर्मकाण्डों में भी अन्तर पाये जाते हैं। विभिन्न धर्मों के लोगों के तीर्थस्थान भी भिन्न-भिन्न हैं। लोग आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए पवित्र धार्मिक स्थलों की समय-समय पर यात्रा भी करते हैं।
- उपर्युक्त सब विशेषताएँ या भिन्नतायें भारतीय समाज के मौलिक आधारों और उनमें होने वाले परिवर्तनों को समझने में सहायक हैं और ये भारतीय समाज में अनेकता भी पैदा करती है। भारत एक ऐसा देश है, जिसमें विविधता के अनेक आयाम दृष्टिगोचर होते हैं। यहाँ अनेक संस्कृतियों का सह-अस्तित्व पाया जाता है। भारत में समय-समय पर अनेक बाह्य आक्रमणकारी लोग आते रहे और उन्होंने यहाँ शासन किया। यहाँ से धन-सम्पत्ति लूटकर ले जाने के बजाय अधिकांश लोग यहीं बस गये। इस प्रकार भारत अनेक संस्कृतियों का संगम स्थल एवं द्रवण – पात्र बन गया। सांस्कृतिक बहुलता भारत की नियति बन गई। यही कारण है कि भारत में विभिन्न धर्मों, भाषाओं, रीति-रिवाजों, खान-पान, वेश-भूषा, विचारों, संस्कारों आदि के रूप में बहुलता पायी जाती है। विभिन्न संस्कृतियों का भारत में सह-अस्तित्व ही सांस्कृतिक बहुलतावाद (Cultural Pluralism) के नाम से जाना जाता है। यहाँ सांस्कृतिक बहुलतावाद को अनेक रूपों में देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, एक ओर बहुत धनी, उच्च जाति और उच्च वर्ग के लोग हैं, तो दूसरी ओर अत्यधिक निर्धन, निम्न जाति के लोग हैं। विभिन्न जातियों, धर्मों, क्षेत्रों और भाषाओं से सम्बद्ध समूह सारे देश में फैले हुए हैं। धर्म, भाषा, क्षेत्र, प्रथा और परम्परा के आधार पर यहाँ अल्पसंख्यक समूह बने हुए हैं। बहुसंख्यक समूह भी अनेक सम्प्रदायों, जातियों, गोत्रों और भाषायी समूहों में विभक्त हैं। अपने सदस्यों के लिए अच्छी शिक्षा, रोजगार और जीवन-स्तर प्राप्त करने की इन समूहों में आकांक्षायें। सभी लोगों को समान अवसर प्राप्त नहीं है, इसलिये वे ‘वितरक-न्याय’ (Distributive-Justice) से वंचित हैं। इस प्रकार की असमानता स्वयं भारतीय समाज की देन हैं जिसके कारण समय-समय पर तनाव एवं संघर्ष पैदा होते हैं, परम्पर अविश्वास एवं मानसिक कुंठायें भी बढ़ती हैं। उपर्युक्त कारणों से भारत की आन्तरिक एकता, सम्बद्ध चेतना और भारतीयता की भावना को गहरा आघात लगा है। यह स्थिति सामाजिक संरचना के स्वरूप एवं वास्तविकता के बीच भेद के कारण उत्पन्न हुई है। अब हम यहाँ भारतीय समाज एवं संजातीय (Ethnic) विविधताओं को जानने का प्रयत्न करेंगे। समुदाय में व्याप्त
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