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सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा | सामाजिक परिवर्तन के कारण | शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन का अन्तर्सम्बन्ध | सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा |  सामाजिक परिवर्तन के कारण | शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन का अन्तर्सम्बन्ध | सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा | सामाजिक परिवर्तन के कारण | शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन का अन्तर्सम्बन्ध | सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका

‘सामाजिक परिवर्तन’ से आप क्या समझते हैं ? यह किन कारणों से घटित होता है ? शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन के अन्तर्सम्बन्ध की विवेचना कीजिए । 

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Social Change)

गिलिन एवं गिलिन ने सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा प्रस्तुत करते हुए लिखा है, सामाजिक परिवर्तन जीवन की स्वीकृत रीतियों में परिवर्तन अथवा अन्तर को कहते हैं, चाहे ये परिवर्तन भौगोलिक दशाओं के परिवर्तन से हुए हों अथवा सिद्धान्तों के परिवर्तन से हुए अथवा ये प्रसार से अथवा समूह के अन्दर आविष्कार से हुए हो परन्तु यह परिभाषा बहुत हों ही विस्तृत है। इसमें जीवन के समस्त प्रकार के परिवर्तनों को सामाजिक परिवर्तन बताया है।

इसी प्रकार डॉसन तथा गेटिस ने भी लिखा है, “सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन है क्योंकि समस्त संस्कृति अपनी उत्पत्ति, अर्थ एवं प्रयोग में सामाजिक है।” परन्तु वास्तविकता यह है कि जीवन की स्वीकृत रीतियों में जो परिवर्तन होता है यह तो सांस्कृतिक परिवर्तन है और जो परिवर्तन केवल सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित करता है, वह सामाजिक परिवर्तन है। यह ठीक भी है क्योंकि आखिर समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल ही तो है। अतः जो परिवर्तन सामाजिक सम्बन्धों में होंगे उन्हीं को तो सामाजिक परिवर्तन कहा जायेगा, न कि समस्त प्रकार के परिवर्तनों को उपर्युक्त के अनुसार संक्षेप में हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन वह के है जो सामाजिक सम्बन्धों में हो।

सामाजिक परिवर्तन की कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “उस परिवर्तन को ही केवल सामाजिक परिवर्तन मानेंगे जो इनमें (अर्थात् सामाजिक सम्बन्धों में) हो ।”

( 2 ) जोन्स के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जो सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक प्रतिमानों, सामाजिक अन्तर्क्रिया का सामाजिक संगठन के किसी अंग में अन्तर अथवा रूपान्तर को वर्णित करने में प्रयोग किया जाता है।”

(3) के० डेविस के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन से केवल वे ही परिवर्तन समझे जाते हैं जो सामाजिक संगठन अर्थात् समाज के ढाँचे और कार्यों में घटित होते हैं।”

सामाजिक परिवर्तन के कारण (Causes of Social Change)

सामाजिक परिवर्तन एक निरंतर होने वाली प्रक्रिया है। इसके प्रमुख कारण निम्न हैं-

(1) प्राकृतिक कारण- धरती की सतह हमेशा एक ही स्थिति में नहीं रहती इसमें बराबर कुछ-न-कुछ परिवर्तन होते रहते हैं। भूकम्प, आँधी, तूफान, अतिवृष्टि, सूखा आदि आते रहते हैं जिनका व्यापक प्रभाव सामाजिक जीवन पर पड़ता है। जनसंख्या में वृद्धि अथवा कमी, भुखमरी, खाद्यान्नों की कमी और बीमारियों का प्रकोप समाज में परिवर्तन उत्पन्न करते हैं।

(2) जैवकीय कारण- मैकाइवर एवं पेज का विचार है कि, “सामाजिक परिवर्तन के दूसरे साधन सामाजिक निरन्तरता की जैविकीय स्थिति, जनसंख्या के बढ़ाव एवं घटाव, जो प्राणियों और मनुष्यों की वंशगत दशा के ऊपर निर्भर करते हैं।” यह वंशगत सम्मिश्रण की स्थिति सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न करती है।

(3) जनसंख्यात्मक कारण- यह जैविकीय कारण का एक रूप है। इसका तात्पर्य है कि सामाजिक परिवर्तन जनसंख्या के घनत्व पर भी निर्भर करता है। जन्म एवं मृत्यु दर के अनुपात में परिवर्तन के कारण समाज में जनसंख्या या उसकी संरचना में परिवर्तन होता रहता है। समाज में स्त्री, पुरुष, बच्चों एवं वयस्कों का अनुपात निरन्तर बदलता रहता है। जनसंख्या की अधिकता और संसाधनों में कमी के कारण समाज में निर्धनता बढ़ती है। सामाजिक मूल्य बदल जाते हैं, आचार संहिता एवं राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन होता है। जनसंख्या नियंत्रित होने पर आर्थिक विकास की वृद्धि के साथ जीवन-स्तर ऊपर उठता है और एक समृद्धशाली सामाजिक व्यवस्था का उदय होता है।

(4) औद्योगिक कारण- वेब्लेन एवं अन्य समाजशास्त्रियों ने औद्योगिक प्रगति को सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारण माना है। उनका कहना है कि औद्योगिक कारक ही समाज में परिवर्तन या विघटन करते हैं। मानव अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जब नये साधनों का प्रयोग करते हैं तो सामाजिक परिवर्तन को एक नई शक्ति प्राप्त होती है। औद्योगीकरण के फलस्वरूप गाँव उजड़कर शहरों में आ गये। गाँव में इनका जो रहन-सहन था, वह शहरों में अधिक बढ़ गया।

(5) नये आविष्कार और विचार- नवीन आविष्कार और नये विचार भी सामाजिक परिवर्तन में सहायक होते हैं। नई खोजों का समाज पर अधिक प्रभाव पड़ता है। ऑगबर्न ने रेडियो के 150 प्रभाव बताये हैं। रेडियो और कार के प्रभाव को देखकर वे इस नतीजे पर पहुँचे कि औद्योगिकीय आविष्कार सामाजिक परिवर्तन के मूल स्रोत अथवा कारक हैं। इसी तरह दूरदर्शन, हवाई जहाज, कम्प्यूटर तथा विभिन्न प्रकार के अन्य आविष्कारों एवं विचारों ने सामाजिक परिवर्तन की पृष्ठभूमि तैयार की।

(6) सामाजिक आविष्कार- जब अभौतिक संस्कृति में आविष्कार होते हैं तो उन्हें सामाजिक आविष्कार कहा जाता है। यह एक सामूहिक आविष्कार होता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन औद्योगिक आविष्कार तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि सामाजिक आविष्कार के कारण ही सामाजिक परिवर्तन होता है। यदि कानून को सामाजिक आविष्कार कहा जाय तो अनुचित न होगा। इस प्रकार सामाजिक विधान सामाजिक परिवर्तनों का एक कारण है। उदाहरण के लिए सती प्रथा, विधवा विवाह कानून, बाल विवाह निषेध कानून, छुआछूत निवारण कानून, ये सामाजिक विधान सामाजिक आविष्कार ही हैं, अतएव इन्हें भी सामाजिक परिवर्तन का कारण कहा जाता है।

(7) सांस्कृतिक कारण- मैक्सवेबर, मैकाइवर, सोरोकिन आदि विद्वानों के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण सांस्कृतिक परिवर्तन है, क्योंकि मानव के .विश्वासों, मूल्यों, आदर्शों, विचारों, दृष्टिकोणों एवं परम्पराओं तथा सामाजिक संबंधों और संस्थाओं में गहरा संबंध पाया जाता है। औद्योगिक विकास के कारण नवीन सभ्यता का विकास हुआ जिससे संस्कृति में संक्रमण की अवस्था उत्पन्न हो गयी है, यह अवस्था सामाजिक परिवर्तन के लिए शक्ति प्रदान करती है। भारत में पश्चिमी संस्कृति के प्रसार से जिस आधुनिक सभ्यता का उदय हुआ है, उससे एक नई सामाजिक व्यवस्था का जन्म हो रहा है। डासन और गेटिस ने भी इसका समर्थन किया है। उनके अनुसार, “……..सांस्कृतिक परिवर्तन भी सामाजिक परिवर्तन हैं, क्योंकि समस्त संस्कृति अपनी उत्पत्ति, अर्थ और प्रयोग में सामाजिक है।” परन्तु विभिन्न समाजशास्त्रियों में इस संबंध में मतभेद है। कुछ लोग सांस्कृतिक परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन मानते हैं और कुछ इस बात से सहमत नहीं हैं।

(8) युद्ध- ऑगबर्न ने युद्ध को सामाजिक परिवर्तन का एक कारण माना है और कहा है कि युद्ध सामाजिक परिवर्तन का एक आविष्कार है। युद्ध सामाजिक विघटन का एक विकृत रूप माना गया है। युद्ध के कारण तरह-तरह के आविष्कार होते हैं साथ ही नैतिक साधन नष्ट होते हैं, अनेक प्रकार की बीमारियाँ फैलती हैं और इससे बदला हुआ समाज सामने आता है। जो विजयी होता है उसके सामने हारी हुई शक्ति लोहा मान लेती है, उस देश की आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं का विघटन हो जाता है। युद्ध के कारण जनसंख्या एक स्थान से दूसरे स्थान पर चली जाती है। इससे समाज के स्वरूप में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है। देश के लोगों को अपने में परिवर्तन की आवश्यकता पड़ती है और यह परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन का कारण बन जाता है।

(9) धार्मिक कारण- चार्ल्स एलवुड का मानना है कि धर्म सामाजिक परिवर्तन का एक कारण है। उनके अनुसार- “समाज तथा मनुष्य पर सदैव ही शक्तिशाली नियंत्रण धर्म का होता है।” अतएव सामाजिक परिवर्तन में धर्म का विशेष योगदान होता है।

(10) आर्थिक कारण- आर्थिक आधार पर सामाजिक परिवर्तन की विवेचना करने वालों में कार्ल मार्क्स का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। मार्क्स का मत है कि सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण आर्थिक स्थिति है। जब भी समाज की आर्थिक स्थिति बदलती है तो समाज में परिवर्तन हो जाता है। आर्थिक संरचना से ही सामाजिक संरचना निर्मित होती है। चूँकि पुरानी आर्थिक एवं सामाजिक संरचनायें नई विकसित आर्थिक माँग के प्रतिकूल होती हैं, इसलिए परिवर्तित हो जाती हैं। यह परिवर्तन नई एवं पुरानी व्यवस्था के मध्य संघर्ष का परिणाम होता है।

शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तन का अन्तर्सम्बन्ध (Inter-relationship of Education and Social Change)

शिक्षा पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव

विद्यालय का आकार, स्वरूप, व्यवस्था आदि समाज पर निर्भर करते हैं। सामाजिक व्यवस्था के उद्देश्यों को पूरा करने में विद्यालय अपना सहयोग प्रदान करता है। जब समाज में परिवर्तन होगा तो विद्यालय में भी परिवर्तन अवश्य होगा। अतएव यह कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव शिक्षा और विद्यालय पर पड़ता है। शिक्षा पर किसी देश की प्रचलित राजनीति का भी प्रभाव पड़ता है। आज विश्व के अविकसित देशों में उद्योगों का विकास तीव्र गति से हो रहा है। इस दिशा में शिक्षा पूरा सहयोग प्रदान कर रही है। शिक्षा का यह प्रयास होता है कि देशवासियों में तकनीकी क्षमता का विकास हो। आज विश्व के अनेक देशों की यह नीति हो गयी है कि उत्पादन के कार्यों में अधिक से अधिक लोग हिस्सा लें। इसलिए वहाँ विज्ञान और तकनीकी शिक्षा का प्रसार बड़ी तेजी से किया जा रहा है। इस कार्य में विभिन्न देशों के शिक्षाविद् कार्यरत हैं। वे समाज की विचारधाराओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करने में हर प्रकार के संभव प्रयास कर रहे हैं। इन देशों में ऐसे तकनीकी विशेषज्ञों को उत्पन्न किया जा रहा है जो उत्पादन के कार्य में वृद्धि कर सकें।

सामाजिक परिवर्तन पर शिक्षा का प्रभाव

जिस प्रकार शिक्षा पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है उसी तरह शिक्षा भी सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करती है। शिक्षा का प्रभाव जन-जीवन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। शिक्षा विद्यालयों में प्राप्त होती है। अतः जन सामान्य के लिए विद्यालयों का विशेष है। उदाहरण के लिए यदि किसी समाज में निर्धनता व्याप्त है तो इस निर्धनता को दूर करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता होगी। शिक्षा प्राप्त करके लोग औद्योगिक विकास में महत्त्व योगदान दे सकते हैं। जब किसी देश में औद्योगिक विकास हो जाता है तो वह स्वयं सम्पन्न हो जाता है और वहाँ की निर्धनता दूर हो जाती है। यदि शिक्षा निर्धनता को दूर करने का साधन है तो सभी लोग शिक्षा की ओर आकर्षित होंगे । ऐसे समाज और देश में शिक्षित लोगों की अधिकता होगी।

यदि समाज में शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं होती तो समाज में योग्य व्यक्तियों का अभाव हो जाता है और इसका समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। समाज में नेतृत्व करने वाले लोगों की कमी हो जाती है। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि समाज का प्रभाव शिक्षा पर और शिक्षा का प्रभाव समाज पर पड़ता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा का विशेष योगदान होता है। दूसरे शब्दों में शिक्षा सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करती है और स्वयं भी सामाजिक परिवर्तन से प्रभावित होती है।

सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका (Role of Education in Social Change)

सामाजिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की अग्रणी भूमिका होती है। आधुनिक भारतीय समाज में शिक्षा द्वारा अनेक परिवर्तन किए गए हैं। प्रत्येक समाज के अपने मूल्य होते हैं और शिक्षा इन मूल्यों का संरक्षण करती है और आवश्यकतानुसार उनका शोधन करती है। समाज का स्वरूप निरन्तर बदलता रहता है। शिक्षा द्वारा ही इस स्वरूप का परिवर्तन इस प्रकार होता है कि वह समाज के हितों के अनुकूल हो । शिक्षा का मुख्य कार्य किसी प्रविधि से होने वाले लाभों को स्पष्ट करना है। जब समुदाय और समाज के लोग यह जान जाते हैं कि नवीन प्रविधि से जो परिवर्तन होगा वह हितकर होगा तो वे उसे अपना लेते हैं। डॉ० सीताराम जायसवाल ने लिखा है-“ शिक्षा का यह प्रमुख कार्य है कि किसी समाज के विभिन्न वर्गों के पारस्परिक संघर्षों को रोकने के लिए ऐसे विचारों का प्रसार करे जिससे कि एकता और समग्रता उत्पन्न होती है। हमारे भारत में राष्ट्रीय एकता की समस्या है, इसका कारण यह है कि देश में जाति, भाषा, प्रान्त आदि के आधार पर विभिन्न प्रकार के स्वार्थों की प्रमुखता मिल रही है।” भारतीय समाज में अनेकानेक परिवर्तनों की आवश्यकता है। शिक्षा द्वारा ही इस कार्य को किया जा सकता है। नवीन विचारों का प्रचार-प्रसार शिक्षा द्वारा ही संभव है। राष्ट्र के बहुमुखी विकास के लिए शिक्षा द्वारा ऐसे सामाजिक परिवर्तन किये जाने चाहिए कि हम शीघ्र ही विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में आ जायें।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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