सिद्ध कीजिए कि प्रसाद जी छायावादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं।
अथवा
“प्रसाद की कविताओं में छायावादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ मिलती हैं।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
“प्रसाद जी ने हिन्दी-साहित्य में छायावाद का द्वार खोल दिया और उन्हीं की प्रमुख प्रवृत्तियों का दर्शन भी हो गया।” इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
अथवा
‘स्वानुभूति और वेदना की विवृत्ति छायावादी कविता का निजी लक्षण है।” इस कथन के आलोक में सिद्ध कीजिए कि प्रसाद जी छायावादी कविता के शिखर पुरुष हैं।
छायावादी कविता का आरम्भ जब भी हुआ हो उसका उत्कर्ष-काल 1920-36 ई० ही है। इस अवधि के बीच कविता की बनावट, काव्यानुभूति और काव्य-भाषा सभी में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन परिलक्षित हुए। जीवन जगत् और सौन्दर्य के प्रति दृष्टिकोण सूक्ष्म हो गया। अनुभूति वैयक्तिक होकर काव्य का महत्त्वपूर्ण अंग बन गयी। प्रकृति का मानवीकरण किया गया। आध्यात्मिकता का नया दर्शन दिखायी पड़ा और नये रहस्य ने जन्म लिया। कविता में सुकुमार भावनाओं को प्रधानता मिली। छायावादी कवियों ने काव्य-भाषा को नये उपमानों, प्रतीकों और चित्रात्मकता से समृद्ध किया। इस प्रकार छायावादी काव्य की कुछ निजी विशेषताएँ हैं, जिन्हें नीचे दिया जा रहा है- (क) जीवन, जगत् और सौन्दर्य के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण, (ख) वैयक्तिक अनुभूति, (ग) शृंगारिकता, (घ) कल्पना और भावना, (ङ) प्रकृति-चित्रण,, (च) नये रहस्यवाद की स्थापना, (छ) नारी महत्ता की स्थापना, (ज) अभिव्यंजना में प्रतीकात्मकता, लाक्षणिकता और चित्रात्मकता|
‘छायावाद‘ के प्रमुख तत्त्वों के निर्माण में प्रसाद का योगदान सबसे अधिक है। यही कारण है कि छायावादी काव्य की ये सारी विशेषताएँ प्रसाद जी की कविताओं में मिलती हैं। वे छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं।
(क) जीवन, जगत् और सौन्दर्य के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण- छायावादी कवियों ने जीवन, जगत् और सौन्दर्य के प्रति सूक्ष्म दृष्टिकोण अपनाया। उन्होंने सौन्दर्य के विभिन्न रूपों को नये-नये ढंग से उजागर किया। प्रसाद जी तो पार्थिव सौन्दर्य के प्रति प्रारम्भ से ही आकृष्ट हुए थे। जीवन के प्रति उनकी एक बौद्धिक धारणा थी। उसमें सुख-दुःख, संघर्ष के बाद निस्संगता या निवेद की स्थिति के दर्शन होते हैं। प्रसाद जी के कला-सौन्दर्य, रूप-सौन्दर्य, भाव-सौन्दर्य का एक उदाहरण प्रस्तुत है—
सुना यह मनु ने मधु-गुंजार मधुकरी का-सा जब सानन्द
किये मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यों सुन्दर छन्द।
नारी की देह-यष्टि का इतना सुन्दर वर्णन अत्यन्त दुर्लभ है। इसी भाँति भाव-सौन्दर्य का दो-एक उदाहरण देखिये-
हृदय की अनुकृति बाह्य उदार एक लम्बी काया उन्मुक्त
मधु पवन क्रीड़ित ज्यों शिशु साल सुशोभित हो सौरभ संयुक्त ।
X X X
अभिलाषाओं की करवट फिर सुप्त व्यथा का जगना
सुख का सपना हो जाना भीगी पलकों का लगना
(ख) वैयक्तिक अनुभूति- छायावादी काव्य की दूसरी प्रमुख विशेषता है। अधिकांश कविताओं में आत्मनिष्ठा और स्वानुभूति प्रकाशन या रूमानियत की प्रधानता है। प्रसाद जी में यह प्रवृत्ति ‘आँसू’ से लेकर ‘कामायनी’ तक मिलती है। ‘आँसू’ एक व्यक्तिवादी काव्य माना जाता है, ऐसा इसलिए है कि उसमें स्वानुभूति, सुख-दुःख, निराशा और वेदना की अभिव्यक्ति हुई है-
रो-रोकर सिसक-सिसककर कहता मैं करुण कहानी।
तुम सुमन नोचते रहते करते जानी अनजानी।।
‘कामायनी’ में वैयक्तिकता और अहं का स्तर कहीं-कहीं मुखर हुआ है।
मनु का चरित्र इसका प्रमाण है। वह निजी सुख-दुःख और निराशा-वेदना को बहुत अधिक महत्त्व देता दिखायी पड़ता है-
एक विस्मृति का स्तूप अचेत ज्योति का धुंधला-सा प्रतिबिम्ब
और जड़ता की जीवन-राशि सफलता का संकलित विलम्ब ।।
(ग) शृंगारिकता – छायावादी काव्य में शृंगार की अभिव्यक्ति कई रूपों में हुई है। प्रसाद जी प्रेम और सौन्दर्य के श्रेष्ठ कवि हैं, इसलिए उनके काव्य में अतीन्द्रिय शृंगारिकता की अभिव्यक्ति हुई है। छायावाद की शृंगारिकता अन्तर्मुख है, शृंगार का रूप स्थूल न होकर सूक्ष्म है। प्रसाद का शृंगार वर्णन स्वच्छ नैसर्गिक तथा अपने आप में पूर्ण है। उन्होंने शृंगार के सभी पक्षों उन्माद, उत्कण्ठा, लालसा, आत्म-विस्मृति, करुणा, आह्लाद तथा आशा-निराशा आदि का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। ‘कामायनी’ और ‘आँसू’ दोनों में शृंगार – भावना की प्रधानता है। श्रद्धा का नख-शिख वर्णन, लज्जा, मनु-श्रद्धा मिलन आदि स्थलों पर यदि शृंगार के संयोग पक्ष का चरम उत्कर्ष मिलता है तो ‘आँसू’ में विरह वर्णन की प्रधानता है-
कौन-हो तुम विश्व-माया- कुहुक-सी साकार,
प्राण सत्ता के मनोहर भेद-सी सुकुमार!
हृदय जिसकी कान्त छाया में लिये निःश्वास
थके पथिक समान करता व्यजन ग्लानि विनाश।”
(कामायनी)
(घ) कल्पना और भावना- मानव के सूक्ष्म मनोभावों और अन्तर्दशाओं का उद्घाटन प्रसाद जी की कल्पना शक्ति का परिचायक है। उन्होंने कामायनी में पूर्ण मानव-दर्शन की कल्पना की है। प्रकृति चित्रण में उनकी कल्पना और भावुकता दोनों का अपूर्व सामंजस्य दृष्टिगोचर होता है—
फटा हुआ था नील, वसन क्या, ओ यौवन की मतवाली
देख अकिंचन जगत् लूटता, तेरी छवि भोली-भाली।
X X X
यह क्या मधुर स्वप्न-सी झिलमिल सदय हृदय से अधिक अधीर
व्याकुलता-सी व्यक्त हो रही आशा बनकर प्राण समीर।
(ङ) प्रकृति-चित्रण — प्रसाद जी का प्रकृति-चित्रण अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा जीवन और प्रभावशाली है। ‘कामायनी’ में प्रकृति के विविध पक्षों एवं उसके गूढ़तम स्तरों को प्रसाद जी ने व्यंग्यात्मक ढंग से उजागर किया है। प्रकृति का सुन्दर नारी के रूप में चित्रण उनकी निजी विशेषता है। उनके उपमान नये हैं। वे पारम्परिक वर्णन से अलग हटकर प्रकृति-चित्रण करते हैं-
“बीती विभावरी जाग री!
अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घट ऊषा नागरी
खग-कुल-कुल-कुल-सा बोल रहा किसलय का अंचल डोल रहा
. लो यह लतिका भी भर लायी मधु मुकुल नवल-रस गागरी”
(लहर)
(च) नारी महत्ता की स्थापना- नारी के प्रति छायावाद में एक स्वस्थ दृष्टिकोण का विकास हुआ। प्रसाद जी ने उसे दया, माया, ममता, बलिदान, सेवा, समर्पण और विश्वास का स्रोत बताया है। नारी को पूर्ण स्वतन्त्रता और आदर दिलाने में छायावादी कवियों में सर्वाधिक योगदान प्रसाद जी का रहा हैं, नारी के प्रति संवेदना और सहानुभूति प्रसाद जी के दृष्टिकोण की प्रमुख विशेषता है—
नित्य-यौवन छवि से ही दीप्त विश्व की करुण-कामना मूर्ति,
स्पर्श के आकर्षण से पूर्ण प्रगट करती ज्यों जड़ से स्फूर्ति
X X X
नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नम पग तल में
पीयूष स्रोत-सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में।”
इस प्रकार अपने नवीन प्रयोग, वाक्य-विन्यास, बिम्ब-विधान और प्रतीक योजना द्वारा प्रसाद जी ने काव्य-भाषा का नया संस्कार किया तथा उसे अधिक प्रभावशाली और अर्थवान् बनाया।
उपर्युक्त विश्लेषण से यह पूरी तरह स्पष्ट हो जाता है कि प्रसाद जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि हैं।
IMPORTANT LINK
- पन्त की प्रसिद्ध कविता ‘नौका-विहार’ की विशेषताएँ
- पन्त जी के प्रकृति चित्रण की विशेषताएँ
- सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
- सुमित्रानन्दन पंत के काव्य के क्रमिक विकास
- सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?
- महाकवि निराला का जीवन परिचय एंव साहित्य व्यक्तित्व
- निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ- भावपक्षीय एंव कलापक्षीय
- निराला के छायावादी काव्य की विशेषताएँ
- महादेवी वर्मा के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
- महादेवी वर्मा की रहस्यभावना का मूल्यांकन
Disclaimer