हिन्दी साहित्य

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?
सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?

सुमित्रानंदन पंत के अनुसार भाषा क्या है?

कला पक्ष की दृष्टि से पन्त जी के काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हो सकती हैं-

1. भाषा- भाषा की दृष्टि से पन्त जी की गणना हिन्दी के समृद्धतम कवियों में होती है। भाषा के विभिन्न रूपों पर सहज उनका अधिकार दिखाई पड़ता है। भाषा की छिपी हुई शक्तियों को प्रकाश में लाने का श्रेय पन्त जी को ही है। उनके अभिव्यक्ति कौशल के ढंग निराले हैं। पन्त जी ने अपनी कविताओं में खड़ी बोली के सहज, सरल और कोमल रूप को अपनाया है। कहीं-कहीं ब्रजभाषा, पर संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग मिल जाता है। इसके अतिरिक्त इनकी भाषा में अंग्रेजी तथा फारसी के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलते हैं। पन्त जी की भाषा व्याकरण के नियमों से मुक्त है। स्त्रीलिंग और पुल्लिंग शब्दों के स्थान में भेद हो गया है। ब्रजभाषा के शब्दों में बयार, छोर, बादर, अजान, दीठि आदि। फारसी में नादान, नुस्खा आदि। देशज शब्दो में उबहनी, गढ़हाल, बिटिया, बतियाना, दुमुहा आदि। अंग्रेजी में इनोसेन्ट, अण्डर आदि तथा संस्कृतनिष्ठ शब्दों में तन्द्रिल, फैनिल, स्वप्निल, उर्मिला, स्वर्णिम शब्दों का प्रयोग हुआ है। पन्त के काव्य में लाक्षणिक शब्दों की अपेक्षा प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग हुआ है। पन्त के काव्य में लाक्षणिक शब्दों की अपेक्षा प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग अधिक हुआ है। लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। प्रतीकात्मक शब्दावली का एक उदाहरण देखिए-

“द्रुत झरों जगत के जीर्ण पत्र, हे ग्रस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!”

शैली की दृष्टि से पंत जी के काव्य में गीतात्मक शैली का प्रयोग हुआ है। दार्शनिकता के क्षेत्र में प्रवेश करते ही उनकी शैली क्लिष्ट एंव दुरूह हो गयी है। पंत जी ने अपनी ररचनाओं में प्रसाद और माधुर्य गुण भी अपनाया है।

2. चित्रमयता- पंत जी की कविता में कल्पना का आधिक्य है। उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति के सहारे ऐसी चित्रमयता उपस्थित की है जो अन्यत्र दुर्लभ है पन्त जी की यह विशेषता है कि वह मागव- मुद्राओं, भाव भंगिमाओं तथा अनुभूतियों का ऐसा चित्र खींचकर सामने रख देते हैं जो आँखों के सामने नाचने लगता है तथा उसमें स्वाभाविकता के दर्शन होते हैं। उदाहरणार्थ एक संध्या का दृश्य देखिए थोड़े शब्दों में संध्या का कितना सजीव एवं स्वाभाविक वर्णन हुआ है-

“बाँसों की झुरमुट, संध्या का झुटपुट,
हैं चहक रही चिड़ियाँ टी वी टी दुद् दुद्।”

3. अलंकार योजना– पंत जी के सम्पूर्ण काव्य के अलंकारों की छटा विद्यमान है। उन्होंने उपमा तथा रूपक का खुलकर प्रयोग किया है। पन्त जी की उपमाएँ प्राचीन कवियों से मित्र है। कहीं कहीं उपमानों के प्रयोग में भावों से भी शिथिलता-सी आ गयी है। उपमा का एक उदाहरण देखिए-

“अर्ध निद्रित सा विस्मृत सा, जन जागृत सा,  विमूर्छित सा।
अर्ध जीवित सा, औ मृत सा, न हर्षित सा, न विस्मित सा।
गिरा का है यह परिहास।”

इसके अतिरिक्त उनके काव्य में अनुप्रास, यमक, क्रम उल्लेख, संदेह, विरोधाभास, श्लेष, विशेषण, विपर्यय, मानवीयकरण तथा मूर्त के लिए अमूर्त उपमानों का प्रयोग भी हुआ है लेकिन कविता के भाव अलंकारों से बोझिल नहीं हो पाये हैं।

4. छन्द योजना– पन्त जी ने अपने काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग किया था। उनके काव्य में रूपमाला, रोला, सखी तथा पीयूष दर्शन आदि मात्रिक छन्दों का अत्यधिक प्रयोग हुआ है। संगीतात्मकता की दृष्टि से पन्त जी ने यथास्थान छन्दों में घटा बढ़ी करके नये छन्दों को गढ़ दिया है। छन्दों के विषय में पंत जी ने स्वयं लिखा है कि “कविता हमारे प्राणों का संगीत है, छन्द हृदय-कम्पन | कविता का स्वभाव ही छन्द में लयमान होता है। जिस प्रकार नदी के तट अपने बन्धन से धारा की गति को सुरक्षित रखते हैं, जिनके बिन वह अपनी ही बन्धनहीनता में प्रवाह खो बैठता है। उसी प्रकार छन्द भी अपनी नियंत्रण में से रोग को स्पन्दन तथा वेग प्रदान कर निर्जीव शब्द में रोड़ों में एक कोमल, सजल कलश पर उन्हें सजीव बना देते हैं।”

इस प्रकार पन्त जी की छन्द योजना अत्यन्त रमणीय है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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