अध्यापक दक्षता एवं वचनबद्धता में अन्तर बताते हुए अध्यापक शिक्षण दक्षता की आवश्यकता एवं आयामों का उल्लेख कीजिये।
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अध्यापक दक्षता एवं वचनबद्धता में अन्तर
शिक्षा के राष्ट्रीय आयोगों, शिक्षा समिति तथा शिक्षाविदों ने विद्यालय की शिक्षा हेतु कार्यक्रमों, भूमिकाओं, उत्तरदायित्वों तथा जवाबदेही एवं प्रतिबद्धता के सम्बन्ध में सुझाव तथा संस्तुतियां दी है इसी क्रम में विद्यालय शिक्षा में जवाबदेही के सम्बन्ध में सुझाव तथा संस्तुतियां भी दी है। विद्यालय शिक्षा में जवाबदेही और उत्तरदायित्व की भूमिका से शिक्षण कार्यों का संचालन किया जाता है और विद्यालयी शिक्षा लक्ष्यों की प्राप्ति की जाती है।
किसी संस्थान तथा विद्यालय प्रशासन में अध्यापकों की भूमिका व उत्तरदायित्त्व प्रमुख होता है इसीलिए उनका अधिकार भी अधिक होता है। विद्यालय प्रशासन अपनी भूमिका एवं उत्तरदायित्व में शिक्षकों को सहभागी बनाता है। तथा उन्हें अधिकार एवं उत्तरदायित्व भी सौपता है तथा कर्तव्य के प्रति जवाबदेह बनाता है। जवाबदेही से आशय है कि कर्तव्य की पूर्ति हेतु जवाबदेह होना इस जवाबदेही में शिक्षा के संबंध में, उसके संचालन में शिक्षा की गुणवत्ता में तथा अच्छे परिणामों की प्राप्ति शामिल है। जवाबदेही के सम्बन्ध में कुछ विचारकों ने परिभाषाएँ व्यक्त की है जो निम्नलिखित है-
“जवाबदेही किसी अधिकारी द्वारा सौपें गये कार्य को गुणात्मक एवं सर्वोतम रूप से अधिकारी के निर्देशन के अनुरूप करने का बन्धन एवं कार्य है।” – डेविस
“उच्च अधिकारी द्वारा अपने अधीनस्थों से उनके कर्तव्यों की समीक्षा करना ही जवाबदेही कहलाता है।” -हेमन
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक को जगद्गुरू की उपाधि से विभूषित किया गया है। शिक्षक, शिक्षार्थी व पाठ्यक्रम ये तीनों शिक्षण के स्तम्भ है, जिन पर शिक्षा व्यवस्था रूपी भवन अवस्थित है। इन तीनों में एक सम्यक् एवं सन्तुलित समन्वय से ही समाज की उन्नत्ति व विकास सम्भव है। शिक्षक राष्ट्र के कर्णधार है उसके ऊपर देश का विकास निर्भर है। देश की प्रगति शिक्षक के ही हाथ में है। शिक्षक को एक जलते दीपक की उपमा दी गई है। एक प्रकाशमान दीपक दूसरे दीपक को प्रकाशमय कर सकता है। शिक्षक समाज में मार्गदर्शक की भूमिका का निर्वहन करता है। उसे इस गुरुत्तर भार को वहन करने के लिए अनेक स्थितियों का सामना करना पड़ता है। शिक्षक के जीवन का दीर्घ समय विद्यालय में व्यतीत होता है। शिक्षा केवल मानव ज्ञान ही प्रदान ही नहीं करती बल्कि उसके व्यवहारों, विचारों तथा अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी कौशलों का पूर्णरूपेण विकास करती है।
“शिक्षक के माध्यम से ही संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती है, समाज की परम्पराऐं नवयुवकों को याद होती है तथा वही नये व रचनात्मक उत्तरदायित्वपूर्ण को ऊर्जा से छात्रों को सौंपता है।” -गारफोर्थ
“एक राष्ट्र के विद्यालय उसके जीवन के अंग है, जिनका प्रमुख कार्य आत्मिक शक्ति का एकीकरण, ऐतिहासिक निरन्तरता का अनुसरण, भूतकाल की सफलताओं को प्राप्त करना तथा भविष्य की गारन्टी है। -टी. पी. नन
एक अच्छे प्रगीतशील राष्ट्र का निर्माण एक कुशल शिक्षक ही कर सकता है। अध्यापक का यह दायित्व है कि वह अपने कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से निर्वाह करें अध्यापक कई कारणों से अपने कार्यों को गम्भीरतापूर्वक नहीं लेते है, इससे अध्यापकों की विद्यालयी उपलब्धियाँ, वचनबद्धता एवं दक्षता भी प्रभावित होती है।
शिक्षक शिक्षण दक्षता
जब भी किसी ऐसे व्यावसाय या कार्य के बारे में जिक्र होता है जिसमें किसी व्यक्ति को दक्षता पर्याप्त व्यावसायिक कुशलताओं, ज्ञान शैक्षिक योग्यता और क्षमता आदि विशेषताओं का जिक्र होता है तो वहां दक्षता शब्द का बहुधा प्रयोग किया जाता है और यही दक्षता है।
दक्षतागत अध्यापक शिक्षा
अध्यापक को अपने विषय में पूर्व ज्ञान की समझ होनी चाहिए। अपने छात्रों के प्रति उसका दृष्टिकोण स्नेहमय होना चाहिए। व्यक्तित्व के इन गुणों के बिना ज्ञान का संम्प्रेषण प्रभावशाली नहीं हो सकता इसके अलावा भी निम्नलिखित गुण ऐसे होते है जो अध्यापन को प्रभावशाली बनाते हैं, जैसे- निस्पक्षता एवं कर्तव्य भावना छात्रों के प्रति प्रेम, संयम, निष्ठा एवं नियमितता तथा खुशमिजाजी, पर ये सब गुण छात्र के व्यवहार में वांछनीय परिवर्तन नहीं ला सकते, अगर अध्यापक में सम्प्रेषणीय नहीं।
अध्यापक को अध्यापन की प्रक्रिया के दौरान उसे उन शब्दों और क्रियाकलापों के प्रति भी सचेत रहना होगा जो छात्रों की विभिन्न प्रवृत्तियों से आभासित होते हैं। यानी अध्यापक और छात्रों के मध्य आपसी सम्प्रेषण का रिश्ता होना चाहिए इस तरह अध्यापकीय क्षमता के दो भाग होते हैं। एक अध्यापक का ज्ञान और उसके व्यक्तित्व की विलक्षणतायें और दूसरी संप्रेषण दक्षता दोनों मिलकर ही अध्यापकीय क्षमता बनती है।
दक्षता आधारित अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता
किसी भी उद्यमगत नैपुण्य की प्राप्ति के लिए दक्षता की प्राप्ति, प्रतिबद्धता का उन्मेषण एवं श्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु इच्छा का होना आवश्यक है। संकल्पनात्मक, विषयगत सन्दर्भ-निर्भर सम्प्रेषणात्मक एवं मूल्यांकन प्रबन्धन तथा सहयोगात्मक दक्षता की प्राप्ति के साथ ही प्रतिबद्धता को विकसित करना अध्यापक शिक्षा का ही दायित्व हो जाता है। ताकि सफल अध्यापकीय तैयारी सम्भव हो सके। अधिगमकर्ता समाज, शिक्षण उद्यम, मूल्य और श्रेष्ठतार्जन के प्रति प्रतिबद्धता की अपेक्षा एक अध्यापक से अवश्य ही की जा सकती है। कक्षागत प्रदर्शन विद्यालयगत प्रदर्शन, विद्यालयेत्तर शैक्षिक क्रियाकलापों में प्रदर्शन आदि के साथ ही अभिभावक सम्बन्धित एवं समुदाय सन्दर्भित प्रदर्शन अध्यापक के लिए जरूरी माना जाता है। अत: इन तीनों ही निपुणताओं की सम्प्राप्ति के लिए उपयुक्त अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता को अस्वीकृत करना सम्भव नहीं है।
अध्यापक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों में व्यवहारिक दक्षता पर विकास करता है। अध्यापकों की सामान्य शिक्षण दक्षता को निम्न आयामों के अन्तर्गत अध्ययन किया गया है-
(1) व्यक्तिगत शिक्षण दक्षता – अध्यापक के लिए शिक्षा अध्ययन तथा अधिगम से परिधित होना एक ओर जहां आवश्यक है, वहीं दूसरी ओर उन पर पड़ने वाले विविध सामाजिक-आर्थिक सांकृतिक कारकों के प्रभाव के बारे में जानकारी रखना अपेक्षित माना जाता है। शारीरिक मानसिक और सांस्कृतिक विकास के लिए अधिगमकर्ताओं की आवश्यकताएँ क्या है और उनके विकासात्मक वैशिष्ट्य क्या है, यह जानने के बाद ही प्रभावकारी ढंग से पाठ्यक्रम का प्रस्तुतीकरण करना या प्रायोगिक कार्य को संचालित कर पाना सम्भव सकता है।
केवल पाठ्यक्रमगत् क्रियाकलापों के बारे में दक्षता की प्राप्ति ही प्रर्याप्त नहीं है बल्कि साथ ही शिक्षण विधिगत क्रियाकलापों से भी दक्ष अध्यापक को परिचित होना जरुरी जाता है जैसे, अध्यापक निर्देशित अधिगम समूह अधिगम, स्वप्रेरित वैयक्तिक अधिगम आदि अनेक ऐसी शिक्षण विधिगत संकल्पनाएँ है। किसी पाठ्य सहगामी या पाठ्यक्रम सम्बन्ध क्रियाकलाप के संचालन के लिए जरूरी हो जाती है।
(2) संदर्भित शिक्षण दक्षता
यह एक प्रमुख दक्षता आयाम है जिसमें इस बात पर बल दिया जाता है कि जब तक हम पाठ्य-वस्तु के सन्दर्भ बिन्दुओं के बारे में भली-भाँति परिचित नहीं हो पाते हैं, उसे ठीक से समझ नहीं सकते हैं, जैसे- विभिन्न सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किसी घटना या व्यवहार को उचित या अनुचित ठहराया जा सकता है। अतः सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, भाषा सम्बन्धी तथा धार्मिक सन्दर्भ के बारे में अध्यापक/अध्यापिकाओं में स्पष्ट जानकारी या अवबोध का होना अति आवश्यक है।
उदाहरणार्थ, जिस समय किसी देश की जनसंख्या में कमी होती है, उस समय परिवार का आकार बड़ा होना घातक नहीं होता है लेकिन देश की वर्तमान जनसंख्या और जनघनत्व को देखते हुए कभी भी बड़े परिवार को मान्यता प्रदान करना उचित नहीं हो सकता है।
( 3 ) विषय-वस्तु शिक्षण दक्षता – किसी भी अध्यापक के लिए अपनी विषयवस्तु में पूर्ण अधिकार का होना वैसे ही अपरिहार्य हो जाता है जैसे किसी कर्मकाण्डी ब्राह्मण के लिए मन्त्रों के बारे में जानकारी का होना। उन्हें शिक्षण के पहले पाठ्यक्रम का विश्लेषण करते हुए अवबोध योग्य अनुक्रम में सज्जित करना होता है और उनमें पारस्परिक सहसम्बन्धों को भी स्पष्ट करने की आवश्यकता होती है ताकि छात्र कार्य-कारण सम्बन्धों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करने में सक्षम हो सके।
( 4 ) सम्प्रेषण शिक्षण दक्षता – शिक्षण, मात्र विषयगत दक्षता से ही सम्पन्न नहीं किया जा सकता है क्योंकि अध्यापक/ अध्यापिका का मूल कार्य विषयगत ज्ञान का हस्तान्तरण करना होता है। पाठ नियोजन को व्यवहारिक रूप प्रदान करना और उपलब्धि स्तर का आंकलन करना इसमें निहित है। इसलिये सम्प्रेषण के ज्ञान की आवश्यकता पड़ती है ताकि एक ही डण्डे से सभी अधिगमकर्ताओं को हाँकने की आवश्यकता न हो। उपरोक्त के अतिरिक्त एन.सी.टी.ई. ने निम्नलिखित दक्षताएँ भी बताई है-
(5) संकल्पनात्मक दक्षता
(6) अन्य शैक्षिक क्रियाकलापगत् दक्षता
(7) शिक्षण-अधिगम सामग्री दक्षता
(8) अभिभावक सह-कार्य दक्षता
(9) समुदाय एवं अन्य संगठन सह-कार्य दक्षता
(10) मूल्यांकनगत् दक्षता
(11) प्रबन्धन सम्बन्धी दक्षता
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